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भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ने अमेरिका को पीछे खड़ा कर दिया

Ram Gopal Jat
अमेरिका ने अरुणाचल प्रदेश और चीन के बीच मैकमोहन लाइन को अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर के तौर पर मान्यता दे दी है। अमेरिकी सीनेट में पास हुए एक प्रस्ताव में अरुणाचल प्रदेश को भारत का अभिन्न हिस्सा बताया गया है। बिल को सीनेट में रखने वाले सांसदों बिल हैगरटी और जेफ मर्क्ले ने कहा है कि चीन लगातार इंडो-पैसिफिक यानी हिंद—प्रशांत क्षेत्र में खतरा पैदा कर रहा है। ऐसे में ये जरूरी है कि अमेरिका अपने रणनीतिक साझेदार और खासतौर पर भारत के साथ खड़ा रहे। यह बिल अरुणाचल प्रदेश को स्पष्ट रूप भारत के हिस्से के रूप में मान्यता देता है। चीन लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल, यानी LAC पर अभी जो स्थिति है, उसे बदलने की कोशिश कर रहा है और अमेरिका इसकी निंदा करता है। अमेरिका लगातार भारत और क्वाड देशों के साथ अपनी साझेदारी बढ़ाने के पक्ष में है, जिससे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शांति बनाई जा सके।
सीनेट की समिति के अध्यक्ष मरकले ने कहा कि बिल यह साफ करता है कि अमेरिका अरुणाचल काे भारत के हिस्से के रूप में देखता है, न कि चीनी प्रदेश के रुप में। इस प्रस्ताव में अमेरिका ने लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर चीन के उकसावों की निंदा की है। चीन के सैन्य बल का इस्तेमाल करने, विवादित क्षेत्र में गांव बसाने, स्थानीय शहरों का चीनी भाषा मैंडरिन में नाम रखने और मैप पब्लिश करने की भी निंदा की है। इसके साथ ही भूटान में भी कई क्षेत्रों को चीन का हिस्सा बताने को गलत ठहराया है। इस प्रस्ताव में चीन की तरफ से बढ़ते खतरों के बीच अपने बचाव में उठाए गए कदमों के लिए भारत सरकार की सराहना की गई है। संशोधन में भारत-अमेरिका के बीच रक्षा, तकनीक और अर्थिक के क्षेत्र में द्विपक्षीय साझेदारी बढ़ाने पर जोर दिया गया है। साथ ही क्वाड, ईस्ट एशिया समिट और एसोसिएशन ऑफ साउथ-ईस्ट एशियन नेशंस के जरिए दोनों देशों के बीच बहुपक्षीय सहयोग बढ़ाने की भी बात कही है।
दरअसल, अरुणाचल के तवांग में 9 दिसंबर, 2022 को भारत और चीन के सैनिकों में हाथापाई हुई थी। 600 चीनी सैनिकों ने 17 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित भारतीय पोस्ट को हटाने के लिए घुसपैठ की कोशिश की थी। यह पोस्ट यांगत्से में है। भारतीय सैनिकों ने चीनियों को मार कूटकर खदेड़ दिया था। तवांग में हुई झड़प से पहले भी चीन ने अरुणाचल सीमा में अपने ड्रोन भेजने की कोशिश की थी। इसके बाद इंडियन एयर फोर्स ने तुरंत अपने लड़ाकू विमान अरुणाचल सीमा पर तैनात किए थे। 15 जून 2020 को लद्दाख के गलवान घाटी में दोनों सेनाओं के बीच झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे, जबकि चीन के 38 सैनिक मारे गए थे। हालांकि, चीन की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी ने 4 सैनिक मारे जाने की बात ही कबूली थी। साल 2021 में चीन ने अरुणाचल प्रदेश की सीमा से लगे क्षेत्र में 15 स्थानों के नाम चीनी और तिब्बती रख दिए थे। चीन की सिविल अफेयर्स मिनिस्ट्री ने कहा था कि यह हमारी प्रभुसत्ता और इतिहास के आधार पर उठाया गया कदम है और यह चीन का अधिकार है। चीन दक्षिणी तिब्बत को अपना क्षेत्र बताता है। उसका आरोप है कि भारत ने उसके तिब्बती इलाके पर कब्जा करके उसे अरुणाचल प्रदेश बना दिया। इसके पहले 2017 में चीन ने 6 जगहों के नाम बदले थे।
कई बार दुनिया को लगता है कि अमेरिका इस तरह से भारत के पीछे क्यों खड़ा होने लगा है? ये वही अमेरिका है, जो कभी पाकिस्तान के पक्ष में भारत को घेरने के लिये ब्रिटेन के साथ हिंद महासागर तक पहुंच गया था। तब रूस ने भारत का पक्ष लिया था और अपना जंगी बेडा उसके सामने पहुंचा दिया था। बाद में अमेरिका और ब्रिटेन के संयुक्त जंगी बेडे को पीछे हटना पड़ा था, लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं। आज भारत की दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना के साथ कई गुणा अधिक ताकतवर देश है। भारत का अमेरिका के साथ 100 बिलियन डॉलर से अधिक का कारोबार है, जिसमें भारत को बढ़त है। अमेरिका ने अब पाकिस्तान का साथ भी छोड़ दिया है, जबकि चीन ही पाकिस्तान के पीछे खड़ा है।
भारत के विदेश मंत्री डॉ. सुब्रम्ण्यम जयशंकर की विदेश नीति ने अमेरिका को भी सोचने को मजबूर कर दिया है। अरुणाचल प्रदेश के मामले में अमेरिका ने वह किया है, जो उससे बरसों पहले करने के लिये भारत की सरकारें गुहार लगाती रही हैं। एक समय ऐसा था, जब पाकिस्तान जैसे छोटे से देश की ओर से आतंकवाद को रोकने के लिये भी भारत सरकार अमेरिका से अपील करती थी। फिर अमेरिका की तरफ से पाकिस्तान को कहा जाता था, और कुछ समय के लिये आतंकवाद कम होता था। बाद में जब पाकिस्तान को लगता था कि भारत को ब्लेकमैल करना है, तब वह अपनी आतंकी गतिविधियां बढ़ा दिया करता था। जम्मू कश्मीर में अलगाववाद के नाम पर कई कश्मीरी नेताओं को पाकिस्तान फंडिंग करके भारत के ​ही खिलाफ काम में लेता था। भारत सरकार इतनी मजबूर थी कि उसको अमेरिका के आगे आंसू बहाने पड़ते थे। किंतु अब अमेरिका ने भारत का खुलकर पक्ष लेना शुरू कर दिया है और वह भी चीन जैसे दुनिया की महाशक्ति के खिलाफ। तब सहज ही समझ आता है कि दुनिया में भारत का डंका क्यों बज रहा है? कई बार लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि अमेरिका ने बीते एक दशक में भारत के प्रति अपनी भावना क्यों बदली है?
दरअसल, यह एक दिन का काम नहीं है। भारत करीब एक दशक से विदेश नीति, रणनीति, कूटनीति और दबाव की नीति को लेकर काम कर रहा है, जिसका सुखद परिणाम सामने आने लगा है। भारत ने एक तरफ जहां धारा 370, राम मंदिर, तीन तलाक, सीएए जैसे स्थानीय मुद्दों को सुझलाने का काम किया है, तो विदेश स्तर पर दुनिया के छोटे बड़े सभी देशों से कूटनीतिक संबंध स्थापित किये हैं। अपने पहले कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 100 से ज्यादा देशों की यात्राएं की थीं। इसके साथ ही कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों को भारत बुलाया गया और उन देशों के साथ संबंध मधुर करने का काम किया गया, जिनके साथ भारत के सबंध ठंडे बस्ते में चल रहे थे। मोदी की दूसरी सरकार ने ऐसे व्यक्ति को विदेश मंत्री बनाया, जिसका सारा जीवन ही विदेश में राजदूत के रुप में गुजर गया। डॉ. एस जयशंकर को जब विदेश मंत्री बनाया गया था, तब कई लोगों ने कहा था कि मोदी सरकार मंत्री बनाने के मामले में फैल हो गई है, लेकिन अब, जबकि चार साल बीत चुके हैं, तब भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के रणनीतिकारों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है कि डॉ. जयशंकर का विदेश मंत्री के तौर पर मोदी ने चयन क्यों किया था।
प्रधानमंत्री मोदी ने विदेश मंत्री के रूप में तत्कालीन विदेश सचिव रहे एस. जयशंकर को चुना। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में विदेश मंत्री रहीं सुषमा स्वराज ने स्वास्थ्य कारणों का हवाल देते हुए सरकार में शामिल होने से इंकार कर दिया था, जिसके बाद प्रधानमंत्री ने जयशंकर को विदेश मंत्रालय की कमान सौंपी। भारतीय विदेश सेवा से जुड़े रहे जयशंकर ऐसे पहले अधिकारी रहे हैं, जो सक्रिय राजनीति में आये और सीधे कैबिनेट मंत्री बनाए गये हैं। मृदुभाषी और सौम्य स्वभाव वाले जयशंकर अमेरिका और चीन समेत कई देशों में भारत के राजदूत रह चुके हैं और विदेश सचिव के पद पर काम करने के उनके अनुभव को देखते हुए उनका चयन किया गया। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति, रणनीति की बारीकियों को समझने वाले जयशंकर ने विदेश मंत्री का पद संभालते ही भारतीय विदेश नीति को नयी दिशा दी। जयशंकर की इस बात की भी तारीफ करनी होगी कि बीते चार साल में वह किसी भी विवाद में नहीं पड़े और सकारात्मक राजनीति को लेकर ही आगे बढ़े। संसद में भी उनका प्रदर्शन सराहनीय रहा है और अब लोगों को यह बात भलीभांति समझ में आ गई होगी कि क्यों प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें विदेश मंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी थी।
जयशंकर की काबिलियत सबसे पहले दुनिया ने उस समय देखी, जब भारत सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा कर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों का रूप दे दिया, तब पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भ्रामक बातें फैलाने लगा और मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने लगा। उस समय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने विभिन्न देशों का दौरा कर वहां की सरकारों को भारत के पक्ष से अवगत कराया और देश में भी विभिन्न देशों के राजदूतों को ऐसे समझाया कि दुनिया के एकाध देश को छोड़कर कोई भी देश भारत सरकार के फैसले के विरोध में खड़ा नहीं हुआ और लगभग पूरे विश्व समुदाय ने यही कहा कि अनुच्छेद 370 हटाना भारत का आंतरिक मुद्दा है। मोदी सरकार की विदेश नीति की प्रखरता देखिये कि जो देश 370 पर भारत के रुख से सहमत नहीं हुए, उन्हें वैसी ही प्रतिक्रिया भी दी गयी। मसलन तुर्की के राष्ट्रपति ने 370 हटाने का विरोध किया तो प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी तुर्की की यात्रा को तत्काल रद्द कर दिया। मलेशिया ने भी इस मुद्दे पर आंख दिखाई तो भारत ने मलेशिया से आयात होने वाले खाद्यान्न तेल पर प्रतिबंध लगा दिया। अमेरिकी सांसद प्रमिला जयपाल ने भी 370 हटाने की आलोचना की थी, इसीलिये जब विदेश मंत्री जयशंकर अमेरिका यात्रा पर गये तो उन्होंने जयपाल से मुलाकात के कार्यक्रम को ही रद्द कर दिया। भारतीय कूटनीति की सफलता देखिये कि इस मुद्दे पर इस्लामी देशों ने भी पाकिस्तान का साथ नहीं दिया और इस मुद्दे पर वह अलग-थलग पड़ गया था। ऐसे ही जब भारत ने तीन तलाक के खिलाफ और नागरिकता संशोधन कानून बनाया तो उसके विरोध में दुनियाभर में दुष्प्रचार किया गया, लेकिन मोदी सरकार और खासकर विदेश मंत्रालय दुनिया को यह बात समझाने में सफल रहे कि इस कानून का किसी भी भारतीय से लेना-देना ही नहीं है और इसका सीधा प्रभाव पाकिस्तान में प्रताड़ित किये जा रहे अल्पसंख्यकों से जुड़ा हुआ है। भारत के सुप्रीम कोर्ट ने जब 5 अगस्त 2020 को राम मंदिर पर निर्णय दिया तो पाकिस्तान जैसे कुछ इस्लामिक देशों ने हायतौबा मचाने का प्रयास किया तो विदेश मंत्री जयशंकर ने उन देशों को भारत का पक्ष समझाने का काम किया, जो पाकिस्तान के बहकावे में आ रहे थे।
कहते हैं नेता और नेतृत्व की सही परख चुनौतीपूर्ण समय में ही होती है। कोरोना महामारी से जब दुनिया जूझ रही थी, ऐसे में मोदी सरकार ने विश्व कल्याण के लिए जो कदम उठाये, उसकी पूरी दुनिया में तारीफ हुई। अमेरिकी राष्ट्रपति से लेकर दुनिया के विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ की। ब्राजील के राष्ट्रपति ने तो यहां तक कह दिया था कि प्रधानमंत्री मोदी हनुमानजी की तरह सबको संजीवनी बूटी दे रहे हैं। जब कोरोना संकट शुरू ही हुआ था, तब प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर सार्क देशों के बीच वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से संवाद हुआ और एक फंड की स्थापना की गई, ताकि इस महामारी से निपटा जा सके। इसमें सर्वाधिक योगदान भारत ने ही किया। इसके अलावा प्रधानमंत्री जहां देश में इस महामारी से निपटने के उपायों को लेकर पूरी तरह सक्रिय रहे, वहीं वैश्विक स्तर पर भी वह लगभग रोजाना विश्व के अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों से बातचीत कर उनकी मुश्किलों को जानतेऔर भारत की ओर से हर संभव मदद मुहैया कराते। पूरी दुनिया देख रही थी कि जब किसी देश के पास अपनी चुनौतियों से ही निपटने की फुर्सत नहीं थी, ऐसे संकट के समय में भारत की सरकार उन्हें सहयोग किया। इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी की ही पहल पर जी-20, आसियान जैसे विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों की ऑनलाइन बैठकें आयोजित कर कोविड-19 से लड़ाई में एक दूसरे की मदद की रूपरेखा बनाई गई। सबसे बड़ी बात यह है कि दुनिया का सबसे बड़ा रैस्क्यू अभियान भी विदेश मंत्रालय ने चलाया, जब कोविड के कारण दुनिया में फंसे करीब साढे तीन करोड़ भारतीयों को लाने में सफलता पाई।
एक साल पहले जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो भारत ने रूस से दो दिन युद्ध रोकने की अपील की, जिसे उसने मान लिया और भारत अपने 20 हजार स्टूडेंट्स को वापस लाने में सफल हुआ। इस तरह का यह अपने आप में सबसे बड़ा अभियान साबित हुआ। इसके बाद भारत और अमेरिका—यूरोप के बीच कूटनीति, रणनीति और दबाव की नीति का ऐसा दौर चला, जब भारत के विदेश मंत्रालय की अग्निपरीक्षा थी। ऐसे दौर में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जोरदार कूटनीति का परिचय दिया और अमेरिका समेत नाटो देशों को यह समझा दिया कि भारत अब वह पुराना भारत नहीं है, जो अमेरिका के कहने पर ईरान से तेल आयात बंद कर चुका है। यह नया भारत है, जो अपने फैसले खुद करता है। उससे पहले भारत ने पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक की, तब अमेरिका ही सबसे पहले भारत के पक्ष में खड़ा दिखा। ये सब भारत की मजबूत विदेश नीति का ही कारण था, जिसके संवाहक हैं विदेश मंत्री डॉ. सुब्रम्ण्यम जयशंकर।

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