राजस्थान की 100 सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार तय



हाल ही में दक्षिण के महत्वपूर्ण कर्नाटक राज्य भाजपा से छीनने के बाद कांग्रेस पार्टी काफी उत्साहित है। पार्टी ने अब चार राज्यों में सरकार बनाने का दावा किया है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का शासन है, जबकि मध्य प्रदेश में भाजपा और तेलंगाना में बीआरएस के नेता केसीआर सीएम हैं। कांग्रेस के नेता दावा कर रहे हैं कि इस साल होने वाले चार राज्यों समेत अगले साल होने वाले लोकसभा के चुनाव भी कांग्रेस पार्टी जीतेगी। 


पार्टी ने अपनी जीत पक्की करने के लिए कुछ फार्मूले लागू किए हैं, जिनके दम पर भाजपा से बढ़ते लेने का दावा किया जा रहा है। राजस्थान में अशोक गहलोत सीएम हैं और सत्ता रिपीट का दावा कर रहे हैं। लगातार फ्री घोषणाओं के दम पर गहलोत को लगता है कि जतना उनको ही वोट देगी। यह बात और है कि राज्य में बेलगाम अपराध से लेकर टूटी पड़ी सड़कें और बजरी माफिया के खौफ ने सरकार के होने पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दि हैं।


भाजपा जहां जिलों में फीडबैक कार्यक्रम शुरू कर रही है, तो कांग्रेस पार्टी ने बीजेपी से चार कदम आगे निकलते हुए कर्नाटक जीत का फार्मूला राजस्थान में भी लागू कर दिया है। पार्टी का मानना है कि अगस्त और सितंबर में अधिकांश टिकट तय कर दिए जाएं, ताकि नेता अपने क्षेत्र में जाकर तसल्ली से चुनाव प्रचार कर पाएं। यही फॉर्मूला कांग्रेस ने कर्नाटक में लागू किया था, जिसे जीत का सबसे बड़ा कारण माना गया था। 

यहां क्लिक कर वीडियो देखें: कांग्रेस ने इन 100 सीटों के टिकट तय कर लिए हैं।

पार्टी चाहती है कि विधायक या विधायक प्रत्याशी अपने टिकट के लिए जयपुर से दिल्ली तक चक्कर काटने की जगह अपने क्षेत्र में जनता के बीच जाकर प्रचार करें। कुछ समय पहले अशोक गहलोत ने भी कहा था कि कम से कम 100 टिकट चुनाव से दो—ढाई महीने पहले दे दिए जाएं, ताकि सरकार रिपीट होना पक्का किया जा सके।


कांग्रेस ने तीन सर्वे करवाए हैं, जिनमें जिताउ उम्मीदवार का ही चयन किया जाने का दावा किया गया है। प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा से लेकर अशोक गहलोत और प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा लगातार टिकट की तैयारी कर रहे हैं। लंबी बैठकों का दौर जारी है और यह बात निकलकर सामने आई है कि पार्टी ने अपने 100 उम्मीदवारों के टिकट तय कर लिए हैं। इनमें लगभग सभी वर्तमान मंत्री हैं, बाकी सचिन पायलट, हरीश चौधरी, रघु शर्मा, गोविंद सिंह डोटासरा, रफीक खान, दिव्या मदेरणा जैसे विधायक हैं। इस बार मंत्री हेमाराम चौधरी, शांति धारीवाल, राजेंद्र यादव के अलावा दीपेंद्र सिंह शेखावत, अमीन खान, गुरमीत कुन्नर और बाबूलाल बैरवा के बेटे—बेटियों को टिकट मिलेगा। 


कांग्रेस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अशोक गहलोत के साथ ही मंत्री मंडल के लगभग सभी विधायकों को फिर से टिकट दिया जाएगा। बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए 6 में से 3 विधायकों के टिकट पक्के हो चुके हैं, जबकि आरएलडी के साथ तीन सीटों पर गठबंधन होगा, जहां पर आरएलडी के उम्मीदवार उतारे जाएंगे। अभी तक आरएलपी के साथ गठबंधन की बात नहीं हुई है, लेकिन माना जा रहा है कि हनुमान बेनीवाल यदि कांग्रेस और भाजपा से अलाइंस नहीं करेंगे तो इसका भी सीधे तौर पर कांग्रेस को ही लाभ होगा। इसका बड़ा उदाहरण उपचुनाव में देखा गया था, तब से ही यह कहा जाता है कि पर्दे के पीछे से खुद अशोक गहलोत ही हनुमान बेनीवाल को सपोर्ट कर रहे थे। इसको लेकर कांग्रेस के पंजाब प्रभारी और पूर्व मंत्री हरीश चौधरी ने नाम नहीं दिए बिना रालोपा के लिए कहा था कि अशोक गहलोत की राज्य में एक प्रायोजित पार्टी है, जिसको गहलोत सपोर्ट करते हैं। 


दरअसल, बाड़मेर की बायतु सीट पर रालोपा ने उम्मेदाराम बेनीवाल को मैदान में उतारा था। पिछले चुनाव में हरीश चौधरी 57700 वोट पाकर केवल 13800 वोटों से चुनाव जीते थे, जबकि भाजपा के कैलाश चौधरी को करीब 39000 वोट मिले थे। दूसरे नंबर पर उम्मेदाराम बेनीवाल रहे थे, जिनको करीब 43000 वोट मिले थे। तब से ही हरीश चौधरी और हनुमान बेनीवाल के बीच बयानबाजी चलती रहती है। कांग्रेस सरकार अपने मंत्रियों के साथ ही करीब 70 टिकट विधायकों और प्रत्याशियों के तय कर चुकी है। सचिन पायलट के सभी विधायकों को दोबारा टिकट मिलेगा। इसी तरह से 13 निर्दलीय विधायकों में 11 के टिकट तय हो चुके हैं। 


बताया जा रहा है कि सितंबर के पहले पखवाड़े तक कांग्रेस 100 उम्मीदवारों की घोषणा कर देगी। पहली सूची में 45 से 50 नाम होंगे, जबकि इतने ही नाम दूसरी सूची में हो सकते हैं। पहली सूची में स्थापित नेताओं के नाम होंगे और दूसरी सूची में उन सीटों पर उम्मीदवार घोषित होंगे, जहां कांग्रेस दो बार, तीन बार या उससे ज्यादा बार लगातार चुनाव हार रही है। मतलब इस बार दावेदारों को दिल्ली के ज्यादा चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। 


पहली लिस्ट में सीएम अशोक गहलोत, अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, स्पीकर सीपी जोशी, महेंद्रजीत सिंह मालवीय, साले मोहम्मद, सुखराम बिश्नोई, अशोक चांदना, टीकाराम जूली, शकुंतला रावत, भजन लाल जाटव, शांति धारीवाल, परसादी लाल मीणा, बृजेंद्र सिंह ओला, विश्वेंद्र सिंह, रमेश मीणा, अर्जुन बामणिया, बीडी कल्ला, भंवर सिंह भाटी, अमित चाचान, राजकुमार शर्मा, रीटा कुमारी, गिरिराज सिंह मलिंगा, रोहित बोहरा, ममता भूपेश, प्रताप सिंह खाचरियावास, रफीक खान, महेश जोशी, रघु शर्मा, रामलाल जाट, राजेंद्र यादव, चेतन डूडी, प्रमोद जैन भाया, गणेश घोघरा, सुदर्शन सिंह रावत, उदयलाल आंजना, हरीश चौधरी, मदन प्रजापत, मेवाराम जैन, हेमाराम चौधरी, दिव्या मदेरणा, महेंद्र विश्नोई, मंजू मेघवाल, कृष्णा पूनिया, अनिल शर्मा, हाकम अली, वीरेंद्र सिंह और गुरमीत कुन्नर जैसी सीटों पर टिकट तय हो चुके हैं।


इसी तरह से सचिन पायलट, मुकेश भाकर, दीपेंद्र सिंह शेखावत, वेद प्रकाश सोलंकी, रामनिवास गावड़िया, भंवरलाल शर्मा, प्रीति शक्तावत, इंद्रराज गुर्जर, गजराज खटाणा, राकेश पारीक, मुरारी लाल मीणा, पीआर मीणा, सुरेश मोदी, हरीश मीणा, अमर सिंह के टिकट भी तय माने जा रहे हैं। इसके साथ ही हारे हुए प्रत्याशियों में भी कई नेताओं के टिकट फाइनल हैं, लेकिन उसमें गहलोत, पायलट फैक्टर काम करेगा। 


पार्टी ने तय किया है कि जिन सीटों पर टिकट को लेकर कोई विरोधाभास नहीं है, वहां से केवल एक ही नाम दिल्ली भेजा जाएगा। जहां पर पार्टी ने पिछला चुनाव काफी कम अंतराल से हारा है, वहां दो—दो जनों के नाम भेजे जाएंगे, इसी तरह से दो बार हार चुकी सीटों पर तीन से पांच दावेदारों के नाम तय किए जा रहे हैं। इन सीटों पर सबसे आखिर में फैसला हो सकता है। इन सीटों पर भी पार्टी तीन तीन नाम दिल्ली भेजेगी। कुछ सीटों पर पार्टी चेयरमैन, जिला प्रमुख और प्रधान जैसे नेताओं को भी टिकट देने पर विचार कर रही है। पिछली बार की तरह इस बार भी लड़ाई गहलोत पायलट के बीच टिकटों को लेकर होगी। हालांकि, पिछली बार अध्यक्ष होने के कारण पायलट की अधिक चली थी, लेकिन इस बार गहलोत और डोटासरा एक होने के कारण पायलट को काफी कम सीटें मिलेंगी। पायलट का पहला फोकस अपने लोगों को टिकट दिलाने पर है, उसके बाद गहलोत की तरह राजनीति कर सकते हैं।


कहा जाता है कि पिछली बार नए चेहरों को मौका दिया था, जिसके कारण गहलोत के काफी नेताओं के टिकट कट गए थे। बाद में गहलोत ने अपने कैंप के 30 नेताओं को निर्दलीय चुनाव लड़ाया था और उनमें से 13 विधायक बने थे। जो संकट के समय गहलोत के साथ होटलों में रहे थे। इन्हीं 13 में से 11 जनों को इस बार कांग्रेस टिकट देने जा रही है। राजस्थान की 200 सीटों वाली विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 101 सदस्यों की आश्वयकता होती है। कांग्रेस पार्टी यही चाहती है कि कम से सरकार बनाने के लिए जरूरी संख्या जितने नेताओं को सितंबर के पहले पखवाड़े तक टिकट देकर मैदान में उतार दिया जाए, ताकि उनकी जीत पक्की करने का काम किया जा सके। यह बात और है कि उनमें से कितने लोगों पर जनता फिर से विश्वास जता पाएगी। 


फिर भी यह बात सही है कि कर्नाटक की तर्ज पर राजस्थान में चुनाव से काफी पहले टिकट देकर कांग्रेस पार्टी राजस्थान में भी बढ़त लेना चाहती है। कर्नाटक में भाजपा इस मोर्चे पर काफी पीछे रह गई थी। हालांकि, इसके साथ ही इस बात का भी डर रहता है कि यदि बगावत हुई तो क्या होगा? इसे लेकर कांग्रेस पार्टी की अलग रणनीति है। पार्टी का सोचना है कि यदि दो महीने पहले टिकट मिलेंगे तो खुद सदस्य ही 

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