ओबीसी से जाट समाज को अलग करना चाहते हैं अशोक गहलोत!



राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भले ही खुद को संवेदनशील कहें, भले ही उनके समर्थक 36 कौम का नेता कहे, लेकिन हकिकत यह है कि अशोक गहलोत को आज राज्य में जाट समाज विरोधी माना जाता है। यह धारणा कोई एक दिन में नहीं बनी है, बल्कि ढाई दशक का अनुभव का परिणाम है। पहली बार यह धारणा तब विकसित हुई, जब 1998 के चुनाव बाद परसराम मदेरणा के अधिकार पर जादूगरी कर पहली अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने। तब से यह माना जाता है कि सीएम अशोक गहलोत राजस्थान में लंबे समय से जारी जाट सीएम की मांग को पूरा नहीं होने देते हैं। इन 25 साल में कई बार अशोक गहलोत पर जाट विरोधी होने के आरोप लगे। यहां तक कि ब्यूरोक्रेसी में जाट समाज के अधिकारियों को भी अशोक गहलोत के राज में प्रत्याड़ित करने के आरोप लगते रहे हैं। पुलिस और प्रशासन में बैठे अधिकारी गहलोत के शासन में उनके साथ किए जाने वाले दोहरे बर्ताव को याद करते हैं। 


अशोक गहलोत के उपर पहला बड़ा आरोप परसराम मदेरणा को लेकर लगा तो दूसरा आरोप उनके ही बेटे महिपाल मदेरणा को बर्खास्त करने के बाद लगे। कहा जाता है कि यदि अशोक गहलोत चाहते तो महिपाल मदेरणा को जेल जाने से बचा सकते थे, लेकिन उन्होंने जानबूझकर ऐसा नहीं किया। असल बात यह है कि कई नेताओं पर गंभीर आरोप लगते हैं, लेकिन अशोक गहलोत द्वारा 2011 में महिपाल मदेरणा के केस को जिस तेज गति से सीबीआई को सौंपा गया, वह अपने आप में आज भी आश्चर्य है। उसके बाद 10 साल जेल में रहते महिपाल मदेरणा का निधन हो गया। 

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इन दो घटनाओं के अलावा मिर्धा परिवार और शीशराम ओला के सीएम दावे पर भी अशोक गहलोत द्वारा हक छीनने के आरोप लगते हैं। कुल मिलाकर अशोक गहलोत की छवि पूरी तरह से राज्य की सबसे बड़ी आबादी विरोधी बन चुकी है। अब यदि गहलोत के द्वारा ईमानदारी से भी जाट समाज के पक्ष में कोई काम किया जाता है, तो भी यह कौम भरोसा नहीं करती है। अब अशोक गहलोत ने परोक्ष रुप से जाट समाज के खिलाफ एक और फैसला किया है, जिसके बाद राज्य की इस किसान आबादी में गुस्सा बढ़ने लगा है। 


दरअसल, राज्य में कुछ ओबीसी जातियों द्वारा ओबीसी का वर्गीकरण करने की मांग की जाती रही है। अशोक गहलोत ने ओबीसी का वर्गीकरण तो नहीं किया, लेकिन मूल ओबीसी को 6 फीसदी अलग से आरक्षण देकर जाट समाज को नाराज कर दिया है। अभी तक अशोक गहलोत ने इतना ही कहा है कि ओबीस का आरक्षण 21 से बढ़ाकर 27 फीसदी किया जाएगा, जिसमें 6 फीसदी आरक्षण मूल ओबीसी की जातियों को दिया जाएगा। इसका मतलब यह है कि मूल ओबीसी कही जानी वाली जातियाों को वर्तमान ओबीसी आरक्षण अलावा 6 फीसदी अलग से आरक्षण मिलेगा। इसी बात को लेकर जाट समाज नाराज हो रहा है। जाट समाज का कहना है कि राज्य की सबसे बड़ी आबादी को छोड़कर अन्य जातियों को आरक्षण देकर अशोक गहलोत ने एक बार से अपनी जाट विरोधी मानसिकता का परिचय दिया है। 


दरअसल, जनसंख्या के हिसाब से देखें तो देशभर में ओबीसी की जनसंख्या 50 प्रतिशत से ज्यादा है। कुछ लोग 65 फीसदी तक होने का दावा करते हैं। राजस्थान में इस वर्ग की संख्या करीब 52 फीसदी से अधिक बताई जाती है। इसी तरह कई बड़े राज्यों में भी ये सबसे बड़ा वर्ग है। 1980 में आई मंडल कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार देश में ओबीसी की जनसंख्या 52 प्रतिशत है। ओबीसी समुदाय का मानना है कि इसमें अब और भी ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। इसी वजह से जनगणना और आरक्षण का मुद्दा बार-बार उठता है। सीएम अशोक गहलोत ने भी पिछले दिनों मानगढ़ में ओबीसी की जनगणना अलग से कराने की बात कही थी।


राजस्थान की बात करें तो यहां भी ओबीसी सबसे बड़ा और प्रभावी वर्ग है। जनसंख्या के हिसाब से भी ओबीसी सबसे आगे हैं। माना जाता है कि 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 52 प्रतिशत ओबीसी राजस्थान में हैं। उनके बाद लगभग 18 प्रतिशत एससी और 14 प्रतिशत एसटी समुदाय के लोग हैं। लगभग 9 प्रतिशत आबादी मुस्लिमों की है और लगभग 7 प्रतिशत आबादी सामान्य वर्ग की है। अशोक गहलोत ने इसी 52 फीसदी ओबीसी को आरक्षण सीमा 21 फीसदी से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने का वादा किया है।


इसको लेकर कानूनी अड़चनों का दावा भी किया जा रहा है, लेकिन इस समय आंध्र प्रदेश में ओबीसी को 29 और असम में 27 प्रतिशत आरक्षण है। बिहार में अलग-अलग श्रेणी में मिलाकर 33 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 14 प्रतिशत और गुजरात-हरियाणा में 27 प्रतिशत आरक्षण है। केरल में ओबीसी आरक्षण 40 और कर्नाटक में 32 प्रतिशत है। महाराष्ट्र में 21 और उड़ीसा में ये आंकड़ा 27 प्रतिशत है। तमिलनाडु में ओबीसी और एमबीसी मिलाकर 50 प्रतिशत रिजर्वेशन है। उत्तर प्रदेश में 27 और पश्चिमी बंगाल मे 17 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण है।


जाट जाति के अलावा मोटे तौर पर माली, कुमावत, चारण, विश्ननोई वो जातियां हैं, जो ओबीसी वर्ग में बड़ा प्रभाव रखती हैं। ऐसे में इन जातियों में से कुछ या अन्य को इस नए 6 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिल सकता है। अगर 6 प्रतिशत आरक्षण और बढ़ाया जाता है तो राजस्थान में कुल आरक्षण बढ़कर 70 प्रतिशत हो जाएगा। 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस आरक्षण समेत सामान्य वर्ग के लिए 30 प्रतिशत कोटा रहेगा, जो जनसंख्या के लिहाज से अधिक ही है। एसटी का 12 और एससी का 16 प्रतिशत कोटा भी ज्यों का त्यों रहेगा। गहलोत ने कहा है कि एससी और एसटी आरक्षण को लेकर भी परीक्षण करवाया जा रहा है। परीक्षण के बाद 2-2 प्रतिशत आरक्षण बढ़ाए जाने की संभावनाएं जताई जा रही हैं।


राज्य सरकार आरक्षण तो बढ़ा रही है, लेकिन 50 प्रतिशत से ज्यादा जातिगत आरक्षण को कई राज्यों में कोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है। सुप्रीम कोर्ट में इनको लेकर केस चल रहे हैं। राजस्थान से भी एमबीसी के आरक्षण को लेकर चुनौती कोर्ट में दी जा चुकी है। ऐसे में कई कानूनों के जानकारों का मानना है कि 50 प्रतिशत से ऊपर को लेकर आरक्षण कोर्ट में चुनौती दी जाएगी।


अब समझने वाली बात यह है कि आखिर क्यों अशोक गहलोत ओबीसी आरक्षण को बढ़ाने और उसमें भी मूल ओबीसी के नाम पर कुछ जातियों को लाभ देने के लिए 6 फीसदी आरक्षण अलग से देने जा रहे हैं। आपको याद होगा इस कार्यकाल में अशोक गहलोत कई बार कह चुके हैं कि माली जाति के वही एक मात्र विधायक हैं, जो तीन—तीन बार सीएम बन चुके हैं। इसी साल भरतपुर संभाग में माली जाति ने आरक्षण को लेकर आंदोलन किया था। कहा जाता है कि अशोक गहलोत ने आश्वासन देकर ही उस आरक्षण आंदोलन को स्थगित किया था। कुछ लोगों का कहना है कि उस आंदोलन के पीछे परोक्ष रुप से खुद अशोक गहलोत ही थे। 


अब अशोक गहलोत ने मूल ओबीसी का बहाना बनाते हुए उसी वर्ग को 6 फीसदी अलग से आरक्षण देने का वादा किया है, जो सीधे तौर पर देखा जाए तो उसी बड़े वर्ग के हकों पर कुठाराघात है, जिसको पिछले ढाई दशक से दबाने का प्रयास करने के आरोप लगते रहते हैं। राज्य के धोलपुर और भरतपुर के जाट समाज को आरक्षण नहीं है, लेकिन माना जाता है कि ओबीसी के बड़े हिस्से का लाभ जाट समाज उठा रहा है। इसके अलग अलग स्तर पर अलग अलग तरह से नैरेटिव बनाने के काम भी होते रहते हैं, लेकिन ये लोग भूल जाते हैं कि जो वर्ग संख्या के हिसाब से सबसे बड़ा है, उसके लाभार्थी भी अधिक ही होंगे, किंतु इस बात को इस तरह से प्रजेंट किया जाता है मानो सारा ही आरक्षण यही वर्ग ले जाता है। 


एक समाज के प्रति इस तरह का नैगेटिव भाव बनाने का काम तभी शुरू हो गया था, जब दो दशक पहले अटल बिहारी वाजपेयी ने जाट समाज को ओबीसी में आरक्षण देने की घोषणा की थी। तब से आज तक कुछ लोग यही सिद्ध करने में जुटे हुए हैं, कि ओबीसी का पूरा लाभ आरक्षण जाट समाज ही उठा रहा है। इसी प्रवृत्ति को अंजाम देने के लिए अशोक गहलोत ने मूल ओबीसी के नाम पर 6 फीसदी अलग से आरक्षण का ऐलान किया है। इस 6 फीसदी में से जाट से समाज को लाभ नहीं मिलेगा और इस तरह से उन लोगों का सपना पूरा हो जाएगा, जो जाट समाज के आरक्षण विरोधी हैं। 


किंतु एक बात तय हो चुकी है कि जिस विधानसभा में सभी पार्टियों को मिलाकर करीब 40 से ज्यादा विधायक, यानी 20 फीसदी से अधिक विधायक जाट समाज से चुनकर आते हैं, उस समाज के साथ तुष्टिकरण करके कांग्रेस सत्ता प्राप्त नहीं कर पाएगी। जो अधिकार सभी को समान रूप से देने का था, उसको एक समाज के ​खिलाफ टारगेट करने का कार्य खुद सत्ताधारी पार्टी द्वारा किया जा रहा है। कांग्रेस सरकार के इस भेदभावपूर्ण कदम का भयानक दुष्परिणाम आने वाले विधानसभा चुनाव में खुद अशोक गहलोत और कांग्रेस पार्टी को मिलेगा।

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