सीएम की कुर्सी अशोक गहलोत को क्यों नहीं छोड़ रही है?



सीएम अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बने पांच साल पूरे होने में अब केवल साढ़े चार महीने बचे हैं। इसके बाद गहलोत को राजस्थान में 15 साल सीएम रहने का अनुभव हो जाएगा और तीन कार्यकाल पूरे हो जाएंगे। गहलोत पहली बार 25 साल पहले 1998 में मुख्मयंत्री बने थे, कैसे बने थे यह बताने की जरुरत नहीं। दूसरी बार 2008 में और तीसरी बार 2018 में सीएम बने। इन तीनों ही कार्यकाल में सीएम की कुर्सी की लड़ाई वो लड़ते ही रहे हैं। 


कहते हैं कि पहले कार्यकाल में अशोक गहलोत ने कांग्रेस के कद्दावर नेता परसराम मदेरणा के हिस्से की कुर्सी छीन ली। दूसरे कार्यकाल में भी सीपी जोशी, शीशराम ओला जैसे नेताओं के हिस्से की कुर्सी पर बैठकर अशोक गहलोत ने पांच साल राज किया। इसी तरह से तीसरे और वर्तमान कार्यकाल में सीएम बनने का बेस ही सचिन पायलट थे और सचिन पायलट ने तो बकायदा इसको लेकर लंबी लड़ाई भी लड़ी है। इतनी लंबी लड़ाई पिछले दो कार्यकाल में कोई नहीं लड़ पाया था। 


शायद यही वजह है कि समर्थकों द्वारा जिन अशोक गहलोत को संवेदनशील, लोकप्रिय, जनप्रिय, मीडिया फ्रेंडली, सरल, सौम्य और परिपक्व राजनेता कहा जाता था, उनकी सभी मामलों में कलई खुल गई है। इस कार्यकाल में अपने बयानों और कार्यों से अशोक गहलोत ने उस सारी धारणा को धवस्त कर दिया है, जिसमें उपर बताई गई उपाधियों से उनके समर्थक नवाजते रहते हैं। 


अशोक गहलोत के बीते साढ़े चार साल के बयान बताते हैं कि अपने ही अध्यक्ष और डिप्टी सीएम सचिन पायलट से किस कदर कुंठित रहे हैं कि अपने बेटे की उम्र के नेता को वो सबकुछ बोल दिया, जिसकी अपेक्षा खुद अशोक गहलोत के समर्थक भी नहीं करते हैं। पांच साल का कार्यकाल पूरा होने वाला है और इसके साथ ही अशोक गहलोत को वो दावा भी सच साबित हो जाएगा जो उन्होंने विधानसभा में किया था कि पांच साल तक वो सरकार को गिरने नहीं देंगे और पूरे पांच साल सीएम बने रहेंगे। 


जब 9 मई को सचिन पायलट ने अपने आवास पर प्रेस वार्ता की थी, तब पहली बार स्वीकार किया था कि उनके गुट के साथियों ने राज्य में सीएम बदलने को लेकर बगावत की थी। उसके बाद पायलट ने पांच दिन की यात्रा भी निकाली, तीन मांगें नहीं मानने पर प्रदेशभर में आंदोलन का दावा भी किया, लेकिन ​कुछ समय बाद खुद पायलट ने ही आलाकमान के साथ समझौता कर लिया। अब तीनों में से एक भी मांग पूरी नहीं हुई, लेकिन फिर भी सचिन पायलट खुद ही कांग्रेस की सरकार रिपीट कराने का दावा करते फिर रहे हैं। 


इधर, सचिन पायलट के ढीले पड़े तेवरों के बाद अशोक गहलोत भी निश्चिंत हो गये हैं कि बचा हुआ कार्यकाल आराम से पूरा हो जाएगा। शायद यही वजह है कि अशोक गहलोत ने दावे के साथ कहा है कि वो तो सीएम की कुर्सी छोड़ना चाहते हैं, लेकिन कुर्सी ही उनको नहीं छोड़ रही है। हालांकि, यह बात सत्य है कि गहलोत का यह बयान पक्के तौर पर सचिन पायलट के उपर कटाक्ष है। 


अब याद कीजिए 25 सितंबर 2022, जब सोनिया गांधी ने मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन को जयपुर में एक लाइन का प्रस्ताव पास कराने के लिए विधायक दल की बैठक करने के लिए भेजा था। तब कैसे अशोक गहलोत बीकानेर में माता के दर्शन करने पहुंच गये थे और पीछे से उनके खास मंत्री शांति धारीवाल, महेश जोशी और धमेंद्र राठौड़ ने आलाकमान के खिलाफ ही समानांतर मीटिंग बुलाकर सामूहिक इस्तीफे दे दिए थे। 


अशोक गहलोत इस बात का जवाब दें कि जब सोनिया गांधी उनको सीएम पद से हटाना चाहती थीं, तब क्यों नहीं छोड़ी? तब क्यों कुर्सी से चिपके रहने के लिए अपने ही आलाकमान के चालीस साल पुराने रिश्तों को तोड़ने पर आमादा हुए? उसके बाद इस कृत्य के लिए सोनिया गांधी से माफी क्यों मांगी?


पिछले दिनों राजेंद्र गुढ़ा ने कहा कि जब वह राहुल गांधी से मिले और अशोक गहलोत को हटाने की मांग की थी, तब राहुल गांधी ने कहा कि राजस्थान में पूरा सिस्टम अशोक गहलोत के पास है, उनको हटा नहीं सकते। मतलब यह है कि अशोक गहलोत ने कांग्रेस को इतना मजबूर कर दिया है कि अब उनके उपर कोई आलाकमान भी नहीं है। 


खुद अशोक गहलोत कई बार कहते हैं कि राजनीति में जो होता है वो दिखता नहीं है और जो दिखता है वो होता नहीं है। यदि गहलोत के नए बयान को उनके ही पुराने बयान की कसौटी पर कसा जाए कि 'वह कुर्सी को छोड़ना चाहते हैं, लेकिन कुर्सी उनको नहीं छोड़ना चाहती है', तो साफ हो जाता है कि असल में कुर्सी तो उनको छोड़ना चाह रही है, किंतु वो ही कुर्सी से चिपके हुए हैं। 


अशोक गहलोत ने यह भी कहा कि जो लोग भैंरोसिंह शेखावत की सरकार गिराने में शामिल थे, वो आज भाजपा के सीएम की रेस में हैं। हालांकि, अशोक गहलोत ने किसी का नाम नहीं लिया है, लेकिन माना जाता है कि उन्होंने राजेंद्र राठौड़ को लेकर यह बयान दिया है। 


अशोक गहलोत दावा भी करते हैं कि जब भाजपा में शामिल लोग ही शेखावत की सरकार गिराने के लिए लगे हुए थे, तब उन्होंने कहा था कि सीएम भैरोंसिंह शेखावत अमेरिका के क्लीवलैंड इलाज कराने गये थे, तब भाजपा के ही साथियों ने मिलकर उनकी सरकार गिराने का प्रयास किया था, तब गहलोत ने कहा था कि जब सीएम देश में नहीं हों, तब पीछे से वह इस तरह का कृत्य नहीं कर सकते। 


हालांकि, यह भी तथ्य है कि जब शेखावत को इस बात की जानकारी मिली, तब वो बिना इलाज कराए ही वापस लौट आए थे। ऐसे में गहलोत यह दावा कैसे कर सकते हैं कि उन्होंने सरकार गिराने से रोकी थी? यदि सरकार गिराने से रोकी होती तो फिर शेखावत को इलाज बीच में छोड़कर वापस क्यों आना पड़ा?


अब समझने वाली बात यह है कि जब आखिर बार बार अशोक गहलोत क्यों कहते हैं कि भैरोंसिंह शेखातव की सरकार बचाने के लिए उन्होंने काम किया? पिछले दिनों कांग्रेस विधायक राजेंद्र गुढ़ा ने आरोप लगाया था कि अजमेर 92 रेप कांड में कांग्रेस के कई नेता शामिल थे। यहां तक कहा था कि खुद अशोक गहलोत भी उस कांड का हिस्सा थे। दरअसल, जब कांड उजागर हुआ और उस मामले में कार्यवाही चल रही थी, तब भैरोंसिंह शेखावत की सरकार थी और अशोक गहलोत तब कांग्रेस के अध्यक्ष थे। कहा जाता है कि भैरोंसिंह शेखावत ने तब अशोक गहलोत के कहने पर ही कांग्रेस नेताओं का नाम उस कांड से हटाया था। इस वजह से ही अशोक गहलोत ने भैरोंसिंह शेखावत सरकार बचाने का काम किया था। 


सीएम अशोक गहलोत ने यह भी दावा किया है कि केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत संजीवनी घोटाले में अभियुक्त हैं। गहलोत ने कहा ​है कि वह गृहमंत्री हैं और इसके नाते पूरी जिम्मेदारी से कहते हैं कि शेखावत, उनकी पत्नी, पिता और साला भी संजीवनी घोटाले में लिप्त हैं। भाजपा कितना भी जोर लगा ले, लेकिन गजेंद्र सिंह शेखावत को मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बना सकती। गहलोत ने दावा करते हुए सवाल किया कि क्या गजेंद्र सिंह सीएम फेस लायक हैं क्या? संजीवनी घोटाले की जांच ईडी से कराना चाहते हैं, लेकिन ईडी तो मोदी के पास हैं, फिर ईडी क्यों लेगी जांच अपने पास। 


अब सवाल यह उठता है कि गजेंद्र सिंह से अशोक गहलोत को इतनी नफरत क्यों है? क्या कारण है कि एक बार एसओजी द्वारा शेखावत को संजीवनी घोटाले में नहीं लेने के बाद अशोक गहलोत के बयान पर क्यों लेना पड़ा? क्या वजह है कि गहलोत के द्वारा शेखावत को ही टारगेट किया जाता है? दरअसल, 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान गजेंद्र सिंह शेखावत ने जोधपुर से दूसरी बार चुनाव लड़ा था। उससे पहले 2014 में सांसद का चुनाव जीत चुके थे। 


दूसरे चुनाव में शेखावत ने गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को पौने तीन लाख वोटों से करारी मात दी थी। शेखावत कह​ते हैं कि तभी से अशोक गहलोत ने उनको अपने निशाने पर ले रखा है। संजीवनी घोटाला 2019 से पहले का है, जब अशोक गहलोत सीएम बने थे, उसके कुछ ही समय बाद पीड़ित लोग गहलोत से मिलना चाहते थे, लेकिन उन्होंने पीड़ितों की कोई मदद नहीं की, लेकिन जब वैभव गहलोत चुनाव हार गये, तब अशोक गहलोत ने उनको टारगेट करना शुरू कर​ दिया। 


बात चाहे जो भी हो, लेकिन इतना तय है कि जब गृहमंत्री खुद अशोक गहलोत हैं, तब आरोप सिद्ध होने पर शेखाव को गिरफ्तार क्यों नहीं करते हैं? क्या गहलोत भी उसी तरह का खेल कर रहे हैं, जैसे भाजपा आलाकमान गांधी परिवार पर आरोप तो लगाता है, लेकिन गांधी परिवार के सदस्यों को गिरफ्तार नहीं किया जाता। गहलोत भी हर बार मीडिया के सामने शेखावत को लेकर अभियुक्त कहते हैं, लेकिन उनको गिरफ्तार नहीं करते हैं। 


अशोक गहलोत ने यह भी कहा है कि वसुंधरा राजे भाजपा के प्रदर्शन में नहीं आईं। इसका मतलब यह है कि वसुंधरा राजे उनको मदद कर रही हैं? क्योंकि इससे पहले धोलपुर में गहलोत ने खुद कहा था कि यदि वसुंधरा राजे ने उनकी मदद नहीं की होती तो उनकी सरकार गिर जाती। 


अब सरकार का मुखिया खुद कह रहा है कि वसुंधरा राजे भाजपा के प्रदर्शन में नहीं जाती हैं, तो इसका मतलब यह हुआ कि सरकारी को इस बात की खुशी है कि वसुंधरा राजे के बीजेपी के प्रदर्शनों में नहीं जाने से भीड़ कम होती है, या फिर इसको भी उसी तरह से देखा जा सकता कि सरकार बचाने में वसुंधरा राजे ने गहलोत की मदद की थी तो अब गहलोत भी वसुंधरा राजे को सीएम फेस बनाने के लिए भाजपा को इस तरह से इशारा कर रहे हैं। 


वसुंधरा गहलोत के रिश्तों को लेकर सबसे अधिक हनुमान बेनीवाल मुखर रहे हैं। उनके हर बयान में दोनों की मिलीभगत के आरोप लगते रहे हैं, लेकिन पासलट की बगावत के समय जिस तरह से वसुंधरा राजे की मदद से सरकार बचाने का दावा खुद सीएम गहलोत ने किया, उसके बाद किसी तरह की कोई शंका ही नहीं रही। 


अप्रैल मई में सरकार के खिलाफ आंदोलन के दौरान गहलोत के बयान  के बाद सचिन पायलट ने भी कहा कि जब गहलोत ने वसुंधरा द्वारा सरकार बचाने को कहा गया है तो फिर कहने और सुनने को कुछ बचा ही नहीं है कि क्यों अशोक गहलोत के द्वारा तमाम आरोपों के बाद भी वसुंधरा राजे के भ्रष्टाचारों की जांच नहीं करवाते हैं? इस तरह से अशोक गहलोत ने जो बयान दिए हैं, वो सभी बयान उनको खुद को ही सवालों के घेरे में लेते हैं। यह बात और है कि मीडिया को इस तरह के बयान देकर अशोक गहलोत खुद की विफलताओं का बचाव करने का मिथ्या प्रयास कर रहे हैं।


राज्य में अपराधी बेलगाम है, पूरा प्रदेश अपराधियों से त्राहि—त्राहि कर रहा है और प्रदेश का मुखिया पैर के नाखूनों के प्लास्टर बांधकर आराम कर रहा है, तब कई तरह के सवाल उठते हैं। नाखूनों के प्लास्टर पर गहलोत ने विपक्ष पर हमला बोला, लेकिन खुद गहलोत शुुरू में कहते थे कि उनके अंगुठों के नाखून टूट गए हैं, फिर कहा कि हड्डी टूटी हैं, इसके बाद घुटनों तक प्लास्टर बांध लिए। जनता को समझ नहीं आ रहा है कि आखिर मामला क्या है। एक महीने से अधिक का समय हो चुका है और अब विपक्ष कहने लगा है कि चुनाव जीतने के लिए ममता बनर्जी की तरह अशोक गहलोत ने चुनाव के नजदीक प्लास्टर बांधकर विक्टिम कार्ड खेलने का प्रयास किया है। 


सवाल उठने लाजमी भी हैं, क्योंकि जिस तरह प्लास्टर चढ़ाया गया, वो टाइमिंग अपने आप में अनूठी थी। उसके बाद 7 दिन के लिए कहा गया, लेकिन अब एक महीने से अधिक का समय बीत गया है, फिर भी गहलोत के नाखून ठीक नहीं हो रहे हैं। और उपर से सीएम कह रहे हैं कि वो तो सीएम की कुर्सी छोड़ना चाहते हैं, लेकिन कुर्सी उनको नहीं छोड़ रही है। संभवत: पूरे देश में अशोक गहलोत अब तक के पहले सीएम होंगे, जिनको कुर्सी ने चिपका लिया है, अन्यथा नेता ही कुर्सी से चिपके रहते हैं। अब यह भी जादूगरी ही कही जाएगी कि जब—जब सरकार पर संकट आता है, तभी सीएम की कुर्सी अशोक गहलोत को फेवीकोल से चिपका लेती है। 

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