जाट राजनीति का अंतिम संस्कार करने वाले गहलोत की आखिरी चाल



अगर एक लाइन में कहा जाए कि सबसे बड़ी आबादी होने के बाद भी राजस्थान में अब तक जाट मुख्यमंत्री क्यों नहीं बना, तो इसका सबसे सटीक उत्तर होगा जयनारायण व्यास, हरदेव जोशी की शातिर चालों के बाद अशोक गहलोत द्वारा जाट राजनीति का अंतिम संस्कार कर दिया है। इसलिए कांग्रेस में अब जाट सीएम का सपना पूरा होना भी नहीं है। करीब पांच दशक तक जो जाट समाज से आने वाले किसान नेता कांग्रेस की मुख्य धुरी थे, उनको कांग्रेस के पुराने नेताओं ने भी आगे नहीं बढ़ने दिया और बीते 25 साल में अशोक गहलोत ने उस पूरी बिरादरी को ही खत्म कर दिया, जो कांग्रेस राजस्थान में शासन करने का आधार थी। गहलोत ने कैसे जाट मुख्यमंत्री का सपना तोड़ा, बल्कि जाट राजनीति का ही अंतिम संस्कार कर दिया। और अब जाते—जाते भी बचे हुए नेताओं को पूरी तरह से समाप्त करने पर तुले हुए हैं। इस बात को उन उदाहरणों से समझिये कि कैसे गहलोत की धूर्त चालों ने जाट राजनीति को खत्म किया, जिसके कारण जाट आज भाजपा और आरएलपी में उम्मीदें देख रहा है।

देश आजाद होने के बाद जब राजस्थान की देश रियासतों का एकीकरण हुआ और फिर राजस्थान का निर्माण हुआ, तब सामंती शासन से मुक्त प्रदेश को नए नेता मिले। ऐसे नेता मिले, जो जनता का दुख दर्द जानते थे और जमीन से जुड़े हुए नेता था। उनको यह भी पता था कि आम आदमी किन परिस्थितियों में जी रहा है। मिर्धाओं से लेकर मदेरणा और ओला से लेकर कुंभाराम आर्य तक ने कांग्रेस को अपने खून पसीने से सींचा और लंबे समय तक शासन का हक दिया, लेकिन जो इनके दम पर मुख्यमंत्री बने, उन्होंने ही जाट राजनीति को खत्म करने में लगे रहे। पहले हरदेव जोशी और जयनारायण व्यास जैसे सीएम बने, जो कुंभाराम आर्य और नाथूराम, रामनिवास मिर्धा जैसे नेताओं के दम पर सीएम की कुर्सी पर रहे, तो बाद में अशोक गहलोत तीन बार मुख्यमंत्री बने, जो मिर्धा, मदेरणा और ओला परिवार के दम पर सीएम की कुर्सी तक पहुंचे, लेकिन गहलोत ने इनको ही खत्म करने का काम किया।

पूरे राजस्थान को पता है 1998 के दौरान किसान नेता परसराम मदेरणा की मेहनत से सत्ता में आई कांग्रेस में किसानों के अरमानों पर पैर रखकर गहलोत पहली बार सीएम बने थे। अपने सिद्धांतों के चलते मदेरणा कभी सोनिया गांधी के आगे नहीं झुके, जबकि इसी का फायदा उठाकर गहलोत ने सीएम की कुर्सी हथियाई। दूसरी बार 2008 में जब शीशराम ओला, सीपी जोशी जैसे नेताओं को आगे कर चुनाव लड़ा गया, लेकिन सीपी जोशी के एक वोट से हारने के बाद शीशराम ओला ही एक मात्र दावेदार थे, लेकिन गहलोत ने फिर से सोनिया से वफादारी का इनाम ले लिया। तीसरी बार सचिन पायलट को जनता ने बहुमत दिया, लेकिन सोनिया गांधी की वफादारी गहलोत के लिए वरदान बन गई। तीन बार सीएम बने, तीनों बार गहलोत को सोनिया ने बनाया, ना कि जनता ने, ये बात खुद गहलोत ने सार्वजनिक रूप से कई बार कहा है।

अब आप समझिए इन तीन कार्यकाल में गहलोत के द्वारा कैसे जाट राजनीति को खत्म किया गया। जब परसराम मदेरणा सीएम नहीं बने उन्होंने 2008 में राजनीति छोड़ दी, बाद में उनके बेटे महिपाल को मंत्री बनाया गया, लेकिन जिस कथित भंवरी देवी कांड में उनको फंसाया गया, उसका परिणाम आज तक नहीं निकला, जबकि महिपाल मदेरणा दुनिया छोड़कर जा चुके हैं। आज मदेरणा परिवार की राजनीति को संभालने वाली दिव्या मदेरणा हैं, लेकिन उनको ही गहलोत ने बद्रीराम जाखड़ के द्वारा चारों और से घेराबंदी करने का काम किया हुआ है। इसी तरह से मिर्धाओं की राजनीति को तब खत्म किया गया, जब 2008 से 2013 तक शासन रहा। 2019 में से सीएम रहते गहलोत ने बेनीवाल के पक्ष में बयान देकर ज्योति मिर्धा को हराने का काम किया। आज ज्योति भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं, तो उनके सामने उनके ही परिवार के हरेंद्र मिर्धा को उतार दिया। अब दोनों में से एक तो हारेगा ही। ज्योति दो बार हार चुकी हैं, यदि इस बार फिर हारीं तो उनका सियासी करियर समाप्त हो जाएगा। हरेंद्र मिर्धा हारे तो उनका करियर खत्म हो जाएगा।

शीशराम ओला के बेटे बृजेंद्र ओला आज सचिन पायलट खेमे में गिने जाते हैं, तो गहलोत ने मिर्धा परिवार के किसी भी सदस्य को आगे बढ़ाने का काम कभी नहीं किया। मदेरणा की पोती दिव्या मदेरणा अकेले दम पर मैदान में ताल ठोक रही हैं, तो गोविंद डोटासरा को राजेंद्र राठौड़ से लड़वाकर राजस्थान में जाट—राजपूत विवाद फिर से खड़ा करने का प्रयास भी गहलोत गुट ही कर रहा है। हरीश चौधरी के खिलाफ एक छोटे से मामले में सीबीआई जांच की अनुशंसा कर दी तो लालचंद कटारिया को चुनाव से ही बाहर कर दिया। हेमाराम चौधरी का मन भी अशोक गहलोत की धूर्त चालों के कारण ही राजनीति से दूर हुआ है। सरकार बचाने के लिए महेंद्र चौधरी, कृष्णा पूनिया को पांच साल खुद के पक्ष में रखा, लेकिन उनको ना कुछ बनाया ना अपने दम पर बनने दिया। विश्वेंद्र सिंह को पांच साल ऐसा विभाग दिया, जिसमें करने को कुछ है ही नहीं। युवा मुकेश भाकर और रामनिवास गावड़िया को बागी बना दिया। बड़ी नेता रहीं कमला बेनीवाल के बेटे आलोक बेनीवाल को लगातार दूसरी बार टिकट नहीं दिया, जबकि वो अभी विधायक हैं। प्रदेश की राजनीति में ऐसे दर्जनों उदाहरण हैं, जब गहलोत ने जाट राजनीति को खत्म करने का काम किया है। यहां तक कि खुद के कमबुद्धि बेटे की राजनीति चमकाने के लिए बद्रीराम जाखड़ को पाली भेजकर हरवा दिया। 

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