भाजपा काट रही है 15 टिकट, कांग्रेस 9 सीटों पर मजबूत



लोकसभा चुनाव की रणभेरी बजने वाली है। संभवत: मार्च के पहले पखवाड़े में कभी भी आम चुनाव की आचार संहिता लग सकती है। भाजपा, कांग्रेस समेत छोटे दल भी अपने उम्मीदवार चयन को लेकर मंथन कर रहे हैं। राजस्थान भाजपा की कोर कमेटी लगातार बैठकें कर रही है, तो बड़े नेताओं को दिल्ली बुलाकर भी उनकी राय ली जा रही है। इधर, कांग्रेस की खेमेबाजी खत्म नहीं हो रही है। 

अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच बीते पांच साल से चल रही खींचतान अब दूरियों में बदल चुकी है। दोनों नेता कभी एक साथ नहीं आते हैं। लोकसभा चुनाव से पहले दोनों ही खेमे एक बार फिर से अपने समर्थकों को टिकट दिलाने के प्रयास में जुट गए हैं। 

गोविंद सिंह डोटासरा अध्यक्ष हैं, लेकिन वो ऐसी कोई बैठक नहीं बुला पा रहे हैं, जिससे कांग्रेस के सभी बड़े नेता एक साथ बैठकर मंथन कर सकें। वॉर रूम खाली पड़ा है और बड़े नेता अपनी अपनी गोटी फिट करने में लगे हुए हैं। हार हुए विधायक प्रत्याशी जहां लोकसभा टिकट की जुगत में लगे हैं, तो दूसरी तरफ कांग्रेस आलाकमान का मानना है कि जीते हुए बड़े नेता आम चुनाव के महासमर में उतरकर भाजपा से मुकाबला करें। कांग्रेस सूत्रों का दावा है कि गहलोत, पायलट, डोटासरा, धारीवाल समेत तमाम बड़े नेताओं ने लोकसभा चुनाव लड़ने को लेकर अनिच्छा जाहिर कर दी है। पायलट कैंप का मानना है कि युवाओं को मौका दिया जाना चाहिए, तो गहलोत खेमा एक बार फिर से अपने करीबी पुराने कांग्रेसियों को ही टिकट दिलाने पर अड़ा हुआ है। 

पिछले दो लोकसभा चुनावों में प्रदेश की सभी 25 सीटों पर हार का मुंह देख रही कांग्रेस इस बार अलग जद्दोजहद में जुटी है। पार्टी जीत के लिए कई रणनीति पर काम कर रही है। यही वजह है कि इस बार प्रत्याशी चयन सहित कई मामलों में पार्टी फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की ओर से आंतरिक सर्वे करवाया जा चुका है। 

सर्वे के आधार पर विधानसभा की तरह ही लोकसभा सीटों की 25 सीटों को भी ए, बी और सी श्रेणी में बांटा गया है। ए श्रेणी में 9, बी में 5 और सी श्रेणी में 11 सीटों को रखा गया है। पार्टी ने ए श्रेणी में उन सीटों को रखा गया है, जहां पार्टी की स्थिति मजबूत दिखाई दे रही है। इन सीटों पर वर्तमान में कांग्रेस विधायकों की संख्या भी ज्यादा है। इसी तरह से बी और सी श्रेणी में उन लोकसभा सीटों को रखा गया है, जहां विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन औसत या उससे कमजोर रहा है।

कांग्रेस के अनुसार ए श्रेणी में डूंगरपुर-बांसवाड़ा, नागौर, सीकर, झुंझुनू, चूरू, दौसा, टोंक-सवाई माधोपुर, करौली-धौलपुर और गंगानगर हैं, तो बी श्रेणी में जयपुर ग्रामीण, कोटा-बूंदी, जालौर-सिरोही, अलवर व भरतपुर सीट है। इसी तरह से सी श्रेणी में जयपुर शहर, पाली, राजसमंद, उदयपुर, अजमेर, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, बीकानेर, जोधपुर, झालावाड़ और बाड़मेर-जैसलमेर सीट है।

इन ए श्रेणी की 9 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस अपनी स्थिति इसलिए भी मजबूत मानकर चल रही है, क्योंकि विधानसभा चुनाव में पार्टी ने यहां उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया है। दिसंबर में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव में इन 9 लोकसभा क्षेत्रों में कांग्रेस के 42 विधायक चुनकर आए हैं।

अपने आंतरिक सर्वे में भले ही 9 लोकसभा सीटों पर पार्टी की स्थिति मजबूत बताई गई हो, किंतु कांग्रेस के आलाकमान ने फिर भी इन सीटों पर अपने दिग्गज विधायकों को चुनाव मैदान में उतारने पर विचार किया है। कांग्रेस का मानना है कि जनाधार वाले विधायक यदि लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे तो इन सीटों पर जीत मिल सकती है।

दूसरी ओर भाजपा 25 में से करीब 15 सीटों पर नए प्रत्याशी उतारने पर विचार कर रही है। हाल में के विधानसभा चुनाव में पार्टी के तीन सांसदों विधायक का चुनाव जीता है, जबकि तीन हारे हैं। पार्टी जीते हुए उम्मीदवारों की सीटों पर और हारे हुए सांसदों की सीटों पर नए प्रत्याशी तय करने का विचार कर लिया है। पिछले दिनों गृहमंत्री अमित शाह जब राज्य के दौरे पर आए थे, तब उन्होंने जल्द से जल्द तीन—तीन नामों की सूची मांगी थी। भाजपा की कोर कमेटी इसपर मंथन कर रही है कि इन 6 सीटों पर तीन—तीन नामों का पैनल कैसे बनाया जाए। इसके साथ ही कम से कम 9 अन्य सीटों पर भी प्रत्याशी बदलने की तैयारी चल रही है। 

अलवर से बालक नाथ सांसद थे, जबकि राजसमंद से दीया कुमारी और जयपुर ग्रामीण से राज्यवर्धन राठौड़ सांसद थे। तीनों ही विधायक बन चुके हैं। ऐसे में तीनों सीटों पर नए उम्मीदवार उतारे जाएंगे, जबकि अजमेर से भागीरथ चौधरी सांसद हैं, जो किशनगढ़ से प्रत्याशी थे, लेकिन कांग्रेस उम्मीदवार विकास चौधरी के सामने चुनाव हार गए थे। इसी तरह से झुंझुनू सांसद नरेंद्र खीचड़ मंडावा से विधायक प्रत्याशी थे, लेकिन कांग्रेस की विधायक रीटा चौधरी के सामने चुनाव में मात खा गए। तीसरी सीट सांचौर है, जहां से जालौर—सिरोही सांसद देवजी पटेल को उतारा गया था, किंतु पटेल भाजपा के बागी जीवाराम चौधरी के सामने बुरी तरह हारे थे। 

पार्टी ने इन तीनों ही सीटों पर नए उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर ली है। नागौर में यदि आरएलपी के साथ भाजपा का गठबंधन नहीं हुआ तो लगातार तीसरी बार उम्मीदवार बदला जाएगा। हनुमान बेनीवाल का झुकाव इस बार भाजपा के बजाए कांग्रेस की तरफ अधिक दिखाई दे रहा है, जिसकी तैयार भाजपा पहले ही कर रही है। मिर्धा परिवार के कई सदस्यों को अपने पाले में लेकर भाजपा नागौर में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है। ज्योति मिर्धा पहले ही भाजपा ज्वाइन कर चुकी हैं, जबकि रिछपाल मिर्धा और उनके बेटे विजयपाल मिर्धा के भी भाजपा में शामिल होने की चर्चा चल रही है।

इनके साथ ही टोंक—सवाईमाधोपुर, करोली—धौलपुर, झालावाड़, डूंगरपुर—बांसवाड़ा, उदयपुर और जयपुर शहर जैसी सीटों पर भी नए उम्मीदवार उतारने की तैयारी की जा रही है। जयपुर ग्रामीण या अजमेर से डॉ. सतीश पूनियां को उतारा जा सकता है, जबकि राजसमंद से राजेंद्र राठौड़ का नाम आ रहा है, जो खुद यहां से चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर कर चुके हैं। इसी तरह से झालावाड़ से इस बार वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह की जगह खुद वसुंधरा टिकट मांग रही हैं, जो केंद्र में मंत्री बनकर पांच साल सुरक्षित करना चाहती हैं। उनकी जगह झालरापाटन से दुष्यंत सिंह को उपचुनाव लड़ाया जा सकता है। डूंगरपुर—बांसवाड़ा से हाल ही में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए महेंद्रजीत सिंह मालवीय का टिकट तय बताया जा रहा है। 

ठीक ऐसे ही भरतपुर सीट पर भी टिकट बदलने की तैयारी है। इस बार भाजपा अपने सांसदों की कार्यप्रणाली, उनकी कार्यशैली, क्षेत्र में सक्रियता और लोगों के साथ उनका व्यवहार जैसे पैमाने को परखने के साथ टिकट देगी। भाजपा के शहर सांसद रामचरण बोहरा को टिकट बदलने का संकेत मिल चुका है, जिसके कारण पिछले कुछ समय से उनकी सक्रियता भी बढ़ी है। भाजपा के जोधपुर सांसद और केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा है। भूंगरा गैस त्रासदी के बाद राजपूत समाज भी शेखावत से नाराज है, जबकि वसुंधरा की तरह शेखावत के खिलाफ नारेबाजी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। 

कुल मिलाकर भाजपा अपना पूरा सिस्टम बदल रही है। माना जा रहा है कि इस बार लोकसभा में 60 से कम उम्र के नेताओं को वरीयता दी जाएगी, जबकि दो बार से लगातार सांसदों के टिकट काटने पर मंथन हो रहा है। दरअसल, भाजपा के तमाम सांसद केवल मोदी के नाम से जीतते आ रहे हैं। मोदी के केंद्र में आने से पहले देवजी पटेल, दुष्यंत सिंह, अर्जुनराम मेघवाल और निहालचंद मेघवाल ही जीते थे। इसके अलावा सभी सांसद मोदी की लहर में दो—दोर बार जीते हैं। भाजपा इन नेताओं को पहले ही संकेत दे चुकी थी कि उनकी परफॉर्मेंस के आधार पर टिकट दिया जाएगा, लेकिन फिर भी कुछ सांसद अपनी आदत के अनुसार बर्ताव कर रहे हैं, अधिकांश सांसदों का जनता के साथ जुड़ाव ही नहीं है। भाजपा टिकट बदलती है तो कांग्रेस जिन 9 सीटों को मजबूत मान रही है, उन पर भी भाजपा वापसी कर लेगी।

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