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कहां गई राजस्थान सरकार की नई खेल नीति?



जयपुर। राजस्थान सरकार ने 2019 में नई खेल नीति जारी की थी। जिसके तहत देश, विदेश और प्रदेश में मेडल जीतने वाले खिलाड़ियों को सीधी भर्ती देने का रास्ता साफ किया था। उस नीति का असर यह हुआ कि जो खिलाड़ी बरसों से सरकारी नौकरी का इंतजार कर रहे थे, उनको नौकरी मिली और उसके कारण वो अपने खेल पर अच्छे से फोकस कर पाए। किंतु एक साल पहले राज्य में सत्ता बदली तो खेल नीति को भी कचरे के डब्बे में डाल किया गया। अब खिलाड़ी न तो सरकारी नौकरी ​हासिल कर पा रहे हैं और न ही खेल पर ध्यान दे पा रहे हैं।

जिन खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने खेल के द्वारा प्रदेश का नाम रोशन किया है, वो सरकारी नौकरी के लिए धक्के खा रहे हैं। कई खिलाड़ी तो ऐसे हैं, तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीतने के बाद भी सरकारी नौकरी नहीं मिलने के कारण सरकारी कार्यालयों में धक्के खा रहे हैं। खिलाड़ियों की सूची सरकारी दफ्तरों में इधर से उधर भेजी जा रही है, लेकिन समाधान नहीं हो पा रहा है। 

खेल मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ की खेलों के प्रति उदासीनता का आलम यह है कि उनको जैसे खेलों और खिलाड़ियों से कोई मतलब ही नहीं है। राठौड़ के पास खेल विभाग के अलावा उद्योग विभाग का भी जिम्मा है, जिसके कारण उन्होंने पिछले कई महीनों से 'राइजिंग राजस्थान' के सफल आयोजन पर ध्यान लगा रखा था। परिणाम यह हुआ कि खिलाड़ियों का कोई धणी धोरी ही नहीं रहा। हालांकि, राइजिंग राजस्थान का आयोजन पूर्ण हो चुका है, लेकिन इसके बाद भी राठौड़ का मन खेल विभाग पर दिखाई नहीं दे रहा है।

मेडल जीते हुए और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व करने वाले खिलाड़ी सरकारी सहायता के लिए लगातार धक्के खा रहे हैं, लेकिन उनको न तो नौकरी मिल रही है और न ही किसी तरह का आश्वासन मिल रहा है। नतीजा यह हो रहा है कि खिलाड़ियों का होसला टूटता जा रहा है। 

इतना ही नहीं, बल्कि जिन खिलाड़ियों को पिछली सरकार ने नौकरी दी थी, उनको संबंधित विभाग में काम करने का जिम्मा सौंप दिया गया है, जिसके कारण वो अपने खेल के लिए प्रेक्टिस भी नहीं कर पा रहे हैं। इसके चलते ऐसे खिलाड़ियों का खेल बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। 

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