100 वर्षीय RSS क्या है, कैसे बना, कैसे काम करता है, कितने देशों में है और ​कब विवादों में रहा है?

नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बने 11 साल हो गए हैं। पूरी दुनिया में मोदी का नाम प्रमुख नेताओं में लिया जाता है। अमेरिका से लेकर चीन तक मोदी के नाम से घबराते हैं। जिस मोदी को 2001 तक दुनिया छोड़ो भारत तक में कोई नहीं जानता था, उसे आज दुनिया सलाम करती है। इन 25 सालों में मोदी का प्रभाव और कद इतना बढ़ा है, जितना दुनिया में किसी भी नेता का नहीं बढ़ा। लेकिन मोदी आज जिस मुकाम पर हैं, वहां पहुंचना कहां आसान था। एक ऐसे परिवार से आया व्यक्ति, जिसका न पॉलिटिकल बैकग्रांउड था और न ही कोई सपोर्ट करने वाला। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि नरेंद्र मोदी को पहले गुजरात का सीएम और फिर 2014 में देश का पीएम कौनसी दिव्य शक्ति ने बनाया? मोदी को यहां तक जिसने उंगली पकड़कर पहुंचाया, वो आज 100 साल का, यानी शतकवीर हो गया है। आज हम इसी शतकवीर की बात करेंगे, जिसको लेकर दुनिया में चुप्पी है, लेकिन विश्व का सबसे बड़ा भी यही शतायु है।

नाम है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जिसे सामान्यतः आरएसएस कहा जाता है। संघ भारत में एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली संगठन है, बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन है। संघ का जब जन्म हुआ, तब भारत में ब्रिटिशर्स का शासन हुआ करता था और देश की सामाजिक एवं राजनीतिक परिस्थितियाँ पूरी तरह से अस्थिर थीं। आजादी के लिए आंदोलन तो हो रहे थे, लेकिन सामाजिक दृष्टि से ऐसा कोई आंदोलन नहीं था, जो परिवर्तन के दौर में भटकते हुए भारतीय समाज को उचित दिशा दे सके। ऐसे समय में डॉ. हेडगेवार ने महसूस किया कि देश को केवल राजनीतिक आंदोलन या क्रांति से स्वतंत्रता नहीं मिल सकती, बल्कि इसे समाज के प्रत्येक नागरिक में अनुशासन, चरित्र और राष्ट्रभक्ति की भावना के माध्यम से सशक्त किया जा सकता है। उन्होंने एक ऐसे संगठन की आवश्यकता महसूस की, जो समाज के हर वर्ग में जागरूकता, नेतृत्व और देश सेवा की भावना पैदा करे। इसी आवश्यकता को देखते हुए 27 सितंबर 1925 को विजय दशमी के दिन उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, यानी आरएसएस की स्थापना की।

आरएसएस की प्रारंभिक संरचना सरल थी, जिसमें छोटे समूहों, जिन्हें शाखा कहा जाता है, के माध्यम से प्रशिक्षण और गतिविधियाँ आयोजित की जाती थीं। प्रत्येक शाखा में स्वयंसेवक नियमित रूप से मिलते थे। उन्हें शारीरिक प्रशिक्षण, प्रार्थना, गायन और विचारशील चर्चाओं के माध्यम से अनुशासन और नेतृत्व कौशल सिखाया जाता था। शाखा के उपर ग्राम, मण्डल, खण्ड, नगर, तालुका, जिला, विभाग, प्रांत, क्षेत्र और सबसे उपर केंद्र होता है। हेडगेवार का मानना था कि राष्ट्र की शक्ति समाज में अनुशासित और जागरूक नागरिकों से ही आती है। आरएसएस का आदर्श हिंदुत्व था, लेकिन इसे किसी धर्म विशेष तक सीमित नहीं रखा गया। इसके दृष्टिकोण में हिंदुत्व का मतलब केवल धार्मिक पहचान नहीं था, बल्कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता के मूल्यों का संरक्षण था। संघ के अनुसार भारत में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति हिंदू है, चाहे वो मुस्लिम या इसाई ही क्यों न हो।

संघ ने आजादी से पहले और बाद में बड़े पैमाने पर समाज को जागरुक करने का काम किया, लेकिन संघ के इतिहास में पहला बड़ा संकट 30 जनवरी 1948 को आया, जब महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर गांधी की हत्या के आरोप लगे। कई विद्वानों का कहना है कि जिस नाथूराम गोडसे ने मोहनदास करमचंद गांधी की नजदीक से गोली मारकर हत्या की थी, वो राष्ट्रीय कांग्रेस का सदस्य हुआ करता था। गांधी की हत्या के बाद 4 फरवरी 1948 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संघ पर प्रतिबंध लगा दिया और उसके कई वरिष्ठ नेताओं को गिरफ्तार किया गया। तब डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का निधन हो चुका था। संघ के नए सरसंघचालक मधुकर राव मालवीय ने संगठन को कानूनी तरीके से पुनः संगठित किया। उन्होंने इस प्रतिबंध के खिलाफ अदालतों में कानूनी लड़ाई लड़ी और न्यायिक जांच में यह साबित हुआ कि संघ का गांधी की हत्या से कोई संबंध नहीं था। इसके बाद 11 जुलाई 1949 को नेहरू सरकार द्वारा प्रतिबंध हटा लिया गया।

1950 के दशक में आरएसएस ने शिक्षा और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में सक्रिय भागीदारी शुरू की। 1952 में विद्या भारती की स्थापना हुई, जिसने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्कूल और शिक्षा केंद्र खोले, जो आदर्श विद्या मंदिर के नाम से आज भी चल रहे हैं। आजादी के बाद जिस समय देश अपने पुनर्निमाण के दौर से गुजर रहा था, तब संघ ने स्वास्थ्य शिविर, सामाजिक कल्याण और आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान संघ ने नागरिकों को संगठित किया, उन्हें राष्ट्रभक्ति की भावना से प्रेरित किया और आपातकालीन सहायता प्रदान की। 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भी संघ के स्वयंसेवक देश की सेवा में सक्रिय रहे।

25 जून 1975 में जब इंदिरा गांधी ने देश पर आपातकाल थोप दिया, तब सरकार की तरफ से संघ की गतिविधियों पर भी कड़ी नजर रखी गई। जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी के खिलाफ बिगुल बजाया, जिनको संघ और एबीवीपी ने अपना समर्थन दिया। इसके कारण इंदिरा गांधी ने संघ की 21 संस्थाओं पर बैन लगा दिया। हालांकि, तब भी संघ ने शांतिपूर्वक ढंग से अपने कार्यों को जारी रखा और सामाजिक सुधार, शिक्षा तथा सेवा कार्यों पर ध्यान केंद्रित किया। उस दौर में सरकार ने करीब 1.50 लाख स्वयं सेवकों को जेलों में ठूंस दिया, जहां उनको यातनाएं दी गईं। फिर भी संघ ने आपदा राहत और स्वास्थ्य शिविरों में अपना योगदान दिया। राजनीतिक दृष्टिकोण से संघ और कांग्रेस के बीच हमेशा से ही स्पष्ट विरोधाभास था, लेकिन सामाजिक सेवाओं के लिए बाद में इंदिरा गांधी ने संघ की प्रशंषा की।

1980 और 1990 के दशक में संघ ने अपने सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का दायरा बढ़ाया। इस दौर में संघ ने महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण जागरूकता, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में सक्रिय भागीदारी दिखाई। संघ के स्वयंसेवक प्राकृतिक आपदाओं में राहत कार्यों, रक्तदान शिविरों और गरीबों तथा असहायों की सेवा में नियमित रूप से सक्रिय रहे। संघ ने यह सिद्ध किया कि सामाजिक संगठन केवल विचारों और आदर्शों तक सीमित नहीं रहते, बल्कि जमीन पर जाकर अपने प्रभाव को महसूस कराते हैं। आरएसएस का राजनीतिक प्रभाव भी इस समय स्पष्ट रूप से नजर आने लगा था। 1982 में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ, और अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे संघ के कई समर्थक नेता इसके संस्थापक सदस्य बने। संघ ने कभी सीधे चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन इसके राजनीतिक प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता। भाजपा और आरएसएस के बीच गहरा संगठनात्मक संबंध बना और यह भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगा।

1992 में बाबरी मस्जिद विवाद और उसके बाद हुए दंगों में संघ ने हिंदू समाज को एकत्रित करने में सक्रिय भूमिका निभाई। संघ के स्वयंसेवक शांति बनाए रखने, आपदा प्रबंधन और राहत कार्यों में लगे रहे। उस दौर में भी संघ ने अपने विचारों को फैलाने और समाज में संगठनात्मक शक्ति दिखाने के प्रयास जारी रखे। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा 1998 में भारत द्वारा पोखरण में किए गए परमाणु परीक्षण के समय संघ ने राष्ट्र की सुरक्षा और सामरिक शक्ति के दृष्टिकोण से समर्थन दिया। संघ पृष्ठभूमि के अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह से लेकर नरेंद्र मोदी, अमित शाह, नितिन गड़करी, शिवराज सिंह चौहान, रामनाथ कोविंद जैसे बड़े नेताओं ने कई पदों पर देश की बागडोर संभाली है। ऐसे हजारों नेता आज भी भाजपा समेत दूसरे दलों में राजनीति कर रहे हैं। इसके अलावा संघ से जुड़े हुए हजारों नेता ऐसे हैं, जो मुख्यधारा की राजनीति में आए बिना देश की सेवा कर रहे हैं।

2002 में गुजरात दंगों के दौरान संघ और इसके सहयोगी संगठनों की भूमिका पर विवाद हुआ। आलोचनाओं के बावजूद संघ ने कहा कि उसका उद्देश्य समाज को जोड़ना और भारतीय संस्कृति के मूल्यों को संरक्षित करना है। संघ ने समाज सेवा और राहत कार्यों पर जोर देते हुए अपने स्वयंसेवकों को सक्रिय रखा। आरएसएस ने तकनीकी और डिजिटल माध्यमों का भी उपयोग शुरू किया। सोशल मीडिया, डिजिटल शिक्षा प्लेटफॉर्म और ऑनलाइन प्रचार माध्यमों से संघ ने अपने संदेश को और अधिक लोगों तक पहुँचाया। आज के दौर में आरएसएस न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी सक्रिय है। संघ दुनिया के लगभग 80 से अधिक देशों में कार्यरत है। भारतीय जनता पार्टी, सहकार भारती, भारतीय किसान संघ, भारतीय मजदूर संघ, सेवा भारती, राष्ट्र सेवा समिति, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, हिंदू स्वयं सेवक संघ, स्वदेशी जागरण मंच, सरस्वति शिशु मंदिर, विद्या भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच, लघु उद्योग भारती, विश्व संवाद केंद्र, भारतीय विचार केंद्र, राष्ट्रीय सिख संगत, हिंदू जागरण मंच और विवेकानंद केंद्र जैसे 50 से ज्यादा संगठन राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हैं, इसके अलावा लगभग 200 से ज्यादा संगठन क्षेत्रीय प्रभाव रखते हैं। 2016 तक देश—विदेश में संघ की करीब 57 हजार शाखाएं चल रही थीं। बीते एक दशक में इन शाखाओं में कई गुणा वृद्धि हुई है। यह वैश्विक स्तर पर भारतीय संस्कृति, समाज सेवा और संगठनात्मक शक्ति के संदेश को फैलाने में योगदान दे रहा है।

संघ के सामाजिक योगदान की एक बड़ी मिसाल प्राकृतिक आपदाओं में दिखाई देती है। 2001 में गुजरात भूकंप, 2004 में सूनामी, 2013 में उत्तराखंड बाढ़ और 2020 में कोरोना महामारी के समय संघ के स्वयंसेवक राहत कार्यों में सक्रिय रहे। रक्तदान शिविर, स्वास्थ्य जागरूकता अभियान, गरीबों के लिए भोजन वितरण और स्वास्थ्य सेवाओं में संघ का योगदान लगातार सराहा गया। आरएसएस ने अपने इतिहास में कई बार आलोचनाओं और बैन का सामना किया। गांधी की हत्या के बाद 1948 में संघ पर बैन लगाया गया, जिसे कानूनी रूप से हटाया गया। 1975 के आपातकाल में भी संघ की स्वतंत्रता पर नियंत्रण रखा गया, लेकिन संगठन ने अनुशासन और वैचारिक दृढ़ता बनाए रखी। 1990 के दशक में संघ ने अपने सामाजिक और शैक्षिक कार्यों को और विस्तारित किया। देश में धर्मान्तरण के खिलाफ संघ लोगों को जाकरुक करने का काम करता है। संघ का मानना है कि धर्म के नाम पर देश की सभ्यता और संस्कृति को बदलने का काम किया जा रहा है, जिसको रोका जाना अति आवश्यक है।

ऐसा नहीं है कि संघ का काम केवल भाजपा को ही पसंद है, बल्कि कई विपक्षी नेताओं ने भी संघ को बहुत अच्छा बताया है। इंदिरा गांधी सहित कांग्रेस के कई नेताओं ने संघ की सामाजिक गतिविधियों और राष्ट्रभक्ति के योगदान की समय—समय पर खूब सराहना की है। राजनीतिक दृष्टिकोण से संघ और कांग्रेस के बीच मतभेद रहे, लेकिन संघ ने अपने समाज सेवा, शिक्षा और आपदा प्रबंधन के कार्यों से संतुलन बनाए रखा। 2000 के दशक में संघ ने शिक्षा, महिला सशक्तिकरण, ग्रामीण विकास और स्वास्थ्य जागरूकता जैसे क्षेत्रों में अपनी भूमिका और मजबूत की। संघ के आज अनगिनत काम चल रहे हैं, जो समाज को जोड़ने, संस्कृति को बचाए रखने, भारत की सभ्यता को अक्षुण करने का काम करते हैं। आदिवासी क्षेत्रों में ईसाई मिश्नरी धर्मान्तण का खेल करते हैं, तो वहां पर संघ के स्वयं सेवक लोगों को जागरुक करने का काम करते हैं, ताकि अपनी धर्म और संस्कृति को छोड़कर दूसरे धर्मों में नहीं जाएं।

आरएसएस की यात्रा 100 वर्षीय यात्रा दिखाती है कि कैसे एक संगठन ने कठिन परिस्थितियों, राजनीतिक दबाव और समाजिक चुनौतियों के बावजूद अपने आदर्शों और मूल्यों को बनाए रखा। संघ ने अपने स्वयंसेवकों और शाखाओं के माध्यम से समाज में स्थायी प्रभाव डाला। यह संगठन अनुशासन, सेवा और राष्ट्रभक्ति के मूल्यों के माध्यम से आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहा। संघ का संगठनात्मक ढांचा व्यापक और सुव्यवस्थित है। इसका शीर्ष नेतृत्व सरसंघचालक के हाथ में होता है, जो संगठन की सभी नीतियों और गतिविधियों का समन्वय करता है। इसके तहत विभिन्न क्षेत्रों और राज्यों के लिए विभागीय कार्यवाहक और प्रांत संघ होते हैं। संघ की शाखाएं सबसे छोटे इकाई होती हैं, जहां स्थानीय स्वयंसेवक नियमित रूप से मिलते हैं और प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। शाखाओं के माध्यम से सामाजिक सेवा, शिक्षा, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक गतिविधियाँ संचालित होती हैं।

आरएसएस का लिखित संविधान नहीं है जैसे कोई राजनीतिक दल या संस्था रखती है, लेकिन संगठन की गतिविधियाँ और उद्देश्य स्पष्ट रूप से परिभाषित हैं। यह संविधानात्मक ढांचा नहीं होने के बावजूद अपने आदर्शों और नियमों का पालन करता है। संघ का कार्य केवल शाखाओं और स्वयंसेवकों के माध्यम से होता है, और सभी निर्णय संगठनात्मक अनुशासन और वरिष्ठ नेतृत्व के मार्गदर्शन में लिए जाते हैं। संघ के अनेक अनुषांगिक संगठन हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों में काम करते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में विद्या भारती, स्वास्थ्य और सामाजिक सेवा में सेवा भारती, महिला सशक्तिकरण के लिए श्रेष्ठा भारती और पर्यावरण संरक्षण में प्रकृति भारती जैसे संगठन शामिल हैं। ये संगठन संघ के विचारों और आदर्शों को जमीन पर कार्यान्वित करते हैं और समाज के विभिन्न वर्गों तक पहुँचते हैं।

संघ का सदस्य बनने के लिए व्यक्ति को स्वयंसेवक के रूप में प्रशिक्षण प्राप्त करना होता है। सदस्यता पूरी तरह से स्वैच्छिक है। स्वयंसेवक नियमित रूप से शाखाओं में आते हैं, शारीरिक, मानसिक और सांस्कृतिक प्रशिक्षण लेते हैं और समाज सेवा, स्वास्थ्य एवं शिक्षा में योगदान करते हैं। संघ के सदस्य संगठन के आदर्शों, अनुशासन और सेवा के मूल्यों को अपनाते हैं। आरएसएस का काम करने का तरीका साधारण लेकिन प्रभावी है। शाखाओं में प्रशिक्षण, सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से स्वयंसेवक तैयार किए जाते हैं। आपदा प्रबंधन, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सेवा के लिए योजनाएं बनाई जाती हैं और स्वयंसेवकों के समूहों के माध्यम से उन्हें जमीन पर लागू किया जाता है। संघ का उद्देश्य केवल संगठन का विस्तार नहीं है, बल्कि समाज में स्थायी और सकारात्मक बदलाव लाना है।

आज, जब आरएसएस 100 साल का हो चुका है, यह भारतीय समाज में अपनी पहचान और योगदान के लिए गौरवशाली स्थिति में है। संघ ने न केवल समाज सेवा और शिक्षा में योगदान दिया, बल्कि भारतीय संस्कृति और राष्ट्रभक्ति की भावना को भी मजबूत किया। संघ की यह यात्रा यह सिद्ध करती है कि मजबूत संगठनात्मक ढांचा, अनुशासन, सेवा और विचारशील नेतृत्व किसी भी समाज या राष्ट्र को सशक्त बना सकते हैं। संक्षेप में कहा जाए, तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने 1925 से 2025 तक एक सदी के दौरान अनेक उतार-चढ़ाव देखे। 1948 में गांधी हत्या के बाद बैन का सामना किया, 1975 में आपातकाल में संयम बनाए रखा, विभिन्न नेताओं से समर्थन और आलोचना दोनों सहा, सामाजिक सेवा और शिक्षा में योगदान दिया और भारतीय समाज में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। संघ ने अपने आदर्शों, अनुशासन और सेवा के माध्यम से समाज में स्थायी प्रभाव डाला और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना।

आरएसएस की कहानी केवल एक संगठन की नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज, संस्कृति और राष्ट्र निर्माण की कहानी है। इसके 100 साल के इतिहास में यह स्पष्ट हो गया कि विचार, अनुशासन और सेवा की भावना समाज में स्थायी परिवर्तन ला सकती है। संघ के स्वयंसेवक समाज के विभिन्न वर्गों में सक्रिय हैं, शिक्षा और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में योगदान देते हैं और भारतीय संस्कृति के मूल्यों को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस प्रकार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने 100 वर्षों के इतिहास में यह सिद्ध किया कि अनुशासन, सेवा और राष्ट्रभक्ति के माध्यम से समाज में स्थायी प्रभाव डाला जा सकता है। संघ की यह यात्रा भारतीय समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है और आने वाली पीढ़ियों के लिए यह एक उदाहरण प्रस्तुत करती है कि संगठन और सामूहिक प्रयास से समाज में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है।

#RSS #Hindutva #IndianPolitics #SanghParivar #BJP #India #HinduRashtra #VHP #ABVP #HistoryOfRSS #Nagpur #Golwalkar #Hedgewar #Nationalism #IndianHistory #RSS100Years #IndianCulture #RightWing #HinduUnity #IndianDemocracy #PoliticsOfIndia #RSSImpact #Hinduism #IndiaToday #IndianSociety #RSSLegacy #RSSIdeology #IndianYouth #RSSVolunteers #HindutvaPolitics #IndianElections #RSSRole #SocialChange #IndianTradition #BharatMata #SelfReliance #Swayamsevak #NationalService #IndianIdentity #RSSControversy #India2025 #IndianFuture #RSSVsCongress #RSSGrowth #RSSInfluence #PoliticalPower #RSSMission #RSSTraining #GrassrootsPolitics #HinduStrength #NationFirst #IndianValues

Post a Comment

Previous Post Next Post