पायलट का पलड़ा भारी, तो गहलोत के सियासी कद में हुई कटौती

Siyasibharat: 
1.अशोक गहलोत पर आलाकमान ने कसी नकेल, सचिन पायलट का मनोबल क्या इतना मजबूत है?

2. पायलट गहलोत की सियासी जंग के बीच कांग्रेस आलाकमान की धमाकेदार एंट्री

3. पायलट का पलड़ा भारी, तो गहलोत के सियासी कद में हुई कटौती

राहुल गांधी और सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के केंद्रीय आलाकमान को लगातार कमजोर माना जा रहा था। लेकिन पिछले कुछ समय से पार्टी में अलग अलग राज्य में हुई सियासी उठापटक और गुटबाजी के चलते केंद्रीय आलाकमान की काफी थू थू हुई है। 

इस बात को अब गंभीरता से लेकर आलाकमान मजबूत है और निर्णायक फैसले ले सकता है। यह मैसेज देने के लिए कि आलाकमान कभी कमजोर नहीं था। कांग्रेस आलाकमान ने पहले पंजाब और अब राजस्थान की ओर रुख किया है।

लंबे कयासों के बाद एक दिन पहले ऑपरेशन पंजाब के तहत प्रियंका गांधी वाड्रा ने नवजोत सिंह सिद्धू से दिल्ली में मुलाकात कर ली है। सियासी जानकारों का मानना है अब पंजाब का सियासी हल संभवत हो जाएगा।

इधर, राजस्थान में कांग्रेस हाईकमान ने धमाकेदार एंट्री लेते हुए गोविंद सिंह डोटासरा और अशोक गहलोत को भौचक्का कर दिया है। दरअसल कांग्रेस पार्टी ने जिलों में पार्टी के विस्तार के लिए जिला अध्यक्षों के मनोनयन के लिए तीन तीन नामों का पैनल मांगा है, इसके चलते अपने मनमुताबिक नियुक्ति करने की मंशा पाले गहलोत कैंप में खलबली मच गई है।

कांग्रेस हाईकमान के इस कदम से पायलट कैंप के लोगों को लग रहा है कि 11 महीने पहले उनके साथ किए गए वादों का अब कोई सकारात्मक हल हो सकता है। मतलब सत्ता और संगठन में उनकी भागीदारी सुनिश्चित हो सकती हैं और उनकी मांगों को गंभीरता से लेकर समाधान किया जा सकता है।

प्रदेश में लंबे समय से गोविंद सिंह डोटासरा के अध्यक्ष रहते हुए भी कांग्रेस का संगठन नीचे से प्रदेश स्तर तक कमजोर साबित हो रहा था। क्योंकि पंचायती राज चुनाव में भी पार्टी बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाई थी। शहरी निकाय के चुनाव में भी पार्टी का मिलाजुला प्रदर्शन रहा था।

माना यह जा रहा है कि पायलट गुट के लोगों ने अपने नेता के साथ इस्तीफे दे दिए थे और जिलों की कार्यकारिणी भंग हो गई थीं। अब नए सिरे से संगठन की संरचना में पायलट कैंप अपने लोगों की भी बहाली चाहता है, लेकिन यह गहलोत कैंप को मंजूर नहीं है। 

इसी के चलते लंबे वक्त से संगठन विस्तार में देरी हो रही थी। यह बात केंद्रीय आलाकमान को नागवार गुजरी और लंबे समय से इंतजार के बाद अब हाईकमान ने खुद ही इस मामले में संज्ञान ले लिया है।

हालांकि इस पूरे मामले में कांग्रेस हाईकमान की एंट्री के बाद बौखलाए गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा है कि जिला प्रभारियों से 3 नाम पैनल में मांगे गए हैं, लेकिन उनसे भी अलग से नाम मांगे गए हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि जो भी निर्णय होगा, वह सबकी सहमति से होगा और कौन जिलाध्यक्ष होगा, यह भी हम मिलकर तय करेंगे।

राजस्थान में गहलोत और पायलट के बीच चली आ रही लंबी अदावत के बाद हाईकमान की निर्णायक एंट्री ने खेल को एकदम बदल दिया है। सियासी जानकार इसे अशोक गहलोत के सियासी कद में कटौती के रूप में देख रहे हैं तो वही उम्मीद है कि अब पायलट कैंप के साथ जो वादे किए हैं। वह पूरे हो सकते हैं। 

उम्मीद है कि जुलाई का महीना राजस्थान की सियासी उठापटक को किसी ठोस नतीजे पर लेकर जाएगा। जुलाई का यह तपता महीना पहली बरसात की आस में हैं, वैसे ही राजस्थान की राजनीति में भी लंबे समय से एक दूसरे पर गरमा गरम बयानबाजी करने वालों पर राजनीतिक नियुक्तियों और संगठन में भागीदारी के रूप में उम्मीद की बारिश हो सकती। सबकी नजर इस महीने में हाईकमान के निर्णय पर टिकी हैं।

राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि अगर जुलाई के महीने में भी पायलट कैंप के लिए सियासी बरसात नहीं होती है तो जुलाई या अगस्त में राजस्थान की कांग्रेस पार्टी में एक बार फिर से बड़े स्तर पर उठापटक हो सकती है, जिसके ऊपर शायद भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी नजर गड़ाए बैठा है।



सियासी भारत के लिए रामकिशन गुर्जर की रिपोर्ट

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