पायलट मुख्यमंत्री बनेंगे क्योंकि गहलोत तो राहुल के साथ भारत जोड़ने उतरेंगे?

Ram Gopal Jat
राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के मंत्रीमडल के सदस्य ही अब जलालत महसूस करने लगे हैं, तो सोचो आम आदमी का क्या हाल हो रहा होगा? जून में राज्य की चार राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव है और उससे पहले मुख्यमंत्री के खासम खास मंत्री अशोक चांदना भी यह कहे कि आईएएस कुलदीप रांका को उनके सारे विभागों के चार्ज दे ​दीजिए और मुझे इस जलालत वाले मंत्री पद से मुक्त कर ​दीजिए, तो सहज ही समझ आता है कि साधारण मंत्रियों, विधायकों, कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और सबसे आखिर में आमजन कितनी पी​ड़ा भोग रही होगी? इसकी कल्पना भी राज्य के मुख्यमंत्री नहीं कर सकते। आज हम राजस्थान सरकार के उन तमाम मंत्रियों और सरकार पर आरोप लगाने वाले कांग्रेस विधायकों के बारे में बात करेंगे, जो आहत होकर सीधे सरकार पर हमला कर रहे हैं। साथ ही यह भी चर्चा करेंगे कि आखिर मंत्री—विधायक आहत क्यों हैं? किंतु उससे पहले आपको याद ​कीजिए, जब वसुंधरा राजे की सरकार हुआ करती थी, तब अशोक गहलोत विपक्ष में होते हुए साल छह महीने में जयपुर आकर प्रेस कॉन्फ्रेंस करते थे और वसुंधरा राजे पर आरोप लगाते थे कि उनके प्रमुख सचिव तन्मय कुमार सुपर सीएम हैं, जो सरकार के सभी काम करते हैं, बाकी सब केवल उनकी दया पर काम चला रहे हैं। इतना ही नहीं, अपितु गहलोत दावा करते थे कि तन्मय कुमार के भ्रष्टाचार की फाइलें उनके पास हैं और जब सत्ता बदलेगी, तब उनको जेल भेजा जायेगा। दुर्भाग्य से दिसंबर 2018 में राज्य की सत्ता बदली और अशोक गहलोत मुख्यमंत्री भी बन गये, लेकिन ना तो तन्यम कुमार के भष्ट्राचार का कोई मामला सामने आया और ना ही उनको जेल भेजा गया, बल्कि उनको ग्रीन कोरिडोर देते हुए दिल्ली में डेपुटेशन पर भेज दिया। आज तन्मय कुमार दिल्ली में मजे कर रहे हैं और सत्ता बदलने के साथ ही फिर से राजस्थान लौटकर अपना रंग दिखाने के इंतजार में हैं।
इधर, राजस्थान में इन दिनों राज्यसभा चुनाव में पहले कांग्रेस में सबकुछ उलटपुलट करने की कयावद सी चल पड़ी है। जिस तरफ देखिए, वहीं से ही बगावत और अदावत का सुर संग्राम छिड़ा हुआ है। इस संग्राम में इस बार के विलेन बने हैं आईएएस रांका, जो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के प्रमुख सचिव हैं। मंत्रीमंडल और अधिकारों के बीच मचा यह अदावत का घमासान अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खास मंत्रियों तक पहुंच गया है। खेलमंत्री अशोक चांदना के इस्तीफे की पेशकश के पीछे सीधे तौर पर सीएमओ के प्रमुख सचिव से नाराजगी को बताया जा रहा है। खेल मंत्री अशोक चांदना अपने विभागों में कुलदीप रांका के दखल से इतने नाराज हैं, कि उनको ट्वीट के जरिये इस्तीफा लेने और सारे चार्ज आईएएस अधिकरी को देने की अपील करनी पड़ी है। ऐसा लग रहा है कि राज्यसभा चुनाव से ठीक पहले मंत्री अशोक चांदना ने बागी तेवर अपना लिए हैं। अशोक चांदना के इस्तीफे की पेशकश करने के गहरे सियासी मायने है। चांदना गुर्जर समाज से आते हैं, और गहलोत खेमे में हैं। अब उनके मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव के खिलाफ मोर्चा खोलने को खेमा बदलने के भी संकेत माने जा रहे हैं। दो दिन पहले ही गुर्जर समाज ने एक विज्ञापन देकर राज्यसभा का एक पद गुर्जर समाज से देने की अपील की गई थी।
राजनीति में बहुत नजदीक से जादूगरी करने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से इस विवाद पर भी जादू का इंतजार है। दरअसल, खेल मंत्री अशोक चांदना मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नजदीकी हैं, वहीं मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव कुलदीप रांका भी मुख्यमंत्री के साथ बेहद नजदीक से सारा खेल संभालते हैं। ऐसे में इस बार मामला बहुत ज्यादा नजदीकी हो गया है। खेल मंत्री अशोक चांदना ने पद से इस्तीफा देने की पेशकश की है। चांदना के इस्तीफा देने की पेशकश के पीछे की असली वजह आपको बताएंगे, लेकिन उससे पहले अशोक गहलोत सरकार के मंत्रियों और विधायकों के कुछ विवाद आपको बता देते हैं। इस सरकार में सबसे बड़ा विवाद सचिन पायलट खेमे के द्वारा किया गया था, जब 11 जुलाई 2020 को बगावत की गई। कहा जाता है कि तब भी सीएम के प्रमुख सचिव द्वारा पायलट, रमेश मीणा और विश्वेंद्र सिंह के विभागों की तमाम फाइलें मंगवाई जाती थीं, और सचिव द्वारा हां करने पर ही उनको पास किया जाता था। तब 34 दिन सरकार होटलों में कैद रही, जो इतिहास बन गया। बाद में आलाकमान के बीच बचाव से पायलट कैंप वापस लौटा और सरकार को सदन में समर्थन दिया। हालांकि, उस दौरान जिस तरह के बयान गहलोत और उनके मंत्रीमंडल के सदस्य प्रताप सिंह खाचरियावास ने दिये, वो भी इतिहास के पन्नों में काली श्याही से दर्ज हो गये हैं।
इसके बाद रीट भर्ती परीक्षा का मामला बहुत भारी हुआ। प्रदेशभर में धरने, प्रदर्शन, आंदोलन और अनशन का दौर चला। शिक्षामंत्री रहे गोविंद सिंह डोटासरा पर गंभीर आरोप लगे और अंतत: उनको मंत्रीमंडल बदलाव के समय पद गंवाना पड़ा। इसी दौरान आरएलडी के एकमात्र विधायक और गहलोत के करीबी, तकनीकी शिक्षामंत्री सुभाष गर्ग पर भी बोर्ड अध्यक्ष डीजी जोरोली के साथ मिलकर रीट पेपर लीक करने और बेचने के आरोप लगे। हालांकि, मुख्यमंत्री ने ना तो जांच सीबीआई को सौंपी और ना ही किसी मंत्री पर आंच आई। अब कांग्रेस के ही विधायक राजेंद्र विधुडी ने अशोक गहलोत पर सीधा आरोप लगाते हुए कहा है कि अपने मंत्रियों को जेल जाने से बचाने के लिए रीट की जांच सीबीआई को नहीं सौंप रहे हैं। इसके अलावा विधुडी ने डोडा पोस्त की तस्करी के मामले में भी पुलिस व प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा है कि कलेक्टर व एसपी विधायक की भी सुनवाई नहीं करते हैं।
मंत्रियों में देखें तो गहलोत के नंबर एक मंत्री शांति धारीवाल भी विवादों में रहे हैं। धारीवाल ने वीडियो कॉन्फ्रें​स के दौरान गहलोत के सामने ही पीसीसी अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को अध्यक्ष मानने से इनकार कर बाहें चढ़ा ली थीं। इस दौरान डोटासरा की खाचरिवास से भी झड़प हुई थी, जिसकी शिकायत डोटासरा ने सोनिया गांधी से करने की बात कही थी, लेकिन हकिकत यह है कि डोटासरा की सोनिया गांधी तक पहुंच ही नहीं है, वह अधिक से अधिक गहलोत तक शिकायत कर सकते हैं। इससे पहले जब मंत्रीमंडल फेरबदल हुआ था, तब खुद से छोटे मंत्री को कैबिनेट मंत्री का पद देने की बात कहकर राजेंद्र गुढ़ा ने गाड़ी लौटा दी थी। बाद में अशोक गहलोत के कहने पर उन्होंने कामकाज संभाला था। राजेंद्र गुढ़ा बसपा से जीतकर आए थे, बाद में अपने 5 अन्य साथियों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गये थे। उससे पहले विधानसभा में उन्होंने बयान देकर अपनी ही पार्टी को सवालों में खड़ा कर दिया था कि जो सबसे अधिक पैसा देता है, टिकट उसी को दिया जाता है।
इस सरकार में पार्टी के सांगोद से विधायक भरत सिंह ने भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई को लेकर अशोक गहलोत को कई पत्र लिखे हैं। बीते करीब साढ़े तीन साल में भरत​ सिंह ने आधा दर्जन पत्र​ लिखकर कांग्रेस सरकार की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने अपने ताजा पत्र में पंजाब सरकार के मंत्री की बर्खास्ती का हवाला देते हुए, प्रदेश में भ्रष्ट लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। पंजाब सरकार ने एक भ्रष्ट मंत्री को बर्खास्त कर जेल भिजवाया है, जनता के बीच इसका अच्छा संदेश गया है। सरकार में भी एक मंत्री अत्यंत भ्रष्ट है। एसीबी में इस भ्रष्ट मंत्री के खिलाफ जांच विचाराधीन है। इसी तरह से यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष गणेश घोघरा ने भी पिछले दिनों पट्टा वितरण विवाद पर तहसीलदार समेत कई लोगों को बंधक बना लिया था, जिसके बाद अधिकारियों ने विधायक के खिलाफ राजकार्य में बाधा का मुकदमा दर्ज करवा दिया। जिससे आहत होकर घोघरा ने भी गहलोत को अपना इस्तीफा भेज दिया था। गणेश घोघरा डूंगरगढ़ विधानसभा से चुनकर आते हैं, जो आदिवासी क्षेत्र है और यहां पर कांग्रेस बेहद कमजोर पड़ रही है। यही कारण है कि जुलाई 2020 में बगावत के समय गहलोत ने चुने हुए यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष मुकेश भाकर को बर्खास्त कर अपने करीबी गणेश घोघरा को यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया था। उनके समर्थन में अधिकारियों की क्षमता पर सवाल उठाते हुए विधायक रामलाल मीणा ने भी घोघरा का साथ दिया है।
इसी कड़ी में बाड़ी से विधायक गिर्राज मल्लिंगा ने पिछले दिनों जेईएन और एईएन के साथ जानलेवा मारपीट कर दी थी, जिसके बाद मल्लिंगा को जेल भेजा गया, जिसमें कुछ दिनों में ही उनको जमानत मिल गई। मल्लिंगा ने भी पुलिस मुखिया, यानी डीजीपी एमएल लाठर पर सवाल उठाए हैं। ऐसे ही नदबई से बसपा छोड़कर कांग्रेसी बने विधायक जोगेंद्र अवाणा ने भी सरकारी अधिकारियों के कामकाज पर सवाल उठाए हैं। जोधपुर में लंबे समय से राज करने वाले मदेरणा परिवार की बेटी और ओसियां से विधायक दिव्या मदेरणा ने तो पिछले दिनों बकायदा सदन के भीतर ही जलदाय मंत्री महेश जोशी को रबर स्टांप करार देते हुए अधिकारियों द्वारा काम नहीं करने का सवाल उठाया था। उसके बाद भी मदेरणा ने महेश जोशी के बेटे रोहित जोशी द्वारा एक लड़की को शादी का झांसा देकर देहशोषण करने पर पुलिस द्वारा सुरक्षा नहीं देने और मामला दर्ज नहीं करने को लेकर एक तरह से खुद गृहमंत्री गहलोत को ही विफल बता दिया था।
इसी क्रम में गहलोत के करीबी निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा ने भी गृह विभाग व राजस्व विभाग के अधिकारियों के कामकाज को लेकर विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया है। इससे पहले भी लोढ़ा ने शराब तस्करी जैसे मामलों में पुलिस विभाग को दोषी ठहराते रहे हैं। इससे साफ समझ आता है कि मंत्री नहीं बनाये जाने से संयम लोढ़ा भी गहलोत से खासे नाराज हैं। पूर्व विधायक और हाल ही में राजनीतिक नियुक्ति् पाने वाले धीरज गुर्जर ने भी बीते दिनों ट्वीट के जरिये ब्यूरोक्रेसी पर हमला बोला है। उन्होंने कहा कि अधिकारी किसी काम के नहीं हैं, अपनी कुर्सी बचाने के लिए काम करते हैं और विपक्ष से हाथ मिला चुके हैं, उनकी पहचान कर सरकार को सख्त कदम उठाना चाहिये। अब बात करते हैं कि आखिर खेल मंत्री अशोक चांदना ने ऐसे समय में खुला ट्वीट कर अपने ही मुख्यमंत्री को सवालों में क्यों लिया है, जो खुद को संवेदनशील कहलाना पसंद करते हैं? पूरी कहानी को समझेंगे, किंतु उससे पहले यह ट्वीट देखिये, जो चांदना ने किया है। उन्होंने कहा है कि मुख्यमंत्री मेरा आपसे व्यक्तिगत अनुरोध है कि मुझे इस जलालत भरे मंत्री पद से मुक्त कर मेरे सभी विभागों का चार्ज आईएएस कुलदीप रांका को दे दिया जाए, क्योंकि वैसे भी वह ही सभी विभागों के मंत्री हैं।
यहां पर गौरतलब यह है कि कुलदीप रांका मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के प्रमुख सचिव हैं और उनपर पहले भी इस बात के आरोप लग चुके हैं कि मंत्रियों की तमाम फाइलें उनके कहने से आगे बढ़ती हैं। ऐसे में चांदना का ट्वीट साफ कर देता है कि वास्तव में जो आरोप कुलदीप रांका पर लग रहे थे, वो सभी सही थे। किंतु चांदना की इस बगावत के कई मायने हैं। सबसे पहली बात तो यह है कि इन दिनों कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जुलाई के वक्त अशोक गहलोत के राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ा कार्यक्रम की यात्रा पर जाने और सचिन पायलट के मुख्यमंत्री बनाये जाने की चर्चा तेज है, जिसके कारण चांदना द्वारा पाला बदलने के तौर पर देखा जा रहा है। दूसरी बात यह सामने आ रही है​ कि पिछले दिनों से राज्य में अशोक चांदना पर सबसे अधिक पुलिस केस दर्ज होने का मामला भी मीडिया में आ चुका है। चांदना पर इस वक्त 10 पुलिस केस बताये जाते हैं, यानी सरकार जब चाहे, तब उनको जेल की हवा खिला सकती है। माना जा रहा है कि इन मुकदमों को हटाने के लिए भी वह गहलोत पर दबाव बना रहे हैं, क्योंकि राज्यसभा चुनाव में गहलोत की साख दांव पर लगी है।
इसके साथ ही बूंदी में अशोक चांदना के पिता द्वारा गौशाला के नाम पर सरकारी जमीन हड़पने के मामले का खुलास होना भी उनके लिए चिंता का कारण बनता जा रहा है। कहा जा रहा है कि चांदना के विरोधी लोगों ने उनके पिता द्वारा सरकारी जमीन अपने नाम कराने की शिकायत खुद गहलोत को दस्तावेजों के साथ कर दी है। इस प्रकरण को निपटाने के लिए वह गहलोत पर दबाव बनाने के लिए इस तरह के प्रयास कर रहे हैं। सबसे अहम बात यह है कि जब सरकार बदलती है, तो ब्यूरोक्रेसी सबसे पहले भांप जाती है। इस सरकार में कई अधिकारी उस मोड में आ चुके हैं, जब मंत्री और विधायकों को पीछे पीछे भागने को मजबूर किया जाए। सरकार बदलने की संभावना अधिकारियों ने अच्छे से भांप ली है। उनको इस बात का पता है कि मंत्री और विधायक अब कुछ ही माह के मेहमान बचे हैं। ऐसे में मंत्री—विधायकों को अधिकारी कोई खास तवज्जो नहीं दे रहे हैं। इसमें अहम चीज यह है कि जिस हिंडौली विधानसभा से अशोक चांदना चुनकर आते हैं, वहां पर गुर्जरों के अलावा माली वोटर बड़ी संख्या में हैं।
पायलट गहलोत विवाद के समय चांदना द्वारा पायलट का साथ नहीं देने के कारण गुर्जर समाज अशोक चांदना को गद्दार करार दे दिया है। इसलिए उनको लगता है​ कि गुर्जर समाज का वोट नहीं मिला तो वह अगला चुनाव हार जाएंगे, जिससे बचने के लिए वह राज्यसभा जाना चाहते हैं। पिछले दिनों गुर्जर समाज द्वारा किसी गुर्जर नेता को राज्यसभा भेजे जाने की मांग के पीछे भी चांदना और धीरज गुर्जर का ही हाथ बताया जा रहा है। ये दोनों ही युवा नेता कांग्रेस के एक राज्यसभा टिकट के जुगाड़ में हैं, ताकि यहां की एंटी इनकमबेंसी से मुक्ति मिल जाए।
इसको सीधे तौर पर समझिये, यदि अशोक चांदना को दबाव नहीं बनाना होता और इस्तीफा ही देना होता तो वह मुख्यमंत्री को ही इस्तीफा लिख भेजते, ना कि ट्वीट करके मंत्रीपद से मुक्ति दिलाने की अपील करते। ऐसे में अशोक चांदना का यह स्टंट उनके उपर लगे हुए पुलिस केस हटाने, अपने पिता को भ्रष्टाचार से बचाने और खुद को राज्यसभा भेजने के दबाव के तौर पर देखा जा रहा है। अब यह गहलोत के उपर निर्भर करता है कि वह अपने प्रमुख सचिव को त्वज्जो देकर यथावत रखते हैं, या उनको हटाकर अपने साथी मंत्री को सम्मान लौटाते हैं। गहलोत ने यदि प्रमुख सचिव रांका को अपने पद नहीं हटाया तो यह मैसेज जाएगा कि मंत्री की कोई कद्र नहीं है, और यदि मंत्री के दबाव में अधिकारी को हटाया जाता है तो ब्यूरोक्रेसी का नाराज होना तय है, क्योंकि कहा जाता है​ कि कुलदीप रांका की ब्यूरोक्रेसी में गहरी पैठ है, जो अधिकारियों की लॉबिंग करने के काम आती है।

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