अशोक गहलोत के करीबी ही क्यों फंसते कानूनी शिकंजे में?

राजस्थान विधानसभा चुनाव में अभी करीब 18 महीने का समय बाकी है, लेकिन पिछले दो कार्यकाल की तरह ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर ने जोर पकड़ लिया है। हालांकि, पुरानी पेंशन योजना की बहाली, पट्टा वितरण और शहरी रोजगार गारंटी जैसी योजनाओं के नाम पर अशोक गहलोत एंटी इनकंबेसी को थामने का प्रयास कर रहे हैं, किंतु यह लहर इतनी तीव्र होती जा रही है कि जैसे भाजपा के अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया कहते हैं कि 2023 में कांग्रेस पार्टी के इतने ही उम्मीदवार जीतकर आएंगे, जो टैम्पो की सवारी करेंगे, वाली बात सही साबित हो सकती है। चुनाव से इतने समय पहले ही गहलोत सरकार के खिलाफ यह बात क्यों प्रबल होती जा रही है? इसका कारण कुछ आंकड़े हैं, जो बताते हैं कि गहलोत कैसे पार्टी को उतरोत्तर नीचे से नीचे ले जाते हैं। साल 1998 के समय परसराम मदेरणा के नाम पर चुनाव लड़ने से मिली 150 सीटों पर सोनिया गांधी ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन बिना विजन के मुख्यमंत्री का यही नुकसान होता है, गहलोत 2003 में पहले कार्यकाल समाप्ति के बाद सत्ता से बेदखल हुए और पार्टी को भी 150 सीटों से 56 सीटों पर ले गये। इसी तरह से दूसरा चुनाव सीपी जोशी जैसे नेताओं के नाम पर लड़ा गया, तब वसुंधरा—ओम माथुर की खींचतान के कारण भाजपा सत्ता से बाहर हो गई तो एक वोट से चुनाव हारकर सीपी जोशी मुख्यमंत्री की रेस से बाहर हो गये।
गहलोत सरकार ने गिरते पड़ते 2008 से 2013 का कार्यकाल पूरा किया, लेकिन इसकी समाप्ति पर भी गहलोत ने पार्टी को 96 से 21 सीटों तक समेट दिया। अब गहलोत की वर्तमान सरकार में 99 विधायक खुद कांग्रेस के व 6 विधायक बसपा के मिलाकर 105 एमएलए हैं, जिनके सहारे सरकार चल रही है, किंतु सवाल यह उठता है​ कि भाजपा के अनुसार कांग्रेस टेम्पो की सवारी क्यों करेगी? वर्तमान सरकार में ऐसे कुछ कारण हैं, जिनके दम पर भाजपा की बात में दम नजर आता है। सबसे मजेदार बात यह है कि गहलोत के हर दूसरे मंत्री पर गंभीर आरोप हैं, और इससे भी अधिक मजेदार यह है कि इस बार गहलोत के मंत्रियों के परिजन भी सत्ता के नशे में कुकर्म करने से नहीं चूक रहे हैं। ताजा आरोप ऐसे हैं, जो गहलोत सरकार के गले की हड्डी बन चुके हैं। इनमें से कुछ उदाहरण देखिए कि कैसे गहलोत की सरकार डूबती नाव नजर आ रही है, जिसमें से लोग कूदकर भागने का प्रयास कर रहे हैं।
अशोक गहलोत की सरकार से बगावत करने वाले तत्कालीन उपमुख्यमंत्री व पार्टी अध्यक्ष सचिन पायलट के साथियों पर सिंगल आरोप नहीं होना यह साबित करता है कि समर्थक अपने नेता का ही अनुसरण करते हैं। दूसरी ओर सरकार बचाने में अहम भूमिका निभाने वालों में मंत्री महेश जोशी, महेंद्र चौधरी, हरीश चौधरी, गिर्राज मल्लिंगा, गणेश घोघरा, कृष्णा पूनियां, गोविंद सिंह डोटासरा, बीडी कल्ला, धमेंद्र राठौड़, वैभव गहलोत, राजीव आरोड़ा, अग्रसेन गहलोत और मुख्यमंत्री का एक ओएसडी, जो खुद को ओएसडी से राजनेता समझने लगा है। आज इनका एक—एक पर लगे आरोपों की पड़ताल करेंगे। सबसे पहले मंत्री रहे पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा की बात की जाए तो रीट पेपर, आरएएस भर्ती परीक्षा और पुलिस भर्ती परीक्षा में पेपर लीक होने और पेपर बेचने के आरोपों से घिरे, तो खुद गहलोत ने बिरला ओडिटोरियम में आयोजित एक कार्यक्रम में शिक्षकों से ट्रांसफर के लिए पैसे लगते हैं का सवाल पूछकर डोटासरा को कमजोर करने का काम किया। मंत्री रहते डोटासरा ने भी शिक्षकों का अपमान करने और वीडियो वायरल कर नाथी का बाड़ा जैसे बयान दिए, तो विपक्ष ने उनके खिलाफ एक अभियान चलाकर मंत्रीमंडल से बाहर करने का मजबूर कर दिया। आजकल डोटासरा पीसीसी चीफ हैं, लेकिन संगठन का बेडागर्क कर रखा है, जिसके पीछे मुख्यत: अशोक गहलोत ही हैं, क्योंकि गहलोत के आर्शीवाद से ही डोटासरा पीसीसी चीफ हैं।
दूसरे नंबर पर सरकार बचाने में अहम भूमिका निभाने वाले वर्तमान जलदाय मंत्री महेश जोशी हैं। जोशी पहले मुख्य सचेतक थे, आजकल मंत्री हैं। जब से मंत्री बने हैं, तब से वह अपने ही दल के विधायकों के निशाने पर हैं। विधायक दिव्या मदेरणा ने सदन के भीतर जोशी को रबर ​स्टांप कहकर संबोधित किया, तो उनके बेटे रोहित जोशी इन दिनों फरारी काट रहे हैं। रोहित जोशी पर एक लड़की को शादी का झांसा देकर देहशोषण करने का आरोप है। मामला दिल्ली पुलिस के पास है और महेश जोशी अशोक गहलोत के जरिये बेटे को बचाने के लिए दिल्ली में गृहमंत्री अमित शाह तक अप्रोच लगा चुके हैं। मंत्री के इस्तीफा देने की नौबत आ गई है, लेकिन लोगों का मानना है कि खुद गहलोत भी नहीं चाहते कि महेश जोशी इस मामले से बाहर निकलकर चैन से बैठे रहें। पूर्व मंत्री हरीश चौधरी भले ही पंजाब के प्रभारी बनने की वजह से पद छोड़ने की बातें कहें, लेकिन हकिकत यह भी है कि बाड़मेर में कमलेश प्रजापति एनकाउंटर मामले में उनका नाम आने के बाद खुद गहलोत ने ही मामला सीबीआई को सौंपने की सिफारिश करके हरीश चौधरी को मुसि​बत में डाल रखा है। आज हरीश चौधरी भले ही पंजाब के प्रभारी हों, लेकिन वहां पर करने को कुछ नहीं है, जबकि राजस्थान में भी मंत्री पद जा चुका है। इसी कड़ी में हैं उप मुख्य सचेतक महेंद्र चौधरी, जिनको गहलोत का खास माना जाता है। लेकिन कहते हैं कि गहलोत किसी को नहीं छोड़ते हैं, चाहे कितना भी खास क्यों नहीं हो। पिछले दिनों नागौर में नमक कारोबारी जयपाल पूनिया की हत्या में महेंद्र चौधरी के भाई मोतीसिंह का नाम आया तो सरकार ने कानून का नाम लेकर अपने ही खास विधायक के परिजन को भी नहीं बचाया गया, जबकि कितने ऐसे मामले नहीं हैं, जबकि पॉवरफुल लोग अपने लोगों को अवैध तरीके से बचाने का काम करते हैं।
कांग्रेस के बाडी से विधायक गिर्राज मल्लिंगा भी जेइएन, एइएन से मारपीट के आरोप में जेल की हवा खा चुके हैं, तो शिक्षामंत्री बीडी कल्ला पर भी पुलिस भर्ती परीक्षा में धांधली के आरोप लग रहे हैं। इसी तरह से तकनीकी शिक्षा मंत्री सुभाष गर्ग रीट पेपर परीक्षा में धांधली के आरोप झेल रहे हैं। इसी तरह से चूरू में एक सर्किल इंचार्ज विष्णुदत्त विश्नोई के सुसाइड मामले में विधायक कृष्णा पूनिया का नाम आने पर उसे सीबीआई को सौंप दिया, साथ ही कृष्णा पूनिया को खेल परिषद का अध्यक्ष बनाकर सुरक्षा मुहइया करवाई गई है। कृष्णा पूनिया कॉमवेल्थ गैम्स में मेडल जीतकर देश का नाम रोशन कर चुकी हैं, जबकि उनके कोच और पति विरेंद्र राज्य के मुख्य खेल अधिकारी बन चुके हैं। आदिवासी क्षेत्र में पिछले दिनों सोनिया गांधी की मौजूदगी में कांग्रेस को मजबूत करने का दावा तो गहलोत ने खूब किया, लेकिन उसके तीन दिन बाद ही यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष और ​कांग्रेस विधायक गणेश घोघरा के खिलाफ राजकार्य में बाधा का मुकदमा दर्ज हुआ तो उन्होंने अपने इस्तीफे की पेशकश कर दी। इस मामले में अभी तक भी गहलोत की तरफ से पक्ष या विपक्ष में कोई बयान नहीं दिया गया है, जबकि भाजपा—आरएसएस के खिलाफ आए दिन बयानबाजी करते रहते हैं। इसी तरह से सरकार का एक साल भी नहीं हुआ था कि तत्कालीन यातायात मंत्री प्रताप​सिंह खाचरियावास के खिलाफ एसीबी ने फाइल खोल डाली थी। कहा जाता है कि एसीबी के पास मंत्री के खिलाफ खासे सबूत हैं, और इसलिए कभी पायलट के खास रहे खाचरियावास इन दिनों अशोक गहलोत के ​खासमखास हैं।
ऐसे ही सरकार के खास धमेंद्र राठौड़ जो आजकल बीज निगम के अध्यक्ष हैं, राजीव अरोड़ा, जो राजस्थान लघु उद्योग निगम के अध्यक्ष हैं, अग्रसेन गहलोत, जो खुद अशोक गहलोत के भाई हैं, वैभव गहलोत, जो अशोक गहलोत के बेटे हैं और उनके एक खास ओएसडी के खिलाफ केंद्रीय एजेंसिया हाथ धोकर पीछे पड़ी हैं, लेकिन अशोक गहलोत इनको मामलों से निकाल नहीं पा रहे हैं। गहलोत की पिछली सरकार के समय भी मंत्री रहे महीपाल मदेरणा और बाबूलाल नागर जैसे लोग दुष्कर्म के मामलों में फंसे और उनको जेल जाना पड़ा, जबकि सरकार की नाकामी के साथ इन कारणों से एंटी इंकमबेंसी बनी और अंतत: कांग्रेस केवल 21 सीटों पर सिमट गई। इस बार भी कई मंत्री और विधायक आरोपों से घिरे हैं, जो सरकार की विदाई का कारण बन सकते हैं।

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