रूस की तरह चीन भी ताइवान पर अटैक करेगा?

रूस यूक्रेन युद्ध के कारण दुनिया में अबतक की सबसे अधिक महंगाई हो गई है। भारत से लेकर टर्की तक महंगाई का भयंकर विपरीत असर देखने को मिल रहा है। भारत में जहां महंगाई दर 15 प्रतिशत से उपर पहुंच चुकी है, तो टर्की में इंफ्लेसन का स्तर 70 फीसदी से अधिक हो चुका है। पूरी दुनिया इस रूस यूक्रेन युद्ध का अंत चाह रही है, लेकिन उससे पहले एक बड़ा संकट और सामने आता दिखाई दे रहा है। रूस की तरह ही उसका सबसे खास मित्र भी अपने एक एक छोटे पडोसी देश पर आक्रमण करने की तैयारी कर रहा है। इस वीडियो में चर्चा करेंगे कि यह कौनसा देश है और आखिर क्यों अपने ही पडोसी देश पर हमला करना चाहता है? साथ ही इस बात पर भी चर्चा करेंगे कि ऐसे समय में भारत और अमेरिका की ओर क्या कदम उठाया जाएगा?
इस वक्त अति महत्वपूर्ण क्वाड का तीसरा शिखर सम्मेलन हो रहा है। जापान की राजधानी टोक्यो इसकी मेजबानी कर रही है, जिसमें जापान के प्रधानमंत्री फुमिओ किशिदा के अलावा अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ओस्ट्रेलिया के नये रवेले प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीस भी हिस्सा ले रहे हैं। वैसे तो मोटे तौर पर इस समिट का एजेंडा इंडो पैसेफिक इकॉनोमिक फ्रेमवर्क कार्यक्रम ही है, किंतु इसके साथ ही रूस यूक्रेन युद्ध पर चर्चा, दुनिया को खाद्दान की उपलब्धता और आपसी रिश्तों को मजबूत करने पर भी बल दिया जा रहा है। इस गठबंधन के माध्यम से चारों देश समुद्री कारोबार में चीन को घेरना चाह रहे हैं। इस बीच एक दिन पहले ही अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने यह कहकर कि चीन ने यदि ताइवान पर हमला किया तो अमेरिका चीन के खिलाफ आर्मी एक्शन लेगा, ने पूरी दुनिया को सकते में डाल दिया है।
इस बयान को लेकर अभी तक अमेरिका पीछे नहीं हटा है, लेकिन चीन ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है और अपनी एकता व संप्रभुता के नाम पर किसी भी हमला करने के लिए खुद को स्वतंत्र बताते हुए अमेरिका को खुली चेतावनी दे दी है। इस बीच चीन का एक ओडिया वायरल हुआ है, जिसें चीन के टॉप सीक्रेट अधिकारी इस बात की चर्चा कर रहे हैं कि रूस यूक्रेन युद्ध के बीच किस तरह से ताइवान पर हमला कर उसको सरेंडर करने को मजबूर किया जाए? इस ओडिया के बाहर आने का मतलब यह है कि इस टॉप ​सीक्रेट मीटिंग में कोई ऐसा व्यक्ति है, जो दुनिया को सच दिखाने के लिए चीन से दुश्मनी मौल ले चुका है, क्योंकि जिसने भी यह ओडिया सार्वजनिक किया है, उसकी मौत तय है। चीन में तानाशाही शासन है, जो सत्ता के खिलाफ बोलने वाले को मौत के घाट उतारने के लिए कुख्यात है। इस बात की पुष्टि पश्चिमी मीडिया से लेकर यूरोपीयन देशों में निर्वासित जीवन जी रहे चीन के पत्रकार भी कर रहे हैं।
इस ओडिया में जो कहा गया है, वह तो चीन की स्थानीय भाषा में रिकॉर्ड है, लेकिन इसका निष्कर्ष यही है कि चीन पहले अपने 1.40 लाख सैनिकों को ताइवान की तरफ मोड़ेगा, उसके बाद 2 लाख सैनिक और कतार में खड़ा करेगा, यानी ताइवान सरेंडर नहीं करता है तो उसको डराया जा सके और उसके बाद भी यदि वह आत्म समर्पण नहीं करता है तो हमला करने के लिए तैयार रहने को कहा गया है। यह बिलकुल वैसी ही रणनीति है, जैसी रूस ने यूक्रेन के खिलाफ अपनाई थी। इस ओडिया के लीक होने के बाद चीन की सरकार ने उस व्यक्ति को खोजने के लिए जांच बिठा दी है, जिसने ओडिया सार्वजनिक किया है। किंतु कितने आश्चर्य की बात है कि एक ओर जहां क्वाड की बैठक हो रही है, तो दूसरी तरफ अमेरिका के राष्ट्रपति ताइवान की रक्षा का वचन दे रहे हैं और चीन में ताइवान के खिलाफ सैनिक अभियान की तैयारी हो रही है।
अब आप सोच रहे होंगे कि क्या चीन के द्वारा ताइवान पर हमला करने पर अमेरिका खुद चीन के खिलाफ आर्मी से आक्रमण करेगा, जैसा कि जो बाइडन ने कहा है? और क्या अमेरिका ऐसे मौके पर रूस की तरह चीन पर भी आर्थिक प्रतिबंध लगा सकता है? साथ ही सवाल यह भी उठता है कि यदि अमेरिका ऐसे करता है, तो दुनिया का क्या हाल होगा और चीन की अर्थव्यवस्था किस दिशा में जाएगी, साथ ही प्रश्न यह भी उठता है कि उस वक्त भारत का रुख क्या रहेगा? पहली बात तो यह है कि चीन आज नहीं तो कल, ताइवान पर हमला कर उसको खुद में मिलाने का काम जरुर करेगा, क्योंकि वह इसकी बरसों से तैयारी कर रहा है। इससे पहले वह तिब्बत, मंगोलिया, तुर्जीस्तान, मकाउ, हॉन्कांग और ताइवान समेत 6 देशों की 41.13 लाख स्क्वायर किमी जमीन पर कब्जा करके बैठा है। ये उसकी कुल जमीन का 43% भाग है, जबकि भारत की भी 43 हजार वर्ग किमी जमीन उसके पास है। इस वक्त वह रूस और कनाडा के बाद सबसे बड़ा देश है। चीन का कुल एरिया 97 लाख 6 हजार 961 वर्ग किमी में फैला हुआ है। चीन की 22 हजार 117 किमी लंबी सीमा दुनिया के 14 देशों से लगती है। चीन की इस विस्तारवादी नीति से पूरी दुनिया वाकिफ है, ऐसे में कोई भी यह नहीं कह सकता कि वह ताइवान पर हमला नहीं करेगा।
तो जो ओडिया वायरल हुआ है, वह चीन की ताइवान के खिलाफ तैयारी का सबसे बड़ा सबूत है। अब सवाल यह उठता है कि जैसा अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि चीन यदि ताइवान पर हमला करेगा तो उसके खिलाफ आर्मी एक्शन लिया जाएगा, क्या अमेरिका सच में ऐसा कर सकता है? क्योंकि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण से पहले भी अमेरिका की ओर से कथित तौर पर ऐसा दावा किया जा रहा था कि वह युद्ध में यूक्रेन के लिए खड़ा रहेगा, यह बात और है कि रूसी हमले के बाद अमेरिका ने यूक्रेन को सैन्य सहायता से साफ इनकार कर दिया। अमेरिका रूस के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगा चुका है और अब यूक्रेन को 60 अरब डॉलर के अत्याधुनिक हथियार देकर बचाने का काम कर रहा है, लेकिन अब काफी देर हो चुकी है, क्योंकि रूसी सेना यूक्रेन के अधिकांश हिस्से पर कब्जा कर चुकी है, जिसके कारण यूक्रेन के पास अब दो ही रास्ते बचे हैं, या तो अमेरिका खुद आर्मी एक्शन लेकर सीधा रूस से टकराये और उसको हराकर मार भगाए, और या फिर यूक्रेन रूस के सामने समर्पण कर दे, किंतु अभी दोनों ही स्थितियां बनती नहीं दिख रही हैं।
इसलिए जो बाइडन के बयान के बाद पश्चिमी मीडिया ने ही इसको मजाक करार दे दिया है। ब्लूमबर्ग ने बहुत साफ शब्दों में लिखा है कि बाइडन ने यूं ही मजाक में कह दिया कि वह ताइवान को बचाने के लिए चीन के खिलाफ आर्मी एक्शन लेगा। इन खबरों के हिसाब से बात करें, तो इसका मतलब यह है कि जिस एन्यूरिज्म बीमारी से जो बाइडन जूझ रहे हैं, उसी का परिणाम है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने बिना सोचे समझे यह कह दिया कि वह चीन के खिलाफ आर्मी एक्शन लेंगे। यदि वास्तव में अमरिका चीन से ताइवान को बचाना चाहता है, तो उसको चीनी हमले से पहले ​इतने हथियार मुहइया करवाएं कि ताइवान खुद ही चीन से मुकाबला कर सकें और उससे भी पहले चीन खुद ही अमेरिकी हथियारों से डर जाए। और यदि अमेरिका ने रूसी हमले की तरह चीन के हमले का इंतजार करके ताइवान को हथियार देने की लेट वाली रणनीति अपनाई तो चीन अपने मंसूबों में कामयाब हो जाएगा।
तीसरा सवाल यह उठता है कि क्या चीनी हमले के बाद अमेरिका व यूरोप रूस की तरह चीन के खिलाफ भी आर्थिक प्रतिबंध लगाने जैसे कदम उठा सकते हैं? चीन द्वारा ताइवान पर हमला करने के बाद भी इसकी संभावना बेहद कम है, क्योंकि रूस दुनिया को केवल कच्चा तेल, गैस और स्टील जैसी चीजें ही निर्यात करता है, लेकिन चीन इस मामले में रूस से कोसों आगे है, बल्कि अमेरिका, भारत व यूरोप जैसे कई देश, कई वस्तुओं के मामले में पूरी तरह से चीन पर निर्भर हैं। रूस की आबादी केवल 14 करोड़ के आसपास है, जो दुनिया के लिए एक छोटा सा बाजार है, जबकि चीन की जनसंख्या लगभग 142 करोड है, जो ना केवल दुनिया का सबसे बड़ा मार्केट है, बल्कि चीन विश्व का सबसे अधिक उत्पादक भी है। अमेरिका व यूरोप यह जानते हैं कि चीन पर प्रतिबंध लगाने का मतलब होगा दुनिया के बाजारों को रातोंरात डुबो देना। जिसके कारण दुनिया में ऐसी भयानक वैश्विक मंदी आएगी कि चीन ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देश एक ​ही दिन में कंगाल हो जाएंगे। इसलिए इस बात की संभावना नहीं कि बराबर है।
चौथा सवाल यह है कि यदि चीन ने तावाइन पर अटैक किया और अमेरिका व जापान की सयुंक्त सेनाओं ने चीन के खिलाफ आर्मी एक्शन लिया तो क्या भारत भी इनका साथ देगा? दरअसल, आज भारत का बहुत बड़ा आयात चीन के उपर निर्भर है। भारत ने 1991 के दौर में उदारीकरण को अपनाया, लेकिन अपने यहां पर उत्पादन करने में रुची नहीं ली, जिसका परिणाम यह हुआ कि भारत की चीन जैसे देशों पर निर्भरता हद से अधिक बढ़ गई। भारत इस वक्त चीन से करीब 98 अरब डॉलर का आयात करता है, जबकि केवल 28 अरब डॉलर का निर्यात करता है। ऐसे में भारत भी अगर अमेरिका के साथ चीन के खिलाफ आर्मी एक्शन में शामिल होता है तो भारत की अर्थव्यवस्था का तहस नहस होना तय है। इसलिए भारत यह जानते हुए भी कि चीन गलत कर रहा है, फिर भी रूस—युक्रेन युद्ध की तरह तटस्थ रहकर दोनों पक्षों को शांति बनाए रखने की अपील करेगा।
फिलहाल अमेरिका व चीन के बीच बयानबाजी बढ़ने की संभावना है और यह बयानबाजी शीतयुद्ध में बदल सकती है। अभी भारत, अमेरिका, जापान, ओ​स्ट्रलिया के बीच इंडो पैसेफिक आर्थिक संधि के कारण चीन वैसे ही तिलमिलाया हुआ है, ऐसे में संभावना है कि वह गुस्से में आकर ताइवान पर आक्रमण करने का पाप भी कर बैठे। ऐसे समय में भारत के लिए सबसे अच्छी राय यही है कि वह पहले खुद को चीन के मुकाबले के लिए आर्थिक तौर पर तैयार करे और अपनी आबादी के अनुसार उत्पादन को उच्चतम स्तर पर ले जाए। वैसे भी यह अर्थयुग है, जिसमें सबसे अधिक कारोबार करने वाला देश स्वत: ही सबसे शक्तिशाली हो जाता है। यही प्रतियोगिता अमेरिका, चीन, भारत, रूस और जापान जैसे देशों के बीच चल रही है। भारत अभी इनमें चौथे स्थान पर है, लेकिन आने वाले तीन—चार सालों में उत्पादन के दम पर तीसरे नंबर पर आ जाएगा। चीन भी यह बात जानता है कि एशिया में उससे मुकाबला करने के लिए भारत ही आगे बढ़ रहा है, इसलिए वह लद्दाख व डोकलाम में सीमा विवाद के जरिये भारत को विकास के मार्ग से भटकाने की साजिशें करता रहता है।

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