अग्निवीर 4 साल बाद ट्रेक्टर खरीदकर खेती करेंगे?

Ram Gopal Jat
केंद्र सरकार द्वारा सेना में आमूलचूल बदलाव किये जाने के लिये शुरू की गई अग्निपथ योजना के बाद देश के सात राज्यों में उपद्रव मचा हुआ है। एक दर्जन ट्रेनों को आग के हवाले कर दिया गया है। भड़के हुये युवओं द्वारा हाइवे जाम करके उनको उखाड़ने का काम किया गया है। कई जगह लोगों की संपत्ति को आग लगाई गई है और गाड़ियों को जलाया गया है। सरकार अब तक डिमांड के अनुसार तीन बार बदलाव कर चुकी है। पहले एक वर्ष के लिये आयुसीमा दो साल की छूट दी गई है। यह कोरोना के कारण भर्तियां नहीं होने के कारण दी गई है। इसके साथ ही गृहमंत्री अमित शाह ने गृह मंत्रालय अंडर में आने वाले बीएसएफ, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ, असम राइल्फ और दिल्ली पुलिस में 10 फीसदी पद अग्निवीरों के लिये रिजर्व रखने की घोषणा की है। साथ ही रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि रक्षा मंत्रालय में होने वाली भर्तियों में भी अग्निवीरों को 10 फीसदी आरक्षण दिया जायेगा। इस बीच अग्निपथ योजना को बनाने वाले एडिश्नल सेक्रेटरी लेफ्टिनेंट जनरल अनिल पुरी ने एक निजी चैनल से बात करते हुए कई अहम बातें बताई। उन्होंने कहा कि इस योजना की जरूरत फौज में आज से नहीं बल्कि कारगिल युद्ध के समय से है। एक सवाल के जवाब में कहा कि 12 लाख रुपये मिलने के बाद अपना कारोबार कर सकते हैं, या किसी की इच्छा हो तो ट्रेक्टर खरीदकर खेती कर सकता है।
सरकार की ओर से इतना सबकुछ करने के बावजूद पांच दिन से युवाओं का गुस्सा थम नहीं रहा है। भडके हुये युवाओं को भटकाने का काम कर रहे हैं विपक्षी दल, जो बिना सिर पैर की बातें करके आग कें घी डालने का काम कर रहे हैं। भारत में राजनीति का स्तर ​इतना गिर गया है कि जिस विपक्ष को रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिये, उसका काम केवल विरोध के लिये विरोध करना ही काम रह गया है। केंद्र सरकार ने कोई योजना शुरू की हो, आज 8 साल में एक भी योजना का विपक्ष ने कभी समर्थन नहीं किया। केंद्र सरकार ने इन वर्षों में दो दर्जन से अधिक बड़ी और दो दर्जन छोटी योजनाएं शुरू कीं, लेकिन विपक्ष हमेशा आलोचना ही करता है। यह बात बिलकुल सही है कि विपक्ष की वजह से ही लोकतंत्र का सही से संचालन होता है, लेकिन जब बात देश की संपत्ति जलाने की आती है, तब भी विपक्ष देश विरोधियों के साथ ही खड़ा है। लगातार देश की संपत्ति को जलाया जा रहा है, लेकिन कोई दल यह नहीं कह रहा है कि संपत्ति नहीं जलायें, ऐसे लोगों के साथ हम नहीं हैं।
आखिर क्यों विपक्ष इस तरह से देश जलाने को आमादा है? आखिर क्यों असद्दूीन ओवैशी और कांग्रेस के सांसद इरफान खान ने इस योजना को लागू करने पर देश को खून से लथपथ करने की चेतावनी दी है। इधर, सोनिया गांधी ने पत्र लिखकर भड़के हुये और भटके हुये युवाओं को समर्थन दिया है। ऐसे में एक बात साफ हो गई है कि भले ही योजना देश और देश की जनता के लिये कितनी भी अच्छी हो, लेकिन विपक्ष को केवल विरोध करना है। आज देश देख रहा है कि कितनी अच्छी योजना पर कौन बवाल मचा रहा है? कौन युवाओं को भड़काकर देश की संपत्ति जलाने का काम कर रहा है? कौन है जो देश विरोधी चीन के साथ खड़ा हुआ है। बात करेंगे कि कैसे भारत में हर दंगे के पीछे चीन के एजेंट्स काम करते हैं? कैसे वो भारत के भोले भाले किसानों से लेकर जवानों तक को भड़काने का काम करते हैं? कैसे पैसा देकर देश के खिलाफ आग लगाने के लिये युवाओं को तैयार कर लेते हैं, लेकिन उससे पहले आपका यह जानना जरुरी है कि खुद चीन समेत दुनिया के 30 देश ऐसे हैं, जहां पर पहले से ही अग्निपथ जैसी योजनाएं सफलतापूर्वक चल रही है।
दुनिया के सबसे छोटे होने पर भी 57 इस्लामिक देशों से लोहा लेने वाले अकेले इजरायल में पुरुष और महिला, दोनों के लिए मिलिट्री सर्विस अनिवार्य है। 18 साल के होने पर पुरुष इजरायली रक्षा बल में 3 साल और महिला करीब 2 साल तक सेवा देती हैं। कुछ सैनिकों को अलग-अलग जिम्मेदारियों के तहत अतिरिक्त महीने की सेवा भी करनी पड़ सकती है। यह देश-विदेश में रह रहे इजरायल के सभी नागरिकों पर लागू होता है, सिर्फ मेडिकल आधार पर ही किसी को सेना छोड़ने की अनुमति मिल सकती है। जैसे कोई विकलांग है या मानसिक तौर पर कमजोर है अ​थवा आंखों की रोशनी कमजोर है। भारत का नंबर एक दुश्मन और भारत में शांति फैलाने वाले चीन में भी लोगों को मिलिट्री में सेवा देना अनिवार्य है। चीन में यही टूर ऑफ ड्यूटी 18 से 22 साल उम्र के युवाओं के लिए होती है और इसकी सीमा भारत की चार साल के बजाये दो साल तय की गई है। चीन के मकाऊ और हांग-कांग प्रांत को इससे छूट दी गई है।
भारत को करीब 200 साल तक गुलाम रखने वाले ब्रिटेन में आर्मी, नेवी और एयरफोर्स के लिए अलग-अलग टूर ऑफ ड्यूटी की सीमा तय की गई है। ब्रिटिश आर्मी में 18 साल के ऊपर के नौजवानों को 4 साल के लिए टूर ऑफ ड्यूटी करनी पड़ती है। और 18 साल से पहले भर्ती होने वाले युवाओं को 22वें जन्मदिन तक टूर ऑफ ड्यूटी करनी पड़ती है। नेवी में ट्रेनिंग के बाद साढ़े तीन साल और एयरफोर्स में ट्रेनिंग के बाद तीन साल की सेवा देनी पड़ती है। मतलब लगभग भारत जैसी ही योजना ब्रिटेन में पहले से चल रही है। तानाशाही शासन कहे जाने वाले उत्तरी कोनिया में पुरुषों को आर्मी, नेवी और एयरफोर्स में टूर ऑफ ड्यूटी के तहत काम करना अनिवार्य है। किम जोंग के इस देश में 23 महीने नेवी, 24 महीने वायु सेना और 21 महीने थल सेना में तैनाती दी जाती है।
दुनिया के सबसे बड़े भूभाग वाले देशों में शामिल ब्राजील में 18 साल से अधिक की उम्र के हर युवा के लिए मिलिट्री सेवा जरूरी है। यह 1 साल के लिए होती है। 18 साल की उम्र पूरी होते ही यह हर पुरुष नागरिक पर लागू हो जाती है। सिर्फ स्वास्थ्य कारणों के आधार पर लोगों को छूट मिल सकती है। अगर कोई यूनिवर्सिटी में पढ़ रहा है, तो उसकी सेवा टाली जा सकती है, लेकिन इसे रद्द नहीं किया जा सकता है। पिछले तीन माह से यूक्रेन पर हमला कर रहे रूस में 18 से 27 साल तक के युवाओं को अनिवार्य सेना में सेवाएं देना जरूरी है। पहले यहां अनिवार्य सैन्य सेवा के लिए युवाओं को 2 साल देने पड़ते थे, लेकिन 2008 से इसे घटाकर मात्र 12 महीने कर दिया गया है। डॉक्टर, शिक्षक जैसे पदों पर नियुक्त लोगों के लिए इसमें ढील दी गई है। जिन पुरुषों को 3 साल या उससे कम उम्र के बच्चें हों उन्हें भी इससे छूट मिली हुई है। बरमूडा में पुरुषों को सेना ​में भर्ती करने के लिए सरकार लॉटरी निकालती है। इसमें 18 से 32 वर्ष तक के पुरुषों की भर्ती की जाती है। इस लॉटरी में जिनका नाम आता है, उन्हें बरमूडा रेजिमेंट में अनिवार्य रूप से 38 महीनों के लिए सेवा देनी पड़ती है।
इलेक्ट्रोनिक्स में बेहतरीन माने जाने वाले दक्षिण कोरिया में सभी सक्षम पुरुषों को सेना में 21 महीने, नौसेना में 23 महीने और वायुसेना में 24 महीने सर्विस देनी होती है। पुलिस फोर्स, कोस्ट गार्ड, फायर सर्विस सहित कई सरकारी विभाग में भी काम करने का ऑप्शन रहता है। दक्षिण कोरिया में सबसे अधिक साल तक अनिवार्य सैन्य सेवा करनी होती है। पुरुषों को करीब 11 साल तो महिलाओं के लिए करीब 7 साल तक सेवा देने का नियम है। सीरिया जैसे इस्लामिक देश में सभी पुरुषों के लिए सैन्य सेवा अनिवार्य है। मार्च 2011 में अनिवार्य मिलिट्री सर्विस को 21 महीने से घटाकर 18 महीने कर दिया था। यहां नियम इतने सख्त हैं कि सैन्य सेवाओं को टालने वाले लोगों की नौकरी तक जा सकती है। सर्विस देने से भागने वाले लोगों को जेल की सजा तक का प्रावधान है। महिलाओं के लिए ऐसा नहीं है, वह वॉलंटियर सर्विस दे सकती हैं। दुनिया के खूबसूरत देश कहे जाने वाले स्विट्जरलैंड में अनिवार्य सैन्य सेवा लागू है। यहां सभी सेहतमंद पुरुषों को वयस्क होते ही मिलिट्री में शामिल होना होता है। महिलाएं खुद चाहें तो सेना में शामिल हो सकती हैं, अन्यथा उनके लिए यह जरूरी नहीं है। यह सेवा करीब 21 हफ्ते की होती है। इसके बाद जरूरी ट्रेनिंग के अनुसार इसे बढ़ाया जा सकता है। आमतौर पर इसमें 6 ट्रेनिंग पीरियड होते हैं। हर ट्रेनिंग 19 दिन की होती है। समुद्री कारोबार में नंबर एक देश सिंगापुर में भी सैन्य सेवा अनिवार्य है। हर पुरुष को 18 साल की उम्र होते ही सिंगापुर आर्म्ड फोर्सेस में शामिल होना जरूरी है। इसके अलावा वह सिंगापुर सिविल डिफेंस फोर्स या फिर सिंगापुर पुलिस फोर्स में शामिल हो सकता है। इस नियम को तोड़ने वालों पर 10 हजार सिंगापुरियन डॉलर्स का जुर्माना, तीन साल की सजा या फिर दोनों लागू हो सकता है।
अपनी अलग पहचान रखने वाले समुद्री देश थाईलैंड में अनिवार्य सैन्य सेवा 1905 से लागू है। सभी पुरुषों को सेना में भर्ती होना जरूरी है। पुरुषों 21 साल की उम्र में पहुंचते ही सेना में भर्ती होना होता है। खुद को दुनिया का सबसे बड़ा इस्लामिक देश होने का दावा करने वाले तुर्की में भी सेना भर्ती जरूरी है। वे सभी पुरुष जिनकी उम्र 20 से 41 साल के बीच है, उन्हें तुर्की की सेना में शामिल होना ही होता है। जिनका हायर एजुकेशन या वोकेशनल ट्रेनिंग चल रहा होता है, वो कुछ दिन के लिए अपनी मिलिट्री ट्रेनिंग टाल सकते हैं। इसी तरह से नार्वे में 19 साल से लेकर 44 साल के नागरिकों को अनिवार्य रूप से सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करनी होती है। इनके साथ ही ऑस्ट्रिया, अंगोला, डेनमार्क, मैक्सिको, ईरान जैसे 15 देशों में सिविलियन और मिलिट्री ट्रेनिंग अनिवार्य है। इसके अलावा 11 ऐसे देश हैं, जहां नागरिकों के पास मिलिट्री ट्रेनिंग का विकल्प होता है। चीन, कुवैत, फ्रांस, सिंगापुर, माली, कोलंबिया, ताइवान, थाईलैंड जैसे 10 ऐसे देश हैं, जहां मिलिट्री में सेवा देना अनिवार्य और वॉलेंटियरी दोनों है। दुनिया में 30 से ज्यादा देश ऐसे हैं, जहां किसी न किसी तरह से टूर ऑफ ड्यूटी को लागू किया गया है। इनमें 10 देश तो ऐसे हैं, जहां पुरुष और महिलाओं दोनों को सेना में अनिवार्य रूप से सेवा देनी पड़ती है। इनमें चीन, इजराइल, स्वीडन, यूक्रेन, नॉर्वे, उत्तर कोरिया, मोरक्को, केप वर्दे, चाड, इरित्रिया जैसे देश शामिल हैं।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि भारत में इस योजना का विरोध क्यों हो रहा है? इसके पीछे कई कारण हैं, जिनमें सबसे पहला कारण तो यह है कि युवाओं को इसके बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है। उनको जैसे विपक्षी दलों ने बताया, वैसे ही मान लिया है। दूसरी बात यह है कि अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। अलबत्ता उनको चिंतित किया गया है। तीसरी कारण है सेना की कम समय की ड्यूटी और उसके बाद आजीवन सुरक्षित पेंशन, जिसका मोह कोई भी छोड़ना नहीं चाहता है। एक कारण यह है कि युवाओं को लगता है कि वो चार साल तक सेना में सर्विस करने के बाद उतने मन से दूसरी सेवा नहीं कर पायेंगे, क्योंकि उनमें मन में सैनिक का भाव पैदा हो जायेगा। अब आप समझिये कि कैसे भारत के हर आंदोलन में चीन का बैक सपोर्ट होता है? पहले भी दो वीडियो में मैंने इस बात का जिक्र किया है कि भारत और चीन के बीच इडस्ट्री को लेकर कम्पीटीशन चल रहा है। वैश्विक कंपनियों को अपने अपने देश में बुलाने के लिये दोनों देश कोशिश करते रहते हैं। भारत पिछले 3 साल से एफडीआई, यानी फोरेन डायरेक्ट इंवेस्टमेंट में नंबर एक बना हुआ है। कोनोना के कारण जहां चीन से कंपनियां भागी हैं, वहीं भारत में पिछले साल भी 65 बिलियन डॉलर का निवेश आया है।
बड़ी बड़ी कंपनियां ज्यों ज्यों भारत में निवेश कर रही है, वैसे ही भारत में उत्पादन बढ़ रहा है। इसके कारण जहां एक ओर निर्यात बढ़ रहा है, तो साथ ही रोजगार के अवसर भी पैदा हो रहे हैं। इस वक्त भी भारत का चीन के साथ करीब 120 बिलियन डॉलर का कारोबार है। जिसमें से करीब 90 बिलियन डॉलर का आयात होता है। यह चीन के लिये काफी फायदेमंद है, लेकिन जैसे जैसे भारत में विदेशी कंपनियां आ रही हैं, वैसे ही यहां पर उत्पादन बढ़ रहा है। उत्पादन बढ़ने से भारत की मांग की पूर्ति यहीं हो जाती है, जिससे चीन से आयात कम होने लगा है। और यही बात चीन को चुभ रही है। चीन को पता है कि यदि भारत में अशांति, अराजकता और दंगे होते रहेंगे, तब तक वैश्विक कंपनियां निवेश नहीं करेंगी। निवेश नहीं होगा तो ना रोजगार बढ़ेगा और ना ही उत्पादन होगा। जिसके कारण भारत को चीन से आयात करना ही होगा। यही चीन चाहता है। इसलिये चाहे किसान आंदोलन हो, तीन तलाक का मामला हो, नागरिकता संसोधन कानून का आंदोलन हो या फिर धारा 370 के खिलाफ हवा बनाने का मामला हो, हर बार चीन द्वारा फंडिंग की जाती है। भारत सरकार की असफलता यह है कि उन रास्तों को बंद नहीं कर पा रही है, जहां से चीन का अवैध पैसा भारत में आ रहा है।
खास बात यह है कि चीन ना केवल सोशल मीडिया के जरिये अपने इरादे पूरे करता है, ​बल्कि मैन स्ट्रीम के मीडिया में भी कई ऐसे चैनल और अखबार हैं, जो खुलेआम भारत के खिलाफ और चीन के पक्ष में लिखते रहते हैं, जिससे भारत में बैठे वामपंथी और देश विरोधी लोग सरकार के बहाने देश की संपत्ति पर हमला करते हैं। अराजकता फैलाते हैं, अशांति करने का काम करते हैं और युवाओं, किसानों को भड़काने का काम कर लेते हैं। पर सोचनीय बात यह है कि भारत में रहने वाली आंदोलनजीवी जमात चीन के पैसे पर कुछ भी करने को तैयार हो जाती है। यही कारण है, जिसके चलते भारत में हर योजना के बाद धरने, प्रदर्शन, दंगे हो जाते हैं।

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