मोदी सरकार सांसदों—विधायकों की पेंशन खत्म करेगी?

Ram Gopal Jat
केंद्र सरकार द्वारा पांच दिन पहले शुरू की गई अग्निपथ योजना के विरोध में एक दर्जन ट्रेनों के डिब्बे फूंक दिये गये हैं, हजारों वाहनों को आग लगा दी गई है। कई जगह पर हाइवे जाम किये गये हैं। इसी तरह से बाजार बंद कराने के प्रयास हो रहे हैं। केंद्र सरकार की इस योजना में कई खामियां बताकर इसका विरोध हो रहा है। विरोध करने वालों का मानना है कि चार साल बाद युवा कहां जायेगा? उसका भविष्य क्या होगा? क्या सेना में नौकरी करने के बाद कोई दूसरी सर्विस कर पायेगा? पेंशन बंद होने का सबसे ज्यादा दुख है। युवाओं का कहना है कि जब सबको पेंशन मिल रही है, तो फिर इस योजना के अग्निवीरों को क्यों नहीं? जबकि हकिकत यह है कि यह ट्यूर ओफ ड्यूटी है, जिसमें शॉर्ट टर्म के लिये सेना ज्वाइन करनी होती है, उस वक्त उनको वेतन दिया जाता है और बाद में भविष्य निधि के तौर पर करीब पौने 12 लाख रुपये भी दिये जाता हैं, ताकि युवा 24 साल की उम्र में जब सेना से बाहर निकले तो अपना रोजगार कर पाये, या आगे की पढ़ाई कर पाये। किंतु लोगों ने इसको सरकारी नौकरी और रिटायरमेंट के तौर पर ले लिया है, जिसमें पेंशन सुविधा है ही नहीं।
सवाल यह उठता है​ कि इजराइल, अमेरिका समेत कई देशों में अनिवार्य आर्मी ट्रेनिंग के दौरान उनको वेतन नहीं मिलता, कोई भत्ते नहीं मिलते और जब ट्रेनिंग पूरी हो जाती है, तब भी उसको कुछ नहीं मिलता, तब भारत में ही इतना बवाल क्यों मचा हुआ है? विरोध करने वालों का कहना है कि जब सांसदों और विधायकों को एक दिन के लिये चुने जाने पर ही पेंशन मिलनी पक्की हो जाती है, तो फिर इन अग्निवीरों को क्यों नहीं? सवाल तो जायज है और सवाल इसलिये भी जायज है, क्योंकि जनप्रतिनिधियों को अलग अलग राज्यों में अलग अलग वेतन व पेेंशन का प्रावधान है। मजेदार बात यह है कि विधायक जितनी बार चुना जाता है, उतनी ही बार की पेंशन मिलनी शुरू हो जाती है। कोई व्यक्ति जितना बार सांसद रहता है, उतनी ही बार की पेंशन जुड जाती है। ऐसे में सवाल तो जायज है कि जब जनप्रतिनिधि को कुछ समय के लिये चुने जाने पर ही पेंशन मिल सकती है तो फिर अग्निवीरों को 4 साल की नौकरी के बाद भी क्यों नहीं? इस सवाल का जवाब जानने का प्रयास करेंगे, लेकिन उससे पहले जान लीजिये आपका सांसद या विधायक कितना वेतन लेता है? आपके पूर्व सांसद या विधायकों को कितनी पेंशन मिलती है? इन जनप्रतिनिधियों को मिलने वाली पेंशन और वेतन भत्ते आपकी आंखें खोल देंगे।
आपने अक्सर देखा होगा कि बिलों को लेकर या स्थानीय मुद्दों को लेकर सदन में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच खूब खींचतान होती है, लेकिन क्या आपको पता है, एक मुद्दा ऐसा भी है, जिसपर सत्तापक्ष व विवक्ष खुशी खुशी एक हो जाता है? जब संसद या विधानसभाओं में जनप्रतिनिधियों के वेतन बढ़ाने की बात आती है, तो पक्ष और विपक्ष एक होकर बिल पास करते हैं। चाहे जितना वेतन और चाहे जितने भत्ते तय कर लिये जाते हैं। वैसे तो भारत लोकतांत्रिक देश है, जिसमें तीन पिलर हैं, संसद, न्यायपालिका और कार्यपालिका, जिनमें से न्यायपालिका और कार्यपालिका के सदस्यों का वेतन भत्ता सरकार तय करती है... लेकिन क्या आपको पता है संसद और विधानसभाएं देश की ऐसी संस्थाएं हैं, जो जन प्रतिनिधियों का वेतन बढ़ाने के लिये किसी पर निर्भर नहीं हैं, वो स्वयं ही अपने सदस्यों का वेतन भत्ते मर्जी से बढ़ा लेती हैं। दोनों सदनों के सांसदों को समान वेतन और भत्ते मिलते हैं। इसी तरह से रिटायर होने पर पेंशन भी समान मिलती है। साल 2020 के भारत सरकार ने रिटायर हो चुके सांसदों को 70 करोड़ रुपये पेंशन के पेटे दिये थे। इनमें ऐसे सांसद भी हैं, जो एक ही बार चुने गये थे, ऐसे सांसद भी हैं, जो 1996 से 1999 के संक्रमणकाल में कुछ ही समय सांसद रहे, लेकिन उनको भी पूरी पेंशन मिलती है।
एक सांसद के वेतन की बात की जाये तो कैबिनेट स्तर के सांसद का प्रतिमाह वेतन व भत्ते मिलाकर करीब 3 लाख रुपया होता है। जबकि रिटायर होने पर उसको आजीवन 25 हजार रुपये पेंशन मिलती है, अन्य सुविधाएं अलग हैं। कोई जितनी बार सांसद रहता है, उतनी ही बार पेंशन का 75 फीसदी हिस्सा जुड़ता जाता है, यानी उतनी ही बार की पेंशन मिलती है। खास बात यह है कि भले ही सांसद एक ही दिन का बना हो, उसकी आजीवन पेंशन शुरू हो जाती है। संसद के दोनों सदनों में सभी सदस्यों के लिये इसमें एकरुपता है। लेकिन विधानसभाओं में मामला अलग है। सभी प्रदेशों में विधायकों के वेतन भत्ते अलग अलग हैं। राजस्थान, दिल्ली, मणिपुर जैसे राज्यों में विधायकों का वेतन सबसे अधिक है, जबकि जितनी बार विधायक रहता है, पेंशन उनती की गुणा अधिक बढ़ती जाती है। जैसे राजस्थान की बात की जाये तो पूर्व विधायकों को 75 हजार रुपये पेंशन मिलती है, जबकि दो बार रहने पर बढ़कर 1.25 लाख हो जाती है, उसके बाद जितनी बार भी विधायक रहता है, उसमें हर बार 50 हजार रुपये बढ़ती जाती है। यदि कोई ​व्यक्ति 9 बार विधायक रहा है, तो उसकी पेंशन 5.25 लाख रुपये प्रति माह हो जाती है। पंजाब देश का ऐसा पहला राज्य बन गया है, जहां पर मल्टीप्लाई पेंशन का सिस्टम बंद कर दिया गया है। यानी कोई व्यक्ति कितनी भी बार विधायक रहे, उसको एक ही बार की पेंशन मिलेगी।
गुजरात देश का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां पर रिटायर होने के बाद विधायकों को पेंशन नहीं मिलती है। गुजरात में विधायक का वेतन 1.16 लाख रुपये है, लेकिन रिटायर होने के बाद सब 0 हो जाता है। जिन राज्यों में मल्टीपल पेंशन का सिस्टम है, वहां यदि कोई विधायक बाद में सांसद बन जाता है, तो उसको दोनों जगह की पेंशन मिलती है। यही सिस्टम सांसद से विधायक बनने पर लागू होता है। ऐसे में पहला सवाल तो यही है कि जितनी बार विधायक या सांसद, उतनी बार पेंशन क्यों? इसको लेकर लोगों में जानकारी नहीं थी, अब इसकी जानकारी सोशल मीडिया के जरिये बाहर निकलने लगी है, तो आमजन भी सवाल उठाने लगा है कि मल्टीपल पेंशन का सिस्टम खत्म् होना चाहिये, अलबत्ता सांसद विधायक तो कहते हैं कि हम जनता के सेवक हैं, तो उनको वेतन भी क्यों?
क्या ये लोग वेतनभोगी कर्मचारी हैं? यदि वेतनभोगी हैं, तो फिर इनको भी सरकारी नौकर की संज्ञा मिले, ना कि जनप्रतिनिधि की। ऐसे ही मल्टीपल पेंशन पर भी जनता में रोष बढ़ता जा रहा है। खासकर जब 2004 में न्यू पेंशन स्कीम लागू की गई, तब से सवाल ज्यादा उठने लगे थे, जो अब जोर पकड़ने लगे हैं। राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पंजाब में इस वर्ष ओल्ड पेंशन स्कीम लागू कर दी है, तो अब जनता को भी लगने लगा है कि संसद और कार्यपालिका मिलकर खुद ही अपना वेतन और पेंशन तय कर रहे हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि अग्निपथ ​स्कीम में शामिल होने वाले अग्निवीरों को पेंशन क्यों नहीं मिलनी चाहिये? इसका जवाब यूं समझिये... भारत की तीनों सेनाओं का चालू वित्त वर्ष में 5.25 लाख करोड़ से अधिक बजट रखा गया है। जिसमें से वेतन और पेंशन में करीब 80 फीसदी से ज्यादा बजट खर्च हो जाता है। इसके बाद बचे हुये बजट में से हथियार, गोला—बारुद, फाइटर प्लेन, मिसाइल आदि रक्षा उपकरण खरीद किये जाते हैं। कम बजट के कारण रक्षा उपकरण खरीद की पूर्ति ही नहीं होती। उसके उपर मोदी सरकार द्वारा वन रैंक, वन पेंशन लागू करने के कारण और अधिक बोझ बढ़ गया है। इस बोझ को कम करने के लिये सेना ने सर्विस में बदलाव किया है।
सेना की तीनों विंग से लिये गये सुझावों के बाद तय किया गया कि वर्तमान में जितने सैनिक भर्ती होते हैं, उससे चार गुणा ज्यादा किये जायेंगे, उनको ट्रेनिंग दी जायेगी और फिर सेना ज्वाइन होगी। चार साल के दौरान उनकी आगे की पढ़ाई भी जारी रहेगी। जब चार साल बाद ये अग्निवीर सेना से बाहर होंगे, तब उनको करीब पौने 12 लाख रुपये एकमुश्त दिये जायेंगे, जिनसे ये लोग अपना रोजगार कर सकें, या आगे की पढ़ाई जारी रख सकें। इनमें से 25 फीसदी अधिक अतियोग्य सेनिकों को सेना में वापस बुलाकर नियमित किया जायेगा। केंद्रीय गृह मंत्र अमित शाह ने कहा है कि इन्हीं में से अर्द सैनिक बलों और दिल्ली पुलिस की भर्ती में वरियता दी जायेगी। इसके साथ ही भाजपा शासित राज्यों ने भी कहा है कि अग्निवीरों को पुलिस व सरकारी भर्तियों में प्राथमिकता दी जायेगी। सरकार का कहना है कि इस योजना से हम ऐसे युवा तैयार कर रहे हैं, तो अनुशासित होंगे, अधिक मजबूत होंगे, खुद के पैरों पर खड़े होंगे और पुलिस में भर्ती होंगे, तो इनसे लॉ एण्ड ओर्डर मैंटेन करने में मजबूती मिलेगी। इधर, सेना पर आर्थिक बोझ कम होगा और सेना पहले के मुकाबले अधिक जवान हो जायेगी। वेतन और पेंशन कम होने से बजट बचेगा तो सेना को अत्याधुनिक करने के लिये सैन्य उपकरण खरीद करने में मदद मिलेगी।
हालांकि, देश की जनता ने जिस तरह से जनप्रतिनिधियों की पेंशन पर सवाल उठाया है, उसके बाद मोदी सरकार सोचने को मजबूर हो गई है। लोगों का कहना है कि बेवजह इनकी पेंशन का बोझ जनता पर क्यों लादा जा रहा है? सवाल यह उठता है क्या गुजरात की तरह केंद्र सरकार भी सांसदों की पेंशन बंद करके देश के युवाओं को एक मैसेज देने का काम करेगी?

Post a Comment

Previous Post Next Post