भारत, अमेरिका इसलिये ताइवान को लेकर चीन से टकराने को तैयार हैं

Ram Gopal Jat
ताइवान के बहाने इंडो पैसेफिक क्षेत्र युद्ध की आग में धकेला जा सकता है। चीन ने साफ कर दिया है कि वह ताइवान को अपना ही प्रांत मानता है, और यदि ताइवान ने खुद को आजाद घोषित करने की भूल की, तो उसके उपर चीन हमला कर देगा। रूस यूक्रेन युद्ध के बीच चीन की यह धमकी कोई पहली बार सामने नहीं आई है। इससे पहले भी चीन ने कई बार साफ कहा है कि ताइवान उसी का प्रांत है, और कोई देश बीच में आयेगा तो उसको भी नहीं छोड़ा जायेगा। मतलब यह है​ कि चीन अब पूरी दादागिरी पर उतर आया है। यह बात तो सही है कि ​व​ह पिछले काफी समय से ताइवान पर हमले की तैयारी कर रहा था, लेकिन पिछले दिनों क्वाड शिखर सम्मेलन में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन द्वारा बयान देने के बाद मामले ने तूल पकड़ लिया था। यही कारण है कि क्‍वाड सम्मेलन के बाद ताइवान को लेकर एक बार फिर अमेरिका और चीन के बीच जुबानी जंग छिड़ गई है। इस बार चीन ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि अगर ताइवान आजादी का ऐलान करता है तो वह उसके खिलाफ युद्ध शुरू कर देगा। शुक्रवार को वू कियान ने लॉयड ऑस्टिन के साथ बैठक के दौरान रक्षा मंत्री वेई फेंघे के हवाले से कहा गया कि अगर किसी ने ताइवान को चीन से अलग करने की कोशिश की तो हम युद्ध शुरू करने में हिचकिचाएंगे नहीं, भले ही इसकी कीमत कुछ भी हो।
वू कियान एक चीनी सैन्य अधिकारी हैं। वर्तमान में ये चाइना के रक्षा मंत्रालय में सूचना ब्यूरो के निदेशक और प्रवक्ता हैं। लॉयड ऑस्टिन अमेरिकी रक्षा मंत्री हैं। शुक्रवार को दोनों के बीच हुई आमने-सामने की वार्ता के दौरान वू कियान ने अपने रक्षा मंत्री के हवाले से ये चेतावनी दी। 10 जून से सिंगापुर में 19वें शांगरी-ला डायलॉग की शुरुआत हुई है, ये 12 जून तक चलेगा। इस वार्षिक सम्मेलन में 40 से अधिक देशों के अधिकारी और स्कॉलर्स भाग ले रहे हैं। इसी सम्मलेन में ऑस्टिन ने वू कियान के सामने कहा कि ‘बीजिंग को ताइवान को अस्थिर करने वाली कार्रवाइयों से बचना चाहिए’। अमेरिकी रक्षा मंत्री के इसी बयान के बाद चीन की धमकी भरी प्रतिक्रिया दी है। अभी ज्यादा नहीं बीते जब क्‍वाड सम्मेलन में जापानी प्रधानमंत्री के साथ एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ़्रेंस में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ‘मिलिट्री एक्शन’ की धमकी दे डाली थी। बाइडन के कहा था, हम वन चाइना नीति को लेकर सहमत हैं। हमने इस नीति पर हस्ताक्षर किया है, लेकिन ताइवान को बलपूर्वक चीन में शामिल नहीं किया जा सकता है। अगर चीन की ओर से ताइवान पर हमला किया जाता है तो अमेरिका मिलिट्री एक्शन लेगा। तब चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने अमेरिकी राष्ट्रपति के बयान पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा था, हम अपने देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय एकता के मामले में कोई समझौता नहीं करेंगे।
चीन और ताइवान के इतिहास की बात की जाये तो वर्ष 1949 में माओत्से तुंग के नेतृत्व में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने सत्ताधारी नेशनलिस्ट पार्टी को हरा दिया था। बीजिंग पर CCP का अधिकार हो गया था। कुओमिंतांग के लोगों को भागना पड़ा। ये सभी भागकर दक्षिण पूर्वी चीन के तट से करीब 100 मील दूर स्थित एक द्वीप पर पहुंच गये थे, यही द्वीप ताइवान है। चीन ताइवान को अपना एक प्रांत मानता है। दूसरी तरफ ताइवान खुद को एक स्वतंत्र देश बताता है। हालांकि, दुनियाभर के सिर्फ 13 देश ही ताइवान को एक अलग संप्रभु देश मानते हैं। इन 13 देशों में अमेरिका शामिल नहीं है, लेकिन फिर भी अमेरिका बीच-बीच में ताइवान की तरफदारी करता रहता है। इसका कारण है ताइवान के नजदीक वाले वो द्वीप (गुआम और हवाई) जिन पर अमेरिकी सै​न्य ठिकाने हैं। अमेरिका को पता है कि यदि चीन ने एक बार ताइवान पर कज्बा कर लिया, तो फिर वह वो द्वीप पर भी कब्जा करने के लिये आक्रमण कर सकता है। इसके साथ ही चीन अपनी जरुरतों को पूरा करने के लिये हिंदू प्रशांत क्षेत्र में अपनी ताकत बढ़ा रहा है, जिसके कारण अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों का कारोबार प्रभावित होता है। भारत, अमेरिका, जापान और ओस्ट्रेलिया की सदस्यता वाले क्वाड में भी इसपर चिंता जाहिर की गई थी, जिसमें इन चार देशों के अलावा 9 अन्य छोटे देशों को शामिल कर चीन की दादागिरी का अंत करने के लिये हिंद प्रशांत आर्थिक संधि पर भी हस्ताक्षर किये गये थे, जिसको लेकर चीन भड़का हुआ है।
इस संधि के बाद चीन को लगता है कि हिंदू प्रशांत समुद्र में ये चारों देश मिलकर चीन की मोर्चेबंदी कर रहे है। चीन ने कहा था कि इस संधि से कुछ नहीं होने वाला है, बल्कि इसी संधि के जरिये अमेरिका को मुंह की खानी पड़ेगा। पिछले दिनों अमेरिका के एक जनरल ने भी भारत पर चीनी हमले की चेतावनी दी है। अमेरिकी सेना के पैसेफिक कमान के कमांडिंग जनरल चार्ल्‍स ए फ्लयन ने हिमालय से लगती सीमा पर चीन की सैन्‍य तैयारी को लेकर चेतावनी दी है। उन्‍होंने इसे चीन का 'अस्थिर करने वाला और भारत पर दबाव बढ़ाने वाला' व्‍यवहार करार दिया।' मेरा मानना है कि चीनी गतिविधि आंखें खोलने वाली है। मैं समझता हूं कि पश्चिमी थियटर कमांड में बनाया जा रहा कुछ इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर डराने वाला है। चीन के अन्‍य सैन्‍य हथियारों की तरह से उससे यह किसी को पूछना होगा कि ये क्‍यों?' अमेरिकी जनरल से कहा कि चीन का इस क्षेत्र में क्रमिक और घातक रास्‍ते पर बढ़ना और अस्थिर करने वाला तथा दबाव बनाने वाला व्‍यवहार उसकी मदद नहीं करने जा रहा है। अमेरिकी अफसर ने कहा था कि भारत व अमेरिका को एक साथ मिलकर काम करना चाहिये, ताकि चीन के दबाव बढ़ाने वाले व्यवहार को जवाब दिया जा सके। भारत और अमेरिका दोनों ही पहाड़ों पर ऊंचाई वाले इलाके में ट्रेनिंग करने जा रहे हैं। यह करीब 9 हजार से लेकर 10 हजार फुट की ऊंचाई पर हिमालय में होने जा रहा है। यह अक्‍टूबर के महीने में होगा। दोनों देशों की सेनाएं उसी तरह के बेहद ठंडे मौसम में जंग लड़ने का अभ्‍यास करेंगी, जैसे अमेरिका के रूस के बेहद करीब स्थित अलास्‍का प्रांत में होता है।
इस अभ्‍यास का मकसद दोनों देशों की सेनाओं की पहाड़ों पर युद्धक क्षमता को बढ़ाना है। इस अभ्‍यास में नई तकनीक, एयर फोर्स के हथियार और रियल टाइम खुफिया सूचना इकट्ठा करना शामिल है। इससे पहले खुलासा हुआ था कि चीन पैंगोंग झील पर दूसरा पुल बना रहा है, ताकि टैंक जैसे भारी हथियारों को भारतीय सीमा के करीब तेजी से ले जाया जा सके। चीन ने लद्दाख से सटे अपने इलाके में 17 हवाई पट्टियों को भी बहुत मजबूत बना दिया है। इससे भारत के लिए पूरे हिमालयी क्षेत्र में सीधे बड़ा खतरा पैदा हो गया है। भारत और चीन के बीच 15 दौर की बातचीत के बाद भी अभी तक सीमा विवाद नहीं सुलझा है। अमेरिकी अफसर का दावा है कि चीन सीमा विवाद को सुलझाना चाहता ही नहीं है, वह भारत को इसमें उलझाकर दबाव बनाये रखना चाहता है, ताकि उसका कारोबार प्रभावित नहीं हो। असल में इस वक्त अमेरिका चीन के बीच दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति बनने की जंग चल रही है। अमेरिका लंबे समय से दुनिया की एकमात्र महाशक्ति है, लेकिन चीन ने तेजी से विकास किया है और अपने पड़ोसियों को विवादों में उलझाये रखा है। यही उसकी पुरानी रणनीति है। ताइवान मामला भी इसी श्रंखला का हिस्सा है। अब वह सोच रहा है​ कि जब अमेरिका ने ताइवान के बहाने से उससे युद्ध करने की धमकी दे ही दी है, तो फिर उसको युद्ध में बदलकर अमेरिका को कमजोर क्यों नहीं कर दिया जाये। अमेरिका व चीन के बयानों से यह तो साफ हो गया है कि युद्ध अवश्य होगा, लेकिन होगा कब तक यह तय नहीं। असल में जब तक रूस यूक्रेन युद्ध का अंत नहीं होगा, तब तक शायद इसका इंतजार किया जायेगा। क्योंकि चीन को अभी भी लगता है कि रूस जीत जायेगा, जबकि अमेरिका को लगता है कि यूक्रेन जीतेगा। रूस की जीत जहां चीन को मनोबल प्रदान करेगी, तो यूक्रेन की जीत के बाद अमेरिका और ज्यादा ताकतवर बनकर उभरेगा। यही कारण है कि इस युद्ध का अंत देखने का इंतजार किया जा रहा है।
वैसे तो चीन कहता है​ कि ताइवान उसका प्रांत है, लेकिन इतने बरसों से ताइवान को प्रांत क्यों नहीं बोला गया? असल बात यह है कि चीन अपनी विस्तारवादी नीति को दुनियाभर में चला रहा है, जिसके चलते उसका ध्यान दूसरी जगह भी रहता है। और वैसे भी ताइवान समुद्री द्वीप है, जिसके साथ दूसरे किसी भी देश की सीमाएं नहीं लगती हैं। इसलिये दूसरे किसी देश का ध्यान कम ही रहता है। यही कारण है कि ताइवान को लेने की चीन को इतनी जल्दी नहीं है। ताइवान को अमेरिका अत्याधुनिक हथियार देकर मजबूत कर रहा है। इसके कारण चीन और भड़क गया है। चीन को लगता है कि अमेरिका ने उसको चिढ़ाने के लिये ही ताइवान को हथियार दे रहा है। ऐसा नहीं है कि चीन व अमेरिका के बीच केवल ताइवान ही विवाद नहीं है, बल्कि कारोबार भी एक मुद्दा है। इस वक्त दुनिया में कच्चे तेल के दाम बढ़ने के ​साथ ही इलेक्ट्रिक कारों की मांग बढ़ रही है। भारत में भी इन कारों का निर्माण युद्ध स्तर पर हो रहा है। ​जिसके लिये जरुरत होती है सेमी कंटक्टर की, जिसका निर्माण दुनिया में सबसे ज्यादा ताइवान और चीन ही करते हैं। भारत में भी सेमी कंटक्टर के लिये शोध चल रहा है, लेकिन भारत अभी भी निर्माण के स्तर पर नहीं पहुंच पाया है। भारत ताइवान से आयात करता है, इसके साथ ही दुनिया के कई देशों को ताइवान सेमी कंटक्टर निर्यात करता है। चीन के साथ टकराव के कारण भारत ने उससे आयात कम कर दिया है और ताइवान से बढ़ा दिया है, जिसके कारण चीन को दर्द हो रहा है।
अमेरिका व चीन के बीच टकराव का कारण केवल ताइवान नहीं है, बल्कि असली कारण तो इंडो पैसेफिक रीजन है, जहां से दुनिया का 60 फीसदी समुद्री कारोबार होता है। ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी, जिसे TSMC के नाम से जाना जाता है, अकेले दुनिया के आधे से अधिक सेमीकंडक्टर्स का उत्पादन करती है। जिसका इस्तेमाल स्मार्टफोन, मेडिकल डिवाइस, कारों और फाइटर जेट्स में इस्तेमाल होता है। मैन्यूफैक्चरिंग प्रोडक्शन में अपनी सफलता के बावजूद, ताइवान लंबे समय से पड़ोसी चीन की ब्रेन ड्रेन हरकतों से जूझ रहा है। ताइपे में नेशनल यांग मिंग चियाओ तुंग विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के एक एसोसिएट प्रोफेसर एरिक यी-हंग चीउ ने कहा कि साल 2020 में ताइवान के निर्यात का 35 फीसदी हिस्सा केवल सेमीकंडक्टर का था। जबकि एक दशक पहले यह 18 प्रतिशत पर था। अक्सर अपने लड़ाकू विमानों के जरिए ताइवान को धौंस दिखाने वाला चीन पड़ोसी मुल्क को परेशान करने के लिए हर तरह का हथकंडा अपना रहा है। ताइवान पर ड्रैगन की धमकी के बीच खुलासा हुआ है कि चीनी कंपनियां ताइवान के सेमीकंडक्टर बनाने वाले इंजीनियर्स और एक्जिक्यूटिव्स को अपने जाल में फंसा रहा है। ड्रैगन इनको मोटी पगार की लालच देकर अपने अपनी तरफ मोड़ने का प्रयास कर रहा है।
चीन की इस हरकतों की वजह से ताइवान को अब यह डर हो गया है कि अगर उसके सेमीकंडक्टर बनाने वाले इंजीनियर्स और एक्जिक्यूटिव्स चीन जाते हैं तो वो अपने साथ कुछ खुफिया जानकारी भी ले जाएंगे। अगर खुफिया जानकारी चीन को मिला तो वो ताइवान का आर्थिक नुकसान भी पहुंचा सकता है। ताइवान के इंजीनियर पैसा देखकर चीन के लिए काम कर रहे हैं। अल जजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक इस साल की शुरुआत में ताइवान की कैबिनेट ने देश के राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को और मजबूत करने का प्रस्ताव दिया था, ताकि ताइवान के ट्रेड सीक्रेट्स को बाहर जाने से रोका जा सके। इसके अलावा आर्थिक जासूसी के साथ-साथ देश विरोधी अपराध करने वालों को कठोर सजा दी जा सके। प्रस्ताव के अनुसार अपराध में शामिल लोगों को 10-12 साल तक की जेल की सजा हो सकती है और भारी-भरकम जुर्माना भी लगेगा।

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