राजनीति का इतना गिरा हुआ स्तर पहले नहीं देखा

Ram Gopal Jat
देशभर की 57 राज्यसभा सीटों के चुनाव हो गये। जिन 41 सीटों के लिये मतदान हुआ, उनमें से भाजपा ने 17 तो कांग्रेस ने भी 10 सीटें जीतीं, इसके अलावा 14 सीटों पर छोटे दलों के उम्मीदवार जीते। इस चुनाव में 57 में से 41 सीटों पर निर्विरोध चुनाव हो गया, बाकी 16 सीटों पर मतदान किया गया और शुक्रवार शाम को परिणाम जारी भी कर दिया गया। इन बची हुई 16 सीटों में से 4 राजस्थान की थीं। यहां पर बहुमत के आधार पर तीन सीट कांग्रेस और एक भाजपा को मिलनी थी, लेकिन मीडिया मुगल सुभाष चंद्रा द्वारा निर्दलीयों के सहारे पांचवे उम्मीदवार के तौर पर पर्चा दाखिल कर दिया। भाजपा ने उनको समर्थन दिया और रालोपा के 3 विधायकों समेत भाजपा के 30 अतिरिक्त विधायकों का भी सहारा मिलना था, लेकिन इन 33 के बजाये केवल 30 वोट ही मिले। भाजपा की शोभारानी कुशावाह ने व्हिप का उल्लंघन किया और कांग्रेस के उम्मीदवार को वाट कर दिया। उनको पार्टी ने निलंबित कर दिया है और 7 दिन के भीतर जवाब देने को कहा है। इस चुनाव में वो सब देखने को मिला, जो अब तक राजस्थान की सियासत में कभी नहीं देखा गया था। शुरुआत से ही भाजपा ने साफ कर दिया था कि वह कांग्रेस को बिना मतदान के चुनाव नहीं जीतने देगी। भाजपा के समर्थित सुभाष चंद्रा को भरोसा था कि रालोपा के साथ निर्दलीयों की नाराजगी के अलावा बीटीपी और सीपीएम का भी साथ उनको मिलेगा, लेकिन इनमें से एक भी वोट नहीं मिला, उलटा भाजपा की शोभारान कुशवाह ने कांग्रेस के प्रमोद तिवारी को वोट दे दिया। इसके साथ ही सिद्धी कुमारी ने भी सुभाष चंद्रा के बजाये घनश्याम तिवाड़ी को वोट दे दिया।
इस चुनाव के दौरान राजस्थान की राजनीति में ऐसे ऐसे दांव पेंच चले गये, जो इतिहास बन गये। जिस दिन नामांकन पत्र दाखिल किया गया था, उसी दिन तय था कि सुभाष चंद्रा के पास बहुमत नहीं है, फिर भी उन्होंने अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के प्रयोग का दावा करते हुये नामांकन पत्र दाखिल कर चुनाव लड़ा। सुभाष चंद्रा के मैदान में उतरने से मतदान होना तय हो गया था, अन्यथा दोनों दलों के चारों उम्मीदवार बिना मतदान के ही बहुमत के आधार पर निर्विरोध जीत सकते थे। नामांकन पत्र भरने के दूसरे ही दिन कांग्रेस ने अपनी तैयारी शुरू कर ली। कांग्रेस में पायलट—गहलोत के बीच चले शब्दबाणों के दौरान तीसरे दिन पार्टी के विधायक उदयपुर की होटल में रखी गई बाड़ेबंदी में ले जाये गये। पहले दिन 60 विधायक गये, दूसरे दिन 90 हुये और तीसरे दिन बसपा वालों ने भी अपनी सियासी धमकियों को छोड़ उदयुपर जाना ही मुनासिब समझा। बसपा के सभी 6 विधायकों को खुद अशोक गहलोत अपने साथ विमान में ले गये। इसके साथ ही निर्दलीयों में से जो नहीं जा रहा था, उसे भी येन केन प्रकरेण बाड़े में पहुंचाया गया। सीपीएम के बलवान पूनिया अस्पताल में भर्ती थे, वहीं से आकर वोट दिया। सरकार का कहना था कि उनके परिवार को इसलिये पुलिस सुरक्षा दी गई, क्योंकि वो अपने क्षेत्र में अधिक राजकार्य करवा चुके थे, तो दुश्मन अधिक हो गये थे। इसी तरह से ओमप्रकाश हुडला भी अस्पताल से वोट देने पहुंचे। ना नुकूर के बाद 7 निर्दलीय विधायक भी होटल में चले गये थे। तभी तय हो गया था कि कांग्रेस के तीनों उम्मीदवार जीत जायेंगे।
मजेदार बात यह रही है कि इसी दौरान सभी 33 जिलों के पुलिस अधिक्षकों को पुलिस मुख्यालय ने पत्र लिखकर कहा कि जिन जन प्रतिनिधियों के खिलाफ मुकदमे चल रहे हैं, उनके चालान पेश किये जायें। यही वह कदम था, जो अशोक गहलोत सरकार की पोल खोल देता है। कहा जाता है कि राजनीति और जंग में सब जायज है, लेकिन इतना भी जायज नहीं है कि लोकतंत्र का मखोल ही उड़ा दिया जाये। राजनीतिक मुकदमों में चालान पेश करवाने का मतलब यह है कि गृहमंत्री की नीयत ठीक नहीं है। गृहमंत्री खुद अशोक गहलोत हैं, और उनके जिम्मे ही कांग्रेस को 3 सीटें जीतनी थीं। अशोक गहलोत खुद को जादूगर कहते हैं, और उन्होंने साम, दाम, दण्ड, भेद के जरिये तीनों सीटें जीतकर दिखा दिया कि वह खुद को जादूगर क्यों कहते हैं? वैसे तो अपने अपने नेताओं के लिये शब्दों को मनचाहे तरीके से बदला जा सकता है, लेकिन अशोक गहलोत ने जो किया, उसको साधारण भाषा में धुर्तता की प्राकाष्ठा कहते हैं, जिन्होंने अपने दल के अलावा निर्दलीयों और छोटे दलों के विधायकों को उनके प्रत्याशियों के पक्ष में वोट डालने के लिये सारे हथियार आजमाये। कांग्रेस के एक विधायक ने बताया कि सरकार ने कौनसा पैंतरा नहीं चला, गहलोत सरकार ने अपने पक्ष में वोट के लिये पुलिस का डर दिखाया, इंटरनेट बंदी हुई, अस्पताल डिप्लोमेसी चली, हैलिकॉप्टर की यात्रा करवाई गई, होटलों में बाड़ेबंदी रखी गई, विधायकों के मोबाइल जब्त किये गये, पुराने केसों को फिर से रिओपन किया गया, विधायकों के घरों में पुलिस का पहरा बिठाया गया, इंटेलिजेंस का दुरुपयोग हुआ, विधायकों को काम का लालच दिया गया, क्रॉस वोटिंग पर टिकट नहीं देने का भय और जेल में डालने जैसी धमकियां भी दी गईं।
भले ही चुनाव कांग्रेस और भाजपा के अधिकृत प्रत्याशियों ने जीत लिया हो, लेकिन इस चुनाव ने राजस्थान में एक ऐसी गलत परंपरा शुरू कर दी है, जिसके कारण लोकतंत्र का ह्रास होना तय है। अशोक गहलोत और उनके समर्थक भले ही इसको जादूगरी कहें, लेकिन हकिकत यह है कि राज की नीति में भयंकर कुनिति ने घर कर लिया है। जिन विधायकों को जनता चुनती है, जिस लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता अपनी मर्जी से मतदान कर विधायक चुनती है, उसी व्यवस्था में यदि जनप्रतिनिधि अपना वोट अपनी मर्जी से नहीं डाल पायें तो सवाल तो उठने ही हैं, और सवाल इसलिये गंभीर हैं, क्योंकि प्रदेश के मुखिया की सभी गतिविधियों को राज्य की 8 करोड़ जनता नोटिस कर रही है। वैसे तो इतिहास ही रहा है ​कि गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस पहले के मुकाबले अधिक बुरी हार के साथ सत्ता से बेदखल होती है, लेकिन इस चुनाव में जो कुछ किया गया, जिस तरह से सरकारी मशीनरी का जमकर दुरुपयोग किया गया, उसके बाद कांग्रेस की हार और अधिक पक्की हो गई है। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस को ही क्रॉस वोटिंग का डर था, बल्कि भाजपा भी इसी डर से सहमी हुई थी, इसलिये बीजेपी ने भी अपने विधायकों को पर भरोसा नहीं रखा और सभी विधायकों को प्रशिक्षण के नाम पर बाड़ेबंदी में ले जाया गया। सत्ता जिसके पास होती है, वह कुछ भी खेल कर सकता है, यही डर भाजपा को था, इसलिये अपने विधायकों को तीन दिन तक बाड़े में रखा। अब तो राजस्थान वैसे भी बाड़ास्थान के नाम से पुकारा जाने लगा है। इस सरकार के तीन साल के काल में करीब आधा दर्जन बार बाड़ेबंदी हुई है, जो अपने आप में ही इतिहास है।
यह सिललिसा लोकतंत्र के लिये ठीक नहीं है। फिर भी सत्ता का दुरुपयोग करने के बाद कोई नेता खुद को जादूगर कहे तो इससे अधिक लोकतंत्र में दुर्भाग्य हो नहीं सकता। और राजस्थान का दुर्भाग्य है कि ऐसा ही एक नेता यहां पर बीते करीब दो दशक से सत्ता या संगठन में राज कर रहा है।

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