भारत ने दुनिया को सोचने को मजबूर कर दिया है

Ram Gopal Jat
उदारीकरण के दौर से तीन दशक तक भारत को आमतौर पर उत्पादन करने के बजाये आयातक देश के तौर पर ही जाना जाता रहा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में सरकार की पॉलिसी और रचनात्मक नीतियों के कारण अब भारत में भी सरकारी और निजि क्षेत्र में कई इनोवोशन हो रहे हैं। सरकारी ओर से मदद मिलती है तो प्रतिभाएं देश छोड़कर विकसित देशों में जाने के बजाये अपने ही देश में रिसर्च करने लगती हैं, उनको उचित प्लेटफॉर्म मिलता है और सरकार उनके रिसर्च को खरीद लेती है, ऐसे शोधार्थियों को कभी—कभी बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी हायर कर लेती हैं। पिछले कुछ बरसों में भारत में जो रिसर्च हुये हैं और उससे देश को फायदा हो रहा है, बल्कि भारत का मोटा पैसा जो विदेशों को हर साल भुगतान किया जाता है, वह भी बचेगा। इनमें से तीन इनावेशन पर आज हम चर्चा करेंगे, जिनसे बड़ै पैमाने पर बदलाव देखने को मिलेगा, बल्कि भारत के रुपये को मजबूती और विदेशी मुद्रा भंडार में भी बढ़ोतरी होगी। ये तीनों इनोवेशन कैसे काम कर रहे हैं और इनसे भारत को दुनिया के अग्रणी देशों में शुमार करने में कैसे मदद मिलेगी, जरा विस्तार से बात कर लेते हैं?
भारत विदेशों से जो भी उत्पाद आयात करता है, उसमें सर्वाधिक धन कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के उपर खर्च होता है। भारत अपनी जरुरतों का 85 फीसदी, यानी हर दिन 5 मिलियन बैरल कच्चा तेल विदेशों से मंगवाता है, जिसमें इराक से 23 फीसदी, सउदी अरब से 18 प्रतिशत, यूएई से 11 फीसदी, अमेरिका से 7.5 प्रतिशत इसके अलावा ईरान, वेनेजुएला और रूस से भी आयात किया जाता है। इसमें हाल ही में सामने आया कि ईरान और वेनेजुएला से भारत कच्चा तेल आयात कम करके अमेरिका से बढ़ा रहा है। इसके कारण कुछ महीनों में अमेरिका की हिस्सेदारी बढ़कर 11 फीसदी होने का अनुमान था, लेकिन घटकर 3 प्रतिशत रह गई है। रूस के साथ भी भारत ने कच्चे तेल की खरीद को काफी अधिक बढ़ा दिया है, हालांकि, रूस से भारत को करीब 70 फीसदी सस्ती दरों पर मिल रहा है, जिससे भारत का पैसा बच रहा है। बीते 100 दिन में रूस यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत ने रूस से तेल आयात में बड़े पैमाने पर वृद्धि की है। भारत ने अप्रैल में रूसी तेल आयात को बढ़ाकर लगभग 2 लाख 77 हजार बैरल प्रति दिन कर दिया, जो मार्च में 66 हजार बैरल प्रति दिन था। खपत के मामले में अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के कुल क्रूड आयात में अफ्रीकी तेल की हिस्सेदारी मार्च में 14.5% से घटकर अप्रैल में 6% रह गई, जबकि अमेरिका की हिस्सेदारी करीब आधी होकर मात्र 3% तक सिमट गई। युद्ध शुरू होने से पहले तेल आयात में जहां रूस का स्थान 20वां था, तो अमेरिका 18वें नंबर पर आता था, लेकिन वर्तमान में रूस चौथे नंबर पर आ गया है।
मार्च 2022 तक भारत जहां रूस, कजाकिस्तान और अजरबैजान से मात्र 3% तेल खरीद रहा था, किंतु युद्धकाल में सिर्फ एक महीने बाद यह हिस्सा बढ़कर 11% पर पहुंच गया। रूस, भारत को 487,500 बैरल प्रति दिन तेल बेचने को तैयार है, यानी रूस से भारत की तेल खरीद और बढ़ेगी। भारत ने पिछले वित्तवर्ष में कुल 119 अरब डॉलर का तेल आयात किया है। इससे पता चलता है कि भारत का मोटा पैसा सिर्फ इंधन पर खर्च हो रहा है। तेल की कीमतों को कंट्रोल रखने के लिये भारत सरकार को एक बार फिर से वेट में कटौती करनी पड़ी है, जो पिछले साल भी की गई थी। भारत सरकार ने पिछले 6 महीने में करीब 20 फीसदी तक वेट कम किया है, जिससे सरकार को मिलने वाले टैक्स में कमी आई है, इसके कारण विकास के कार्यों पर असर पड़ता है। इस समस्या से बचने के लिये भारत सरकार तेजी से काम कर रही है। केंद्रीय यातायात एवं परिवहन मंत्री नितिन गड़करी ने घोषणा की है कि एथॅनोल को पेट्रोल में मिलाने की जल्द ही अनुमति दी जायेगी, इसके शोध का कार्य पूरा हो चुका है। पेट्रोल डीजल में एथॅनोल की अनुमति मिलती है, तो इसको इंधन में 20 फीसदी मिलाकर बेचा जायेगा, जिससे कच्चे तेल आयात में कमी आयेगी। एथॅनोल मुख्यत: अभी गन्ने से ही बनाया जायेगा, जिसके कारण गन्ना उत्पादक किसानों को भी उंचे दाम मिल सकेंगे, तो साथ ही प्रदुषण में भी करीब 35 फीसदी की कमी आयेगी। वर्तमान में कनाड़ा और ब्राजील में एथॅनोल से वाहन चलाये जा रहे हैं। ब्राजील में 40 प्रतिशत वाहन केवल एथॅनोल से चलते हैं।
दूसरा कदम भारत सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर उठाया है। एक दिन पहले ही दुनिया की सबसे बड़ी इलेक्ट्रिक वाहन निर्माता कंपनी टेस्ला के मालिक एलन मस्क ने कहा है कि कपंनी में नई भर्तियां नहीं की जाएं, जो पुराने करीब एक लाख कर्मचारी हैं, उनको सप्ताह में कम से कम 40 घंटे काम करने को कहा जाये, या कंपनी छोड़ने को कह दिया जाये। इसका मतलब यह है कि टेस्ला तेजी से नुकसान में जा रही है। एलन मस्क ने तो कहा है इलेक्ट्रिक कार बाजार आर्थिक बदहाली के दौर से गुजरने वाला है, जबकि भारत की सबसे बड़ी इलेक्ट्रिक कार निर्माता कंपनी टाटा मोटर्स ने पिछले दिनों ही गुजरात के साणद में स्थित अमेरिका की फोर्ड कंपनी के प्लांट को करीब 15 करोड़ डॉलर में खरीदा है, जहां पर टाटा मोटर्स अपनी कार निर्माण क्षमता को बढ़ाकर 3 लाख कार करने का काम करेगी। भारत सरकार ने पिछले सप्ताह ही टेस्ला को भारत में कार बेचने और सर्विस सेंटर खोलने से पहले इंपोर्ट ड्यूटी आधी करने के लिये तीसरी बार मना किया है। सरकार ने कहा है कि यदि टेस्ला को भारत में सस्ती कारें बेचनी हैं, तो उसको पहले यहीं पर अपना प्रोडेक्शन प्लांट लगाना होगा, यानी टेस्ला की कारें जब तक भारत में नहीं बनाई जायेंगी, तब तक उनपर लगने वाली 100 इंपोर्ट ड्यूटी जारी रहेगी। असल में टेस्ला की कारें महंगी होती हैं। टेस्ला चीन में कारें बनाकर भारत में बेचना चाहता है, जिसके लिये भारत सरकार ने स्पष्ट मना कर दिया है। भारत सरकार ने 30 लाख रुपये अधिक की कारों पर इंपोर्ट ड्यूटी 100 फीसदी कर रखी है, जिसके कारण उसकी कारें भारत में 60 लाख की हो जाती हैं, जो भारतीय बाजार के हिसाब से बहुत महंगी हैं। भारत सरकार के इस फैसले से टाटा मोटर्स, मारुति सुजुकी, हुंडई और एमजी मोटर्स जैसी कंपनियों को फायदा हो रहा है, जो भारत में ही अपने प्लांट लगाकर इलेक्ट्रिक कारें बना रही हैं।
भारत सरकार तेल पर से निर्भरता कम करने के लिये एथॅनोल की अनुमति दे रही है तो साथ ही इलेक्ट्रिक कारों के निर्माण पर जोर दे रही है, ताकि प्रदुषण कम से कम हो और तेल आयात भी कम हो। तीसरी काम यह हो रहा है कि भारत में अब जल्द ही सौर उर्जा से चलने वाले आटो रिक्शा सड़कों पर दौड़ते हुये मिलेंगे। इनको चार्ज करने का भी झंझट खत्म हो जायेगा, क्योंकि इनमें लगी सौलर प्लेट्स के कारण कहीं भी धूप में खड़ा करके चार्ज किया जा सकेगा। दो मलयाली उद्यमी मित्रों एरोमल पद्मजयन और इविन गांसियस लोगों की डिमांड को ध्यान में रखकर इलेक्ट्रिक वाहन के उत्पादन में लगे हुए हैं। दोनों ने मिलकर एक प्रोटोटाइप आटो रिक्शा भी बनाया है, जो सौर ऊर्जा से चल सकेगा। इन्होंने अपने दम पर शुरुआत में 15 लाख रुपये की लागत से यह स्टार्टअप शुरू किया था। एरोमल पद्मजयन और इविन गांसियस की स्टार्ट-अप कंपनी का नाम है ‘एटरनियम लोकोमोशन एंड नेविगेशन प्राइवेट लिमिटेड’ है, जो कि तिरुवनंतपुरम में स्थित है। दोनों ने इस साल मार्च के अंत में पहले वाहन का प्रोटोटाइप लॉन्च किया था। शुरुआत में यह आटो रिक्शा ही बनायेंगे, लेकिन किसी बड़ी कंपनी को अपना फॉर्मूला बेचने पर भी विचार कर रहे हैं। य​ह इनवोशन देश में इंधन का तरीका बदलने वाला है। कहा जा रहा है कि सौर उर्जा से वाहन चलने वाले इस इनवोशन को जल्द ही कार निर्माता कंपनियों द्वारा काम लिया जा सकेगा, जिससे तेल की खपत में बहुत तेजी से कमी आयेगी।
कुल मिलाकर देखा जाये तो भारत अपनी जरुरतों को पूरा करने के लिये ना केवल रूस जैसे मित्रों से सस्ता तेल आयात कर रहा है, बल्कि अपने स्तर पर इसकी खपत को कम करने के लिये नित नये प्रयास भी कर रहा है। इससे समझ आता है कि अब भारत वह देश नहीं रहा, जो हर शोध के लिये अमेरिका या यूरोप की ओर देखता था।

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