जो गहलोत के पक्ष में नहीं आयेगा, उसको कानून के शिकंजे में लपेटा जायेगा

Ram Gopal Jat
राजस्थान में राज्यसभा चुनाव में मध्यनजर एक बार फिर से विरोधी खेमे को डैमेज करने के लिये कानून का बेजा इस्तेमाल शुरू हो गया है। राजस्थान पुलिस मुख्यालय ने सभी 33 जिलों में पुलिस अधिक्षकों को पत्र लिखकर कहा है कि जिन भी सांसदों, विधायकों के खिलाफ पुलिस केस लंबित चल रहे हैं, उनके खिलाफ जल्द से जल्द चालान पेश किये जायें। मतलब यह है कि भाजपा के किरोडीलाल मीणा, रालोपा के हनुमान बेनीवाल, उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़, सत्ता के सबसे करीबी माने जाने वाले अशोक चांदना समेत बसपा से कांग्रेस में शामिल होने के बाद भी राज्यसभा चुनाव में बगावती तेवर दिखाने वाले राजेंद्र गुढ़ा से लेकर उनके साथियों के खिलाफ जो भी राजनीतिक केस दर्ज हैं, उनमें चालान पेश कर डराने का काम शुरू कर दिया है।
माना जा रहा है कि अभी तक कांग्रेस के उदयपुर कैंप में 100 विधायक नहीं पहुंचे हैं, जिसके कारण अशोक गहलोत के हाथ पांव फूल गये हैं। कांग्रेस के तीन राज्यसभा उम्मीदवारों की वरीयता तय करने के बाद पहली वरियता मुकुल वासनिक, दूसरी रणदीप सुरजेवाला और तीसरी वरियता पर प्रमोद तिवारी को दी गई है। इससे साफ जाहिर है कि अपने संगठन महासचिव मुकुल वासनिक और प्रियंका गांधी वाड्रा के करीबी माने जाने वाले रणदीप सुरजेवाला की जीत पर कांग्रेस कोई रिश्क नहीं लेना चाहती है, जबकि कांग्रेस ने प्रमोद तिवारी की जीत अशोक गहलोत के जादू के भरोसे छोड़ दी है। अब बसपा, निर्दलीय, बीटीपी, सीपीएम के विधायकों के उपर ही तिवारी की जीत या हार टिकी हुई है। बसपा सुप्रीमों मायावती ने व्हिप जारी कर सभी 6 विधायकों को निर्दलीय उम्मीदवार सुभाष चंद्रा के पक्ष में वोट डालने का आदेश जारी किया है। हालांकि, इसमें संशय है कि बसपा छोड़कर आने वाले विधायकों पर इसका कितना असर होगा, क्योंकि जब पार्टी का विलय हो चुका है, तो फिर बसपा की व्हिप का क्या असर होगा?
यही कारण है कि सरकार ने वोट जुटाने के लिये पुलिस को छोड़ दिया है। यह बिलकुल वैसा ही है जैसे सचिन पायलट कैंप के द्वारा बगावत कर कोरोना के नाम पर राजस्थान की सीमाओं को सील कर दिया गया था और पुलिस बल को विधायक खोजो अभियान में लगा दिया गया था। अब फर्क केवल इतना है कि जिन विधायकों के खिलाफ जाने की संभावना है, उनको पुलिस केस के चालान के जरिये डराया जायेगा। यही कारण है कि लंबे समय से पेंडिंग पड़े चालान अचानक से पेश करने को कहा गया है। भले ही पुलिस विभाग इसको खुलेआम नहीं माने, लेकिन पुलिस सूत्रों का कहना है कि यही अवसर है, जब मुख्यमंत्री इस लंबित केसों की फाइलों पर से धूल हटाकर अपनी साख बचाने का काम करेंगे। तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के खिलाफ 11 जुलाई 2020 को कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार से बगावत करने के बाद राजद्रोह तक का केस दर्ज कर दिया गया। बाद में जब सुलह हुई तो केस वापस ले लिए गये। अशोक गहलोत की तीन सरकारों में ऐसे खूब मामले हैं, जिनमें दूसरों दलों के ही नहीं, अपितु अपनी ही पार्टी के नेताओं और यहां तक कि मौजूदा मंत्रियों तक पर भी केस दर्ज करने का इतिहास रहा है। ऐसे में सचिन पायलट कोई पहले व्यक्ति् नहीं थे, जिनपर राजद्रोह मुकदमा दर्ज किया गया, लेकिन यह तो इतिहास ही बन गया कि अपने ही दल के प्रदेशाध्यक्ष और अपने ही डिप्टी के खिलाफ राजद्रोह जैसा मामला दर्ज करवाया गया।
इसी तरह से इन दिनों यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष और डूंगरगढ़ से कांग्रेस विधायक गणेश घोघरा इसलिए इस्तीफे पर अड़े हुए हैं कि उनके खिलाफ केस दर्ज किया गया, लेकिन यहां पर मामला सियासी मुकदमे का नहीं है, घोघरा के खिलाफ राजकार्य में बाधा का मामला दर्ज किया गया, जिससे बचने के लिए उन्होंने इस्तीफे का खेल खेला है। इसी सिलसिले में कुछ दिन पहले भाजपा के राज्यसभा सांसद किरोडीलाल मीणा और आरएलपी के लोकसभा सांसद हनुमान बेनीवाल के खिलाफ बांदीकुई में रेलवे लाइन पर पथराव के मामले में चालान पेश किया गया है। मजेदार बात यह है कि जनप्रतिनिधियों के खिलाफ चालान पेश करने का यह दुर्लभ मामला है। पिछले दिनों किरोडीलाल मीणा के द्वारा राज्य सरकार के खिलाफ कई बार धरना, प्रदर्शन और जनता की आवाज को बुलंद करने का काम किया गया है। इसी तरह से हनुमान बेनीवाल ने नागौर में नमक कारोबारी जयपाल पूनियां की हत्या के बाद जयपुर कूच कर राज्य सरकार को घेरने का काम किया था, क्योंकि इस हत्या में उपमुख्य सचेतक और कांग्रेस विधायक महेंद्र चौधरी के भाई का नाम आया था, जिनको बाद में पुलिस ने दबाव में गिरफ्तार कर लिया। अब यदि इन दोनों के मामलों को जोड़ें तो पिछले दिनों ही बयानबाजी करते हुए राज्य सरकार के पंचायती राजमंत्री रमेश मीणा ने कहा था कि किरोडीलाल मीणा को कुछ दिनों में पुलिस गिरफ्तार कर लेगी, इससे पहले उनको सरेंडर कर देना चाहिए। ऐसे ही हनुमान बेनीवाल अपने बयानों को लेकर कांग्रेस—भाजपा को खटकते रहते हैं। वह हमेशा सीधे गहलोत—वसुंधरा के गठजोड़ पर हमलावर रहते हैं।
लोगों का मानना है कि किरोडीलाल और बेनीवाल के खिलाफ पुलिस के द्वारा चालान पेश किया जाना उनके बयानों और आंदोलनों से परेशान सरकार की बदनीयत है। अब सवाल यह उठता है कि क्या विरोधी सांसदों और विधायकों को इस प्रकार कानून में फंसाकर कोई सरकार अपने गुनाहों से बच सकती है? आज की तारीख में देखें तो अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार के मंत्री भी कई मामलों में आरोपी हैं, लेकिन उनके खिलाफ चालान पेश नहीं किया जा रहा है। वर्तमान में राज्य के 36 विधायकों के खिलाफ आरोप प्रमाणित मानकर पुलिस मुख्यालय कोर्ट में चालान पेश करने के लिए फाइलें भेज चुका है, किंतु जिलों की पुलिस इन फाइलों को दबाकर बैठी हैं। राज्य में सबसे अधिक मुकदमों में अशोक गहलोत की कैबिनेट के मंत्रियों में से एक खेल मंत्री अशोक चांदना आरोपी हैं। चांदना के खिलाफ 10 मुकदमे पैंडिंग चल रहे हैं। बड़े मामलों में साल 2015 का ज्योतिनगर थाने का मामला है, जिसकी क्राइम ब्रांच ने मई 2016 और जुलाई 2018 में डीसीपी साउथ को फाइल भेजी हुई है, लेकिन चालान पेश नहीं हुए हैं। ऐसे ही 2017 में अशोक गहलोत के गृह जिले जोधपुर के उदय मंदिर थाने में दर्ज मामले में भी पुलिस ने चालान पेश नहीं किया है। राजस्थान के वर्तमान जनप्रतिनिधियों में अशोक चांदना सबसे अधिक मामलों में आरोपी हैं। किंतु सरकार का हिस्सा होने के कारण उनपर कोई आंच नहीं आ रही है।
विपक्ष के नेताओं में 7 बार के विधायक, पूर्व मंत्री और उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ पर भी 2020 में चूरू के रतननगर व राजगढ़ में राजनीतिक मुकदमे दर्ज हुए थे। दोनों ही मामलों में क्राइम ब्रांच ने आरोप प्रमाणित माने और 15 फरवरी 2021 को फाइल चूरू पुलिस को चालान पेश करने को भेज दी थी, मगर आज तक मामला अधर में लटका हुआ है। इसपर भी अब चालान पेश करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। पिछले तीन साल से विपक्षी नेताओं में सबसे अधिक सक्रिय किरोडीलाल मीणा रहे हैं, तो पुलिस मुख्यालय ने सबसे अधिक आरोप प्रमाणित भी उन्हीं के खिलाफ माने हैं। साल 2008 में मानपुर, 2009 में मालाखेड़ा, 2010 में जीआरपी अजमेर, 2012 में सपोटरा, 2019 में थानागाजी, 2020 में दौसा कोतवाली व मानपुर के दो मामले और एक मुकदमा चंदवाजी में दर्ज हुआ। सभी में पुलिस ने आरोप प्रमाणित माने हैं, लेकिन चालान पेश नहीं किए गये हैं।
चिकित्सा मंत्री परसादी लाल मीणा के खिलाफ जयपुर के गांधी नगर में 2006 के दौरान मामले में 15 साल बाद 3 नवंबर 2021 को मुकदमा दर्ज किया गया। ऐसे ही दूसरे मंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा के खिलाफ 2019 में सांगानेर के एक मामले में आरोप प्रमाणित नहीं मानते हुए 27 अक्टूबर 2021 को एफआर लगा दी गई, लेकिन गुढ़ा के खिलाफ अभी भी मामले लंबित हैं। ऐसे ही वाजिब अली के खिलाफ केस चल रहा है। जोगिंदर अवाना के खिलाफ भी कई केस पेंडिंग चल रहे हैं, जिनमें अब कार्यवाही हो सकती है। कांतिलाल मीणा, संजय शर्मा, सांसद नरेंद्र कुमार, विधायक रहते हुए हनुमान बेनीवाल, रामलाल गुर्जर, राजेंद्र प्रसाद, गोपीचंद मीणा, सांसद सुखबीर सिंह जौनापुरिया, मंत्री जाहिदा खान, रामप्रसाद डिंडोर, जोगेश्वर गर्ग, शोभारानी कुशवाह के विरुद्ध भी आरोप प्रमाणित मानते हुए फाइलें संबंधित जिलों में भेजी जा चुकी हैं, जिनमें अब चालान पेश किये जाने की प्रक्रिया शुरू कर दिया गया है।
इसी प्रकिया से समझ आता है कि आखिर सरकार ने किसी हद तक जाकर विधायकों को अपने पक्ष में करने के लिये खेल शुरू कर दिया है। माना जा रहा है कि जिन 25 वोटों की कमी सरकार को पड़ रही है, उनमें कुछ तो कांग्रेस के विधायक ही हैं, जो अशोक गहलोत के खासे नाराज बताये जाते हैं। साथ ही निर्दलीय विधायकों को पर्याप्त सुख सुविधाएं नहीं मिलने के कारण उनका भी इस बार मन उखड़ा हुआ है। चुनाव के दौरान अशोक गहलोत ने पूरी इंटेलीजेंस और पुलिस के कई आला अधिकारियों को विरोध में जाने वाले विधायकों और विपक्षी नेताओं के पीछे लगा दिये हैं, जिनके विरोध या वोट नहीं देने से तीसरे प्रत्याशी के हार की संभावना है। असल में अशाक गहलोत को इस बात का पक्का पता है कि यदि तीसरा उम्मीदवार हार गया तो लोग उनकी सियासी जादूगरी पर सवाल उठायेंगे। साथ ही उनकी कुर्सी पर भी संकट आ सकता है। ऐसे में मरता क्या नहीं करता की तर्ज पर गहलोत ने अपनी पुलिस को जनप्रतिनिधियों के पीछे लगा दिया है।

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