भारत का कार—मोबाइल उत्पादन ताइवान की आजादी पर टिका है

Ram Gopal Jat
अमेरिका की स्पीकर नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा से गुस्साए चीन ने ताइवान को निशाने पर ले लिया है। पेलोसी की यात्रा के बाद चीनी सेना ने ताइवान बॉर्डर के 9 मील के दायरे में जमकर मिसाइलें दागी हैं। चीन इसको अपना नियमित सैन्य अभ्यास कह रहा है, लेकिन ताइवान को डराने के लिये किये गये इस अभ्यास के दौरान ताइवान की सीमा के आसपास समुद्र में कई बैलिस्टिक मिसाइलें दागी गई हैं। ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने इसे क्षेत्रीय शांति को कमजोर करने वाली तर्कहीन कार्रवाई करार दिया है। ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने एक संक्षिप्त बयान में चीनी सेना द्वारा पूर्वोत्तर और दक्षिण-पश्चिमी ताइवान के आसपास के समुद्री क्षेत्रों में डोंगफेंग श्रृंखला की कई बैलिस्टिक मिसाइलें दागने की पुष्टि की है।
चीन की ईस्टर्न थिएटर कमांड ने कहा कि उसने नियमित अभ्यास के तहत गुरुवार को ताइवान के पूर्वी तट के समुद्र पर पारंपरिक मिसाइलों की कई फायरिंग पूरी कर ली है। चीन ने दावा किया है कि गोलीबारी पूरी होने के बाद संबंधित समुद्री और हवाई क्षेत्र पर नियंत्रण हटा लिया गया है। चीन केवल रक्षा स्तर पर ही दुनिया को डराने का प्रयास नहीं कर रहा है, बल्कि राजनैयिक स्तर पर भी दुनिया के कई देशों को आंखें दिखा रहा है। कंबोडिया में आसियान कार्यक्रमों के इतर चीन के विदेश मंत्री वांग यी और उनके जापानी समकक्ष के बीच एक बैठक रद्द कर दी गई है। एक नियमित मीडिया ब्रीफिंग में चीन के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा कि ताइवान के बारे में सात देशों के समूह द्वारा दिए गए संयुक्त बयान से चीन बहुत नाराज है।
दूसरी तरफ चीन के बढ़ते दुष्साहस को देखते हुये अमेरिका ने भी अपना युद्धपोत ताइवान के लिये रवाना कर दिया है। अमेरिका ने चीन के युद्धाभ्यास के बहाने ताइवान पर हमले की संभावना को देखते हुए ताइवान के पास फिलिपींस सागर में अपना युद्धपोत USS Ronald Reagan भेज दिया है। आखिर क्या कारण है कि अमेरिका ने चीन की धमकी को दरकिनार कर अपनी स्पीकर नैंसी पेलोसी को ताइवान भेजकर वैश्विक टेंशन बढ़ाने का काम किया है? हालांकि, करीब कुछ महीने पहले इसी तरहत से यूक्रेन ने नाटो में शामिल होने का प्रयास किया था, तब रूस ने उसे डराने के लिये यूक्रेन की सीमाओं के पास युद्धाभ्यास शुरू किया था, बाद में जब रूस की शर्तों पर यूक्रेन तैयार नहीं हुआ तो उसने आक्रमण कर दिया। आज यूक्रेन पूरी तरह से तबाह हो चुका है और उसका अधिकांश भूभाग रूस के कब्जे में है। रूसी हमले के बाद अमेरिका समेत यूरोप और दुनिया के कई देशों ने उसपर प्रतिबंध तो लगा दिये, लेकिन इसके बाद भी रूस पर इसका कोई असर नहीं हो रहा है।
ताइवान के मामले में भी अमेरिका की यही नीति मानी जा रही है। पिछले क्वाड शिखर सम्मेलन में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा था कि चीन ने यदि ताइवान पर हमला किया तो अमेरिका उसके खिलाफ आर्मी एक्शन लेगा। इसके बाद चीन के तमाम विरोध के बाद भी हाउस ओफ कॉमंस की स्पीकर नैंसी पेलोसी को ताइवान भेजकर ड्रेगन को जानबूझकर नाराज किया है। इसका मतलब यह है कि अमेरिका खुद ही चाहता है​ कि चीन और ताइवान के बीच युद्ध हो, ताकि रूस की तरह ताइवान पर भी प्रतिबंध लगाये जा सकें और उसकी अर्थव्यवस्था को कमजोर किया जा सके। रूस व यूक्रेन युद्ध से भारत को कच्चे तेल के मामले में फायदा ही हुआ है। भारत ने इस युद्ध के वक्त अमेरिका के दबाव को दरकिनार कर रूस से प्रति माह अरबों डॉलर का 30 फीसदी सस्ता कच्चा तेल आयात किया है। लेकिन यदि चीन ने ताइवान पर हमला किया तो भारत को बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है। यहां पर स्थितियां बिलकुल उलट हैं। ताइवान से भारत तेल नहीं खरीदता है, बल्कि सेमी कंडक्टर आयात करता है।
भारत में 70 करोड़ से ज्यादा लोग मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं, 20 करोड़ से ज्यादा लोग लैपटॉप और कार का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि अगर चीन—ताइवान के बीच युद्ध हुआ तो मोबाइल, लैपटॉप, ऑटोमोबाइल सब पर संकट गहरा जाएगा। दुनियाभर में सैंकड़ों कंपनियां बंद होने के कगार पर पहुंच जाएगी। हजारों कंपनियों को अरबों डॉलर का नुकसान होगा। क्या भारत समेत पूरी दुनिया इस नुकसान के लिये तैयार है? यदि ताइवान से भारत को होने वाला आयात बंद हो जायेगा तो क्या होगा? असल में इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में जिस चिप या फिर सेमीकंडक्टर का इस्तेमाल होता है, वो ताइवान में तैयार होता है। दुनिया में सेमीकंडक्टर से होने वाली कुल कमाई का 54 फीसदी हिस्सा ताइवान की कंपनियों के पास है और अगर ताइवान में उत्पादन बंद हो गया, तो झटका पूरी दुनिया को लगेगा। भारत की सेमीकंडक्टर के मामले में ताइवान पर बहुत बड़ी निर्भरता है।
चीन की भूगोल के हिसाब से दुनिया के सबसे बड़े देशों में गिनती होती है, जबकि ताइवान की गिनती दुनिया के सबसे छोटे देशों में की जाती है। अर्थव्यवस्था के हिसाब से दोनों देशों की तुलना कहीं नहीं ठहरती, लेकिन इसके बावजूद इन दोनों देशों के बीच जब युद्ध का खतरा मंडराने लगा है, जिसके कारण दुनिया एक अलग टेंशन में है। भारत जैसे विकासशील देश पहले ही ऑटो से लेकर स्मार्टफोन इंडस्ट्री चिप शॉर्टेज से परेशान हैं। चीनी हमले से ताइवान में स्थिति बिगड़ने पर संकट और गहरा हो जाएगा, क्योंकि ये छोटा देश सेमीकंडक्टर के मामले में दुनिया की फैक्ट्री है।
नैंसी पेलोसी के दौरे के बाद जो स्थिति उभरकर सामने आई है, वो स्थिति अगर यूं ही बनी रही और यदि चीन ने ताइवान पर हमला किया तो इलेक्ट्रॉनिक्स, कम्प्यूटर, स्मार्टफोन और कारों की कीमतें बढ़नी तय है, हो सकता है कि बाजार से इलेक्ट्रानिक सामान गायब हो जाएं। कोरोना महामारी के दौरान जब ताइवान से सप्लाई चेन टूट गई थी, तब दुनिया को यह एहसास हो गया था कि ताइवान का बाजार में ना होने का मतलब क्या होता है। दुनिया में सेमीकंडक्टर के कुल उत्पादन का 54 फीसदी हिस्सा अकेले ताइवान की कंपनियां करती हैं। इसमें सबसे ज्यादा योगदान ताइवान की कपंनी TSMC का ही रहता है। TSMC अभी भी दुनिया की सबसे बड़ी सेमीकंडक्टर कंपनी है, जो Apple, Qualcomm, Nvidia, Microsoft, Sony, Asus, Yamaha, Panasonic जैसी दिग्गज कंपनियों को सेमीकंडक्टर बेचती है। ताइवान की यह सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी दुनिया का 92 फीसदी एडवांस सेमीकंडक्टर का उत्पादन करती है।
आखिर क्यों अमेरिका ने चीन को युद्ध के लिये उकसाया है? असल बात यह है कि चीन लंबे समय से ताइवान कब्जा करने का प्रयास कर रहा है। अमेरिका को इस बात की जानकारी है कि चीन जल्द ही ताइवान पर अटैक कर उसको हड़पना चाहता है। यदि चीन ने ताइवान को हड़प लिया तो दुनिया में सेमीकंटक्टर की सप्लाई बाधित होगी, जिसमें सबसे ज्यादा अमेरिका की कंपनियां प्रभावित होंगी। ऐसे में अमेरिका नहीं चाहता है कि ताइवान चीन के कब्जे में चला जायेगा। इस वक्त चीन सेमीकंडक्टर के मामले में ताइवान से मीलों पीछे है। सेमीकंडक्टर के बाजार को अमेरिका और चीन अच्छे से समझते हैं। इसलिए दोनों देश इस छोटे से देश के लिए आमने-सामने हैं। अगर चीन, ताइवान पर हमला करता है, तो तरह पूरी दुनिया के लिए चिप का बाजार बंद हो जाएगा और पहले से ही महंगाई से जूझ रही दुनिया के सामने एक नया संकट खड़ा हो जाएगा।
भारत जैसा देश, जो हाल के बरसों में डीजल—पेट्रोल पर निर्भरता कम करने के लिये इलेक्ट्रोनिक वाहन बनाने पर जोर दे रहा है, उसके लिये सबसे अधिक मुश्किल खड़ी होने वाली है। भारत आज भी सेमीकंडक्टर के लिये पूरी तरह से ताइवान और जापान पर निर्भर है। भारत में अभी तक सेमीकंडक्टर बनाने का ढांचा भी तैयार नहीं हुआ है। इसलिये यदि चीन ने ताइवान पर कब्जा किया तो भारत को सेमीकंडक्टर की सप्लाई बंद हो जायेगी, तो उभरते हुये भारतीय इलेक्ट्रोनिक कार बाजार के लिये मौत का कारण बन सकता है।
साल 2021 में भारत ने ताइवान से 7.5 अरब डॉलर का प्लांट लगाने का एमओयू साइन किया था, जिसका काम चल रहा है। इस बीच यदि चीन ने ताइवान पर कब्ज किया तो भारत का यह प्लांट अधूरा रह जायेगा, जो भारत के कार और मोबाइल बाजार के लिये बेहद नुकसानदायक होगा। इसलिये अमेरिका ही नहीं, बल्कि भारत भी चाहता है कि ताइवान पर चीन का कब्जा नहीं होना चाहिये। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन सेमीकंडक्टर कंपनियों पर कब्जा करने के लिये ही ताइवान को हड़पना चाहता है। इससे ना केवल उसकी घरेलू मांग की पूर्ति आसानी से हो जायेगी, ​बल्कि निर्यात कर वह मोटा मुनाफा भी कमाना चाहेगा।

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