मोदी के सामने गुजरात में क्यों नहीं टिकती कोई पार्टी?

Ram Gopal Jat
इन दिनों भाजपा ने प्रधानमंत्री मोदी के सार्वजनिक जीवन के 20 बरस पर लिखी पुस्तक का प्रचार का जिम्मा हाथ में ले रखा है। इस पुस्तक में मोदी के गुजरात में मुख्यमंत्री बनने से लेकर देश के प्रधानमंत्री बनने के आठ साल के पूरे सफर की सफलताओं को लिखा गया है। देशभर में भाजपा के नेता इस पुस्तक की खूबियों को लेकर जनता को बताने में जुटे हैं। राजस्थान के जोधपुर से सांसद और केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने तो मोदी 20 को भगवत गीता के बराबर बता दिया था, जिसकी अलोचना भी हुई थी। इस वीडियो में हम चर्चा करेंगे कि कैसे एक स्कूटर वाले दोस्त के पीछे बैठकर राजनीति की सीढ़ी चढ़ने वाले नरेंद्र मोदी ने कई दिग्गजों को निपटाते हुये केवल 25 साल में दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता बनने का गौरव हासिल किया?
बीते दो दशक को भाजपा के नेता मोदी युग के तौर पर बता रहे हैं, जबकि 2004 तक केंद्र में एनडीए की सरकार थी, जिसके नेता अटल बिहारी वाजपेयी थे और साल 2009 के लोकसभा चुनाव के समय लालकृष्ण आडवाणी भाजपा के सबसे बड़े नेता थे। बाद में इन नेताओं का डाउनफॉल आया, तो गुजरात मॉडल के नाम पर मोदी का नाम देशभर में विकास पुरुष के रुप में प्रचारित किया गया। इसी दौरान यूपीए सरकार के घोटालों से परेशान जनता ने साल 2014 में मोदी को अपना नेता चुन लिया। मोदी ने अपनी सार्थकता भी सिद्ध की है। आज भारत दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है, जबकि 2014 तक भरत विश्व की 11वीं अर्थव्यस्था हुआ करता था। भारत को करीब 200 साल गुलाम रखकर 45 ट्रिलियन डॉलर की की अकूत संपत्ति हड़पने वाला ब्रिटेन आज भारत से पीछे छूट चुका है। अब भारत से आगे अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी ही बचे हैं। माना जा रहा है कि भारत साल 2030 तक जापान और जर्मनी को पीछे छोड़कर विश्व की तीसरी सबसे बड़ी इकॉनोमी बन जायेगा।
नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी उतनी ही पुरानी है, जितनी भाजपा की उम्र है। यानी जब 1982 में भाजपा की स्थापना हुई थी, तभी से मोदी और शाह की जोड़ी भी बन गई थी, लेकिन यह सक्सेज नहीं थी। इस जोड़ी ने लंबे समय तक संघर्ष किया। 90 के दशक में नरेंद्र मोदी की भाजपा में एंट्री हुई है और वह राष्ट्रीय महासचिव तक पहुंच गये। तब संजय सिंह भाजपा के बड़े नेता हुआ करते थे, जिनकी मोदी से मित्रता थी। दोनों संघ में काम करते थे। कहा जाता है कि संजय सिंह के पास उस वक्त का मशहूर बजाज स्कूटर हुआ करता था, जिसपर सवारी करके सजयं सिंह और नरेंद्र मोदी अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत कर रहे थे। साल 1992 में गुजरात में कांग्रेस की सत्ता चली गई।
गुजरात में बीजेपी पहली बार अपने दम पर 1995 में सत्ता में आई। हालांकि, इससे पहले भाजपा गुजरात में जनता दल के साथ 1990 में सत्ता में आ चुकी थी। इसी दौरान बीजेपी को सत्ता में बने रहने का फॉर्मूला अब मिल चुका है। साल 1995 से पहले कांग्रेस के दिग्गज नेता माधव सिंह सोलंकी ”खाम थ्योरी” के बल पर 1985 में गुजरात का अब तक का सबसे बड़ा बहुमत हासिल कर चुके थे, तब लगता था कि अब राज्य में कांग्रेस को हराना मुश्किल है। तब बीजेपी को गुजरात में सत्ता पाने के फॉर्मूले की की तलाश थी। ऐसे में भाजपा नेतृत्व ने तय किया कि राज्य की सबसे ताकतवर जाति का भरोसा जीतना होगा, इसलिए बीजेपी ने केशुभाई पटेल को आगे किया। उन दिनों चिमन भाई पटेल जनता दल के बड़े नेता थे, तो केशुभाई पटेल पाटीदारों के दूसरे बड़े नेता थे। भाजपा को यह समझ में आ चुका था कि दलित, मुस्लिम और क्षत्रिय मतदाता कांग्रेस के साथ हैं। ऐसे में पाटीदार समुदाय को साथ लेकर चुनाव जीता जा सकता है। भाजपा का यह प्रयोग सफल हुआ और 1990 में पहली बार कांग्रेस की हार हुई। जनता दल और भाजपा की मिली जुली सरकार बनी। भाजपा को पटेल समुदाय ने अपना खुलकर समर्थन दिया। इसका पूरा फायदा 1995 में भाजपा को मिला।
विधानसभा चुनाव में भाजपा को 182 में से 121 सीटें पर जीत मिली। यह भाजपा की गुजरात में पहली जीत थी और इसके नायक बने थे केशुभाई पटेल। हालांकि, वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। मुख्यमंत्री का सपना देख रहे भाजपा के शंकर सिंह वाघेला ने पार्टी तोड़ दी और बीच में कुछ समय के लिए शंकर सिंह वाघेला बीजेपी से अलग होकर सरकार बनाने में सफल रहे। इसके बाद बीजेपी को गुजरात की सत्ता में बने रहने का ऐसा फॉर्मूला मिल चुका था, जिसके दम पर भाजपा पिछले 27 सालों से सत्ता में बनी हुई है। 1990 आते-आते कांग्रेस गुजरात की जनता के दिलों से उतर चुकी थी। ऐसा नहीं है कांग्रेस ने सत्ता में आने के लिए कोशिश नहीं की, लेकिन 1990 से 2017 तक उन्हें सफलता नहीं मिली। अब तो गुजरात में पाटीदार समुदाय के युवा नेता हार्दिक पटेल भी पार्टी छोड़कर बीजेपी में जा चुके है। हार्दिक के जाने से गुजरात में कांग्रेस को झटका लगा है, जिसकी भरपाई करना आसान नहीं है। साल 2001 में गुजरात में आये भयंकर भूकंप के बाद लचर प्रशासन के कारण केशुभाई पटेल को सत्ता से हाथ धोना पडा और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव के पद पर कार्यरत नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री बनाया गया। कहा जाता है कि लालकृष्ण आडवाणी ने ही मोदी का नाम आगे किया था। लेकिन दुर्भाग्य से एक साल के भीतर ही गुजरात में गोधरा कांड के कारण साम्प्रदायिक दंगे हो गये और उनका आरोप कांग्रेस ने मोदी पर लगाया। दंगों के कुछ ही समय बाद विधानसभा चुनाव हुये तो गुजरात की जनता ने मोदी पर विश्वास जताया और भाजपा को पहली प्रचंड बहुमत से 127 सीटों पर जीत हासिल हुई। इसके बाद मोदी की लीडरशिप में भाजपा ने 2007, 2012 को चुनाव भी आसानी से जीता। साल 2013 में मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया। जिसका प्रभाव पूरे देश में पड़ा और लोगों ने भाजपा पर भरोसा जताते हुये पहली बार केंद्र में 282 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत की भाजपा सरकार बनी।
ऐसा नहीं है कि मोदी का सफर इतना आसान था। जब भाजपा ने उनको गुजरात का सीएम बनाया, तभी उनके पीछे केशुभाई पटेल से लेकिन शंकर सिंह वाघेला जैसे दिग्गज नेता लग चुके थे, लेकिन आडवाणी के आर्शीवाद से उनको हटाया नहीं गया। साल 2002 के दंगों के बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजयेपी ने खुद मोदी को राजधर्म निभाने की सलाह दी थी। कहा जाता है कि वाजपेयी मोदी का हटाना चाहते थे, लेकिन आडवाणी ने उनको आश्वस्त किया कि वह बेहतर सीएम साबित होंगे। वाजयेपी के अस्वस्थ होने के कारण साल 2009 में आडवाणी भाजपा के सबसे बड़े नेता थे और प्रधानमंत्री पद के सबसे बड़े उम्मीदवार थे, लेकिन पार्टी सत्ता नहीं पा सकी। इसके बाद पांच साल में सबकुछ बदल गया और जिन मोदी को आडवाणी ने सीएम पद पर बचाया था, वही मोदी पार्टी के चहेते बन गये। आडवाणी 2014 में भी पीएम बनना चाहते थे, लेकिन पार्टी ने उनको पीछे हटाकर मोदी को आगे करने का फैसला किया।
इधर, गुजरात में जब 2017 का चुनाव हुआ तो मोदी की कमी खली। इस चुनाव में भाजपा बड़ी मुश्किल से जीत पाई। उसको 182 सीटों वाली विधानसभा में केवल 99 सीट मिली और कांग्रेस सत्ता की दहलीज पर आकर रह गई। मोदी के गुजरात से केंद्र में जाने के बाद अब तक तीन मुख्यमंत्री बन चुके हैं। पहले आनंदी पटेल बनी, फिर विजय रुपाणी को बनाया और करीब दो साल पहले भाजपा फिर पटेल समुदाय पर आ गई है। अभी भुपेंद्र सिंह पटेल गुजरात के सीएम हैं, लेकिन इस बार कांग्रेस सत्ता का स्वाद चखना चाहती है। इसलिये एक बार फिर से कांग्रेस ने अपने सबसे बड़े चहेते नेता अशोक गहलोत को सीनियर ओब्जर्वर बनाकर सत्ता दिलाने का जिम्मा सौंपा है।
कांग्रेस जहां 27 साल का सूखा मिटाने का प्रयास करेगी, तो भाजपा एक बार फिर से मोदी के नाम पर चुनाव लड़कर भुपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाना चाहेगी। यह चुनाव दोनों ही दलों के लिये करो या मरो का चुनाव है। हालांकि, कांग्रेस के लिये भाजपा से बड़ी चुनौती आम आदमी पार्टी बन चुकी है, जो कांग्रेस का वोट काटने के लिये तैयार हो गई है। कहा जाता है कि भाजपा को अपना कोर वोट मिलना तय है, लेकिन कांग्रेस को पिछली बार मिले वोट में भी आम आदमी पार्टी हिस्सेदार बन जायेगी। उपर से यहां पर असददृीन ओवैशी और बीटीपी भी अपनी पकड़ बना रही है, जो भी विपक्ष के वोट को ही काटेगी। कहने का मतलब यह है कि प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के राज्य में भाजपा एक बार फिर से सत्ता में आती दिखाई दे रही है।

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