गहलोत के अनुसार पायलट का मुख्यमंत्री बनने का समय आ चुका है!

Ram Gopal Jat
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को सक्रिय राजनीति में 45 साल हो चुके हैं, जिसमें से वह 42 साल विजेता रहे हैं, यानी साल 1980 से लेकर अब तक वह सिर्फ जीतते ही रहे हैं। वह पहली और आखिरी बार अपने पहले 1977 के आम चुनाव में हारे थे। उसके बाद अशोक गहलोत पांच बार सांसद रहे और 1999 से अब तक पांच बार विधायक रह चुके हैं। इसके अलावा अशोक गहलोत केंद्र में राज्यमंत्री, प्रदेशाध्यक्ष, राष्ट्रीय महामंत्री और तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। संयोग की बात यह है कि उनके सबसे बड़े राजनीतिक दुश्मन सचिन पायलट की उम्र भी 45 साल हो चुकी है। अर्थात, अशोक गहलोत का राजनीतिक जीवन और सचिन पायलट का जीवन बराबर है, किंतु अनुभव के आधार पर अशोक गहलोत की ही मानें, तो सचिन पायलट का अब मुख्यमंत्री बनने का समय आ चुका है।
असल में अशोक गहलोत कई बार कहते हैं कि सचिन पायलट की रगड़ाई नहीं हुई। गहलोत यह भी कहते हैं कि राजनीति में जो होता है, वह दिखता नहीं है और जो दिखता है, वह होता नहीं है। इसका अर्थ यदि इस तरह से लगाया जाये कि अशोक गहलोत जो बार—बार कहते है कि रगड़ाई होनी चाहिये। राजनीति में अशोक गहलोत की रगड़ाई का अर्थ सक्रिय राजनीतिक अनुभव से ही लगाया जाता है। इसलिये यदि अशोक गहलोत और सचिन पायलट के अनुभव की बात की जाये तो दोनों में काफी समानता है। अशोक गहलोत 29 साल की उम्र में पहली बार 1980 में जोधपुर से सांसद बने थे। उसके बाद वह केंद्र में मंत्री बने। जोधपुर से वह लगातार पांच बार चुनाव जीते और इसके बाद साल 1998 में उनको राज्य का मुख्मयंत्री बनाया गया। यानी, कुल 18 साल के अनुभव के बाद अशोक गहलोत मुख्मयंत्री बन गये। हालांकि, लोकसभा का एक कार्यकाल पांच साल का होता है, और इस हिसाब से देखा जाये तो मुख्यमंत्री बनने तक अशोक गहलोत का सियास अनुभव 25 साल होना चाहिये थे, लेकिन 1996 से 1999 तक केंद्र में चले सियासी संक्रमण के कारण बार—बार चुनाव हुये और इस वजह से 18 साल में अशोक गहलोत पांच बार सांसद बन गये।
अशोक गहलोत कहते हैं कि उनके हर बयाने के मायने होते हैं। यदि उनके रगड़ाई वाले बयान के मायने को कसौटी पर कसा जाये तो गहलोत का कहने का अर्थ यही है कि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनने का अभी पूर्ण राजनीतिक अनुभव नहीं है। किंतु यह बात पूरी सच नहीं है। असल बात यह है कि सचिन पायलट पहली बार 2004 में दौसा से सांसद चुने गये थे, तब उनकी उम्र 27 साल थी। इसके बाद 2009 में अजमेर से चुनाव जीते और मनमोहन सिंह की सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे। जनवरी 2014 में उनको 34 साल की उम्र में राजस्थान कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया। इसके कुछ समय बाद मई 2014 में हुये आम चुनाव में वह मोदी लहर के कारण अजमेर से आम चुनाव हार गये और उन्होंने पूरी तरह से राजस्थान पर ध्यान केंद्रित कर दिया। वसुंधरा राजे की भाजपा सरकार के समय 20014 से 2018 तक उनकी खूब सियासी रगड़ाई हुई। पुलिस के लठ खाते सचिन पायलट के गूगल पर मौजूद फोटो इसकी गवाही दे देते हैं।
दिसंबर में 2018 के विधानसभा चुनाव के समय पूरे प्रदेश और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को भी लग रहा था कि पार्टी को बहुमत मिला तो सचिन पायलट ही राजस्थान के मुख्यमंत्री होंगे। किंतु एक सप्ताह तक चले सियासी ड्रामे के बाद सोनिया गांधी ने वीटो कर अशोक गहलोत को तीसरी बार मुख्यमंत्री बना दिया। सचिन पायलट को उपमुख्मयंत्री बनाया गया। यह भी कहा जाता है कि अशोक गहलोत को इसी शर्त पर मुख्यमंत्री बनाया गया था कि मई 2019 के आम चुनाव में वह राज्य की 25 में से कम से 15 सीटें कांग्रेस के खाते में लायेंगे, लेकिन हुआ इसके बिलकुल उलट। ना केवल कांग्रेस लगातार दूसरी बार सभी 25 सीटें हार गई, बल्कि खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत भी गजेंद्र सिंह शेखावत के सामने जोधपुर लोकसभा सीट पर करीब पौने तीन लाख वोटों से बुरी तरह हार गये।
कहते हैं कि इसके बाद सचिन पायलट ने कांग्रेस आलाकमान को अपना वादा याद दिलाया कि लोकसभा में सीटें नहीं जीतने पर अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटाकर उनको सीएम बनाया जाये, किंतु दुर्भाग्य से कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने उनकी सुनवाई नहीं की। इसके उलट अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी से हटाने के लिये सत्ता और संगठन में अंदरुनी अभियान शुरू कर दिया। यह भी कहा जाता है कि सचिन पायलट और उनके गुट के माने जाने वाले मंत्रियों, विश्वेंद्र सिंह और रमेश मीणा के विभागों की फाइल्स भी सीएमओ, सीएमआर से ही अप्रुव होती थीं। ऐसा करके अशोक गहलोत की सरकार ने इन मंत्रियों को अपमानित करने का रास्ता चुना। यह भी ध्यान रखने योग्य है कि पंचायती राज मंत्री रहते हुये सचिन पायलट की अगुवाई में राज्य का पंचायती राज विभाग पूरे देश में एक नंबर पर आ चुका था। बावजूद इसके अपने मंत्रियों पर लगातार बढ़ते दबाव के चलते अंतत: सचिन पायलट गुट ने 13 जुलाई 2020 को अशोक गहलोत सरकार से बगावत कर दी। पायलट अपने साथियों के साथ मानेसर में चले गये तो गहलोत की सरकार पहले 15 दिन तक जयपुर की कथित वैभव गहलोत वाली होटल में और उसके बाद इतने ही दिनों तक जैसलमेर की एक बजरी माफिया की होटल में कैद रही।
बाद में प्रियंका गांधी वाड्रा ने बीच बचाव कर दोनों में एक समझौता करवाया, जिसके अनुसार जल्द ही सचिन पायलट की मांगों को स्वीकार करना था। मतलब यही कि उनको मुख्यमंत्री बनाना था, लेकिन कहा जाता है कि राजस्थान में रॉबर्ट वाड्रा के कथित जमीन घोटाले में गांधी परिवार के दामाद की गिरफ्तारी से बचने के लिये सोनिया गांधी ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री के रुप में आगे भी स्वीकार करने का निर्णय लिया। इस मामले को सवा दो साल हो चुके हैं। कांग्रेस के लोग कहते हैं कि सचिन पायलट को हर दो चार माह में एक नया आश्वासन देकर दिल्ली से जयपुर भेज दिया जाता है। किंतु आजतक उनकी मांगें पूरी नहीं की गई हैं। पिछले महीने की 25 तारीख को जयपुर में अशोक गहलोत के मंत्रियों द्वारा कांग्रेस आलाकमान के साथ जो बगावत की गई, वह अक्षम्य थी। जिसकी रिपोर्ट भी अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे ने सोनिया गांधी को सौंप दी। हालांकि, उस रिपोर्ट पर निर्णय नहीं हुआ है, किंतु खड़गे के अध्यक्ष बनने के बाद उसपर फैसला होने की उम्मीद जताई जा रही है।
खड़गे के अध्यक्षीय शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुये अशोक गहलोत ने पत्रकारों से बात करते हुये जो बातें कहीं, उससे साफ हो जाता है कि उनकी प्रतिबद्धता केवल गांधी परिवार के प्रति है। जबकि उनके हाव—भाव पर गौर किया जाये तो यह भी स्पष्ट हो जाता है कि खड़गे के अध्यक्ष बनने से अशोक गहलोत खास प्रसन्न नहीं हैं। वह अब भी राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाये जाने की रट लगाये बैठै हैं। अशोक गहलोत के हाव—भाव से भी प्रतीत होता है कि शायद उनकी कुर्सी निकट ही छीनी जा सकती है। दूसरी तरफ सचिन पायलट पूरी से तरह शांत हैं और सत्ता रिपीट कराने पर ध्यान देने की बातें कह रहे हैं। इसका अर्थ यही है कि कांग्रेस में जल्द ही एक और सियासी तूफान उठने वाला है, जिससे पहले की शांति सचिन पायलट खेमे में देखी जा सकती है।
अब सरकार को एक साल का समय बचा है, लेकिन उससे भी ज्यादा जरुरी बात यह है कि सचिन पायलट का राजनीतिक अनुभव अब उतना ही हो गया है, जितना अशोक गहलोत का साल 1998 के समय मुख्यमंत्री बने थे, तब था। यानी अशोक गहलोत के बयानों को ही कसौटी पर कसा जाये तो सचिन पायलट का अब मुख्यमंत्री बनने का समय आ चुका है। क्योंकि जब अशोक गहलोत पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, तब उनका अनुभव 18 साल का था और अब सचिन पायलट का राजनीतिक अनुभव भी 18 साल हो चुका है। इसलिये अशोक गहलोत के रगड़ाई वाले बयान की पूर्ति सचिन पायलट के सियासी अनुभव से हो जाती है। किंतु हो सकता है कि अब अशोक गहलोत अपने बयान से फिर मुकर जायें और कोई नया सिगुफा लेकर सामने आ जायें। इसकी प्रबल संभावना भी है और अशोक गहलोत से हमेशा इसकी उम्मीद भी की जाती है।
एक बात राजनीति के जानकारों को साफ दिखाई दे रही है, यदि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया, तो ना केवल कांग्रेस की सत्ता रिपीट होना लगभग नामुनकिन है, बल्कि आगे सचिन पायलट भी कांग्रेस में रहेंगे, इसपर भी संदेश उत्पन्न हो रहा है। कुछ लोगों का यह मानना है कि इस कार्यकाल में सचिन पायलट को सीएम नहीं बनाया गया तो हो सकता है मई 2024 के चुनाव से पहले वह भी पार्टी छोड़ जायें। अन्यथा उनको कांग्रेस से मुख्यमंत्री बनने के लिये कम से कम पांच साल इंतजार करना होगा, जो शायद उन्हें मंजूर ना हो।

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