पायलट गहलोत में फिर शुरू हुई वर्चस्व की लड़ाई

Ram Gopal Jat
मल्लिकार्जुन खड़गे के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के साथ ही अगले महीने से राजस्थान में पार्टी संगठन में बड़ी संख्या में सवा दो साल से लंबित नियुक्तियों का रास्ता साफ होने के आसार हैं। नवंबर में राजस्थान कांग्रेस में जिला, ब्लॉक और प्रदेश स्तर पर खाली पड़े पदों को भरने का सिलसिला शुरू होगा। माना जा रहा है कि अगला साल चुनावी वर्ष होने के कारण इस बार आधे पद युवाओं को मिलेंगे। राजस्थान कांग्रेस में होने वाली नियुक्तियों से पार्टी में आगे की सियासत भी तय हो जाएगी। इन नियुक्तियों के जरिए पार्टी पर पकड़ बनाने के लिए अशोक गहलोत और सचिन पायलट खेमों के बीच जोर आजमाइश होगी। मतलब जिस नेता के लोगों को संगठन में अधिक जगह मिलेगी, वही अगले छह साल तक पार्टी संगठन पर राज करेगा। एक दिन बाद मल्लिकार्जुन खड़गे के कांग्रस अध्यक्ष का पद संभालने के साथ ही राजस्थान में संगठनात्मक नियुक्तियों के लिए सचिन पायलट व अशोक गहलोत के बीच नये सिरे से लड़ाई शुरू होगी। करीब सवा साल से खाली चल रहे जिला अध्यक्षों और ब्लॉक अध्यक्षों के पदों के अलावा इस बार हर 25 बूथ पर एक मंडल बनेगा।
राजस्थान कांग्रेस में एक मोटे अनुमान के अनुसार चुनावी साल से पहले एक लाख छोटे—बड़े नेताओं को किसी न किसी रूप में संगठन में पद मिलेगा। मोटे तौर पर देखा जाये तो पार्टी नीचे से लेकर उपर तक नियुक्तियां होंगी। और संभवत: अगले साल होने वाले चुनाव के लिये यही कांग्रेस की चुनावी टीम होगी। पार्टी में अभी तक सभी 400 ब्लॉक अध्यक्षों के पद खाली हैं, जबकि केवल 13 जिलाध्यक्ष ही अभी काम कर रहे हैं, बाकी जिला अध्यक्षों के पद खाली हैं। ऐसे में सबसे पहले जिलाध्यक्ष और फिर ब्लॉक अध्यक्षों के पदों पर नियुक्तियां होंगी। इसके बाद मंडल और बूथ कमेटियों में भी बड़ी संख्या में नेताओं को एडजस्ट किया जाएगा। इन नियुक्तियों में विधायकों और विधायक प्रत्याशियों की राय को तवज्जो मिलना तय माना जा रहा है। जिलाध्यक्षों और ब्लॉक अध्यक्षोंके पैनल पहले ही आलाकमान को भेजे जा चुके हैं। अब नए अध्यक्ष के तौर पर ​मल्लिकार्जुन खड़गे की मंजूरी के बाद इन्हें जारी किया जाएगा।
सचिन पायलट खेमे की बगावत के समय 15 जुलाई 2020 को कांग्रेस के टॉप टू बॉटम सभी पदाधिकारियों को हटा दिया था। साथ ही सभी अग्रिम संगठन सहित जिला-ब्लॉक कार्यकारिणी भी भंग कर दी गई थीं। तभी से कांग्रेस की प्रदेश कार्यकारिणी को छोड़ पूरा संगठन ही बिना पदाधिकारियों के चल रहा है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के खेमों के बीच खींचतान के कारण पिछले ढाई साल से ये सभी पद खाली पड़े हैं। लेकिन अगले साल विधानसभा चुनाव हैं, इसलिये अब पार्टी को चुनावी साल से पहले संगठन के खाली पदों को अब भरना जरूरी हो गया है। कांग्रेस में उपर से नीचे तक करीब एक लाख पदों पर होने वाली नियुक्तियों में खेमेबंदी की नई सियासत और खींचतान शुरू होने के पूरे आसार हैं, जिसके तहत दबाव की राजनीति भी शुरू हो चुकी है। पिछली कार्यकारिणी में प्रदेशाध्यक्ष होने के कारण सचिन पायलट खेमे के नेताओं की संख्या ज्यादा थी। राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से लेकर 15 जुलाई 2020 तक पायलट ही प्रदेशाध्यक्ष थे, इसलिए कार्यकारिणी और पूरे संगठन में उनके खेमे के नेता ज्यादा थे।
जुलाई 2020 में सचिन पायलट खेमे की बगावत के कारण प्रदेश की पूरी कार्यकारिणी भंग कर दी गई थी। अब सचिन पायलट और अशोक गहलोत खेमों के बीच संगठन में पदाधिकारी बनाने के लिए नए सिरे से जोर आजमाइश होना तय माना जा रहा है। कांग्रेस संगठन में करीब एक लाख पदाधिकारियों में से गहलोत और पायलट खुद के नेताओं को जितनी जगह दिलवा पाएंगे, इसी से पार्टी पर पकड़ तय होगी। कांग्रेस सूत्रों का दावा है कि इस बार संगठन की सभी नियुक्तियों में ब्लॉक से लेकर प्रदेश स्तर तक 50 फीसदी पदाधिकारी 50 साल से कम उम्र के होंगे। इससे युवा नेताओं को पार्टी में पद मिलेंगे, ताकि चुनाव के दौरान उनकी मेहनत का काम लिया जा सके और युवाओं को पार्टी से जोड़ा जा सके। पार्टी के पदों में SC-ST, ओबीसी और मूसलमानों को भी भागीदारी देने के लिए आरक्षण का प्रावधान लागू होगा। असल में कांग्रेस के उदयपुर चिंतन शिविर में हुए फैसले के मुताबिक 90 से 180 दिन में सभी खाली पदों पर नियुक्तियां करना तय हुआ था। नवंबर में यह डेडलाइन पूरी हो रही है। ऐसे में अब नए साल से पहले कांग्रेस की नियुक्तियों का काम पूरा करना है। उदयपुर में पारित प्रस्ताव के अनुसार हर राज्य में पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी का गठन करने का भी निर्णय किया गया था, इसलिये अब संगठन नियुक्तियों के साथ ही राजस्थान में भी यह कमेटी बनेगी। कांग्रेस में उदयपुर चिंतन शिविर में हुए निर्णय के अनुसार बूथ और ब्लॉक के बीच में एक मंडल यूनिट बनेगी। अब तक बीजेपी में ही मंडल बने हुये हैं। कांग्रेस में ये मंडल ब्लॉक लेवल के हैं। कांग्रेस में 20 से 25 बूथ पर एक मंडल बनेगा। प्रदेश में कुल 52 हजार पोलिंग बूथ हैं। भाजपा में करीब 55 हजार पॉलिंग बूथ हैं। इसके साथ ही प्रदेश भर में 2000 से ज्यादा मंडल अध्यक्ष बनेंगे। हर मंडल में 8 से 10 नेताओं की कार्यकारिणी होगी। मंडल अध्यक्ष और कार्यकारिणी को मिलाकर 20 हजार नेताओं को मंडल स्तर पर पद मिलेंगे।
ब्लॉक अध्यक्ष के पद को लेकर सबसे ज्यादा खींचतान चलती रही है। जिलाध्यक्ष और ब्लॉक अध्यक्ष टिकटों पर पैनल तय करने में शुरुआती फीडबैक यही देते हैं, इसलिए विधायक और हारे हुए विधायक प्रत्याशी अपने-अपने गुट के लोगों को ​ब्लॉक अध्यक्ष बनाना चाहते हैं। अब तक कांग्रेस में तय फार्मूला रहा है कि हर विधानसभा सीट के दो में से एक ब्लॉक पर विधायक के गुट का ब्लॉक अध्यक्ष और दूसरे ब्लॉक पर अन्य नेता की पसंद का ब्लॉक अध्यक्ष बनाते रहे हैं। प्रदेश में अशोक गहलोत सरकार पर आए सियासी संकट के बाद और राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से पहले अब कांग्रेस संगठन व सरकार दोनों में सक्रियता बढ़ गई है। सरकार जनता के लिए बड़ी घोषणाएं कर रही है, संगठन प्रदेश में आने वाली राहुल की यात्रा की तैयारियों में जुटा है। इसी बीच सरकार कार्यकर्ताओं को सियासी नियुक्तियों का तोहफा भी दे रही है। सबसे अधिक चुनौती गोविंद सिंह डोटासरा के सामने होगी, यादि उनको अध्यक्ष बनाये रखा गया तो ना केवल भारत जोड़ो यात्रा के दौरान उनको प्रदेश संगठन की ताकत दिखानी होगी, बल्कि अगले साल होने वाले चुनाव से पहले संगठन में जान फूंकने की होगी, जिसकी उम्मीद बेहद कम है।
इधर, पायलट गहलोत कैंप में अभी से इन नियुक्तियों को लेकर जोर आजमाइश शुरू होती नजर आने लगी है। सचिन पायलट के पास कोई पद नहीं होने के बाद भी उनके घर पर कार्यकर्ताओं की भीड़ और चमत्कार की उम्मीद के कारण हर दिन पायलट के पास कांग्रेस संगठन की संख्या बढ़ती जा रही है। सत्ता से दूर होने के कारण पायलट सहज रुप से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से मिल रहे हैं, जिसके कारण गहलोत कैंप के कार्यकर्ता भी अब धीरे धीरे पायलट की तरह जाने लगे हैं। बड़े पैमाने पर लंबे समय से राजनीति नियुक्त्यिों के इंतजार के बाद नंबर नहीं लगने के कारण निराश और हताश कार्यकर्ता अब सचिन पायलट के बंगले पर देखे जा सकते हैं। इनको अब संगठन में नियुक्ति की उम्मीद है, जो सचिन पायलट पूरी कर सकते हैं।
देखना होगा कि आने वाले दो माह में राजस्थान कांग्रेस का कायाकल्प कैसे होगा और अगले साल होने वाले चुनाव की तैयारी के लिये कैसी टीम बनाई जायेगी, जिससे इस दावे की भी परीक्षा होगी कि सत्ता रिपीट करवानी है। कांग्रेस के लोगों का यह भी मानना है कि यदि संगठन में भी सत्ता की तरह गहलोत के लोग ही रहे, तो अगला चुनाव जीतने का सपना तो छोड़ ही देना चाहिये। जबकि यह माना जाता है कि पिछले 30 साल के सत्ता बदलने के इतिहास को देखते हुये सचिन पायलट फिर से प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी लेकर अशोक गहलोत सरकार की विफलता का ठीकरा खुद के सिर नहीं फोड़ना चाहेंगे।

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