पीओके वापसी के लिये मोदी सरकार की तैयारी पूरी

Ram Gopal Jat
भारत में इन दिनों पाकिस्तान अधिकृ​त कश्मीर को वापस लेने की चर्चा जोरों पर चल रही है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के बीच इसको लेकर अनौपचारिक बात तक पूरी हो चुकी है। हालांकि, इस तरह की बात ना तो भारत सरकार की तरफ से कही गई है और ना ही कोई बयान इमरान खान या पाकिस्तानी सरकार की तरफ से जारी हुआ है। फिर भी पीओके को लेकर चर्चा के दौरान ही विदेश मंत्री एस जयशंकर द्वारा चीन को तलाड़ लगाना इस बात का प्रमाण है कि भारत जल्द ही इस दिशा में आगे बढ़ने वाला है। आखिर क्यों पीओके को भारत वापस लेना चाहता है और इसकी कितनी संभावना है? क्या मोदी सरकार में इतना हिम्मत है कि पीओके वापस लेने के लिये पाकिस्तान पर आक्रमण किया जा सकता है? साथ ही यह भी जानना जरुरी है कि मोदी और इमरान खान की कथित डील के बीच भारत के जैम्स बॉन्ड, यानी अजीत डोभाल का पाकिस्तान के किस राज्य में, क्या खेल चल रहा है?
15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी के बाद सबसे बड़ा सवाल यह था कि देश में फेली 560 से अधिक रियासतों का एकीकरण करके भारत को एक माला में रहने वाले मोतियों की तरह पिरोने का काम कैसे किया जाये? जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री महात्मा गांधी की जिद के कारण बन तो गये, लेकिन उनमें इनती सूझ बूझ की ताकत नहीं थी कि इन रियासतों को बिना रक्तपात के एक करके भारत देश कैसे बनाया जाये? ऐसे में इस काम को हाथ में लिया देश के पहले गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल ने। पटेल ने हैदराबाद को छोड़कर ना केवल बिना रक्तपात के सभी 560 देशी रियासतों को एक करने का काम किया, बल्कि हैदराबाद को भी सेना का डर दिखाकर बिना लड़ाई लड़े ही सरेंडर करने को मजबूर कर दिया।
जो काम सरदार पटेल ने हाथ में लिया था, उसको पूरा कर दिया और पुन: एक भारत का निर्माण कर दिया, किंतु एक राज्य ऐसा भी था, जिसको भारत में मिलाने का काम जवाहरलाल नेहरू ने अपने हाथ में रखा था। जम्मू कश्मीर का राजा भारत के साथ अपने राज्य का विलय करने को तैयार तो हो गया, लेकिन नेहरू की अदूरद​र्शिता के चलते बिना कारण के धारा 370 और 35ए जैसे प्रावधान करके इसको भारत का अभिन्न अंग बनाने में विफलता हासिल हुई। उसी दौरान पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर को अपने में मिलाने के लिये आक्रमण कर दिया। जम्मू कश्मीर के एक बड़े हिस्से को पाकिस्तानी सेना ने अपने कब्जे में ले लिया और भारत की सरकार देखती रह गई। इतना ही नहीं, ​बल्कि जब सरदार पटेल ने उस खोई हुई जमीन को वापस लेने के लिये कहा तो नेहरू ने इनकार कर दिया।
भारत के माथे पर तब लगा कंलक आज पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर, यानी पीओके के नाम से जाना जाता है। इसके बाद 1965 की लड़ाई में चीन ने भी लद्दाख के 38000 वर्गकिलोमीटर पर कब्जा कर लिया, जब नेहरू हिंदी चीनी भाई भाई के कबूतर उड़ा रहे थे। उस बड़े भू भाग को अक्साई चिन के नाम से जाना जाता है। पीओके और सीओके भारत के ताज के दो अनमोल रत्न हैं, जिनको वापस लेने के लिये भाजपा शुरू से ही अपने चुनाव घोषणा पत्र में वादा करती रही है। हमेशा की तरह ही 2019 के आम चुनाव के घोषणा पत्र में भी भाजपा ने राम मंदिर, धारा 370, तीन तलाक, सीएए, जनसंख्या नियंत्रण कानून और समान नागरिक संहिता का वादा करके चुनाव लड़ी थी, लेकिन किसी को शायद अंदाजा भी नहीं था कि इनमें से चार वादों को शुरू के दो साल में ही पूरा कर दिया जायेगा। मोदी की दूसरी सरकार ने अपने शुरुआती छह माह में ही धारा 370 हटाकर जम्मू कश्मीर के माथे पर लगे दाग को 75 साल बादा मिटाने का काम किया, बल्कि इसी दौरान तीन तलाक कानून बनाकर मुस्लिम महिलाओं के न्याय का रास्ता खोला।
इसके एक साल बाद ही भाजपा की मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अपील कर राम मंदिर के लिये भी फैसला करवाया। तीन साल पहले सरकार ने तीन देशों के हिंदू, सिख, ईसाई, बोद्ध, पारसी, जैन समुदाय के लोगों को भारत में शरण देकर नागरिकता देने के लिये नागरिकता संसोधन कानून बना दिया। अब उत्तरांखड़, गुजरात जैसे राज्यों में समान नागरिक संहिता का काम शुरू हो चुका है, माना जा रहा है कि 2024 के चुनाव तक इसको भी कानून का अमलीजामा पहना दिया जायेगा। इन बड़े वादों को पूरा करने के बाद अब लोगों को यह भी विश्वास हो गया है कि भाजपा जो वादे करती है, उनको देर सवेर पूरा करके ही दम लेती है। शायद यही एक बड़ी वजह है कि पाकिस्तान में गृहयुद्ध जैसे हालात के बीच इन दिनों पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को वापस लेने पर चर्चा चल रही है।
मैंने दो दिन पहले एक वीडियो में बताया था कि चीन की अति महात्वाकांक्षी योजना, चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा, यानी सीपीईसी चीन के शिंजयांग प्रांत से शुरू होती है, जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होते हुये पाकिस्तान के बीच से समुद्र किनारे ग्वादर बंदरगाह तक पहुंचती है। शी जिनपिंग के ड्रीम प्रोजेक्ट में करीब 46 अरब डॉलर के निवेश की योजना है। इसके तहत सैंकड़ों प्रोजेक्ट्स बनाये जा रहे हैं। अब से 9 साल पहले 2013 में इसको शुरू किया गया था। भारत ने तभी से इसका विरोध शुरू कर दिया था, लेकिन चीन आज भी भारत की बात को मान नहीं रहा है। पाकिस्तान को आज विदेश फंड की सबसे अधिक जरुरत है। इसलिये वह अपने देश में चीन को आसानी से तीन किलोमीटर चोड़ा गलियारा दे रहा है। इससे पाकिस्तान को रोजगार मिल रहा है, तो साथ ही उर्जा आपूर्ति हो रही है। हालांकि, गिलगिट बाल्टिस्तान से लेकर बलूचिस्तान तक पाकिस्तान में इस परियोजना का बड़े पैमाने पर विरोध हो रहा है। सबसे अधिक विरोध इन्हीं दो राज्यों में है।
इस गलियारे को बचाने के लिये चीन और पाकिस्तान की सेना निगरानी करती है। बलूच के लोग कई बरसों से आजादी की जंग लड़ रहे हैं। जबकि इस परियोजना का सबसे बड़ा हिस्सा बलूचिस्तान में ही है। इसलिये पाकिस्तान की सेना बलूच के लोगों पर बेइंतहां अत्याचार करती है। बलूचवासी भारत सरकार से कई बार उसको मुक्त कराने की अपील तक कर चुके हैं। यहां तक कि बलूच आंदोलन को लीड करने वाले नेता यह भी कहते हैं कि यदि मोदी सरकार ने बलूचिस्तान को पाकिस्तान से आजाद करवा दिया तो मोदी की बड़ी प्रतिमा लगाई जायेगी। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, यानी एनएसए अजीत डोभाल आईपीएस रहते भेष बलकर 7 साल तक पाकिस्तान में ऐजेंट बनकर रह चुके हैं। उनको पाकिस्तान के चप्पे चप्पे की पूरी जानकारी है। बताया जाता है कि बलूचिस्तान में जो आजादी की जंग चल रही है, उसके पीछे भारत का सबसे बड़ा हाथ है। और इस मामले को भारत की ओर से अजीत डोभाल ही डील करते हैं।
कुछ महीने पहले पाकिस्तान में सेना के सहयोग से इमरान खान सरकार को गिराया गया था, तब इमरान ने कहा था कि अमेरिका ने करोड़ों डॉलर खर्च कर उनकी सरकार को गिराने का षड्यंत्र रचा था। इमरान खान इन दिनों आजादी मार्च चला रहे हैं। दो दिन पहले उनपर हमला हुआ है और पैरों में गोली मारी गई है, वह अस्पताल में भर्ती हैं। साथ ही ऐलान किया है कि ठीक होते ही वह फिर से मार्च शुरू करेंगे। पाकिस्तान में पहली बार सेना बैकफुट पर आ गई है। पाकिस्तान की आम जनता ने अपनी ही सेना के खिलाफ मोर्चा खोल दिया गया है।
सेना को डर है कि कहीं उसका डर खत्म हो गया तो पाकिस्तान की जनता उनको दौड़ा दौड़ाकर मारेगी। इसलिये सेना बैकडोर से इमरान खान से बात कर रही है। इमरान खान को सत्ता से बेदखल करने वाले शाहबाज शरीफ और बिलावल भुट्टो जैसे नेता इन दिनों सेना के सहारे सरकार चलाने को मजबूर हैं। कहा जाता है कि शाहबाज शरीफ तभी तक पीएम हैं, जब तक सेना अपना हित नहीं साध लेती है। अगले कुछ दिनों में सेना प्रमुख कमर बाजवा का कार्यकाल पूरा हो रहा है, उससे पहले इमरान खान अपनी पसंद का सेना प्रमुख बनाना चाहते हैं, तो शाहबाज शरीफ और कमर बाजवा अपनी पसंद के व्यक्ति को सेना की कमान सौंपना चाहते हैं। इस बीच सरकार को अल्पमत में बताकर इमरान खान आम चुनाव कराने का दबाव भी बना रहे हैं। इस वक्त जो हालात पाकिस्तान में हैं, उससे साफ तौर पर अगले चुनाव में इमरान खान की जीत पक्की होती दिखाई दे रही है। यही वजह है कि सेना और शाहबाज शरीफ सरकार चुनाव कराने से बचना चाह रहे हैं।
इधर, सेना प्रमुख जहां पर्दे के पीछे से इमरान खान से बात कर रहे हैं, तो यह भी चर्चा चल रही है कि इमरान खान भी सहयोग देने के लिये पर्दे के पीछे से मोदी सरकार से मदद मांग रहे हैं, बदले में पीओके भारत को वापस देने पर सहमत हैं। हालांकि, इस चर्चा में कितना दम है, यह कह नहीं सकते, लेकिन भारत की तरफ इन दिनों सरकार और सेना की ओर से आ रहे दनादन बयानों स्पष्ट हो गया है कि भारत की मोदी सरकार अधिक समय तक पीओके लिये बिना नहीं रह पायेगी। भारतीय सेनाएं पिछले पांच बरसों से कह रही है कि उनकी पीओके लेने की तैयारी पूरी है और सरकार के आदेश का इंतजार है। भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने की सफलता के बाद अब बड़े कदम के तौर पर पीओके वापस लेने का कदम उठा सकती है। खुद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से लेकर विदेश मंत्री एस जयशंकर और पीएमओ में मंत्री जितेंद्र सिंह बयान दे चुके हैं कि भारत पीओके वापस लेने को कटिबद्ध है। इन सबके बीच गृहमंत्री अमित शाह का संसद में दिया बयान मोदी सरकार की इच्छा का सबसे बड़ा सबूत है।
हालांकि, ऐसा नहीं है कि भारत केवल पीओके वापस लेकर ही बैठ जायेगा। विदेश मामलों के जानकार कहते हैं कि भारत ऐसे समय में पाकिस्तान पर हमला करेगा, तब वहां पर गृहयुद्ध के कारण सेना पूरी तरह से बलूचिस्तान और सिंध में जूझ रही होगी। यही वजह है कि इस वक्त पाकिस्तान के हालात खराब होने के साथ ही भारतीय सेना की तैयारी पूरे शबाब पर है। कहा जाता है कि सेना को पिछले कुछ महीनों से इसके लिये हमेशा तैयार रहने को कहा गया है। अब इस वक्त यदि पाकिस्तान में तख्ता पलट या गृहयुद्ध जैसी स्थितियां उत्पन्न होती हैं, तो यह तय मानकर चलिये कि भारत की सेनाएं पीओके के लिये पाकिस्तान पर ​हमला करने से नहीं चुकेगी।
जिस तरह से चीन ताइवान को, रूस यूक्रेन को अपना हिस्सा मानता है, ठीक वैसे ही भारत भी पीओके और सीओके को अपना अभिन्न अंग कहता है। इस बात में कोई संशय नहीं है कि पाकिस्तान पर हमला कर भारत की सेना पीओके को अपने कब्जे में नहीं ले सकती, किंतु इस बात की चिंता जरुर है कि पीओके में चीन की सीपीईसी योजना चल रही है, जिसको बचाने के लिये चीन अपनी सेना उतार सकता है। देखने वाली बात यही है कि उस स्थिति में भारत सरकार क्या कदम उठायेगी? साथ ही यह भी देखना दिलचस्प है कि दुनिया के कितने देश भारत का साथ देंगे?

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