वसुंधरा राजे समेत इन 40 विधायको को नहीं मिलेगा टिकट

Ram Gopal Jat
भारतीय जनता पार्टी को गुजरात में मिली ऐतिहासिक जीत का फॉर्मूला राजस्थान में भी लागू किया जायेगा। इस चमत्कारिक फॉर्मूले ने राजस्थान भाजपा के उन नेताओं की नींद उड़ाकर रख दी हैं, जो या तो 65—70 साल से उपर पहुंच चुके हैं, या लगातार दो चुनाव हार चुके हैं, अथवा जनता से उनको मेलजोल नहीं है। यदि गुजरात मॉडल को राजस्थान में लागू कर दिया गया तो बीजेपी के मौजूदा 71 विधायकों में से 40 विधायकों के टिकट कटना तय है। इसके साथ ही राज्य की 200 विधानसभा सीटों में से 100 सीटों पर पार्टी के नए चेहरों को मौका मिलेगा। जिस तरह से गुजरात में पूर्व मुख्यमंत्री और उपमुख्यंत्री का टिकट काट दिया गया था। ऐसे ही राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे समेत उनके मंत्रीमंडल में खास चेहरे रहे विधायकों और प्रत्याशियों के टिकट कटने पक्के हैं। अब से ठीक एक साल बाद दिसंबर 2023 में राजस्थान विधानसभा के चुनाव होंगे। राजस्थान के साथ मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी चुनाव होने हैं। इन चुनावों के परिणाम 2024 के लोकसभा चुनाव पर बड़ा असर डालेंगे। इस स्थिति में सबके मन में एक ही सवाल उठ रहा है, कि क्या राजस्थान में बीजेपी गुजरात की जीत को भुना पाएगी? क्या पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का टिकट काट दिया जायेगा? सवाल यह उठता है कि क्या राज्य में भारी भरकम रहे कुछ पूर्व मंत्रियों के टिकट काटकर पार्टी जीत सकती है? इसका समझना इसलिये जरुरी हो जाता है, क्योंकि बीते एक साल में वसुंधरा राजे आलाकमान के सामने और जनता में अपनी सक्रियता दिखा चुकी हैं। हालांकि, वसुंधरा राजे अभी तक 75 साल की नहीं हुई हैं और ना ही 2023 तक हो पायेंगी, लेकिन गुजरात में जिस तरह से 65 के उपर वालों के भी टिकट काट दिये गये हैं, उसके बाद वसुंधरा समेत उनके मंत्रीमंडल में रहे 90 फीसदी के टिकट कटने तय बताये जा रहे हैं।
भाजपा के नेता-कार्यकर्ता गुजरात मॉडल को राजस्थान में उतारने की बात करते हैं। पार्टी नेताओं का कहना है कि गुजरात मॉडल को सत्ता में लौटने की सीढ़ी मानती है। आखिर क्या है भाजपा का गुजरात मॉडल और इसको राजस्थान में लागू करने में भाजपा को क्या चुनौतियां आएगी? और सबसे अहम सवाल यह है कि क्या भाजपा इस मॉडल से राजस्थान में भी सफल हो पायेगी? इसको लेकर हमने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं और राजनीति के जानकारों से बात की। सामने आया कि राजस्थान में गुजरात मॉडल लागू करने के लिए भाजपा को न सिर्फ कड़ी मेहनत करनी होगी, बल्कि वसुंधरा राजे और पार्टी अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनियां के बीच मौजूदा रस्साकशी से पार पाकर सबको एक साथ लेकर ऐसी प्रभावशाली कार्य योजना बनानी होगी, जो उसे सत्ता में ला सके। राजस्थान की हालत समझने से पहले जानते हैं भाजपा का गुजरात मॉडल क्या है? गुजरात में भाजपा 27 साल से सत्ता में है और इस बार प्रचंड़ बहुमत से सातवीं बार उसने सत्ता पर कब्जा बरकरार रखा है। भाजपा गुजरात में अपने विकास के मॉडल और संगठन की मजबूती के दम पर लगातार जीतती आ रही है। पार्टी अध्यक्ष सतीश पूनियां के मुताबिक गुजरात में संगठन की मजबूती ही भाजपा का पहला फोकस रहा है, इसलिये इसको राजस्थान में भी लागू किया गया है।
साल 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद से गुजरात भाजपा में संगठन स्तर पर पन्ना प्रमुख बनाने की शुरुआत की गई थी। जिसके तहत हर बूथ पर वोटर लिस्ट के प्रत्येक पन्ने का एक प्रमुख होता है, जो उस पन्ने में शामिल वोटर्स की सार-संभाल करने और उनसे लगातार जुड़े रहकर चुनाव में पार्टी के पक्ष में वोट डलवाने का काम करते हैं। गुजरात के मॉडल में पन्ना प्रमुख ही वो कड़ी है, जो पार्टी की लगातार सफलता का मॉडल बना हुआ है। सतीश पूनियां का कहना है कि लोगों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति जबरदस्त विश्वसनीयता है। बीते 27 साल में गुजरात के विकास में लोगों ने विश्वास जताया है। यह वही विश्वास है जो मोदी को विश्व का सबसे लोकप्रिय नेता बनाता है। मोदी ने गुजरात मॉडल बनाया है, जिसकी वजह से भाजपा लगातार सत्ता में बनी हुई है। मोदी के इसी गुजरात मॉडल के कारण इस बार के चुनाव में भाजपा ने अब तक की सबसे ज्यादा 182 में से 156 सीटें जीतीं। पार्टी के संगठन में कार्यकर्ताओं को बूथ कमेटी से लेकर पन्ना प्रमुख तक की जिम्मेदारी है। इसमें पहली शर्त यह है कि प्रत्येक कार्यकर्ता की संगठन में वास्तविक सक्रियता रहे। गुजरात भाजपा नेताओं में पद की होड़ को लेकर कभी खींचतान सामने नहीं आई। इसलिए गुजरात भाजपा में राजस्थान की तरह गुटबाजी हावी नहीं हो पाई। पार्टी नेताओं का मानना है कि लगातार भाजपा की सरकार होने के कारण गुजरात का तेज विकास हुआ है, बड़ी परियोजनाएं धरातल पर आई हैं, इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, रेल-रोड-एयरपोर्ट से लेकर मल्टीनेशनल कंपनियों की बड़ी इकाइयां गुजरात के शहरों में आई हैं, जिससे लोगों में भाजपा के विकास मॉडल पर भरोसा हुआ।
पीएम नरेंद्र मोदी की लीडरशिप और लोगों के बीच उनकी योजनाओं को धरातल पर जोने की पूर्ण विश्वसनीयता इस रूप में पैठ जमा पाई कि मोदी ने जो कहा, वो किया है। इसके अलावा गुजरात में सुरक्षा का वातावरण, जिसके कारण बीते 20 साल में कोई दंगा नहीं और इसी के कारण महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत 70 तक रहता है। साल 2002 के गोधरा में 59 कार सेवकों को जलाकार मारे जाने के बाद हुये साम्प्रदायिक दंगों के अलावा कभी दंगे नहीं हुए। इस बात को भाजपा लगातार पांच चुनावों में भुनाती आई है। इसके साथ ही नरेंद्र मोदी और अमित शाह की विरोधियों को भी गले लगाने की कला एक अहम चुनावी रणनीति रही है। इसके चलते चुनाव से पहले हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकुर जैसे जितने भी विरोधी थे, उनको अपना बना लिया। इसकी वजह से पटेल और ओबीसी वोटों का बंटवारा नहीं हुआ। सबसे बड़ी बात यह है कि इस बार भाजपा ने चुनाव में 182 में से 103 टिकट काटकर नए चेहरों को टिकट दिया गया। पिछले चुनाव में जीते हुये 99 विधायकों में से पांच मंत्रियों और कई दिग्गजों समेत 38 मौजूदा विधायकों के टिकट काट दिए गए। पुराने चेहरों की जगह ज्यादातर नए चेहरों को चुनाव में उतार दिया, लेकिन इसके बावजूद कंट्रोल इतना गजब रहा कि कहीं कोई बगावत नहीं होने दी।
गुजरात में प्रत्येक वोटर से संपर्क रखने के लिए पन्ना प्रमुख सक्रिय रहे। इनकी नियुक्ति वोटर लिस्ट के प्रत्येक पन्ने के हिसाब से होती है। पन्ना प्रमुख का काम भाजपा के कार्यों की प्रत्येक वोटर तक जानकारी पहुंचाने से लेकर वोटिंग वाले दिन उनको घर से वोटिंग बूथ पहुंचाना और वोट डलवाने का होता है। अगर कोई वोटर प्रदेश से बाहर चला गया है तो यह ध्यान रखना कि कहीं कोई दूसरा व्यक्ति फर्जी वोट तो नहीं दे गया। राजस्थान में संगठन को मजबूत करने और चुनाव में वोटर को घर से निकालकर बूथ तक पहुंचाने के लिए गुजरात की तर्ज पर सक्रिय पन्ना प्रमुख बनाने का बड़ा काम चल रहा है। डॉ सतीश पूनियां का कहना है कि राजस्थान में 52 हजार बूथ हैं, जिनमें से लगभग 47 हजार बूथों पर बूथ कमेटियां बन चुकी हैं। पन्ना प्रमुख बनाने का काम अभी चल रहा है। पार्टी के लिए पन्ना प्रमुख की बड़ी भूमिका रहती है। इसके अलावा एक अहम वजह यह रही है कि बीजेपी ने गुजरात में अपने 15 साल पुराने पन्ना प्रमुख मॉडल में बदलाव करने की रणनीति अपनाई। भाजपा ने 2019 आम चुनाव में अपनाए गए पन्ना कमेटी मॉडल को अपनाया है। इस चुनाव से पहले गुजरात में पन्ना कमेटी के मॉडल के आधार पर भाजपा ने पंचायत, नगर निगम और उपचुनाव तगड़ी जीत हासिल की है। दरअसल, पहली बार पन्ना कमेटी मॉडल का इस्तेमाल पार्टी अध्यक्ष सीआर पाटिल ने अपने लोकसभा क्षेत्र में किया था, जिसके बलबूते पाटिल ने आम चुनाव में पूरे देशभर में सबसे अधिक 6.89 लाख वोटों से जीत हासिल की थी।
पन्ना प्रमुख मॉडल के अंतर्गत मतदाता सूची के हर पन्ने का एक चीफ बनाया जाता था, जो पन्ने पर मौजूद मतदाताओं के वोट की जिम्मेदारी लेते हैं। बीजेपी के 15 साल पहले बने इस मॉडल को कई पार्टियों ने अपना लिया, जिसके चलते अब भाजपा इसे छोड़कर पन्ना कमेटी मॉडल अपना लिया है। इस नए मॉडल में भाजपा मतदाता सूची के हर पन्ने पर पांच सदस्यों की एक कमेटी बनाकर काम करती है। जिसके हर सदस्य पर परिवार के तीन वोट बीजेपी के पक्ष में करवाने का जिम्मा होता है। हर पन्ना सदस्य के जिम्मे केवल 6 वोटर होते हैं। बीजेपी ने गुजरात विधानसभा चुनाव में 82 लाख पन्ना सदस्य बनाए, जिसके कारण बीजेपी के पक्ष में बड़े पैमाने मतदान हुआ है। इसलिये यह माना जा रहा है कि भाजपा अब राजस्थान समेत सभी राज्यों में पन्ना कमेटी मॉडल पर काम करेगी। जिस तरह से कांग्रेस में नेतृत्व की होड़ खुले आम है, उसी तरह से भाजपा में भी मुख्यमंत्री का चेहरा बनने की आंतरिक लड़ाई छिड़ी हुई है। भाजपा के नेता इसको स्वीकार नहीं करते, लेकिन दबी जुबान में मानते हैं कि इस स्थिति को तत्काल कंट्रोल कर जनता में विश्वास पैदा करना। भाजपा नेताओं का मानना है कि गुजरात की तरह राजस्थान में भी चुनाव से पहले लोगों में यह विश्वास पैदा करना होगा कि नेताओं की गुटबाजी समाप्त हो गई और सब मिलकर काम कर रहे हैं।
राजस्थान में संगठित अपराध, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, किसानों के ऋण माफी जैसे बड़े मुद्दे हैं। अशोक गहलोत की सत्ता के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी को भुनाने का प्रयास भाजपा करने की रणनीति पर काम कर रही है। भाजपा ने सभी विधानसभा क्षेत्रों में आक्रोश रैलियां निकालकर जनता में सरकार के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश शुरू कर दी है। भाजपा के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है प्रमुख नेताओं के बीच का मनगुटाव, जिसको दूर करके एकजुटता दिखाने के लिये रणनीति बनाई जा रही है। कहा जा रहा है कि चुनाव तक अमित शाह नाराज नेताओं को मनाने और चुनाव से दूर संगठन के लिये काम करने के लिये राजी कर लेंगे। इसके अलावा कांग्रेस विरोधी प्रभावशाली नेताओं को साथ में लेने का काम शुरू किया जा चुका है। पिछले लोकसभा चुनाव में आरएलपी से जो गठबंधन हुआ था, वो जारी रहता तो सरदारशहर का उपचुनाव भाजपा 26,000 से हारने के बजाय 16000 वोटों से जीतती, क्योंकि जो आरएलपी के खाते में 46753 वोट गए, उनमें से ज्यादातर कांग्रेस विरोधी वोट थे, जो भाजपा के खाते में आ सकते थे। सत्ताधारी कांग्रेस के विरोधी वोटों का बंटवारा न हो, इसकी कार्ययोजना बनाने की चुनौती पार्टी के सामने बनी हुई है। पार्टी ने अपने पुराने नेताओं को वापस जोड़ने का काम भी शुरू कर दिया है।
गुजरात में जिन नेताओं की लोगों के बीच लोकप्रियता कम हो गई थी, उनके भाजपा ने टिकट काटकर नए चेहरे मैदान में उतारे हैं। गुजरात मॉडल लागू करने की स्थिति में भाजपा को राजस्थान में ऐसे चेहरे उतारने की चुनौती होगी, जो जिताऊ हो। चुनौती यह है कि पिछले चुनाव में लोगों की ओर से नकार दिए गए नेता और गुटबाजी में लिप्त प्रभावशाली लोगों को किनारे कर नए चेहरों को मैदान में उतारा जाए। इसके लिये पार्टी ने 71 मौजूदा विधायकों में से 38 को घर बिठाने की सूची तैयार कर ली है। भाजपा के अधिकारिक सूत्रों का दावा है कि इस लिस्ट में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के अलावा कालीचरण सराफ, नरपत सिंह राजवी, वासुदेव देवनानी, कैलाशचंद मेघवाल, गुलाबचंद कटारिया और राजेंद्र राठौड़ जैसे प्रमुख नाम हैं। इनके अलावा हारे हुये लोगों में बड़े पैमाने पर टिकट काटे जायेंगे। साथ ही निष्क्रिय लोगों को भी घर बिठाने की योजना बन चुकी है। यह बात सही है कि पार्टी में गुटबाजी और नए उम्मीदवारों को मुख्यधारा में लाने पर उपजने वाले संभावित असंतोष को संभालना बड़ी चुनौती होगी, जिसके लिये राष्ट्रीय स्तर पर तैयारी की जा रही है। संगठन में ऐसे कद्दावर नेताओं को जिम्मेदारी दी जायेगी, जो जीत हार से दूर अपने आपको समर्पित कार्यकर्ता के रुप में काम करते हैं। इनमं गुलाबचंद कटारिया जैसे नेताओं से पार्टी को बहुत उम्मीदें हैं।
जिस राज्य में पार्टी सत्ता में होती है, वहां मौजूद मुख्यमंत्री ही अगले चुनाव में मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जाता है और उसी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाता है। जहां पार्टी सत्ता में नहीं होती वहां संगठन मुखिया के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा जाता है। राजस्थान में भाजपा सत्ता में नहीं है, इसलिए मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करना रस्साकशी को बढ़ावा दे सकता है। इसलिए पार्टी राजस्थान में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं करके पार्टी अध्यक्ष के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेगी। चुनाव परिणाम में पार्लियामेंट्री बोर्ड मुख्यमंत्री का नाम तय करेगा। पार्टी यह मानती है कि वसुंधरा राजे को राजस्थान की जनता 2018 में नकार चुकी है, इसलिये उनको फिर से मुख्यमंत्री नहीं बनाया जायेगा, ताकि जीत की संभावना मजबूत हो सके। गुजरात में भले ही भुपेंद्र पटेल चेहरा रहे होंगे, लेकिन उनको मोदी के सामने बेहद छोटा करके दिखाया गया, जिससे ऐसे लगा मानो मोदी ही चुनाव लड़ रहे हों। ऐसा नहीं है कि गुजरात मॉडल को राजस्थान में लागू करने पर भाजपा को कोई दिक्कत नहीं आयेगी, असल बात यह है कि पार्टी को इसे लागू करने में कई चुनौतियां आएंगी? सबे बड़ी चुनौती तो खुद वसुंधरा राजे हैं, जो अब भी पार्टी पर अपनी पकड़ जाहिर कर खुद को आलाकमान के आदेश से अधिक ताकतवर दिखाने का प्रयास करती रहती हैं। जबकि तीन साल से वह सतीश पूनियां को पार्टी अध्यक्ष के तौर पर स्वीकार ही नहीं कर पा रही हैं। इसलिये वसुंधरा राजे को ही दरकिनार कर आलाकमान अन्य नेताओं को संदेश दे रहा है। पार्टी के नेताओं का मानना है कि जब से गुजरात में मोदी की सरकार आई, तब से प्रदेश दंगा मुक्त है। मोटे तौर पर कहा जाये तो गुजरात इस वक्त विकास और सुरक्षा का सबसे बड़ा मॉडल बन चुका है।
इसके साथ ही गुजरात में नेतृत्व की कोई होड़ नहीं है। पार्टी में केवल नरेंद्र मोदी का एक गुट है और वह पूरी तरह से एकजुट है। गुजरात में 40 प्रतिशत से भी अधिक विधायकों के टिकट काटने के बावजूद कोई बहुत बड़ी बगावत नहीं हुई। यह गुजरात का मॉडल है, जहां कोई गुटबाजी नहीं होती है। सबसे बड़ी बात यह है कि जो आंदोलन हुए, उनकी अगुवाई करने वाले नेताओं को भाजपा ने बड़ा मन दिखाकर साथ में लिया और उनको चुनाव में जिताया। इसी तरह से राजस्थान में भी पार्टी विरोधी लोगों को भी साथ लेकर आगे बढ़ने की रणनीति बना रही है। सबसे बड़ी बात यह है कि पार्टी को 65—70 साल से उपर के सभी नेताओं का टिकट काटना होगा, जिस​से जमकर बैठे नेताओं को संगठन के बहाने घर बिठाया जा सके। चुनाव जीतने के लिये उनकी जगह नये और उत्साही चेहरों को टिकट देकर जनता का विश्वास जीता जायेगा। अब देखने वाली बात यह है कि क्या वाकई में भाजपा वसुंधरा राजे जैसे जमे हुये नेताओं के टिकट काटकर राजस्थान में भी गुजरात मॉडल को लागू कर पायेगी? प्रश्न यह भी उठता है कि क्या इन नेताओं को घर बिठाकर मोदी के चेहरे पर गुजरात की तरह राजस्थान में भी चुनाव जीता जा सकता है। विधानसभा चुनाव में अब एक साल का समय शेष है और पार्टी जिस तरह से आक्रामक होने लगी है, उससे यही लगता है कि आने वाले दिनों में पीएम मोदी और अमित शाह का पूरा फोकस राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों पर रहने वाला है।

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