जयशंकर ने बताया 16 लाख लोग भारत क्यों छोड़ गये

Ram Gopal Jat
भारत इस वक्त दुनिया का सबसे बड़ा जनसंख्या वाला देश बन गया है। पिछले दिनों ही बताया गया था कि भारत ने आबादी के मामले में नवंबर 2022 में ही चीन को पीछे छोड़ दिया है। भारत इस समय 142 करोड़ नागरिकों के साथ दुनिया का सबसे बड़ा देश है, जबकि 141 करोड़ लोगों के साथ चीन दूसरे नंबर पर है। भारत के पास आज दुनिया की सबसे अधिक युवा आबादी है, जो देश के विकास में भागीदार बन रही है। दूसरी ओर चीन में बूढ़े लोगों की बढ़ती संख्या ने चिंता बढा दी है। चीन ने 2021 में ही वन चाइल्ड पॉलिसी को ट्रॉप किया है जो बीते चार दशक से लागू थी। भारत की युवा जनसंख्या देश के लिये खुशी का विषय है, तो दूसरी ओर भारत के लोगों का देश छोड़कर दूसरे देशों की नागरिकता लेना भी एक चिंता का विषय है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि युवा, जो अपना कारोबार शुरू ही करते हैं, या फिर मोटे वेतन के लिये अमेरिका, ब्रिटेन, सउदी अरब, सिंगापुर और ओस्ट्रेलिया जैसे देशों की नागरिकता ले रहे हैं। बीते 12 सालों में भारत के करीब 16 लाख से अधिक लोग नागरिकता छोड़ चुके हैं।
भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने संसद में भारत छोड़कर दूसरे देशों की नागरिकता लेने वालों की पूरी जानकारी दी है। उन्होंने UPA और NDA दोनों सरकारों के आंकड़े जारी किए हैं। संसद में प्रश्नकाल के दौरान पूछे गए एक सवाल के जवाब में विदेश मंत्री जयशंकर ने बताया साल 2022 में सबसे ज्यादा नागरिकों ने देश छोड़ा है। इसके अलावा 2020 ऐसे वर्ष था, जब भारत छोड़ने वालों की तादाद अन्य वर्षों के मुकाबले में सबसे कम थी। शायद कोरोना के कारण नागरिकता की प्रक्रिया नहीं होने के कारण संख्या कम रही होगी। साल 2022 में सबसे ज्यादा भारतीयों ने दूसरे देश की नागरिकता हासिल की है। आंकड़ों के मुताबिक 2022 में 2 लाख 25 हजार 620 नागरिकों ने भारत छोड़कर दूसरे देशों में बसने का निर्णय लिया है। इसके अलावा वर्ष 2021 में 1 लाख 63 हजार 370 लोगों ने भारत छोड़ा, साल 2020 में 85 हजार 256 लोगों ने, 2019 में 1 लाख 44 हजार 17 लोगों ने 2018 में 1 लाख 34 हजार लोगों ने भारत छोड़ा। केंद्रीय मंत्री ने बताया कि पिछले 12 वर्षों में 16 लाख से ज्यादा हिंदुस्तानी भारत छोड़कर दूसरे देश की नागरिकता हासिल कर चुके हैं।
उससे पहले मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद साल 2015 में 1,31,489, 2016 में 1,41,603, साल 2017- 1,33,049, वर्ष 2018- 1,34,561 और साल 2019- 1,44,017 देश छोड़कर गये हैं। इस दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर ने UPA की सरकार के दौरान के आंकड़े भी जारी किए। उन्होंने बताया कि साल 2011 से अब तक के सरकारी डेटा के मुताबिक 16 लाख 63 हजार 440 लोगों ने हिंदुस्तान की नागरिकता छोड़ी है। ऐसा नहीं है कि देश छोड़कर दूसरे देशों में बसने वाले नागरिक केवल मोदी सरकार में ही सामने आये हैं। कुछ लोग ऐसा बता रहे हैं, जैसे मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद ही लोग दूसरे देशों में जा रहे हैं। मोदी सरकार से पहले यूपीए की सरकार में साल 2011 में 1 लाख 22 हजार 819, वर्ष 2012 में 1 लाख 20 हजार 923, साल 2013 में 1 लाख 31 हजार 405, साल 2014 में 1 लाख 29 हजार 328 लोगों ने भारत छोड़ा है।
अब इस बात को समझना होगा कि आखिर भारत के आम नागरिक देश छोड़कर दूसरे देशों की नागरिकता क्यों ले रहे हैं? असल बात यह है कि भारत में ऐसे लोग भी देश छोड़ रहे हैं, जो आंत्रपन्योर हैं और अपने कारोबार के साथ अधिक से अधिक टैक्स छूट चाहते हैं। भारत अभी तक भी टैक्स हैवन देशों की श्रेणी में नहीं आता है। इसलिये नये कारोबारी टैक्स बचाने के लिये ऐसे देशों की नागरिता ले लेते हैं, जहां टैक्स कम से कम होता है और कारोबार करना आसान होता है। इसके साथ ही कुछ लोगों की मानसिकता ऐसी होती है कि भारत में रहकर वो अपना भविष्य सुरक्षित नहीं रख पायेंगे। भारत में साम्प्रदायिकता की आग भी एक कारण है। इसके अलावा मोदी सरकार से पहले देश में आतंकी हमलों की तादात इतनी अधिक थी कि लोगों को लगता था जैसे यह आतंकवाद कभी खत्म ही नहीं होगा। कुछ लोग अपने बच्चों के भविष्य को लेकर आशंकित होते हैं, जो शांतिप्रिय देशों में चले जाते हैं।
भारत के कानूनों से परेशान लोग भी देश छोड़कर जाते हैं। भारत का आम आदमी जब दुबई में जाता है तो वहां के कानून के अनुसार सब काम ढंग से करता है, लेकिन जैसे ही भारत लौटता है, तो वह अपने पुराने रंग में आ जाता है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि भारत का कानून इतना लचर है कि कोई भी अपराधी आराम से बच जाता है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि सउदी अरब, सिंगापुर और ओस्ट्रेलिया जैसे देशों में कानून बेहद सख्त हैं, जिसके कारण कोई भी व्यक्ति अपराध करने के बाद कानून की गिरफ्त से बच नहीं सकता है, जबकि भारत में अपराधी ससंद और विधानसभाओं में सदस्य तक बने हुये हैं, इसलिये भारत के कानून बदलने की सख्त जरुरत है।
एक कारण यह है कि भारत में शिक्षा की व्यवस्था भी कई विकसित देशों की तरह प्रेक्टिकल नहीं है। उच्च शिक्षण संस्थानों से किताबी ज्ञान लेकर डिग्री के सहारे कोई व्यक्ति सरकारी नौकरी तो कर सकता है, लेकिन किसी को यदि जीवन में तरक्की करनी है तो उसमें डिग्री के साथ स्किल डवलपमेंट का होना जरूरी है। इसलिये उच्च शिक्षा के लिये युवा विदेशों में पढ़ने जाते हैं और कई बार वहीं पर जॉब करने लगते हैं। धीरे धीरे वो उसी देश के नागरिक बन जाते हैं। भारत में शिक्षा के लिये आबादी के मुकाबले आज भी अध्ययन संस्थान कम हैं, जिसके कारण सस्ती शिक्षा के लिये विदेशों की तरफ रुख करते हैं।
देश में इस वक्त 5.5 करोड़ मामले न्याय के इंतजार में कोर्ट—कचहरियों में लंबित पड़े हैं। लोग बरसों तक न्याय के लिये न्यायालयों के चक्कर काटते हुये बूढ़े हो जाते हैं। कुछ लोगों को भारत की न्यायव्यवस्था पर से विश्वास उठ चुका है। साथ ही भारत की राजनीति और प्रशासनिक व्यवस्था ने कईयों को निराश किया है। इसके कारण ऐसे देशों में चले जाते हैं, जहां पर स्वच्छ राजनीति होती है और प्रशासनिक सिस्टम अच्छा होता है। कारोबारी घराने इस मामले में सबसे आगे हैं, जिनको भारत में दोहरी नागरिकता नहीं मिलती है तो भारत की नागरिकता को त्याग देते हैं। ऐसे लोगों का कारोबार विदेश में होने के कारण वो भारत की नागरिकता तो छोड़ सकते हैं, लेकिन ऐसे देश की नहीं छोड़ पाते हैं, जहां अपना कारोबार कर रखा होता है।
इसके अलावा भारत की बढ़ती आबादी, धार्मिक उन्माद, उंच नीच वाली जातिगत व्यवस्था, लचर न्यायप्रणाली, सुविधाओं का अभाव, राजनीति से निराशा, उच्च शिक्षण संस्थानों की कमी, शिक्षा और चिकित्सा का महंगा होना, विकास की कमी होना, विदेशों में व्यापार और नौकरी की मजबूरी के कारण भारत छोड़कर चले जाते हैं। ऐसा भी नहीं है कि केवल भारत के लोग ही देश छोड़ रहे हैं, बल्कि अमेरिका, ब्रिटेन, चीन और सउदी अरब जैसे देशों के लोग भी दूसरे देशों की नागरिकता लेते रहते हैं।

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