अजीत डोभाल के कारण पाकिस्तान का टूटना पक्का है

Ram Gopal Jat
भारत से टूटकर 75 साल पहले अलग हुआ पाकिस्तान आज भी अपने लोगों के साथ न्याय नहीं कर पाया है। आज से 51 साल पहले 1971 में एक बार टूट चुके पाकिस्तान के घाव भर नहीं रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि पाकिस्तान 51 साल बाद फिर से टूटने जा रहा है। इस बार उसको पूर्वी पाकिस्तान से कोई खतरा नहीं है, जहां से भारत की सीमाएं लगती हैं, लेकिन पश्चिम में अफगानिस्तान से लगती सीमा पर दूसरा देश बनने जा रहा है, तो समुद्री इलाके से जुड़ा हुआ बलूचिस्तान भी आजादी की जंग लड़ रहा है। इसकी शुरुआत पिछले दिनों तब हुई थी, जब तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान, यानी टीटीपी ने अपनी सरकार की घोषणा कर दी थी। टीटीपी ने ना केवल अपनी सरकार का ऐलान किया था, बल्कि सरकार के मंत्रियों के नामों की घोषणा भी की थी। इसके साथ ही टीटीपी ने पाकिस्तान को साफ चेतावनी देते हुये कहा था कि वह जंग के लिये तैयार रहे। अफगानिस्तान से लगती सीमा पर टीटीपी की सरकार ने अपना काम शुरू कर दिया है। टीटीपी ने दो दिन पहले पेशावर की एक मस्जिद में धकामा कर 100 से अधिक लोगों की जान ले ली है। टीटीपी ने इसके साथ ही यह भी कहा है कि वह और अधिक धमाके करने जा रहे हैं। टीटीपी का कहना है कि पाकिस्तान में सरिया कानून लागू हो और उसी के अनुसार सरकार बनाई जाये, संविधान को खत्म किया जाये और जो कुछ छोटा मोटा लोकतंत्र हवाला पाकिस्तानी शासक देते हैं, उसको भी पाकिस्तान से बाहर ​फैंका जाये।
पाकिस्तान की सरकार आतंकियों के सामने कितनी पंगु हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वहां के रक्षामंत्री ने उनकी सरकार सुरक्षा के नाम पर फैल हो गई है। पेशावर मस्जिद में हुए ब्लास्ट पर पाकिस्तान के डिफेंस मिनिस्टर ख्वाजा आसिफ ने प्रतिक्रिया देते हुये है कि इस तरह मुस्लिम श्रद्धालुओं पर हमला तो भारत में भी नहीं होता है। 30 जनवरी को पेशावर की पुलिस लाइन्स की मस्जिद में धमाका हुआ था। इसमें 100 लोगों की मौत हो गई थी और 221 लोग घायल हैं। हमले के बाद पाकिस्तान नेशनल असेंबली में डिफेंस मिनिस्टर ख्वाजा आसिफ ने कहा कि भारत या इजराइल में नमाज के दौरान नमाजियों पर हमला नहीं हुआ, लेकिन इस्लामिक देश कहे जाने वाले पाकिस्तान में नमाजियों के बीच बैठे एक हमलावर ने खुद को उड़ा दिया। 'डॉन' की रिपोर्ट के मुताबिक, मंत्री आसिफ ने इस बात को स्वीकार किया है कि पाकिस्तान ने आतंकवाद का बीज बोया है। इसके खिलाफ अब भारत जैसे देशों के साथ मिलकर लड़ना होगा। उन्होंने अपनी ही सरकार को यहां तक चेतावनी दे दी कि अब वो वक्त आ गया है जब पाकिस्तान सुधर जाए, नहीं तो हालात बदत्तर होने वाले हैं।
दूसरी तरफ हमले को लेकर पाकिस्तान की सरकार कुछ नहीं खौज पाई है, जो यह साबित कर सके कि हमला किसने किया है। इसी दौरान पाकिस्तानी मीडिया जियो न्यूज ने दावा किया है​ कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, यानी TTP ने इस हमले की जिम्मेदारी ली। दरअसल, पेशावर खैबर—पख्तूनख्वा राज्य की राजधानी है, जहां पर लोग पहले से ही पाकिस्तानी सरकार के दोगले बर्ताव के कारण दुखी हैं। यहां के लोग अपने प्राकृति संसाधनों को बचाने के लिये चीन को दिये गये खनन को रोकने के लिये अपनी ही सरकार के खिलाफ आंदोलन करते रहते हैं। इस इलाके में TTP का खासा दबदबा है और पिछले दिनों सरकार गठन करने के बाद इसी संगठन ने हमले की धमकी भी दी थी। ऐसा नहीं है कि भारत की सरकार या भारत के लोग पाकिस्तान में आतंकी हमले होने से खुशी मनाते हैं। हमले के बाद 31 जनवरी को भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने धमाके के पीड़ितों के परिवारों के प्रति सरकार की तरफ से संवेदना व्यक्त की। भारत की तरफ से हर सप्ताह पक्ष रखने वाले बागची ने मंगलवार को ट्विटर पर एक पोस्ट में कहा कि 'भारत पेशावर में हुए फिदायीन हमले की कड़ी निंदा करता है।'
हमले के बाद पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच दिक्कतें पैदा हो गई हैं। यहां पर TTP को लेकर अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच तनाव बेहद खतरनाक रूप लेता जा रहा है। दोनों देशों के बीच डूरंड लाइन पर तमाम एंट्री और एग्जिट पॉइंट पाकिस्तानी शासन के द्वारा बंद किए जा चुके हैं। इस सीमा पर हालात इतने खराब हो चुके हैं कि दो महीनों में दोनों देशों के बीच फायरिंग में करीब 16 पाकिस्तानी सैनिक मारे जा चुके हैं। तहरीक ए तालिबान, बचूलचिस्तान लिबरेशन आर्मी और इस्लामिक स्टेट खोरासान ग्रुप ने हाथ मिलाया है। बीते साल इन्होंने मिलकर पाकिस्तान में कुल 500 हमले किये हैं, जिनमें से 310 हमले अकेले खैबर पख्तूनवा में किये गये हैं। इसके अलावा 110 हमले बचूचिस्तान में किये गये हैं। सिंध प्रांत में भी 52 हमले हुये हैं। पाकिस्तान में औसतन हर महीने 42 हमले हो रहे हैं। जबकि इन हमलों में 1700 लोगों चपेट में आये थे, जिनमें से 975 लोगों की मौत हुई। हमलों में मरने वाले 62 फीसदी आम लोग हैं, जिनका सेना या पुलिस से कोई ताल्लुख नहीं है।
इससे पहले साल 2021 में पाकिस्तानी की तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान और सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा ने टीटीपी के साथ संघर्ष विराम समझौता किया था। द ट्रब्यून एक्सप्रेस ने 21 नवंबर 2021 को खबर प्रकाशित की थी, जिसमें बताया गया था कि पाकिस्तान सरकार ने सीजफायर के समझौते के बाद गुपचुप तरीके से टीटीपी के 100 आतंकवादियों को रिहा कर दिया था। ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा पाकिस्तान का एक प्रान्त या सूबा है, जो 2018 में संविधान संशोधन 'उत्तर पश्चिम सीमान्त प्रान्त' और संघ शासित आदिवासी क्षेत्र के विलय के पश्चात अस्तित्व में आया है। इसे सूबा-ए-सरहद के नाम से भी जाना जाता है, जो अफ़ग़ानिस्तान की सीमा पर स्थित है। दो साल पहले जब अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपनी सेना वापस बुला ली थी, तब से वहां पर तालिबान का शासन है। जहां पर बड़े पैमाने पर भारत के प्रोजेक्ट चल रहे हैं। अफगातनिस्तान की संसद से लेकर बड़े बांध भी भारत ही बना रहा है। तालिबान के शासन के बाद पाकिस्तान ने भारत के प्रोजेक्ट डूबने की बात कहते हुये खुशियां मनाई थीं, लेकिन भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की चतुराई के आगे पाकिस्तान की खुशियां काफूर हो गईं। अजीत डोभाल ने तालिबान से बातचीत कर अपने प्रोजेक्ट फिर से शुरू कर दिये। आज तालिबानी शासन होने के बाद भी भारत की सभी परियोजनाएं सुचारू ढंग से चल रही हैं।
तालिबानी शासन के बावजूद भारत की योजनाओं के सुचारू होने के बाद पाकिस्तानी शासन ने भारत के उपर आरोप लगाये हैं। हाल ही में पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिललावल भुट्टो ने यहां तक कह दिया था कि टीटीपी को भारत ही प्रोत्साहित करता है। गृहमंत्री राणा सनाउल्लाह ने आरोप लगाया था कि टीटीपी की सरकार बनाने और अलग देश बनाने की मंशा के पीछे भी भारत का ही हाथ है, भारत एक बार फिर से पाकिस्तान के टुकड़े करने के लिये काम कर रहा है। पाकिस्तान सिक्यूरिटी एक्सपर्ट मुबाशिर सईद के अनुसार उसके बाद टीटीपी ने इस इलाके में वसूली की और फिर से अपना संगठन मजबूत कर लिया। इस मामले में पाकिस्तान सरकार व सेना, दोनों मात खा गये। खैबर पख्तूनवा के वजीरिस्तान में टीटीपी का इतना खौफ है कि यहां पर सेना और पुलिस के लोग गश्त करने से ड़रते हैं, जिसके कारण कोई यहां पर आना ही नहीं चाहता है। यहां से कई फौजियों को बंदी बनाये जाने के वीडियो वायरल हो चुके हैं।
पाकिस्तान सरकार हमलों के लिए TTP को जिम्मेदार बताती है। पाकिस्तान के गृहमंत्री राणा सनाउल्लाह ने हमले के बाद तालिबान को धमकी देते हुये बदला लेने का दावा किया है। मंत्री राणा सनाउल्लाह की धमकी का जवाब देते हुये तालिबान के सीनियर लीडर और उप-प्रधानमंत्री अहमद यासिर ने सोशल मीडिया पर एक फोटो शेयर करके दिया था। यह फोटो 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच जंग की है, जब भारत के सामने पाकिस्तानी सेना की करारी शिकस्त हुई थी। उस युद्ध में पाकिस्तान के 90 हजार से अधिक सैनिकों ने सरेंडर किया था। सेना के सरेंडर डॉक्यूमेंट पर पाकिस्तान की तरफ से लेफ्टिनेंट जनरल आमिर अब्दुल्लाह खान नियाजी ने दस्तखत किए थे। उनके ठीक बगल में मौजूद थे भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा। इसी सरेंडर के बाद बांग्लादेश एक अलग देश बना था और पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए थे।
तालिबान उप-प्रधानमंत्री अहमद यासिर ने इस फोटो के साथ उर्दू में एक कैप्शन लिखा है कि 'राणा सनाउल्लाह, जबरदस्त। भूलिए मत कि ये अफगानिस्तान है। ये वो अफगानिस्तान है जहां बड़ी-बड़ी ताकतों की कब्रगाहें बन गईं, हम पर फौजी हैं।' इससे ऐसा लग रहा है कि तालिबान ही पीछे से टीटीपी को आगे कर रहा है, जहां पर टीटीपी की सरकार का ऐलान करके अपने शासन की नींव रखी जा रही है। वास्तव में देखा जाये तो टीटीपी के पीछे खुद तालिबान ही है, जो पाकिस्तान के खैबर पख्तूनवा को अलग देश बनाने का काम कर रहा है। इस क्षेत्र में खनिज भंडार अधिक होने के कारण इसके बड़े हिस्से को पाकिस्तान ने चीन को खनन के लिये दे रखा है। खनन कार्य से चीन बड़े पैमान पर प्राकृतिक खनिजों का दोहन तो कर रहा है, लेकिन इससे इस क्षेत्र के विकास पर कुछ भी खर्च नहीं किया जा रहा है, जिसके कारण स्थानीय लोग भी आंदोलन करते रहते हैं। इसी तरह से पाकिस्तान का दूसरा प्रांत है बलूचिस्तान, जहां के लोग बीते 75 साल से आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं। कहा जाता है कि इस क्षेत्र को पाकिस्तानी सेना ने जबरदस्ती मिलाया था, जबकि यहां के लोग भारत में मिलना चाहते थे।
बलूच के लोग आज जो पाकिस्‍तान से अलग होने को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं, वहां पर आंदोलन भी पाकिस्‍तान की आजादी के साथ ही शुरू हुआ था। साल 1948 से ही ज्‍यादातर बलूचों के मन में यह बात घरकर गई थी कि उन्‍हें जबरन पाकिस्‍तान के साथ मिलाया गया है, लेकिन उस वक्‍त हुए विरोध के सामने तत्‍कालीन पाकिस्‍तान की सरकार झुक गई थी। इतना ही नहीं अंग्रेजों की विदाई के साथ ही बलूचों ने अपनी आजादी की घोषणा कर दी थी। पाकिस्‍तान ने भी उनकी ये बात मान ली थी, लेकिन वो बाद में इससे मुकर गए। उस वक्‍त बलूचों के सबसे बड़े नेता खुदादाद खान हुआ करते थे। वे कलात के खां के नाम से मशहूर थे। कलात उस वक्‍त का बलूचिस्‍तान था और इसके राजकुमार थे खुदादाद। अंग्रेजी हुकूमत के समय में भी उनके राज्‍य पर अंग्रेजों का अधिकार नहीं था। साल 1876 में उनके साथ जो संधि अंग्रेजों ने की थी, उसके मुताबिक बलूचिस्‍तान एक आजाद देश था। उनकी आजाद देश की पहचान को साल 1946 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने नकार दिया था। खान पहले से ही पाकिस्‍तान की आंखों में चढ़े हुए थे। बलूचों के विरोध की वजह से वह और निशाने पर आ गए थे। इसके बाद साल 1948 में खुदादाद खान को को पाकिस्‍तान की सेना ने गिरफ्तार कर लिया और उनसे जबरन बलूचिस्‍तान के पाकिस्‍तान में विलय के समझौते पर साइन करवा लिए।
साल 1947 में भी कांग्रेस के नेता इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं थे कि बलूचिस्‍तान एक आजाद देश है। एक समस्‍या ये भी थी कि कांग्रेस जिस आजादी को मांग रही थी, उसमें अंग्रेजों का यहां से जाना जरूरी था। कांग्रेस के कई नेता ये भी मानते थे कि भारत की आजादी के बाद बलूचिस्‍तान शायद ही आजाद राष्‍ट्र बनकर रह सके। इसके लिए उन्‍हें अंग्रेजों का साथ चाहिए होगा, जो कांग्रेस को स्‍वीकार्य नहीं था। मार्च 1948 में ऑल इंडिया रेडियो पर प्रसारित समाचार में प्रेस कांफ्रेंस का जिक्र करते हुए बताया गया कि खुदादाद खान इस बात को लेकर तैयार थे कि बलूचिस्‍तान का भारत में विलय कर दिया जाए, लेकिन तत्‍कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसको नकार दिया। भारत सरकार के इस रवैये से खान को गहरा धक्‍का लगा और आखिर में उन्‍होंने पाकिस्तान के साथ संधि करने के लिए बातचीत की पेशकश कर दी। हालांकि, बाद में पंडित नेहरू ने इस प्रेस कांफ्रेस में कही गई सभी बातों से पल्‍ला झाड़ लिया। उन्‍होंने इस पूरी खबर को ही मनगढ़ंत और झूठी बताया था।
साल 1959 में पाकिस्‍तान की सरकार ने धोखे से बलूच नेता नौरोज खान को हथियार डालने के लिए राजी किया और बाद में उनके दो बेटों समेत कई समर्थकों को सरेआम फांसी पर चढ़ा दिया। वर्ष 1974 में पाकिस्तानी सेना ने इस इलाके में मिराज और एफ-86 विमानों से बम बरसाए थे। इसी दौरान ईरान के शाह ने भी यहां पर बमबारी करने के लिए अपने कोबरा हेलीकॉप्‍टर पाकिस्‍तान को दिए थे। उन्‍होंने बलूचों के विद्रोह को कुचलने के लिए तत्‍कालीन शासक जुल्‍फीकार अली भुट्टो को पैसे और हथियार तक मुहैया करवाए थे। 26 अगस्त 2006 को जनरल परवेज मुशर्रफ के शासन में उस वक्‍त के सबसे बड़े बलूच नेता नवाब अकबर बुग्ती को सेना ने निर्दयता से मौत के घाट उतार दिया था। बुग्‍ती बलूचिस्‍तान के गवर्नर और केंद्र सरकार में मंत्री तक रह चुके थे। खुद इमरान खान ने पाकिस्‍तान का पीएम बनने से पहले दिए गए कई भाषणों में इसका जिक्र किया था कि पाकिस्‍तान की सेना बलूचिस्‍तान के लोगों पर बमबारी कर रही है। बलूच युवाओं का अपहरण कर उनको मौत के घाट उतार रही है और महिलाओं से सेना के जवान जबरदस्‍ती कर रहे हैं।
दरअसल, बलूचिस्तान का 760 किलोमीटर लंबा समुद्र तट पाकिस्तान के कुल समुद्री तट का दो तिहाई हिस्सा है। बलूचिस्‍तान के ही तट पर ही पाकिस्तान के तीन नौसैनिक ठिकाने ओरमारा, पसनी और ग्वादर हैं। ग्वादर का अपना रणनीतिक महत्‍व बेहद खास है। इसके महत्‍व को जानते हुए ही चीन ने आर्थिक गलियारे पर 60 अरब डॉलर खर्च करने की सीपैक परियोजना को मंजूरी प्रदान की थी। इस इलाके तांबा, सोना और यूरेनियम बहुतायत मात्रा में है। इसके अलावा इसके करीब चगाई में ही पाकिस्तान का न्‍यूक्लियर टेस्‍ट सेंटर भी है। इसी इलाके में कभी अमेरिका के भी सैनिक ठिकाने हुआ करते थे। यहीं पर सुई में प्राकृतिक गैस का अपार भंडार है, जिसकी सप्‍लाई पाकिस्‍तान के कई इलाकों में होती है, लेकिन इसका फायदा बलूचों को ही नहीं मिला है।
यही वजह है कि बलूच के लोग आज भी पाकिस्तान से आजादी का आंदोलन कर रहे हैं। बलूचिस्तान के नेता भारत में भी निर्वासित जीवन जी रहे हैं। नेताओं ने भारत से भी आजादी के लिये गुहार लगाई है। पाकिस्तानी सेना के जुल्मों से परेशान बलूचिस्तान के लोग कई बार बड़े आंदोलन कर चुके हैं। यहां पर वोट लेते वक्त इमरान खान ने कहा था कि उनकी सरकार बनी तो लोगों पर सेना का जुल्म बंद कर दिया जायेगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं और इसके कारण लोग पाकिस्तान से अलग होने की मांग करते रहते हैं। यह भी कहा जाता है कि यहां पर अजीत डोभाल का लंबा अनुभव है, जिसके कारण पाकिस्तान आरोप लगाता रहता है कि यहां के नेताओं से भी डोभाल के संपर्क हैं, जिनको आजादी के लिये भारत भड़काता रहता है।

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