सचिन पायलट बनाई पार्टी!

Ram Gopal Jat
राजस्थान में चुनाव नजदीक आने के साथ ही सियासी दलों ने बाहें चढ़ा ली हैं। कांग्रेस जहां सरकारी योजनाओं के सहारे सत्ता रिपीट कराने का दावा कर रही है, तो भाजपा अशोक गहलोत की सरकार को हर मोर्च पर विफल बताते हुये जनता से कांग्रेस सरकार को उखाड़ फैंकने की अपील कर रही है। इस बीच बीते तीन साल से पायलट गहलोत में जारी सत्ता का संघर्ष ठंडा पड़ता दिखाई दे रहा है। लंबे समय तक गांधी परिवार से न्याय की उम्मीद लगाये सचिन पायलट का कैंप अब नई तैयारी में जुटता दिखाई दे रहा है। कांग्रेस के नेता चर्चा कर रहे हैं कि सचिन पायलट इस साल के अं​त में होने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस से चुनाव नहीं लड़ेंगे, बल्कि खुद की पार्टी बनाकर उम्मीदवार उतारेंगे और कांग्रेस मुक्त राजस्थान कर देंगे।
पायलट ने अभी तक कोई बात नहीं कही है, लेकिन इतना तय है कि उनकी ओर से गुपचुप कुछ ना कुछ किया जा रहा है, जो आने वाले दिनों में बड़े सियासी धमाके के रुप में सामने आयेगा। बहरहाल, पायलट का कैंप पूरी तरह जैसे चुप्पी साधे हुये है, वह अपने आप में बहुत बड़ा सवाल है, जिसका जवाब कब मिलेगा, इसका किसी को पता नहीं है। दो दिन पहले हनुमान बेनीवाल ने दावा किया था कि सचिन पायलट यदि उनके साथ आयें तो भाजपा—कांग्रेस को सत्ता से बाहर बिठाया जा सकता है। बेनीवाल ने तो यहां तक कहा है कि पायलट यदि खुद की पार्टी बनाकर मैदान में आते हैं तो यह बहुत अच्छी बात है। साथ ही पायलट को उनके साथ गठबंधन करने की भी अपील की है। बेनीवाल ने दोहराया है कि पायलट का कांग्रेस में बार बार अपमान हो रहा है, इसलिये उनको पार्टी छोड़ देनी चाहिये।
नागौर सांसद ने कहा कि सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट बड़े नेता रहे हैं, वो केंद्र में मंत्री रहे हैं, खुद सचिन पायलट भी मंत्री और डिप्टी सीएम रहे हैं, जबकि वह तो बीते 40 साल से केवल विपक्ष में ही हैं, फिर भी भाजपा—कांग्रेस से लड़ रहे हैं। इसलिये सचिन पायलट को अपने पिता और अपने नाम के साथ अकेले मैदान में उतरना चाहिये। इससे पहले भी बेनीवाल कई बार कह चुके हैं कि पायलट को कांग्रेस छोड़कर उनके साथ आ जाना चाहिये। अब यह समझना होगा कि क्या सचिन पायलट के साथ मिलकर हनुमान बेनीवाल मिलकर कांग्रेस भाजपा को सत्ता से बाहर बिठा सकते हैं? यह बात सही है कि पश्चिमी राजस्थान में आज हनुमान बेनीवाल सबसे बड़े अकेले नेता हैं। उन्होंने परसराम मदेरणा, शीशराम ओला और मिर्धा परिवार की भरपाई कर दी है। आज बेनीवाल का नाम देश के बड़े नेताओं में लिया जाता है, जो अपने दम पर पार्टी बनाकर भाजपा—कांग्रेस को परेशान कर रहे हैं। पश्चिमी राजस्थान के करीब करीब सभी जिलों में कोई भी पार्टी आरएलपी को नजरअंदाज करके चुनाव नहीं लड़ सकती। यही वजह है कि आम आदमी पार्टी भी हनुमान के साथ की तलाश में है। बसपा ने भी हनुमान से संपर्क किया है। जबकि भाजपा पहले ही उनके साथ गठबंधन करके साफ कर चुकी है कि वह बेनीवाल के सा​थ दुबारा भी आ सकती है।
इसी तरह से सचिन पायलट ने अपनी मेहनत और अपने व्यक्त्वि के दम पर कांग्रेस को सत्ता दिलाई थी। यह बात और है कि उनकी मेहनत पर ​किसी दूसरे ने डाका डाल दिया। जो कांग्रेस पार्टी अशोक गहलोत के सीएम रहते 2013 में केवल 21 सीटों पर सिमट गई थी, उसको पायलट ने ही 2018 में सत्ता की सीढ़ी चढाई। पायलट का प्रभाव युवा वर्ग में बहुत बड़े स्तर पर माना जाता है। प्रदेश के करीब 10 जिलों और 40 विधानसभा सीटों पर गुर्जर समाज बाहुल्य में है, जो सामान्यत: सचिन पायलट का कोर वोट माना जाता है। राज्य में लगभग 18 फीसदी जाट, 7 फीसदी गुर्जर माने जाते हैं, जबकि एससी वर्ग भी इन ​दोनों नेताओं के साथ आ सकता है। यह वर्ग कांग्रेस से उब चुका है। यदि पायलट बेनीवाल एक साथ मिलकर चुनाव लड़ें तो इस बात की पूरी संभावना है कि राज्य के वर्तमान 33 जिलों से कम से कम 25 जिलों में कांग्रेस भाजपा का जीतना बेहद कठिन हो सकता है।
इसलिये हनुमान बेनीवाल की बात में दम नजर आता है कि यदि ये दोनों मिलकर चुनाव लड़ें तो भाजपा—कांग्रेस को हरा सकते हैं। चर्चा तो जोरों पर चल रही है कि पायलट ने अपनी पार्टी का रजिस्ट्रेशन करवा लिया है और आने वाले दिनों में उसकी सार्वजनिक घोषणा करने वाले हैं। यदि यह बात सच है कि तो फिर वह आरएलपी के साथ गठबंधन कर सकते हैं। और यदि इन दोनों ने गठबंधन किया तो फिर भाजपा कांग्रेस का सत्ता का सपना देखना बेकार हो जायेगा। इधर, पायलट की सक्रियता के अभाव में कांग्रेस की हालत खस्ता होती जा रही है। कांग्रेस के पास प्रदेश की कार्यकारिणी नहीं होने और जिलों में पदाधिकारी नहीं होने का खामियाजा उठाना पड़ रहा है। पार्टी जिलों में होने वाले सीएम और अध्यक्ष के कार्यक्रमों में भीड़ नहीं जुटने के कारण परेशान दिखाई दे रही है। अशोक गहलोत पहले के कार्यकालों में भी यही नीति अपनाते रहे हैं। उनकी सरकार के अंतिम दिनों में मंत्री, विधायक, ​अधिकारी जहां बेलगाम हो जाते हैं, वहीं संगठन मृत प्राय होने के कारण कार्यकर्ताओं के अभाव में पार्टी सत्ता से बाहर हो जाती है।
विपक्ष में बैठी भाजपा ने हाल ही में अध्यक्ष बदला है और नेता प्रतिपक्ष—उपनेता प्रतिपक्ष जैसे पदों पर नियुक्ति करके माहोल बदलने का प्रयास किया है। पार्टी अब वसुंधरा राजे को सक्रिय करने की कोशिश कर रही है। माना जा रहा है कि अगले एक पखवाड़े के भीतर वसुंधरा को किसी पद पर बिठाकर सक्रिय किया जायेगा। चुनाव प्रचार समिति अध्यक्ष का पद वसुंधरा को सौंपे जाने की संभावना है। उनके समर्थक मान रहे हैं कि यदि पार्टी ने इलेक्शन कैंपेन कमेटी अध्यक्ष राजे को बनाया जाता है तो फिर उनके तीसरी बार सीएम बनने के रास्ते अधिक खुल जायेंगे।
पार्टी को चिंता इस बात की भी है कि हाल ही में अध्यक्ष पद से हटाये गये सतीश पूनियां की वजह से राज्य का किसान वर्ग नाराज हो सकता है। इस वर्ग की नाराजगी को दूर करने के लिये पार्टी के पास हनुमान बेनीवाल के साथ गठबंधन करना ही एकमात्र रास्ता बचता है। क्योंकि जो वर्ग सतीश पूनियां को अध्यक्ष पद से हटाये जाने से नाराज है, वह हनुमान बेनीवाल में एक उम्मीद देख रहा है।

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