राजस्थान के पायलट बनेंगे पंजाब के कैप्टन?

Ram Gopal Jat
चुनाव नजदीक आने के साथ ही कांग्रेस की गुटबाजी परवान चढ़ने लगी है। इधर, राजस्थान के सचिन पायलट ने पंजाब के कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरह उड़ान भरने के संकेत दे दिये हैं। प्रभारी महासचिव सुखजिंदर सिंह रंधावा ने दावा किया है कि वह राजस्थान को पंजाब नहीं बनने देंगे, यानी राजस्थान में मुख्यमंत्री नहीं बदला जायेगा, चाहे पंजाब के नवजोत सिंह सिद्दु की तरह कितनी ही नाराजगी क्यों नहीं हो जाये। या फिर दूसरे शब्दों में समझें तो आचार संहिता के केवल साढ़े तीन महीने पहले सीएम बदलकर कांग्रेस ने जो गलती की थी, वह नहीं दोहराई जायेगी, बल्कि अभी सीएम बदलकर गुटबाजी को खत्म किया जायेगा। आपको याद होगा जब कैप्टन अमरिंदर सिंह को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा था, तब उन्होंने कांग्रेस ही छोड़ दी थी और अपनी पार्टी बना ली थी। बाद में उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन किया और चुनाव के बाद अपनी पार्टी का भाजपा में ही विलय कर लिया था। आज की तरीख में कैप्टन भाजपा के नेता हैं, जबकि तब के अध्यक्ष सुनिल जाखड़ ने भी भाजपा ज्वाइन कर ली थी। चुनाव के बाद नवजोत सिंह सिद्दू को कारावास की सजा हो गई थी, जो पिछले दिनों ही जेल से छूटकर आये हैं।
रंधावा ने दावा किया है कि वह सीएम की रेस में सबसे पहले नंबर पर थे, लेकिन चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बना दिया गया था, तब भी उन्होंने नाराज होकर पार्टी नहीं छोड़ी। किंतु रंधावा भूल जाते हैं कि पंजाब में कांग्रेस 2017 में खुद कैप्टन के दम पर जीती थी, ना कि कांग्रेस पार्टी या आलाकमान के कारण। दूसरी तरफ राजस्थान में कांग्रेस सचिन पायलट के दम पर जीती थी, ना कि अशोक गहलोत के कारण, जो कांग्रेस ​दो बार एतिहासिक पराजय दिला चुके थे। अशोक गहलोत जब 1998 में पहली बार सीएम बने थे, तब वह अध्यक्ष जरुर थे, लेकिन जनता ने वोट परसराम मदेरणा के नाम पर दिये थे। बाद में उनको साइडलाइन कर दिया गया और गांधी परिवार से नजदीकी के कारण गहलोत सीएम बन गये थे। कांग्रेस पार्टी ने तब परसराम मदेरणा के नाम पर 153 सीटों पर जीत दर्ज की थी। बाद में अशोक गहलोत के पांच साल के शासन ने जनता का मन कांग्रेस से तोड़ दिया, और परिणाम यह रहा है कि 2003 के चुनाव में कांग्रेस को केवल 56 सीटों पर जीत मिली। पांच साल पहले 33 सीटों वाली भाजपा 120 सीटों पर चली गई। यह अशोक गहलोत की लीडरशिप में पहला चुनाव था, जिसमें जनता ने कांग्रेस को सीएम जनता की पसंद का नहीं बनाने का मजा चखा दिया।
इसके बाद 2008 में भाजपा के भीतर सीएम वसुंधरा राजे और अध्यक्ष ओम माथुर के बीच सीएम की रेस शुरू हो गई और सीटों का बंटवारा ठीक से नहीं होने के कारण बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। भाजपा इस चुनाव में 78 सीटों पर चली गई, जबकि सीपी जोशी के अध्यक्ष रहते कांग्रेस पार्टी 96 सीटों पर जीत गई। जोडतोड़ कर कांग्रेस ने सरकार तो बना ली, लेकिन सीएम की सीट पर फिर से अशोक गहलोत जम गये। जनता की नाराजगी पहले से थी और सीएम रहते गहलोत के जनविरोधी फैसलों ने कांग्रेस को बुरी तरह से नकराते हुये 2013 में 21 सीटों पर लाकर पटक दिया। भाजपा एक बार फिर से 163 सीटों के प्रचंड़ बहुमत से सरकार बनाने में सफल रही। इसके बाद कांग्रेस ने जनवरी 2014 में 34 साल के युवा सचिन पायलट को अध्यक्ष बनाकर राज्य में वसुंधरा की प्रचंड़ बहुमत वाली सरकार से टकराने उतार दिया। सचिन पायलट ने मृतप्राय हो चुकी कांग्रेस को जिवित किया और 2018 के चुनाव में जनता ने पायलट के रुप में एक नये सीएम के तौर पर देखते हुये कांग्रेस को 100 सीटों के साथ बहुमत दिया, भाजपा 72 सीटों पर चली गई। किंतु गांधी परिवार की नजदीकी ने अशोक गहलोत को तीसरी बार सीएम बना दिया। सचिन पायलट को डिप्टी सीएम बनाकर खुश करने का प्रयास किया, लेकिन सरकार डेढ साल में ही हांफने लगी। पार्टी में बगावत हुई और सरकार 34 दिन होटलों में कैद हो गई। जल्द सीएम बनाने का आश्चासन देकर सचिन पायलट को करीब 3 साल तक चुप करा दिया, लेकिन 11 अप्रेल को पायलट ने गहलोत सरकार पर निशाना साधते हुये शहीद स्माकर पर एक दिन का अनशन कर धरने दे दिया।
अब कांग्रेस के नेता जयराम रमेश, पवन खेड़ा जहां अशोक गहलोत सरकार की प्रसंशा कर रहे हैं, तो प्रभारी रंधावा ने सचिन पायलट पर कार्यवाही करने का दावा किया है। यह बात सच है कि इस वक्त यदि सचिन पायलट को बाहर कर दिया गया तो उनको राजनीतिक शहीद का दर्जा मिल जायेगा, यही दर्जा उनके लिये सोने पर सुहागा होगा, जबकि कांग्रेस के लिये राजनीतिक मौत का कारण बन सकता है। पायलट पर हनुमान बेनीवाल से लेकर भाजपा और आम आदमी पार्टी की भी नजरें हैं, लेकिन अभी उन्होंने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। इतना जरुर पायलट ने साफ कर दिया है कि वह अब अशोक गहलोत को बखशने वाले नहीं हैं, ना ही आलाकमान के झांसे में आने वाले हैं। बिलकुल आरपार की लड़ाई के मूड़ में आ चुके सचिन पायलट को अब केवल गांधी परिवार राजस्थान का सीएम बनाकर ही रोक सकता है, इसके अलावा दूसरा विकल्प नजर नहीं आ रहा है।
उधर, भाजपा के लिये सचिन पायलट का अनशन ना तो उगलते बन रहा है और ना निगलते। क्योंकि सचिन पायलट ने पूर्व सीएम वसुंधरा राजे सरकार के घोटालों की जांच की मांग की है। भाजपा वैसे तो गहलोत—पायलट की जंग से खुश होगी, लेकिन जो मांग पायलट ने की है, उसके बाद भाजपा दोराहे पर खड़ी है। यदि पायलट की मांग का समर्थन करती है, तो अपनी ही पार्टी के बड़ी नेता पर सवाल खड़े होते हैं, और यदि गहलोत सरकार पर सवाल उठाये तो जाते हैं तो पायलट को फायदा होता है। हालांकि, भाजपा ने बेहद सधे हुये कदमों से आगे बढ़ने का काम किया है। भाजपा एक तरफ जहां गहलोत सरकार पर सवाल उठा रही है, तो साथ ही वसुंधरा सरकार के कथित घोटालों को मनगढ़ंत बताकर बचाव भी कर रही है। भाजपा यह कहने की हिम्मत नहीं कर रही है कि यदि आरोप लगाये हैं तो जांच करवा ले, दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा। भाजपा के इस ड़र से यह बात भी साफ हो जाती है कि उसको भी शायद इस बात का पक्का भरोसा है कि यदि जांच हुई तो उनकी नेता इसमें फंस सकती हैं।
दरअसल, सचिन पायलट ने अशोक गहलोत से यही मांग की है कि हमने विपक्ष में रहते वसुंधरा राजे सरकार के द्वारा किये गये भ्रष्टाचार की जांच करानी चाहिये, क्योंकि सात महीने बाद वोट मांगने के लिये जनता के बीच में जायेंगे, तब किसी मुंह से कहेंगे कि हमने जो वादे किये थे उनका पूरा नहीं कर पाये हैं। जनता का विश्वास कायम रहना चाहिये, ताकि वोट मांगते समय सिर शर्म से नहीं झुके। इसको लेकर पायलट ने पिछले साल सितंबर में और इस वर्ष 28 मार्च को दो पत्र लिखकर जांच बिठाने की मांग की थी। दो पत्रों के बाद भी जब कार्यवाही नहीं हुई, तब पायलट ने प्रदेश की जनता को यह बताने के लिये एक दिन का अनशन किया कि वह दोषी नहीं हैं।
कांग्रेस में अब विचार और मंथन का दौर जारी है, जबकि रंधावा का कहना है कि वह राजस्थान को पंजाब नहीं बनने देंगे। किंतु सवाल यह उठता है कि कैसे नहीं बनने देंगे? क्या सीएम नहीं बदलने देंगे या फिर सत्ता रिपीट करवाकर ही दम लेंगे? रंधावा को पता नहीं है, कि यदि सीएम नहीं बदला गया तो कांग्रेस की सत्ता रिपीट होगी, इसमें बड़ा शक है और यदि सीएम बदल दिया गया तो सचिन पायलट का सीएम बनना तय है। रंधावा ने दावा किया है कि सचिन पायलट पर अनुशानात्मक कार्यवाही होगी, लेकिन वह भूल जाते हैं कि 25 सितंबर को गहलोत गुट की बगावत पर अभी तक भी कार्यवाही नहीं हो पाई है, फिर ये लोग पायलट पर किस अपराध में कार्यवाही करेंगे? क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना अपराध है? क्या भाजपा की नेता पर कार्यवाही करने की मांग करना अपराध है? या फिर अपनी ही सरकार को काम करने के लिये कहना अपराध है?

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