वसुंधरा—गहलोत गठजोड़ को बेनीवाल—पायलट—गजेंद्र करेंगे बेनकाब

Ram Gopal Jat
बीते करीब 25 साल से सत्ता का सुख भोग रहे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ हनुमान बेनीवाल बीते 9 साल से मुखर हैं। बेनीवाल लगातार दावा करते रहे हैं​ कि वसुंधरा—गहलोत एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, दोनों मिले हुये हैं और दोनों मिलकर राजस्थान प्रदेश को लूट रहे हैं। हनुमान बेनीवाल के इन बयानों को लोगों ने राजनीतिक बयानबाजी समझा और काफी हद तक लोगों ने इस बात को स्वीकार भी किया। जिसके परिणाम स्वरुप जनता ने दोनों को हटाने को वोट दिया, लेकिन भाजपा—कांग्रेस ने फिर से जनता के उपर इन्हीं दोनों नेताओं को थोपकर साबित किया कि जनता के पास इन ​दोनों अलावा कोई विकल्प नहीं है। आजादी के बाद से इन्हीं दोनों दलों ने राज किया है, किसी तीसरे ​दल या तीसरी मोर्चे की गुंजाइश ही नहीं बनने दी गई। जिसमें से भी 25 साल तो इन ही दोनों नेताओं ने राज किया है। इसके बावजूद राजस्थान जैसा समृद्ध बन सकने की ताकत रखने वाला प्रदेश पिछड़ेपन से जूझ रहा है। जिस प्रदेश को दो दशक पहले तक देश का सबसे शांत और अपराधों से दूर माना जाता था, वह अपराध में देश का सिरमौर बन गया है। कभी बिहारी और उत्तर प्रदेश को अपराधी राज्यों में टॉप माना जाता था, लेकिन दो दशक पहले जब ग​हलोत पहली बार सीएम बने, तभी से लगातार अपराध राजस्थान का गहना बन गये हैं।
हनुमान बेनीवाल को जब 2009 में वसुंधरा राजे ने पार्टी से निकाला था, तभी से उनके साथ सियासी गणित बैठ ही नहीं पाई है। महलों की रानी वसुंधरा और खेतों का शेर हनुमान कभी एक दूजे को नहीं सुहाते हैं। वसुंधरा इस साल सत्ता में रही हैं, जबकि हनुमान ने अपना पूरा सियासी सफल ही विपक्ष में निकाल दिया है। तीन बार एमएल और एक बार सांसद का चुनाव जीतने वाले हनुमान बेनीवाल ने अपनी पार्टी के झंडे तले गहलोत—वसुंधरा के खिलाफ बिगुल बजा रखा है। बेनीवाल ने 2009 से ही वसुंधरा गहलोत के गठजोड़ का दावा कर दिया था, लेकिन बीते 9 साल में उन्होंने अपने दावे को जिस तरह से ठोक ठोककर कहा है, उसपर मुहर लगाई है कांग्रेस के नंबर एक कहे जाने वाले नेता सचिन पायलट ने। पायलट ने जब इसी महीने की 9 तारीख को प्रेस कॉन्फ्रेंस की, तब तक किसी ने यकीन नहीं किया होगा कि एक दिन ऐसा भी आयेगा, जब पायलट अपनी ही पार्टी के सीएम और विपक्षी पार्टी की सीएम रहीं नेता के उपर गठजोड़ और एक दूसरे को बचाने का आरोप लगा देंगे।
सचिन पायलट ने 11 तारीख को एक दिन का सांकेतिक अनशन कर साफ कह दिया कि भ्रष्टाचार के मामले में वह आगे भी लड़ाई जारी रखेंगे, इसका मतलब यह है कि चाहे पार्टी उनको सीएम बनाये या नहीं बनाये, लेकिन वह वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत को छोड़ने वाले नहीं हैं। पायलट द्वारा गहलोत से वसुंधरा राजे सरकार के खान आवंट घोटाले, शराब घोटाले, बजरी घोटाले जैसे आरोपों की जांच कराने की मांग की गई है, जो खुद गहलोत पायलट ने विपक्ष में रहते हुये लगाये गये थे। पायलट ने कहा कि वह नई बात नहीं कह रहे हैं, वह वही आरोप दोहरा रहे हैं, जो उन्होंने गहलोत के साथ मिलकर लगाये थे। सरकार आने पर कांग्रेस के सभी नेताओं ने जांच कराने का दावा किया था, लेकिन सवा चार साल बाद आजतक कोई जांच नहीं करवाई गई। इसको लेकर पायलट ने बीते डेढ साल में गहलोत को दो पत्र लिखकर कार्यवाही करने की मांग भी की थी।
पायलट का दावा है कि चुनाव से पहले जांच करवाकर जनता के बीच में जायेंगे तो कह सकेंगे कि जो हमने कहा था, वह करके दिखाया है। जबकि सीएम अशोक गहलोत का दावा है कि घोषणा की गई योजनाओं के दम पर सरकार रिपीट करायेंगे। इधर, जोधपुर सांसद और केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत पर अशोक गहलोत बीते चार साल से संजीवनी कॉपरेटिव मामले में गबन का आरोप लगा रहे हैं, लेकिन एसओजी ने गुरुवार को कोर्ट में माना कि केंद्रीय मंत्री शेखावत का अभी तक एफआईआर में नाम नहीं है, इसलिये गिरफ्तार करने का कोई इरादा नहीं है। किंतु दूसरे ही दिन सरकार ने फिर कहा कि गफलत के कारण शेखावत का नाम का कागज बाहर रह गया, अब उसको शामिल किया जायेगा। या यूं कहें कि सीएम गहलोत ने बार बार दावा किया है, लेकिन जांच में शेखावत के नहीं होने के बाद भी उनका नाम जोड़ा जायेगा, ताकि सीएम के दावे को सच साबित कर उनको बदनाम करने का काम किया जा सके।
यह गहफल आज की नहीं है, इससे पहले इसी वर्ष जब अशोक गहलोत अपना आखिरी बजट पढ़ रहे थे, तब भी गफलत हुई थी, यानी सरकार पूरी की पूरी गफलत में ही रहती है। समझने वाली बात यह है कि अशोक गहलोत आखिर क्यों गजेंद्र सिंह शेखावत को संजीवनी मामले में आरोप बनाने पर तुले हुये हैं? इसके पीछे की कहानी तब शुरू होती है जब आज से करीब साल साल पहले लोकसभा के चुनाव थे। जोधपुर में गजेंद्र सिंह दूसरी बार चुनाव लड़ रहे थे, तो उनके सामने सीएम गहलोत ने अपने बेटे वैभव गहलोत को टिकट दिलाकर पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़वाया था। किंतु हनुमान बेनीवाल के साथ चुनाव लड़ रही भाजपा ने यह सीट पौने तीन लाख से अधिक वोटों से जीत ली। माना जाता है कि तभी से अशोक गहलोत ने यह ठान लिया था कि गजेंद्र सिंह शेखावत को निपटाकर दम लेंगे।
ऐसा नहीं है कि संजीवनी कॉपरेटिव घोटाला इन चार साल में हुआ है। घोटाला वसुंधरा राजे सरकार के समय ही सामने आ गया था, लेकिन मुकदमे दर्ज होते गये और गहलोत इस बहाने शेखावत पर हमलावर होते गये। सचिन पायलट की बगावत के समय भी सरकार गिराने के आरोप लगाते हुये अशोक गहलोत ने गजेंद्र सिंह शेखावत का नाम उछाला था और उनपर मुकदमा भी दर्ज करवाया गया था। वसुंधरा राजे सरकार के समय भी संजीवनी का मामला उछला था, बाद में कुछ समय के लिये ठंडे बस्ते में चला गया था। अब जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे वैसे मामले को तूल दिया जा रहा है। सरकार ने चार साल कितनी जांच करवाई, इसका कोई पता नहीं है, लेकिन अशोक गहलोत जहां केंद्रीय मंत्री शेखावत पर आरोप लगाते हैं, तो पुलिस को उनकी मिलीभगत के सबूत ही नहीं मिलते हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिरी क्या अशोक गहलोत अपने बेटे की हार को पचा नहीं पा रहे हैं और शेखावत के खिलाफ राजनीतिक प्रतिशोध की भावना से काम कर रहे हैं?
ऐसा भी नहीं है कि अशोक गहलोत ही शेखावत के पीछे पड़े हैं। इससे पहले जब वसुंधरा की सरकार थी और अशाक परनामी का इस्तीफा होने के बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने गजेंद्र सिंह शेखावत को अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव दिया था, तब यह कहा जाता है कि वसुंधरा राजे ने ही उनको अध्यक्ष बनने से रोक दिया था। उस समय भी संजीवनी का मामला मीडिया की सुर्खियों में आ गया था। माना जाता है कि शेखावत के खिलाफ माहोल बनाने के लिये वसुंधरा कैंप ने ही खबरों को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया था। अब सचिन पायलट ने जहां गहलोत वसुंधरा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है, तो गजेंद्र सिंह शेखावत ने भी पायलट का भाजपा में स्वागत वाला बयान देकर मामले को हवा दे दी है। माना जा रहा है कि इस बार गहलोत को आलाकमान ने चुप रहने को कहा है, जिसकी वजह से पायलट के अनशन के बाद भी उनका कोई बयान नहीं आया है। जबकि यह भी कहा जा रहा है कि पायलट द्वारा सबूत सामने रखने के कारण गहलोत ना तो अपने आरोप नकार पा रहे हैं, और हनुमान बेनीवाल के दावे के अनुसार गठजोड़ के कारण ना ही वसुंधरा के खिलाफ लगाये गये अपने ही आरोपों की जांच करवा रहे हैं। चर्चा है कि एक तरफ जहां गहलोत वसुंधरा ने गठजोड़ कर लिया है, तो दूसरी ओर पायलट गजेंद्र की जुगलबंदी ने भी सियासत को नया रंग दे दिया है।
अशोक गहलोत चहुंओर से घिर गये हैं तो पायलट के अनशन के बाद वसुंधरा राजे भी काफी चिंता और डर से घिरी हुई हैं। वसुंधरा के ट्वीट किये गये बयानों से इशारा हो रहा है कि उनकी ही पार्टी में भी लोग उनको किनारे करने का प्रयास कर रहे हैं। दरअसल, जब सचिन पायलट ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर वसुंधरा पर लगाये आरोपों की जांच कराने की मांग की थी, उसके बाद भाजपा ने भी जवाब तो दिया, लेकिन भाजपा नेता पूरे विश्वास के तहत विरोध नहीं कर पा रहे थे। ऐसा लग रहा था कि अपनी नेता के पक्ष में बचाव करने की औपचारिकता कर रहे हो। सचिन पायलट पर भी भाजपा ने उस तरीके से अटैक नहीं किया है, जैसे विरोधी नेताओं के उपर किये जाते हैं। इसकी वजह से लोगों में यह भी चर्चा है कि पायलट के कंधे पर बंदूक रखकर भाजपा गहलोत—वसुंधरा को एक साथ निपटा रही है।
सियासी जानकारों का मानना है कि कानून बदलकर बंगला देने से लेकर अशोक गहलोत की सरकार पर संकट के समय कथित तौर पर वसुंधरा राजे द्वारा सहयोग किये जाने के तमाम आरोप लगते रहे हैं। यह बात भी सही है​ कि ये दोनों नेता जब विपक्ष में होते हैं, तो सत्ताधारी नेता पर आरोप लगाकर जांच कराने का दावा करते हैं, लेकिन जब सत्ता में आते हैं, तो ना जांच करवाते हैं और ना ही किसी तरह का आरोप लगाते हैं। विपक्ष में बैठकर दोनों की जुगलबंदी भी इतिहास बन गई है, जब गहलोत या वसुंधरा सदन में विपक्ष में बैठकर पूरे पांच साल चुप हो जाते हैं। चर्चा है कि इस बार अशोक गहलोत अपना आखिरी कार्यकाल पूरा कर रहे हैं, तो भाजपा ने भी वसुंधरा राजे को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाने का मन बना दिया है। अन्यथा 2003 से 2018 कभी यह नहीं कहा गया कि सीएम का चेहरा नहीं होगा। हर बार तय होता था कि सत्ता प्राप्त होते ही वसुंधरा राजे सीएम बनेंगी। इस बार भाजपा के तमाम नेता दावा करते हुये कहते हैं कि चुनाव मोदी और कमल के फूल के नाम पर लड़ा जायेगा और बहुमत मिलने के बाद सीएम तय किया जायगा। इसका यही अर्थ लगाया जा रहा है कि वसुंधरा राजे को अब सीएम की रेस से बाहर कर दिया गया है, लेकिन गुटबाजी नहीं हो, इसलिये मोदी के नाम पर चुनाव लड़ने ओर वसुंधरा राजे को सीएम नहीं बनाने का बयान भी नहीं दिया जा रहा है।
फिलहाल सचिन पायलट पर कांग्रेस कार्यवाही करती नजर नहीं आ रही है, जिसके कारण दो दिन से राजनीति में ठहराव आ गया है। पायलट 18 अप्रेल को झुंझुनू का एक कार्यक्रम अटेंड करेंगे, उसके बाद वह जयपुर पहुंचेंगे। चर्चा है कि सचिन पायलट जल्द ही पूर्वी राजस्थान में बड़ी संभाएं कर अपनी ताकत दिखायेंगे। यदि उनको पार्टी ने मांग मानते हुये सीएम बनाया तो भी उनको अगले चुनाव की तैयारी करनी है और यदि नहीं बनाया तो भी अपनी ताकत दिखाकर गठबंधन करने, भाजपा में जाने या कांग्रेस में रहकर आगे की तैयारी शुरू करेंगे। हालांकि, राजस्थान में चुनावी दौर दो से तीन महीने बाद शुरू होगा, जब बरसात का दौर शुरू हो जायेगा और मौसम में थोड़ी ठंडक आने लगेगी। तब तक अधिकांश नेता मीडिया को ही बयान देकर सुर्खियों में बने रहने का काम करेंगे। सचिन पायलट भी संभवत: तभी आगे का कदम उठायेंगे, उससे पहले कांग्रेस और गहलोत पर दबाव बनाने का ही काम करेंगे।

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