रामगोपाल जाट
बजरी माफियाओं के खिलाफ आरएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल की जा रही हल्ला बोल रैलियों के बीच भीलवाड़ा में रॉयल्टी परिवहनकर्ता, श्रमिक संघ और श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना की ओर से 19 जून को भीलवाड़ा के अहिंसा सर्किल से कलेक्ट्रेट तक ट्रैक्टर रैली निकालकर नारेबाजी की गई और कलेक्टर को ज्ञापन दिया गया।इस ज्ञापन में कहा गया है कि राज्य में 5 वर्ष तक बजरी खनन पर रोक के बाद सरकार ने आम जनता को राहत पहुंचाने और राजस्व में वृद्धि के लिए जून 2021 में बजरी खनन लीजों को अनुमति दी, जिससे हजारों लोगों को रोजगार मिला, लेकिन नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल भीलवाड़ा के बजरी व्यवसायियों को धमका रहे हैं। इससे वहां काम करने वाले श्रमिकों के सामने रोजगार का संकट पैदा हो गया है।
श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना ने हनुमान बेनीवाल द्वारा बजरी कारोबारी मेघराज सिंह के प्रतिष्ठा और सम्मान को आघात पहुंचाने का आरोप लगाते हुए कहा की मेघराज सिंह राजस्थान के प्रतिष्ठित भामाशाह, समाजसेवी और व्यापारी है, जिनके विरूद्ध सांसद नागौर हनुमान बेनीवाल द्वारा अभद्र टिप्पणी की गई है। सांसद द्वारा मेघराज सिंह को लेकर बजरी माफिया जैसे दुर्भावनापूर्ण शब्दों का उपयोग करना निंदनीय है।
यहां क्लिक कर पढ़ें: मेघराज सिंह के लिए यमदूत बन गये हनुमान बेनीवाल!
जानने—समझने वाले असल बात यह है कि इन प्रदर्शनों में आम जनता की चुप्पी किसको समर्थन कर रही है? जिन मेघराज सिंह को लेकर प्रतिष्ठित व्यक्ति होने का दावा किया गया है, ये वही मेघराज सिंह हैं, जिनकी जैसलमेर में सूर्यगढ़ के नाम से होटल है। वही होटल, जिसमें अशोक गहलोत की पूरी सरकार जुलाई 2020 के राजनीतिक संकट के दौरान शरण लेकर 15 दिन तक रही थी, या कहें कि उस होटल को बाड़ा बनाकर कांग्रेस और सरकार को समर्थन देने वाले विधायकों को सत्ता के द्वारा एक तरह से बंधक रखा गया था।
बंधक कहना इसलिये गलत नहीं होगा, क्योंकि वहां से निकलने के बाद कई विधायकों ने कहा था कि उनको मर्जी के खिलाफ रखा गया, जबकि वर्तमान मंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा भी उसी होटल में थे, लेकिन छूटते ही सचिन पायलट के पक्ष में आ गये और आजकल कह रहे हैं कि सरकार 100 प्रतिशत भ्रष्टाचार में लिप्त है, इसका अलाइमेंट खराब हो गया है, जिसे सचिन पायलट को ठीक करना चाहिये।
दरअसल, हनुमान बेनीवाल इन दिनों प्रदेश में बजरी माफिया और अवैध टोल माफिया के खिलाफ हल्ला बोल रैलियों का आयोजन कर रहे हैं। इन रैलियों में भीड़ उसी तरह की है, जैसे 2017—18 में की गई पांच रैलियों में थीं। सरकार के बजाए इन दिनों हनुमान बेनीवाल का टारगेट बजरी माफिया दिखाई दे रहा है। जब भी राजस्थान में बजरी कारोबारियों की चर्चा होती है, तो मेघराज सिंह का नाम सबसे पहले आता है। हालांकि, इस कारोबार में मेघराज सिंह अकेले नहीं हैं, बल्कि उनके अलावा भी कई लोगों ने बजरी खनन के पट्टे ले रखे हैं। इसके अलावा उनके साथ दूसरे लोग भी कारोबार से जुडे हैं, जिनमें राजपूत, जाट, गुर्जर, मीणा समेत दूसरे समाज के लोग भी हैं।
किंतु जब राज्य में बजरी माफिया के नाम की चर्चा होती है, तब भी उनके विरोधियों की जुबान पर मेघराज सिंह का नाम सबसे ऊपर ही आता है। कारण यह है कि राज्य में मेघराज सिंह का ग्रुप सबसे बड़ा बजरी कारोबारी है। अब यह जांच का विषय है कि मेघराज सिंह बजरी माफिया हैं या बजरी कारोबारी हैं, किंतु इतना जरुर है कि उनकी पहुंच सीधे सीएम अशोक गहलोत और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे तक है। यही वजह है कि अशोक गहलोत ने जैसलमेर में अपनी सरकार के लिए मेघराज सिंह की बताई जाने वाली होटल को ही चुना।
इससे पहले बिना नाम लिए खुद अशोक गहलोत ने विधानसभा के भीतर पूछा था कि वसुंधरा राजे सरकार में बजरी माफिया प्रतिमाह 5 करोड़ रुपये किसको दे रहा था, तब भी कहा गया था कि गहलोत ने मेघराज सिंह को ही बजरी माफिया कहा था। हालांकि, मेघराज सिंह लाइम लाइट से काफी दूर रहते हैं, लेकिन जब भी बजरी के कारोबार या तस्करी की चर्चा होती है, तब उनका नाम पहले नंबर पर आता है।
अब सवाल यह उठता है कि हनुमान बेनीवाल के निशाने पर मेघराज सिंह क्यों हैं? मेघराज सिंह के करीबियों का कहना है कि हनुमान बेनीवाल हल्ला बोल बंद करने से पहले मेघराज सिंह से प्रतिमाह 2 करोड़ रुपये देने की मांग कर चुके हैं, लेकिन मेघराज सिंह ने इनकार कर दिया, क्योंकि वह बजरी खनन का पूरा काम एक नंबर में काम करते हैं, तस्करी करने का उनका काम है ही नहीं। कहा जाता है कि मेघराज सिंह अपने संघर्ष के दिनों में कभी होटल में वेटर का काम करते थे। बाद में वह ट्रकों में बजरी भरने का काम करने लगे, लेकिन आज बहुत बड़े कारोबारी हैं, जिनके पास बजरी खनन के अलावा होटल, मॉल और रियल स्टेट का काम भी है।
दूसरी तरफ बेनीवाल के समर्थकों का कहना है कि मेघराज सिंह जितना काम बजरी पट्टों के जरिये कर रहे हैं, उससे कहीं अधिक काम तस्करी से कर रहे हैं। मतलब एक खनन पट्टे के सहारे दर्जनों पट्टों की बजरी का खनन कर रहे हैं। बेनीवाल खुद आरोप लगाते हैं कि शासन—प्रशासन तो मेघराज सिंह के अंटे में रहता है, उसके खिलाफ कार्यवाही नहीं करता है। साथ ही यह भी आरोप लगाए जाते हैं कि रिश्वत का मोटा पैसा खिलाकर मेघराज सिंह ने मुख्यमंत्री से लेकर सभी अधिकारियों को अपने पक्ष में ले रखा है। इस वजह से चाहे थानेदार, एसपी या कलेक्टर, कोई भी मेघराज सिंह के खिलाफ कार्यवाही नहीं करता है।
दरअसल, राज्य में अवैध और अंधाधुन बजरी खनन के कारण पर्यावरण हो रहे नुकसान की बात कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 16 नवंबर 2017 को बजरी खनन पर राजस्थान में रोक लगा दी थी। इसके बाद 31 मार्च 2018 को बजरी खनन के सभी एलओआई को निर्धारित अवधि पूर्ण होने पर खत्म कर दिया। इसके बाद 4 साल तक बजरी खनन पर रोक लगी रही। 11 नवंबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान में बजरी खनन पर लगी रोक हटाई, लेकिन सरकार की लापरवाही और अंधेरगर्दी के चलते करीब सवा साल तक लीगल बजरी खनन शुरू नहीं हुआ है।
उन चार साल के दौरान राजस्थान में बजरी माफिया ने जो किया, वह सबसे शर्मनाक इतिहास बन गया। सैकड़ों लोगों को बजरी के ट्रैक्टर, ट्रक, डंपर और जेसीबी के नीचे कुचलकर मार दिया गया। कई जगह पर पुलिस और वन विभाग के अधिकारियों तक को पीटा और मारा गया। बजरी के दाम आसमान पर पहुंच गये। रोक से पहले बजरी का एक ट्रक 15 हजार रुपये में मिल जाता था, वह 80 हजार रुपये में बेचा गया। 1500 रुपये की मिलने वाले ट्रोली 10 हजार रुपये तक में बेची गई। प्रदेश में बजरी माफिया ऐसा पनपा कि संबंधित क्षेत्र में पुलिस के पास केवल बजरी माफिया के अलावा कोई काम ही नहीं रहा।
यकायक बजरी के कारोबारियों की संख्या बढ़ने लगी। गांवों और कस्बों में बजरी के अवैध ट्रक और ट्रैक्टर यमदूत बनकर दौड़ने लगे। कई जगह पर मासूम लोगों को रौंद दिया गया। शासन—प्रशासन मूकदर्शक बनकर देखता रहा। दोनों ही सरकारों ने शीर्ष कोर्ट में वैध बजरी शुरू करने के लिए मजबूत पैरवी नहीं की, जिसके कारण अवैध कारोबार से सीएम से लेकर मंत्रियों, विधायकों और सांसद के पास अथाह मात्रा में धन पहुंचाने के आरोप लगे।
जनता ऐसे लुटी कि मकान बनाने का सपना मध्यम वर्ग का भी मुश्किल हो गया। 100 वर्ग गज में जो मकान 10 लाख रुपये में आसानी से बन जाता था, उसकी कीमत दो से ढाई गुणा तक पहुंच गई। बजरी तस्करों के हौसले इतने बुलंद हो गये कि किसी भी व्यक्ति को कुचलकर भाग गये, लेकिन पुलिस उनको पकड़ नहीं पाई। अवैध खनन करने वाले कुछ लोग थे, लेकिन बजरी खनन बंद होने पर हजारों की संख्या में हो गये। जो व्यक्ति एक ट्रैक्टर से बजरी डालने का काम करता था, वह दर्जनों डंपर, जेसीबी और ट्रैक्टरों का मालिक हो गया। जो थाने में जाने से भी डरता था, वो कलेक्टर एसपी तक को अपनी जेब में रखने लगा।
बजरी तस्करी के चलते प्रदेश में हालात ये हो गये कि आमजन का जीना मुहाल हो गया। जैसे ही बजरी का ट्रक या ट्रैक्टर दिखाई देता, वैसे ही लोग सड़क से किनारे हो जाते थे। अवैध खनन की बजरी से भरे ट्रक और ट्रैक्टर यमदूत की तरफ बेइंतहा रफ्तार पर बेखौफ दौड़ने लगे। प्रशासन कहीं गायब हो गया, तब नेताओं के धरने, प्रदर्शन केवल भाषण तक सिमटे हुए थे। कोई सड़क पर उतरकर इस माफिया के खिलाफ सरकार को घुटनों पर नहीं ला पाया। भाजपा के समय बजरी खनन बंद हुआ तो कांग्रेस ने आरोप लगाए और जब सरकार कांग्रेस के आ गई तो भाजपा ने आरोप लगाने शुरू कर दिये, जबकि दोनों ने ही वास्तव में सड़क पर उतरकर माफिया के खिलाफ खौफ पैदा नहीं किया।
खास बात यह है कि बजरी बंद के दौरान भी सरकारी प्रोजेक्ट्स में वही बजरी पहुंच रही थी, जिसके खनन पर रोक थी। जिम्मेदार ही वो सब कुछ कर रहे थे, जो बजरी माफिया कर रहा था। प्रदेश में सरकार के दर्जनों प्रोजेक्ट्स चल रहे थे, जिनमें अवैध खनन से बजरी पहुंचाई जा रही थी। मंत्री, सांसद, विधायक, अफसरों से लेकर सरकारी कार्यालयों में होने वाले निर्माण कार्य में भी अवैध बजरी ही काम आ रही थी। मीडिया द्वारा अवैध बजरी की खबरें खूब छापी और दिखाई, लेकिन बजरी माफिया पर इसका रत्ती भर पर प्रभाव नहीं पड़ा और ना ही सरकार के ऊपर असर हुआ।
इस दौरान 11 नवंबर 2021 को बजरी खनन पर रोक तो हट गई, लेकिन ना तो बजरी माफिया रुका और ना ही उनके वाहन। मजेदार बात यह है कि शीर्ष कोर्ट द्वारा रोक हटाए डेढ़ साल से अधिक गुजर गया, किंतु इसके बाद भी बजरी के दाम नहीं घटे हैं। अवैध बजरी के समय जो दरें आसमान पर पहुंच गई थीं, उनको कम ही नहीं किया गया। आम आदमी आज भी वैसे ही लुट रहा है।
हनुमान बेनीवाल ने जून में आधा दर्जन रैलियां करने का वादा किया था, जिनमें से चार रैली हो चुकी हैं। इनमें नागौर और बीकानेर में रातभर धरना देकर अवैध टॉल नाकों को हटाने का काम किया है। हालांकि, तूफान के चलते 17 को टोंक में होने वाली रैली कैंसिल हो गई, लेकिन भीलवाड़ा में सभा हो चुकी है, जहां पर बजरी माफिया के समर्थकों ने हनुमान बेनीवाल के खिलाफ ही प्रदर्शन कर दिया था। कितनी मजेदार बात है कि जो आदमी बजरी माफिया के खिलाफ रैली कर रहा है, उसी के खिलाफ बजरी माफिया प्रदर्शन कर कलेक्टर को ज्ञापन सौंप रहा है और प्रशासन उनके खिलाफ कार्यवाही करने के बजाए सहयोग कर रहा है।
जिस दिन में भीलवाड़ा में बेनीवाल के खिलाफ प्रदर्शन किया गया था, उस दिन मेघराज सिंह विदेश में बताए गये थे और उनके करीबी लोग यह भी दावा कर रहे थे कि प्रदर्शन मेघराज सिंह ने नहीं करवाया था, बल्कि उनकी नजर में हीरो बनने का प्रयास करने वाले बजरी कारोबार से जुड़े लोगों ने किया था, ताकि उनको बजरी खनन का काम मिल जाए।
अब यह चीज तो शासन, प्रशासन, सरकार और अदालतों को तय करना है कि सांसद हनुमान बेनीवाल सच बोल रहे हैं, या मेघराज सिंह का कारोबार सही हैं, लेकिन इतना तय हो चुका है कि डेढ साल पहले बजरी खनन पर रोक हटने के बाद आज तक भी ना तो बजरी तस्करी बंद हुई है और ना ही आम आदमी को कम उचित दाम पर बजरी मिल रही है। प्रदेशभर में दर्जनों ऐसी जगह हैं, जहां पर शासन प्रशासन की नाक के नीचे, थानेदारों, तहसीलदारों और कलेक्टरों की शह पर बजरी का अवैध खनन जारी है। आज जितना वैध खनन हो रहा है, उसकी आड़ में उससे कई गुणा अधिक अवैध खनन हो रहा है और सरकार की तंद्रा टूटने का नाम नहीं ले रही है।
इरादे चाहे जो भी हों, लेकिन इतना पक्का हो चुका है कि सांसद हनुमान बेनीवाल बजरी माफिया के खिलाफ हल्ला बोलकर युवाओं को जगाने का काम शुरू कर चुके हैं। बावजूद इसके, जो बजरी माफिया के समर्थक हैं, वो ही प्रदर्शन करने लगे हैं किंतु शासन प्रशासन मनचाही नींद में है, तो अशोक गहलोत सरकार शायद वसुंधरा राजे सरकार की तरह 5 या 10 करोड़ रुपये महीना लेकर चुप है। लेकिन सबसे खराब चुप्पी आम जनता की है, जो उनके समर्थन में रैली करने वाले नेता के साथ भी खड़े होने के बजाए मुंह फेरकर कबूतर की तरह बैठी है।
जानने—समझने वाले असल बात यह है कि इन प्रदर्शनों में आम जनता की चुप्पी किसको समर्थन कर रही है? जिन मेघराज सिंह को लेकर प्रतिष्ठित व्यक्ति होने का दावा किया गया है, ये वही मेघराज सिंह हैं, जिनकी जैसलमेर में सूर्यगढ़ के नाम से होटल है। वही होटल, जिसमें अशोक गहलोत की पूरी सरकार जुलाई 2020 के राजनीतिक संकट के दौरान शरण लेकर 15 दिन तक रही थी, या कहें कि उस होटल को बाड़ा बनाकर कांग्रेस और सरकार को समर्थन देने वाले विधायकों को सत्ता के द्वारा एक तरह से बंधक रखा गया था।
बंधक कहना इसलिये गलत नहीं होगा, क्योंकि वहां से निकलने के बाद कई विधायकों ने कहा था कि उनको मर्जी के खिलाफ रखा गया, जबकि वर्तमान मंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा भी उसी होटल में थे, लेकिन छूटते ही सचिन पायलट के पक्ष में आ गये और आजकल कह रहे हैं कि सरकार 100 प्रतिशत भ्रष्टाचार में लिप्त है, इसका अलाइमेंट खराब हो गया है, जिसे सचिन पायलट को ठीक करना चाहिये।
दरअसल, हनुमान बेनीवाल इन दिनों प्रदेश में बजरी माफिया और अवैध टोल माफिया के खिलाफ हल्ला बोल रैलियों का आयोजन कर रहे हैं। इन रैलियों में भीड़ उसी तरह की है, जैसे 2017—18 में की गई पांच रैलियों में थीं। सरकार के बजाए इन दिनों हनुमान बेनीवाल का टारगेट बजरी माफिया दिखाई दे रहा है। जब भी राजस्थान में बजरी कारोबारियों की चर्चा होती है, तो मेघराज सिंह का नाम सबसे पहले आता है। हालांकि, इस कारोबार में मेघराज सिंह अकेले नहीं हैं, बल्कि उनके अलावा भी कई लोगों ने बजरी खनन के पट्टे ले रखे हैं। इसके अलावा उनके साथ दूसरे लोग भी कारोबार से जुडे हैं, जिनमें राजपूत, जाट, गुर्जर, मीणा समेत दूसरे समाज के लोग भी हैं।
किंतु जब राज्य में बजरी माफिया के नाम की चर्चा होती है, तब भी उनके विरोधियों की जुबान पर मेघराज सिंह का नाम सबसे ऊपर ही आता है। कारण यह है कि राज्य में मेघराज सिंह का ग्रुप सबसे बड़ा बजरी कारोबारी है। अब यह जांच का विषय है कि मेघराज सिंह बजरी माफिया हैं या बजरी कारोबारी हैं, किंतु इतना जरुर है कि उनकी पहुंच सीधे सीएम अशोक गहलोत और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे तक है। यही वजह है कि अशोक गहलोत ने जैसलमेर में अपनी सरकार के लिए मेघराज सिंह की बताई जाने वाली होटल को ही चुना।
इससे पहले बिना नाम लिए खुद अशोक गहलोत ने विधानसभा के भीतर पूछा था कि वसुंधरा राजे सरकार में बजरी माफिया प्रतिमाह 5 करोड़ रुपये किसको दे रहा था, तब भी कहा गया था कि गहलोत ने मेघराज सिंह को ही बजरी माफिया कहा था। हालांकि, मेघराज सिंह लाइम लाइट से काफी दूर रहते हैं, लेकिन जब भी बजरी के कारोबार या तस्करी की चर्चा होती है, तब उनका नाम पहले नंबर पर आता है।
अब सवाल यह उठता है कि हनुमान बेनीवाल के निशाने पर मेघराज सिंह क्यों हैं? मेघराज सिंह के करीबियों का कहना है कि हनुमान बेनीवाल हल्ला बोल बंद करने से पहले मेघराज सिंह से प्रतिमाह 2 करोड़ रुपये देने की मांग कर चुके हैं, लेकिन मेघराज सिंह ने इनकार कर दिया, क्योंकि वह बजरी खनन का पूरा काम एक नंबर में काम करते हैं, तस्करी करने का उनका काम है ही नहीं। कहा जाता है कि मेघराज सिंह अपने संघर्ष के दिनों में कभी होटल में वेटर का काम करते थे। बाद में वह ट्रकों में बजरी भरने का काम करने लगे, लेकिन आज बहुत बड़े कारोबारी हैं, जिनके पास बजरी खनन के अलावा होटल, मॉल और रियल स्टेट का काम भी है।
दूसरी तरफ बेनीवाल के समर्थकों का कहना है कि मेघराज सिंह जितना काम बजरी पट्टों के जरिये कर रहे हैं, उससे कहीं अधिक काम तस्करी से कर रहे हैं। मतलब एक खनन पट्टे के सहारे दर्जनों पट्टों की बजरी का खनन कर रहे हैं। बेनीवाल खुद आरोप लगाते हैं कि शासन—प्रशासन तो मेघराज सिंह के अंटे में रहता है, उसके खिलाफ कार्यवाही नहीं करता है। साथ ही यह भी आरोप लगाए जाते हैं कि रिश्वत का मोटा पैसा खिलाकर मेघराज सिंह ने मुख्यमंत्री से लेकर सभी अधिकारियों को अपने पक्ष में ले रखा है। इस वजह से चाहे थानेदार, एसपी या कलेक्टर, कोई भी मेघराज सिंह के खिलाफ कार्यवाही नहीं करता है।
दरअसल, राज्य में अवैध और अंधाधुन बजरी खनन के कारण पर्यावरण हो रहे नुकसान की बात कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 16 नवंबर 2017 को बजरी खनन पर राजस्थान में रोक लगा दी थी। इसके बाद 31 मार्च 2018 को बजरी खनन के सभी एलओआई को निर्धारित अवधि पूर्ण होने पर खत्म कर दिया। इसके बाद 4 साल तक बजरी खनन पर रोक लगी रही। 11 नवंबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान में बजरी खनन पर लगी रोक हटाई, लेकिन सरकार की लापरवाही और अंधेरगर्दी के चलते करीब सवा साल तक लीगल बजरी खनन शुरू नहीं हुआ है।
उन चार साल के दौरान राजस्थान में बजरी माफिया ने जो किया, वह सबसे शर्मनाक इतिहास बन गया। सैकड़ों लोगों को बजरी के ट्रैक्टर, ट्रक, डंपर और जेसीबी के नीचे कुचलकर मार दिया गया। कई जगह पर पुलिस और वन विभाग के अधिकारियों तक को पीटा और मारा गया। बजरी के दाम आसमान पर पहुंच गये। रोक से पहले बजरी का एक ट्रक 15 हजार रुपये में मिल जाता था, वह 80 हजार रुपये में बेचा गया। 1500 रुपये की मिलने वाले ट्रोली 10 हजार रुपये तक में बेची गई। प्रदेश में बजरी माफिया ऐसा पनपा कि संबंधित क्षेत्र में पुलिस के पास केवल बजरी माफिया के अलावा कोई काम ही नहीं रहा।
यकायक बजरी के कारोबारियों की संख्या बढ़ने लगी। गांवों और कस्बों में बजरी के अवैध ट्रक और ट्रैक्टर यमदूत बनकर दौड़ने लगे। कई जगह पर मासूम लोगों को रौंद दिया गया। शासन—प्रशासन मूकदर्शक बनकर देखता रहा। दोनों ही सरकारों ने शीर्ष कोर्ट में वैध बजरी शुरू करने के लिए मजबूत पैरवी नहीं की, जिसके कारण अवैध कारोबार से सीएम से लेकर मंत्रियों, विधायकों और सांसद के पास अथाह मात्रा में धन पहुंचाने के आरोप लगे।
जनता ऐसे लुटी कि मकान बनाने का सपना मध्यम वर्ग का भी मुश्किल हो गया। 100 वर्ग गज में जो मकान 10 लाख रुपये में आसानी से बन जाता था, उसकी कीमत दो से ढाई गुणा तक पहुंच गई। बजरी तस्करों के हौसले इतने बुलंद हो गये कि किसी भी व्यक्ति को कुचलकर भाग गये, लेकिन पुलिस उनको पकड़ नहीं पाई। अवैध खनन करने वाले कुछ लोग थे, लेकिन बजरी खनन बंद होने पर हजारों की संख्या में हो गये। जो व्यक्ति एक ट्रैक्टर से बजरी डालने का काम करता था, वह दर्जनों डंपर, जेसीबी और ट्रैक्टरों का मालिक हो गया। जो थाने में जाने से भी डरता था, वो कलेक्टर एसपी तक को अपनी जेब में रखने लगा।
बजरी तस्करी के चलते प्रदेश में हालात ये हो गये कि आमजन का जीना मुहाल हो गया। जैसे ही बजरी का ट्रक या ट्रैक्टर दिखाई देता, वैसे ही लोग सड़क से किनारे हो जाते थे। अवैध खनन की बजरी से भरे ट्रक और ट्रैक्टर यमदूत की तरफ बेइंतहा रफ्तार पर बेखौफ दौड़ने लगे। प्रशासन कहीं गायब हो गया, तब नेताओं के धरने, प्रदर्शन केवल भाषण तक सिमटे हुए थे। कोई सड़क पर उतरकर इस माफिया के खिलाफ सरकार को घुटनों पर नहीं ला पाया। भाजपा के समय बजरी खनन बंद हुआ तो कांग्रेस ने आरोप लगाए और जब सरकार कांग्रेस के आ गई तो भाजपा ने आरोप लगाने शुरू कर दिये, जबकि दोनों ने ही वास्तव में सड़क पर उतरकर माफिया के खिलाफ खौफ पैदा नहीं किया।
खास बात यह है कि बजरी बंद के दौरान भी सरकारी प्रोजेक्ट्स में वही बजरी पहुंच रही थी, जिसके खनन पर रोक थी। जिम्मेदार ही वो सब कुछ कर रहे थे, जो बजरी माफिया कर रहा था। प्रदेश में सरकार के दर्जनों प्रोजेक्ट्स चल रहे थे, जिनमें अवैध खनन से बजरी पहुंचाई जा रही थी। मंत्री, सांसद, विधायक, अफसरों से लेकर सरकारी कार्यालयों में होने वाले निर्माण कार्य में भी अवैध बजरी ही काम आ रही थी। मीडिया द्वारा अवैध बजरी की खबरें खूब छापी और दिखाई, लेकिन बजरी माफिया पर इसका रत्ती भर पर प्रभाव नहीं पड़ा और ना ही सरकार के ऊपर असर हुआ।
इस दौरान 11 नवंबर 2021 को बजरी खनन पर रोक तो हट गई, लेकिन ना तो बजरी माफिया रुका और ना ही उनके वाहन। मजेदार बात यह है कि शीर्ष कोर्ट द्वारा रोक हटाए डेढ़ साल से अधिक गुजर गया, किंतु इसके बाद भी बजरी के दाम नहीं घटे हैं। अवैध बजरी के समय जो दरें आसमान पर पहुंच गई थीं, उनको कम ही नहीं किया गया। आम आदमी आज भी वैसे ही लुट रहा है।
हनुमान बेनीवाल ने जून में आधा दर्जन रैलियां करने का वादा किया था, जिनमें से चार रैली हो चुकी हैं। इनमें नागौर और बीकानेर में रातभर धरना देकर अवैध टॉल नाकों को हटाने का काम किया है। हालांकि, तूफान के चलते 17 को टोंक में होने वाली रैली कैंसिल हो गई, लेकिन भीलवाड़ा में सभा हो चुकी है, जहां पर बजरी माफिया के समर्थकों ने हनुमान बेनीवाल के खिलाफ ही प्रदर्शन कर दिया था। कितनी मजेदार बात है कि जो आदमी बजरी माफिया के खिलाफ रैली कर रहा है, उसी के खिलाफ बजरी माफिया प्रदर्शन कर कलेक्टर को ज्ञापन सौंप रहा है और प्रशासन उनके खिलाफ कार्यवाही करने के बजाए सहयोग कर रहा है।
जिस दिन में भीलवाड़ा में बेनीवाल के खिलाफ प्रदर्शन किया गया था, उस दिन मेघराज सिंह विदेश में बताए गये थे और उनके करीबी लोग यह भी दावा कर रहे थे कि प्रदर्शन मेघराज सिंह ने नहीं करवाया था, बल्कि उनकी नजर में हीरो बनने का प्रयास करने वाले बजरी कारोबार से जुड़े लोगों ने किया था, ताकि उनको बजरी खनन का काम मिल जाए।
अब यह चीज तो शासन, प्रशासन, सरकार और अदालतों को तय करना है कि सांसद हनुमान बेनीवाल सच बोल रहे हैं, या मेघराज सिंह का कारोबार सही हैं, लेकिन इतना तय हो चुका है कि डेढ साल पहले बजरी खनन पर रोक हटने के बाद आज तक भी ना तो बजरी तस्करी बंद हुई है और ना ही आम आदमी को कम उचित दाम पर बजरी मिल रही है। प्रदेशभर में दर्जनों ऐसी जगह हैं, जहां पर शासन प्रशासन की नाक के नीचे, थानेदारों, तहसीलदारों और कलेक्टरों की शह पर बजरी का अवैध खनन जारी है। आज जितना वैध खनन हो रहा है, उसकी आड़ में उससे कई गुणा अधिक अवैध खनन हो रहा है और सरकार की तंद्रा टूटने का नाम नहीं ले रही है।
इरादे चाहे जो भी हों, लेकिन इतना पक्का हो चुका है कि सांसद हनुमान बेनीवाल बजरी माफिया के खिलाफ हल्ला बोलकर युवाओं को जगाने का काम शुरू कर चुके हैं। बावजूद इसके, जो बजरी माफिया के समर्थक हैं, वो ही प्रदर्शन करने लगे हैं किंतु शासन प्रशासन मनचाही नींद में है, तो अशोक गहलोत सरकार शायद वसुंधरा राजे सरकार की तरह 5 या 10 करोड़ रुपये महीना लेकर चुप है। लेकिन सबसे खराब चुप्पी आम जनता की है, जो उनके समर्थन में रैली करने वाले नेता के साथ भी खड़े होने के बजाए मुंह फेरकर कबूतर की तरह बैठी है।
Post a Comment