पायलट को रोकने के लिए गहलोत ने चली अपनी आखिरी चाल


Ram Gopal Jat

राजस्थान में नंवबर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। अभी जुलाई का महीना चल रहा है, चुनाव होने से ठीक करीब दो से ढाई महीने पहले आचार संहिता लग जायेगी, यानी सरकार के पास काम करने के लिए केवल दो महीने का समय बचा है। उसके बाद टिकट बंटवारे से लेकर चुनाव प्रचार के लिए सियासी दल अपनी ताकत झौंक देंगे। 

यहां क्लिक कर यह भी देखें: अशोक गहलोत का यह आखिरी हथियार सचिन पायलट को रोकने के लिये ही है।

राजस्थान में बीते 30 साल से एक बार भाजपा, एक बार कांग्रेस सत्ता में आने की परंपरा बन गई, जिसके कारण भाजपा इन दिनों सुस्त होकर भी सत्ता का सपना देख रही है, तो सीएम गहलोत ने अपनी सरकार की योजनाओं के सहारे सत्ता रिपीट होने का दावा ठोक रखा है। 


जीत या हार की परंपरा बदलना राजनीतिक दलों के हाथ में नहीं है, इसलिये यह आने वाले 6 महीने में साफ हो जायेगा कि सत्ता रिपीट होगी या सत्ता बदलने की परंपरा टूटेगी? लेकिन ऐन वक्त पर टिकट वितरण की परंपरा बदलना जरुर सियासी दलों के हाथ में है। राजस्थान में राजनीतिक पार्टियां अपने उम्मीदवारों के नाम की घोषणा चुनाव से ठीक पहले ही करती हैं, जिस इस बार सीएम अशोक गहलोत बदलना चाहते हैं, ताकि सत्ता बदलना की परंपरा को बदला जा सके।


कांग्रेस सूत्रों का दावा है कि कांग्रेस इस बार चुनाव की घोषणा से 2 महीने पहले ही अपने उम्मीदवार मैदान में उतार देगी। खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा है कि कम से कम दो महीने पहले उम्मीदवार तय होने चाहिये, ताकि उनको जयपुर—दिल्ली के बीच चक्कर नहीं लगाकर जनता के बीच में जाने का अवसर मिल सके।


अशोक गहलोत ने जयपुर में आयोजित यूथ कांग्रेस के एक कार्यक्रम में एक तरह से अपने आलाकमान को सलाह देते हुए कहा था कि 'दिल्ली में लंबी बैठकों का सिस्टम बंद होना चाहिए। दो महीने पहले टिकट फाइनल कर दें या जिसे टिकट मिलना है, उसे इशारा कर दें। वो लोग क्षेत्र में जाकर अपने काम में लग जाएं। प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा को भी कहा है, दो महीने पहले टिकट तय हो जाएं। जिन्हें टिकट मिलना है, वह दो महीने पहले ही तय हो जाएं।'


अब सवाल यह उठता है कि आखिर अशोक गहलोत क्यों चाहते हैं कि चुनाव से दो माह पहले टिकट तय हो जाएं? क्या इतनी जल्दी टिकट घोषित होने से कांग्रेस ज्यादा सीटें जीत सकती है? क्या पहले उम्मीदवार घोषित करने से टिकट से वंचित दावेदारों से बगावत का खतरा नहीं रहेगा? समझने वाली बात यही है कि आखिर सीएम अशोक गहलोत ने दो माह पहले टिकट तय करने का फॉर्मूला पार्टी के सामने क्यों रखा है?


कांग्रेस सूत्रों का मानना है कि अशोक गहलोत इस बार अपनी सरकार रिपीट के लिए हर वह फॉर्मूला आजमा रहे हैं, जो कांग्रेस को जीत दिला सके। गहलोत लगातार सत्ता रिपीट का दावा कर खुद की पार्टी, आम जन और विरोधियों में यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि इस बार कांग्रेस फिर से सत्ता में आ रही है। कांग्रेस के गहलोत गुट का यह मानना है कि सीएम के जिलों में दौरे और राहत शिविरों में लाभार्थियों की संख्या से यह संदेश सरकार के प्रति रिपीट होने का भाव बनाता भी जा रहा है।


इसलिए अशोक गहलोत का मानना है कि यदि विधानसभा चुनाव से 2 माह पहले उम्मीदवारों के टिकट घोषित कर दिए जाते हैं तो प्रत्याशी को जनता के बीच जाकर प्रचार करने का पूरा अवसर मिल जाएगा। इसके साथ ही अगर टिकट घोषणा के बाद कोई उम्मीदवार बगावत करते हैं तो समय रहते उनको भी पार्टी के पक्ष में साधा जा सकेगा, जिससे वोट का बंटवारा नहीं होगा। 


दरअसल, ऐसा अक्सर होता रहा है कि चुनाव के ठीक पहले टिकट वितरण होने से नाखुश लोगों द्वारा बगावत की जाती है, जिसको रोकने में कांग्रेस कमजोर पड़ जाती है। ऐसे में पार्टी के वोट बंट जाते हैं और फिर उसको कई सीटों पर नुकसान उठाना पड़ता है। गहलोत चाहते हैं कि समय पर टिकट वितरण हो जाये तो बाकी लोगों केा मैनेज करने का समय मिल जायेगा। क्योंकि जो पार्टी सत्ता में होगी, वो साम, दाम, दण्ड, भेद के जरिये बागियों को कंट्रोल करने का काम कर सकती है। आचार संहिता लगने के बाद सरकार के हाथ में पुलिस प्रशासन भी नहीं होता है, जिससे बाकी कंट्रोल में नहीं होते हैं।


दूसरा सबसे बड़ा फैक्टर यह है कि इस तरह से जल्दी टिकट वितरण के जरिये अशोक गहलोत सत्ता में रहते अपने लोगों टिकट दिलाने में कामयाब हो जायेंगे। आज की तारीख में देखा जाये तो सरकार के पक्ष में करीब 100 विधायक हैं, जिनको गहलोत से टिकट मिलने की उम्मीद है। 


सीएम चाहते हैं कि उनको पहले टिकट देकर पार्टी में सचिन पायलट खेमे के टिकटों में सेंधमारी की जाये और पायलट कैंप के विधायकों के टिकटों पर भी अपने समर्थक कार्यकर्ताओं को टिकट दिलाने का दबाव बनाया जा सके। इस तरह से अशोक गहलोत दोहरा गैम खेल रहे हैं। एक तरफ अपने समर्थक विधायकों के टिकट पक्के करना चाहते हैं तो साथ ही सचिन पायलट के हिस्से में आने वाले टिकटों में भी सेंधमारी कर उनको चुनाव से पहले ही कमजोर करना चाहते हैं। 


अब समझने वाली बात यह है कि अशोक गहलोत के दिमाग में ये बात आई कहां से? दरअसल, हाल ही कर्नाटक में भाजपा को सत्ता से बाहर कर कांग्रेस ने सरकार बनाई है। कर्नाटक में चुनाव से करीब डेढ़ माह पहले ही कांग्रेस ने अपने ज्यादातर उम्मीदवार घोषित कर दिए थे। 


प्रत्याशियों की पहली और दूसरी सूची तो कांग्रेस ने चुनाव आयोग द्वारा चुनाव की घोषणा करने से पहले ही जारी कर दी थी। जहां 10 मई को मतदान होना था, जबकि पार्टी ने पहली लिस्ट 17 मार्च को ही जारी कर कर दी थी। नतीजा यह हुआ कि पार्टी ने एक मोर्चे पर बढ़त बनाई और उम्मीदवारों को बेखौफ होकर प्रचार करने का अधिक समय मिल गया।


कांग्रेस ने करीब डेढ महीने पहले 25 मार्च को पहली सूची घोषित करके 124 उम्मीदवार मैदान में उतारकर भाजपा से रणनीतिक बढ़त हासिल कर ली थी। इसके बाद कांग्रेस ने 42 प्रत्याशियों की दूसरी सूची भी 6 अप्रैल को जारी कर दी। चुनाव आयोग की तरफ से 13 अप्रैल को चुनाव की अधिसूचना जारी की गई थी, उससे पहले तो कांग्रेस ने अपने 166 उम्मीदवार जनता के सामने पेश कर​ दिये थे। 


बचे हुए प्रत्याशी भी चुनाव की घोषणा होने के दो-तीन दिन में ही घोषित कर दिए थे। भाजपा ने टिकट वितरण करने में काफी देर लगा दी, जिसका उसे सत्ता से बाहर होने के रुप में नुकसान उठाना पड़ा। कांग्रेस की कर्नाटक जीत मॉडल के रुप में प्रचारित किया जा रहा है।


राजस्थान की बात करें तो साल 2018 के चुनाव में 6 अक्टूबर को चुनाव की अधिसूचना जारी हुई, जबकि 7 दिसंबर को चुनाव हुए थे। 12 नवंबर से नामांकन प्रक्रिया शुरू हुई, किंतु कांग्रेस ने नॉमिनेशन प्रोसेज शुरू होने तक एक भी टिकट की घोषणा नहीं की थी। कांग्रेस की ओर से 152 टिकटों की पहली सूची 15 नवंबर को रात साढ़े 12 बजे जारी की गई थी। 


दूसरी सूची 17 नवंबर को और तीसरी लिस्ट 18 नवंबर को जारी हुई। जबकि 19 नवंबर नामांकन का अंतिम दिन था। यानी नॉमिनेशन के आखिरी दिन से ठीक एक दिन पहले तक कांग्रेस की सूचियां आती रहीं। उम्मीदवार घोषित करने में देरी का कांग्रेस को खामियाजा उठाना पड़ा था। 


हालांकि, सत्ता विरोधी लहर और किसान कर्जमाफी के वादे के चलते जोड़-तोड़ के जरिए कांग्रेस ने सत्ता प्राप्त तो कर ली, किंतु बहुमत के आंकड़े को पार नहीं कर पाई। उस चुनाव में 200 में से 100 सीटों पर कांग्रेस को हार झेलनी पड़ी, यानी जीत का प्रतिशत 50 रहा।


कहा जा रहा है कि पिछले चुनाव से सबक लेते हुए कांग्रेस ने टिकट वितरण समय पर करने की दिशा में बढ़ना शुरू कर दिया है। राज्य की सभी 200 सीटों पर कई सर्वे करवाए गये हैं। कांग्रेस सूत्रों के अनुसार इस बार चुनावों के लिए प्रोफेशनल एजेंसी से सर्वे करवाया गया है। उसी सर्वे के अनुसार गहलोत पहले 100 टिकटों का वितरण करना चाहते हैं।


इससे एक ओर जहां गहलोत अपने साथियों को टिकट देकर कर्जा चुकाना चाहते हैं, तो साथ ही पायलट कैंप के विधायकों और कार्यकर्ताओं को टिकट की रेस से बाहर ने का गैम खेलने की कोशिश करेंगे। पायलट कैंप इन दिनों चुप है और यह माना जा रहा है कि शनिवार या रविवार को सचिन पायलट की दिल्ली में राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा से मुलाकात हो सकती है। इस मुलाकात का 25 दिन से इंतजार है।


माना जा रहा है कि इस मुलाकात के बाद राज्य कांग्रेस की सूरत और सीरत, दोनों साफ हो जायेगी। पायलट कैंप की मांगों को यदि माना गया तो कांग्रेस की सरकार रिपीट कराने के लिए अनुकूल महोल बनेगा और यदि नहीं मानी गईं तो सचिन पायलट के अगले कदम पर सबकी निगाहें टिक जायेंगी।

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