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Video: भाजपा गुजरात मॉडल और कांग्रेस कर्नाटक मॉडल पर लडेगी चुनाव



राजस्थान सरकार की रेवडियों का दौर जारी है। अशोक गहलोत की सरकार हर दिन किसी ना किसी बहाने करोड़ों रुपय विज्ञापन पर फूंक रही है। अखबारों, टीवी चैनल्स, सोशल मीडिया और प्रदेशभर में हर पिलर, दीवार, बिजली के खंबें पर टंगे हंसते खिलखिलाते अशोक गहलोत के विज्ञापन प्रदेश की त्राहिमाम करती जनता को मुंह चिढ़ाने का काम कर रहे हैं। विज्ञापनों में जिस तरह की गहलोत की हंसती हुई फोटो चल रही है, उससे ऐसा लगता है कि राज्य में रामराज्य आ गया है। जबकि हकिकत यह है कि अपराध, महिलाओं का यौन शोषण, दलितों पर बेइंतहां अत्याचार में राजस्थान ने सभी राज्यों के रिकॉर्ड तोड़ डाले हैं। 


इस बीच अशोक गहलोत का पांच साल पुराना ट्वीट भी वायरल हो रहा है, जो उन्होंने वसुंधरा राजे सरकार के विज्ञापनों का विरोध करते हुए विपक्ष में रहते लिखा था। तब अशोक गहलोत दिल्ली से जयपुर आकर एक दो महीनों में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके वसुंधरा राजे की सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने, बजरी तस्करी के लिए दुख जताने, महिला अत्याचार पर उंगली उठाने, पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कानून बनाने, किसानों का कर्जा माफ करने, युवाओं को सरकारी नौकरी देने और राजनीति में सुचिता का पाठ पढ़ाने का बहुत परोपकारी काम करके जाते थे। इस ट्वीट को आप ध्यान से देखिए, कैसे अशोक गहलोत विपक्ष में बैठकर वसुंधरा सरकार को संतों की तरह प्रवचन दे रहे हैं।


हालांकि, यह बात सही है कि वसुंधरा राजे की सरकार में कुछ कमियां रही होंगी, तभी राज्य की जनता ने उनको सत्ता से बाहर बिठाया था, लेकिन अशोक गहलोत की यह सरकार तो सारी हदें ही पार कर चुकी है। केवल करोड़ों रुपयों विज्ञापनों पर फूंककर ही सरकार रिपीट कराने का सपना देख रही है, जबकि जनता जल्द से जल्द इस विफल सरकार से मुक्ति चाह रही है। सरकार के आखिरी दिन चल रहे हैं और जिस तरह से अशोक गहलोत ने खुद ही स्क्रूटनी कमेटी की मीटिंग में अपने मंत्रियों और सांसदों को लताड़ा है, उससे साफ हो गया है कि सीएम अब सत्ता रिपीट कराने के सपने के कारण पूरी तरह से बोखला गये हैं। 


चार दिन पहले कांग्रेस के वॉर रूम में गहलोत ने जिस प्रकार प्रताप सिंह खाचरिवायास, रघु शर्मा, नीरज डांगी और सुखराम विश्नोई को आड़े हाथों लिया है, उससे एक बात बिलकुल साफ हो गई है कि ये खींझ केवल इन चार नेताओं के उपर नहीं थी, बल्कि असली गुस्सा तो सचिन पायलट पर आ रहा है, जो भले ही कहने को तो कांग्रेस आलाकमान के जरिए अशोक गहलोत के साथ सुलह कर चुके हों, लेकिन हकिकत यह है कि उनका साथ नहीं मिलने के कारण सरकार बुरी तरह से बैकफुट पर आ चुकी है। समर्थक कहते हैं कि अशोक गहलोत के चेहरे पर चुनाव लड़ा और जीता जा सकता है, लेकिन खुद गहलोत इस बात को अच्छे से जानते हैं कि सचिन पायलट के बिना चुनाव जीता जाना सपना ही है। 


कांग्रेस सूत्रों का दावा यह है कि अशोक गहलोत का गुस्सा ना तो खाचरियावास पर था, ना नीरज डांगी पर, ना रघु शर्मा पर और ना ही सुखराम विश्नोई पर, असल में गहलोत ने परोक्ष रुप से सचिन पायलट पर गुस्सा जाहिर किया था, जो इन दिनों अशोक गहलोत की सरकार का प्रचार नहीं कर रहे हैं। संभवंत: पायलट ने यह सोच लिया है कि जब कांग्रेस आलाकमान राजस्थान आएगा, तभी वह अशोक गहलोत के साथ मंच साझा करेंगे और कांग्रेस को वोट देने की अपील करेंगे, अन्यथा किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम में कांग्रेस के लिए वोट मांगने का नहीं करेंगे। बिलकुल यही रवैया चार साल से वसुंधरा राजे का रहा है। 


कांग्रेस पार्टी ने पहले कहा था कि सितंबर के अंत तक कम से कम 100 उम्मीदवारों की घोषणा हो जाएगी, लेकिन चार दिन पहले गहलोत ने खुद कहा है कि सितंबर लास्ट में या अक्टूबर के पहले सप्ताह में पहली सूची जारी की जाएगी। पूर्व के अनुभव के आधार पर अक्टुबर के पहले सप्ताह में आचार संहिता लगने की संभावना है। इसी को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने पहली सूची उससे पहले जारी करने की योजना बनाई है, जिससे प्रत्याशियों को प्रचार करने का पूरा अवसर मिल सके। यही रणनीति कांग्रेस ने कर्नाटक में बनाई थी, जिसका सुखद परिणाम मिला है। दरअसल, कांग्रेस ने कर्नाटक में आचार संहिता से पूर्व ही 24 मार्च को 124 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी थी। कर्नाटक में 224 सीटों में से 124 की सूची जारी होने से कांग्रेस के लोगों में जोश आ गया। इसके कारण उम्मीदवारों को चुनाव प्रचार करने का अधिक समय मिल गया और परिणामस्वरुप कांग्रेस की सरकार बनी। 


कहा जाता है कि बीजेपी के सरकार के खिलाफ बहुत अधिक सत्ता विरोधी लहर नहीं थी, लेकिन आचार संहिता से पहले अधिकांश टिकट देने और उसके तुरंत बाद सभी टिकट देने के कारण कांग्रेस को सत्ता मिली। इसी को कर्नाटक मॉडल कहा गया। अब इसी को राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में दोहराने की रणनीति चल रही है। इस वजह से राजस्थान में आचार संहिता से पहले एक सूची और आचार संहिता के बाद जल्द से जल्द सभी उम्मीदवार घोषित करने पर विचार किया जा रहा है। पिछली दिनों अशोक गहलोत ने भी कहा है कि पार्टी कर्नाटक मॉडल पर चुनाव लड़ेगी। कहा जा रहा है कि अशोक गहलोत, सचिन पायलट, सीपी जोशी, गोविंद सिंह डोटासरा जैसे करीब 50 नेताओं की पहली सूची आचार संहिता से पहले जारी हो जाएगी। उसके बाद दूसरी सूची में भी इतने ही नाम होंगे, जहां पर पार्टी में ज्यादा बगावत का खतरा नहीं है और दो या तीन ही दावेदार हैं। कांग्रेस ने खुद 85 सीटों पर जीत तय मानी है, जबकि सरकार बनाने के लिए कम से कम 101 सीट होनी चाहिए।


इधर, भाजपा भी एकजुट होने का काम तो नहीं कर पाई है, लेकिन राजस्थान की कमान खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने हाथ में ले ली है। बताया जाता है कि राजस्थान भाजपा के सभी उम्मीदवारों की सूची खुद पीएम मोदी के हाथ से होकर ही निकलेगी। पार्टी ने गुजरात की सत्ता में रहते 27 साल पूरे करने के बाद भी पिछले साल हुए चुनाव में रणनीति बनाने का काम खुद मोदी और ​अमित शाह ने किया था। गुजरात में भाजपा ने सत्ता विरोधी लहर और उम्मीदवारों के खिलाफ विरोध की संभावना के चलते 182 में से 85 टिकट काट दिए थे, जबकि 38 विधायकों को ही टिकट नहीं दिया गया। इसके चलते पार्टी ने सत्ता विरोधी लहर को मिटाकर इतिहास रच दिया। पार्टी ने पहली बार 156 सीटों पर जीत हासिल की।


गुजरात में टिकट काटकर पार्टी ने फिर से सत्ता प्राप्त की थी। इसी को गुजरात मॉडल कहा गया। भाजपा अब राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी यही मॉडल अपनाने जा रही है। पार्टी ने राजस्थान के 200 में से करीब 100 टिकट बदलने का मानस बनाया है। साथ ही मौजूदा 70 विधायकों में से भी करीब 30 विधायकों के टिकट कटने तय है। भाजपा का मानना है कि जो विधायक चार या उससे अधिक बार जीते हैं, उनको मौका नहीं दिया जाएगा। इसी तरह से पिछले चार चुनाव में दो जीते हैं और दो हारे हैं, उनको भी घर बिठाया जाएगा। ऐसे ही 70 से अधिक उम्र के विधायकों में से भी अधिकांश को मौका नहीं दिया जाएगा। पार्टी ने पहले ही अगले 25 साल का ब्लूप्रिंट तैयार किया है, जिसके चलते युवाओं को अधिक से अधिक मौका दिया जाएगा।


पिछले दिनों जयपुर में जब पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मीटिंग की थी, तब यही निर्देश दिए गए थे कि बड़े पैमाने पर टिकट काटकर ऐसे लोगों को मैदान में उतारा जाएगा, जो जिताउ हो। यानी जो नेता पार्टी के दम पर चुनाव जीतने के कारण पार्टी पर बोझ बन चुके हैं, उनको बाहर बिठाया जाएगा। असल में भाजपा के अंदर करीब 50 नेता ऐसे हैं, जो पार्टी सत्ता में आती है, तभी जीत पाते हैं, पार्टी जब सत्ता से बाहर होती है तो हार जाते हैं। भाजपा ने तय किया है कि पहली सूची में इन नेताओं के टिकट काटे जाएंगे। हालांकि, उनके क्षेत्र में जिनका पैनल बनाया जाएगा, उसके लिए उनकी राय जरूर ली जाएगी।


अब देखने वाली बात यह होगी कि कर्नाटक मॉडल पर सवार कांग्रेस जल्दी टिकट वितरण के सहारे सत्ता रिपीट कराकर 30 साल का सत्ता बदलने का रिकॉर्ड तोड़ पाती है या गुजरात मॉडल से बड़े पैमाने पर टिकट बदलकर भाजपा पांच साल बाद फिर से सत्ता में वापसी कर तीन दशक से हर पांच साल में सत्ता बदलने की परंपरा को जारी रख पाती है। 

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