नहीं छूटने वाली कुर्सी क्यों छोड़ना चाहते हैं अशोक गहलोत?


Ram Gopal Jat

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कुछ दिन पहले दिए गये अपने ही बयान से किनारा कर लिया है। अशोक गहलोत ने इच्छा जाहिर करते हुए ​कहा कि यदि भविष्य में उनको अवसर मिलेगा तो वह कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना पसंद करेंगे। उन्होंने एक तरह से वर्तमान सीएम कार्यकाल से वीआरएस, यानी वॉलंट्री रिटायरमेंट स्कीम, मतलब स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति की इच्छा जाहिर कर दी है। अशोक गहलोत ने यह भी कहा है कि मुख्यमंत्री के सामने अध्यक्ष का पद 100 गुणा ज्यादा शक्तिशाली होता है, जिसको वह पाना चाहते थे, लेकिन परिस्थतियां कुछ ऐसी बनीं कि वह अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ पाए।


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सरकारी रिपीट होने पर सचिन पायलट को मंत्री बनाए जाने के सवाल पर अशोक गहलोत ने कहा कि वह मंत्री बनाने वाले कौन होते हैं? कांग्रेस पार्टी में आलाकमान से ही सीएम और मंत्री तय करता है। यानी राज्य में जो विधायकों की सर्वसम्मत राय से सीएम चुनने और सीएम की इच्छा से मंत्री बनाने की संवैधानिक बातें हैं, वो सब झूठ है, बल्कि कांग्रेस आलाकमान, यानी गांधी परिवार ही सीएम और मंत्री तय करता है। अशोक गहलोत ने रिपीट करते हुए कहा कि सचिन पायलट को 2009 में केंद्रीय मंत्री बनाया गया था, तब उन्होंने ने ही सुझाव दिया था। तब राज्य में कांग्रेस के 20 सांसद जीते थे, लेकिन 2007 के दौरान गुर्जर आरक्षण आंदोलन के कारण मामला बिगड़ा हुआ था और एक गुर्जर नेता को मंत्री बनाना था, इसलिए उन्होंने सचिन पायलट को मंत्री बनाने की सलाह दी थी। 


खबर यह नहीं है कि अशोक गहलोत ने क्या कहा? असली खबर यह है कि आखिर चुनाव बिलकुल नजदीक आते देख अशोक गहलोत ने ऐसा बयान देकर क्या जाहिर किया है? सचिन पायलट के साथ अशोक गहलोत का शीतयुद्ध अभी खत्म नहीं हुआ है। पायलट ने टोंक, ब्यावर और भीलवाड़ा का दौरा किया, जिस दौरान भीड़ ने साबित कर दिया कि आज भी कांग्रेस के किसी भी नेता अधिक भीड़ सचिन पायलट के साथ ही है। उसी दौरान जब समर्थकों ने पूछा कि  पायलट को सीएम क्यों नहीं बनाया? तब पायलट ने कहा कि जो बीत गया, उसे भूलकर आगे के बारे में सोचना है। पायलट के इस बयान के बाद अशोक गहलोत का बयान आया है, जो दोनों के बीच दूरियां कम करने के तौर पर देखा जा रहा है। 


अब सोचने वाली बात यह है कि जो कुर्सी अशोक गहलोत को छोड़ नहीं रही थी, उससे छुटकारा क्यों पाना चाहते हैं? आपको याद होगा कुछ दिन पहले ही अशोक गहलोत ने कहा था कि वह तो सीएम की कुर्सी को छोड़ना चाहते हैं, लेकिन यह कुर्सी उनको नहीं छोड़ रही है। क्या अशोक गहलोत यह कहना चाह रहे हैं कि जब राज्य में कांग्रेस की सरकार सत्ता से बाहर हो जाएगी, तब वह केंद्र की राजनीति करना पसंद करेंगे। इसलिए उन्होंने ऐसा बयान देकर पहले ही कांग्रेस आलाकमान को विकल्प दे दिया है।


अशोक गहलोत ने पिछले दिनों ही कहा था कि वह जो बोलते हैं, वो ऐसे ही नहीं बोलते हैं, बल्कि काफी सोच समझकर बोलते हैं। आपको याद होगा 25 सितंबर 2022 को जयपुर में क्या हुआ था? जब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर अशोक गहलोत का नाम फाइनल हो गया था और सचिन पायलट को राज्य का सीएम बनाने की बात भी हो चुकी थी, लेकिन जब सोनिया गांधी के नुमाइंदे बनकर मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन जयपुर पहुंचे तो विधायक दल की बैठक बुलाने के बाद भी अशोक गहलोत के समर्थक विधायकों ने सीएमआर में जाने के बजाए शांति धारीवाल के निवास पर समानांतर बैठक बुला ली। जिसमें तय हुआ कि यदि अशोक गहलोत को सीएम पद से हटाया जाता है तो इस्तीफे दे दिए जाएंगे। कांग्रेस के 92 विधायकों ने विधानसभाध्यक्ष सीपी जोशी को अपने इस्तीफे सौंप दिए।


इधर, सचिन पायलट कैंप के विधायकों समेत मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन सीएमआर में बैठक का इंतजार करते रहे। जब विधायक नहीं पहुंचे तो दोनों नेता नाराज होकर वापस दिल्ली चले गए। इसके बाद खुद अशोक गहलोत को दिल्ली तलब किया गया, जहां गहलोत ने उस घटनाक्रम के लिए सोनिया गांधी से माफी मांगते हुए अपना पक्ष रखा था। बीते करीब पांच साल में वही एक वक्त आया था, जब लगा कि कांग्रेस आलाकमान अशोक गहलोत को हटाकर सचिन पायलट को सीएम बनाना चाहता है। अब समझने वाली बात यह है कि आखिर अशोक गहलोत ने करीब 10 महीने बाद फिर से कांग्रेस अध्यक्ष बनने की इच्छा क्यों जताई है?


असल में दिसंबर में विधानसभा चुनाव हैं। इसको लेकर अशोक गहलोत सरकार ने तीन सर्वे करवाए हैं, जिनमें कांग्रेस अधिकतम 80 सीटें जीतने का दावा किया गया है। दूसरी तरफ भाजपा अब तक अलग अलग स्तर पर 6 सर्वे करवा चुकी है, जिन सभी में पूर्ण बहुमत से जीत तय बताई गई है। संभवत: अशोक गहलोत सत्ता जाने के बाद राज्य की सियासत छोड़कर अध्यक्ष बन राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित होना चाहते हैं, जहां अभी 82 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे पार्टी अध्यक्ष हैं। खड़गे अध्यक्ष हैं, लेकिन उनकी अधिक उम्र के कारण उतनी सक्रितया नहीं रहती है, जितनी अध्यक्ष की रहनी चाहिए। इन दिनों केंद्र में विपक्ष के गठबंधन का काम चल रहा है। इस गठबंधन को कांग्रेस लीड कर रही है, लेकिन अधिकांश दल राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। 


ऐसे में कांग्रेस को गैर गांधी नेता की जरुरत होगी। अध्यक्ष के चुनाव से पहले यह भी माना जा रहा था कि नया अध्यक्ष गांधी परिवार के इशारों पर काम करने वाला ही होगा, लेकिन जिस तरह से कर्नाटक मंत्रीमंडल में खड़गे ने अपने पक्ष के लोगों को जगह दिलाई है, उससे साफ हो गया है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष राज्यों की कांग्रेस सरकारों में हस्तक्षेप कर सकता है। पहले संभवत: अशोक गहलोत को यह अंदाजा नहीं रहा होगा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष बनकर वह अपनी मर्जी से फैसले कर पाएंगे। अशोक गहलोत का यह कहना इस बात का पक्का सबूत है कि अध्यक्ष का पद सीएम पद से 100 गुणा ज्यादा शक्तिशाली होता है, कि राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को अपने इशारों पर काम करवा सकते हैं, जिसमें राजस्थान का सीएम भी हो सकता है। 


अशोक गहलोत सीएम रहते राजस्थान में जो कर सकते हैं, वह सबकुछ राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते भी कर सकते हैं। इसके साथ ही यह भी माना जा रहा है कि यदि किसी सूरत में 2024 के आम चुनाव बाद विपक्षी गठबंधन की सरकार बनती है, तो फिर अध्यक्ष होने के नाते उनका पीएम बनने में भी नंबर आ सकता है। माना यह भी जा रहा है कि सचिन पायलट और कांग्रेस आलाकमान के बीच पिछले दिनों जो समझौता हुआ था, वह यही था कि आने वाले दिनों में अशोक गहलोत को अध्यक्ष बना दिया जाएगा और राजस्थान की कमान सचिन पायलट को सौंप दी जाएगी। इसमें भी दो बातें हैं, पहली बात तो यह कि सचिन पायलट को अब अंतिम दिनों में सीएम बनाकर उनकी इच्छा पूरी कर दी जाए। दूसरी संभावना यह है कि चुनाव से पहले पायलट को सीएम फेस घोषित कर सत्ता रिपीट कराने का रास्ता साफ कर दिया जाए। 


इसके तीन फायदे होंगे। पहला फायदा तो यह होगा कि दोनों नेता मिलकर चुनाव मैदान में जाएंगे तो कांग्रेस की सत्ता रिपीट होने की संभावना अधिक हो जाएगी। दूसरी बात यह है कि जब सत्ता रिपीट होगी और सचिन पायलट सीएम बनेंगे तो मंत्रीमंडल में अशोक गहलोत अपने लोगों को अधिक से अधिक स्थान दिला सकते हैं। तीसरी बात यह है कि अशोक गहलोत राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते सचिन पायलट की सरकार से पूरा प्रोटोकॉल पाने के हकदार हो जाएंगे। अशोक गहलोत यह भी जानते हैं कि सचिन पायलट जैसे युवा नेता के साथ तालमेल बिठाकर ही अपने बेटे वैभव गहलोत को राजनीति में स्थापित किया जा सकता है। आने वाले लोकसभा चुनाव में वैभव गहलोत को किसी ऐसी सीट से चुनाव लड़ाकर सचिन पायलट से ही प्रचार करवाया जा सकता है, जहां पर अशोक गहलोत समर्थक नहीं होने पर भी चुनाव जीता जा सके। 


इसके अलावा आम चुनाव में राजस्थान से लीड लेने का काम भी किया जा सकता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अगले लोकसभा चुनाव में ओबीसी का मुद्दा सबसे बड़ा रहने वाला है। देश में करीब 55 फीसदी आबादी ओबीसी समुदाय की मानी जाती है, जिसके सहारे सत्ता पाई जा सकती है। अभी भाजपा के पास नरेंद्र मोदी के रूप में सबसे बड़ा ओबीसी चेहरा मौजूद हैं। दूसरी ओर अशोक गहलोत भी ओबीसी से आते हैं। कांग्रेस इस रणनीति पर काम कर सकती है कि अशोक गहलोत को कांग्रेस की तरफ से गठबंधन का नेता बनाकर ओबीसी कार्ड खेला जाए। कांग्रेस के पास वैसे भी राष्ट्रीय स्तर पर अशोक गहलोत के कद जैसे नेता का अभाव ही है। इसको भी आसानी से पूरा किया जा सकता है। यदि अशोक गहलोत के बयान के पीछे कोई रणनीति है, तो इन्हीं में से कुछ खास है, जिसके चलते उन्होंने अब राष्टीय अध्यक्ष बनने की इच्छा जाहिर की है। 

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