वसुंधरा के बेटे को नहीं मिलेगी टिकट, भाजपा के 20 प्रत्याशी तय


Ram Gopal Jat

कांग्रेस पार्टी जहां राजस्थान, छत्तीसगढ़ में सत्ता रिपीट कराने के साथ ही मध्य प्रदेश और तेलंगाना में सत्ता प्राप्त करने की तैयारी कर रही है, तो भाजपा विधानसभा चुनाव के साथ ही लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटी हुई है। भाजपा ने आम चुनाव का पहला रोडमैप भी तैयार कर लिया है। इसमें पार्टी ने अपने 24 में से एक दर्जन सांसदों के टिकट बदलने का मन बना लिया है। पार्टी का मानना है कि जो सांसद दो से ज्यादा बार चुनाव जीत चुका है, उसको संगठन में काम दिया जाएगा। 


संगठन में जो वफादारी और ईमानदारी से काम करेगा, उसको प्रमोट करके राज्यसभा में भेजा जाएगा, उसके बाद केंद्र में मंत्री बनने का नंबर भी आ सकता है। पार्टी का मानना है कि जिस सांसद की उम्र 55 या उससे अधिक हो चुकी है, उनको भी लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ाया जाएगा, उसको संगठन के जरिए राज्यसभा भेजने का काम किया जाएगा, लेकिन 70 साल से उपर के नेताओं को टिकट देना बेहद कठिन है। इसका मतलब यह है कि पार्टी अपने एक दर्जन सांसदों को अगले साल होने वाले आम चुनाव में टिकट नहीं देगी। किंतु जिन सांसदों की उम्र 55 साल से अधिक नहीं हुई है, फिर भी दो से अधिक बार सांसद बन चुके हैं, उनका क्या किया जाएगा? इसके लिए पार्टी ने तीसरा रास्ता चुना है। पार्टी द्वारा ऐसे नेताओं को विधानसभा चुनाव में उतारने की तैयारी की जा रही है।

वीडियो देखें: वसुंधरा के बेटे दुष्यंत सिंह को नहीं मिलेगी टिकट, भाजपा के 20 प्रत्याशी तय

इसका मतलब यह हुआ कि अब पार्टी इस बार बीकानेर सांसद अर्जुनराम मेघवाल, लोकसभा स्पीकर ओम बिरला, जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, दौसा सांसद जसकौर मीणा, टोंक सांसद सुखबीर सिंह जौनापुरिया, उदयपुर सांसद अर्जनराम मीणा, झुंझुनूं सांसद नरेंद्र खींचड़, जयपुर सांसद रामचरण बोहरा, बांसवाड़ा सांसद कनकमल कटारा, भीलवाड़ा सांसद सुभाष बहेडिया, सीकर सांसद सुमेधानंद सरस्वति और अजमेर सांसद भागीरथ चौधरी को टिकट नहीं मिलेगा। इसके साथ ही दो से अधिक बार सांसद बनने के कारण वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह को भी टिकट नहीं दिया जाएगा। भाजपा सूत्रों के अनुसार इनके साथ ही राज्यसभा सांसद किरोड़ीलाल मीणा, दीया कुमारी, रंजीता कोहली, नरेंद्र खींचड़, सुखबीर सिंह जौनापुरिया जैसे नेताओं को विधानसभा चुनाव लड़ाने की तैयारी की जा रही है। 

 

लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी में जुटी भाजपा एक साथ कई फॉर्मूलों पर काम कर रही है। पार्टी में मौजूदा सांसदों के टिकट काटने से लेकर नए चेहरों को मौका देने तक पर मंथन जारी है, दूसरी तरफ राजस्थान विधानसभा में भी अपने करीब 100 प्रत्याशी बदलने का काम किया जाएगा। भाजपा देश की आजादी स्वर्ण जयंति तक संसद में युवा प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए काम कर रही है। इसके चलते इस बार आम चुनाव में पार्टी अपने 150 नए प्रत्याशी उतार सकती है। इनमें 41 से 55 साल की उम्र के प्रत्याशियों की संख्या ज्यादा होगी। मतलब राजस्थान से भाजपा के 24 में से 13 सांसदों को इस बार टिकट नहीं मिलेगा।


आजादी के बाद पहली लोकसभा में 26% सदस्यों की उम्र 40 से कम थी। बाद में संसद में युवा प्रतिनिधित्व कम होता गया। लोकसभा में तीन से 11 बार तक चुनाव जीतने वाले सांसदों की संख्या बढ़ती गई। इसे देखते हुए पार्टी दो से अधिक बार लोकसभा चुनाव जीत चुके नेताओं में से ज्यादातर को संगठन की जिम्मेदारी देने जा रही है। इसके अलावा अपवाद को छोड़कर किसी को राज्यसभा में भी दो बार से ज्यादा नहीं भेजा जाएगा। इसके कारण 80% ऐसे लोगों को मौका मिलेगा जो कानून, चिकित्सा, विज्ञान, कला, आर्थिक मामले, तकनीक, पर्यावरण और भाषा के जानकार हैं। इसके साथ ही सामाजिक संतुलन और संगठन को मजबूत करने के लिए दस में से 2 प्रत्याशी ऐसे होंगे जो जातीय समीकरण या संगठन में योगदान के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं।


माना जा रहा है कि देश में 65% से ज्यादा युवा हैं, ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनका प्रतिनिधित्व बढ़ाना चाहते हैं। अगर एक व्यक्ति को लगातार लोकसभा का टिकट मिलता है तो उसके साथी कार्यकर्ता चुनावी राजनीति से बाहर हो जाते हैं। इसलिए कुछ खास अवसर को छोड़कर किसी एक कार्यकर्ता को 2-3 बार से ज्यादा लोकसभा का प्रतिनिधित्व करने का मौका नहीं दिया जाए, जिससे नए लोगों को मौका मिलेगा।


लोकसभा में भाजपा के 135 सदस्य पहली बार और 97 दूसरी बार चुनाव जीते हैं। इसके अलावा मेनका गांधी और संतोष गंगवार लगातार 8वीं बार, डॉ. वीरेंद्र कुमार 7वीं बार लोकसभा में हैं। इसके अलावा आठ सांसद छठी बार, 11 सांसद 5वीं बार, 19 सांसद चौथी बार और 28 सांसद तीसरी बार जीते हैं। मौजूदा लोकसभा में सांसदों की औसत आयु 54 साल है। भाजपा के 25 से 55 साल के सांसदों का प्रतिनिधित्व 53% है। भाजपा 56 से 70 वर्ष के ज्यादातर सांसदों की जगह 41 से 55 साल आयु वर्ग वालों को लड़ाने की तैयारी कर रही है। 25 से 40 साल आयु वर्ग वालों को दोबारा से टिकट दिया जाएगा। ऐसे में 150 नए चेहरों को चुनाव में उतारना होगा।


पार्टी को लोकसभा में अधिक से अधिक युवा सांसद चाहिए। इसके साथ ही जिनको लोकसभा का दो से अधिक बार अनुभव हो गया है, उनको भी राज्यसभा भेजकर उनके अनुभव का लाभ लिया जाएगा। कुछ नेता ऐसे हैं, जिनको चुनाव लड़ाना जरूरी है। ऐसे नेताओं को अपवाद के रूप में चुनाव लड़ाया जा सकता है, किंतु उनको भी राज्यों की विधानसभा में भेजा जाएगा। ऐसे में भाजपा के 13 सांसदों में से करीब आधे एमपी राजस्थान विधानसभा का चुनाव लड़ सकते हैं। 


दूसरी तरफ भाजपा ने राज्य की उन 20 सीटों की पहली सूची तैयार करने का काम पूरा कर लिया है, जहां पर पार्टी लगातार तीन या उससे अधिक चुनाव हार रही है। इन सीटों को पार्टी ने डी कैटेगिरी में रखा है। भाजपा ने इस बार सीटों का चार ​वर्गों में बंटवारा किया है। ए कैटेगिरी में वो सीटें होंगी, जहां पर वर्तमान में भाजपा के विधायक हैं। बी कैटेगिरी में वो सीट होंगी, जहां पर पार्टी एक बार चुनाव हार चुकी है। मतलब भाजपा जहां 2018 में चुनाव हार गई थी। इसी तरह से सी कैटेगिरी वाली वो सीटें हैं, जहां पार्टी के प्रत्याशी दो बार हार चुके हैं। ऐसी सीटों की संख्या भी 10 हैं। जहां पर भाजपा प्रत्याशियों को तीन या उससे अधिक हार मिली है, उन सीटों को पार्टी ने डी श्रेणी में रखा है।


भाजपा के अनुसार डी कैटेगिरी की सीटों में बस्सी, झुंझुंनूं, नवलगढ़, खेतड़ी, फतेहपुर, लक्ष्मणगढ़, दातारामगढ़, कोटपुतली, सरदारपुरा, सपोटरा, महुआ, टोडाभीम, लालसोटा, सिकराय, खींवसर, बाड़मेर, बागीदौरा, वल्लभगर, सांचोर जैसी 20 सीटे हैं, जहां पर भाजपा लगातार तीन या उससे अधिक बार चुनाव हार रही है। इसमें भी दातारागढ़, बागीदौरा और नवलगढ़ में भाजपा आजतक खाता भी नहीं खोल पाई है। इन सीटों पर भाजपा लगातार 10 चुनाव हार चुकी है। इन सभी 20 सीटों पर भाजपा अपने प्रत्याशी बदलेगी।


लगातार दो बार से चुनाव हार रही सी श्रेणी की सीटों में श्रीगंगानगर, कोलायत, सादुलपुर, सरदारशहर, सुजानगढ़, बानसूर, डीग—कुम्हेर, राजाखेड़ा, सहाड़ा, हिंडोली हैं। यहां पर 2013 और 2018 में भाजपा लगातार दो बार हार चुकी है। इन सीटों पर भी उम्मीदवार बदले जाने तय हैं। इसके साथ ही पार्टी जहां पर पिछली बार चुनाव हारी थी, वहां पर भी कई उम्मीदवारों को बदलने का मंथन चल रहा है। इसका कारण यह है कि पार्टी के कई विधायक बेहद नि​ष्क्रिय होने के चलते उनके खिलाफ लहर बन चुकी है। 


पार्टी ने सभी 200 सीटों पर दूसरे राज्यों के विधायकों को प्रभारी बनाकर जतना की नब्ज टटोलने का काम किया है, जिसमें सामने आया है कि 70 में से करीब आधे विधायक अपने क्षेत्र में सक्रिय ही नहीं हैं। इसलिए मौजूदा विधायकों में से भी करीब 30 के टिकट काटे जाएंगे। इन सीटों पर आधा दर्जन सांसदों को उतारा जा सकता है। कहने का मतलब यह है कि पार्टी प्रत्याशियों उम्र, उनकी क्षेत्र में सक्रियता, संगठनात्मक सामर्थ्य और पार्टी के प्रति वफादारी देखकर ही टिकट फॉर्मूला तय कर रही है। इसी तरह का फॉर्मूला भाजपा पिछले साल गुजरात में अपना चुकी है।

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