डॉ. रामेदव चौधरी होंगे गोविंद सिंह डोटासरा के सामने भाजपा प्रत्याशी!



भाजपा के लिए जीत की अबूझ पहेली बन चुकी कुछ सीटों पर इस बार पार्टी विशेष प्लान के तहत काम किया जा रहा है। पार्टी ने ऐसी 20 सीटों का चयन किया है, जहां पर बीते तीन या उससे अधिक चुनाव में पार्टी प्रत्याशी लगातार हार रहे हैं। भाजपा की कमान इस बार सीधे पीएम मोदी के हाथ में बताई जा रही है। इसके चलते पार्टी की प्रदेश ईकाई को एक एक सीट जीत का लक्ष्य देकर काम किया जा रहा है। यही वजह है कि भाजपा ने सबसे अधिक उन सीटों पर फोकस किया है, जहां पार्टी के प्रत्याशी हार की हैट्रिक लगा चुके हैं। एक अन्य वीडियो में मैंने आपको बताया था कि भाजपा इन 20 सीटों को डी कैटेगिरी में रखकर सबसे पहले प्रत्याशी चयन का काम करेगी। 


पार्टी पिछले तीन या उससे भी अधिक बार चुनाव हार चुकी सीटों का चयन कर उनमें प्रत्याशी बदलने के साथ ही स्थानीय उम्मीदवारों को सोशल इंजिनियरिंग के जरिए मैदान में उतारने का मन बना चुकी है। दरअसल, भाजपा बस्सी, झुंझुनूं, नवलगढ़, खेतड़ी, फतेहपुर, लक्ष्मणगढ़, दांतारामगढ़, कोटपुतली, सरदारपुरा, सपोटरा, महुआ, टोडाभीम, लालसोट, सिकराय, खींवसर, बाड़मेर, बागीदौरा, वल्लभनगर, सांचौर में लगातार तीन या उससे अधिक चुनाव हार रही है। इनमें लक्ष्मणगढ़ सीट काफी हॉट सीट बन चुकी है। आरएसएस के खिलाफ लगातार तीखे बयान देने के कारण भाजपा इस बार गोंविद सिंह डोटासरा को अपने ही क्षेत्र में चित करने की योजना बना रही है। यही वजह है​ कि लक्ष्मणगढ़ में पार्टी प्रत्याशी चयन को लेकर काफी मंथन कर रही है। डोटासरा इस सीट पर 2008, 2013 और 2018 का चुनाव जीतकर हैट्रिक बना चुके हैं। इसी सीट पर पिछली बार भाजपा के दिनेश जोशी प्रत्याशी थे। दिनेश जोशी इस बार फिर से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं, जबकि वह लगातार तीन चुनाव हार चुके हैं।


इधर, भारतीय जनता पार्टी से दावेदारी करने वाले सुभाष महरिया 9 साल बाद कुछ समय पहले ही भाजपा में लौटे हैं, जिन्होंने 2013 में भारतीय जनता पार्टी से चुनाव लड़ा था, जिसमें उनको हार का सामना करना पड़ा। उसके बाद 201 में लोकसभा का टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर वो नवंबर 2016 में कांग्रेस में शामिल हो गए। तभी से महरिया लगातार कांग्रेस की गतिविधियों से जुड़े रहे। उससे पहले वर्ष 2014 में महरिया आम चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन 2009 में लोकसभा चुनाव हारने के कारण उनको टिकट नहीं दिया गया, जिसके बाद उन्होंने 2014 में उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा, लेकिन उस चुनाव में महरिया हार गए। सुभाष महरिया 2018 में लक्ष्मणगढ़ से कांग्रेस के उम्मीदवार गोविंद सिंह डोटासरा के लिए प्रचार किया और 2019 में सीकर लोकसभा से भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ कांग्रेस पार्टी प्रत्याशी के तौर पर लोकसभा चुनाव लड़ा, जिसमें भी इनको हार का सामना करना पड़ा था।


भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ताओं का कहना है कि 7 साल से कांग्रेस में रहे बाहरी व्यक्ति सुभाष महरिया को यदि लक्ष्मणगढ़ से भाजपा टिकट देती है, तो यह न्याय संगत नहीं होगा। इसका प्रमुख आधार स्थानीय कार्यकर्ताओं की खिलाफत और कुछ समय पहले हुए पंचायत चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशियों के खिलाफ प्रचार करना है। इसी तरह से इसी सीट से एक और भाजपा नेता ​हरिराम रिणवा दावेदारी रहे हैं। हरिराम रिणवा मूल रूप से धोद विधानसभा से आते हैं। कुछ समय पहले तक वह भाजपा किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे, लेकिन उनकी सक्रितया बेहद कम थी। लक्ष्मणगढ़ में भाजपा के सामने सबसे बड़ा प्रश्न स्थानीय का होता है, जिसका फायदा गोविंद सिंह डोटासरा उठाते रहे हैं। यहां की जनता बाहरी उम्मीदवार को पसंद नहीं करती है। यही वजह है कि टिकट देने से पहले ही पार्टी कार्यकर्ताओं का सुभाष महरिया और हरिराम रिणवा के खिलाफ गुस्सा फूटने लगा है। 


अब सवाल यह उठता है कि यदि सुभाष महरिया या हरिराम रिणवा में से किसी को टिकट नहीं मिलेगा तो भाजपा किसे उम्मीदवार बनाएगी? भाजपा में टॉप तीन दावेदारों में महरिया और रिणवा के अलावा एक नाम डॉ. रामदेव चौधरी का है। रामदेव चौधरी इस समय भाजपा के जिला चिकित्सा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष हैं। 52 वर्षीय डॉ. चौधरी लक्ष्मणगढ़ के ही सेवदड़ा के रहने वाले हैं, यानी स्थानीय नेता हैं। इनका छात्र राजनीति से ही सियासी जुड़ाव रहा है। सबसे पहले जोधपुर में एमबीबीएस करते हुए मेडिकल कॉलेज के जनरल सेक्रेटरी और फिर अध्यक्ष बने। उसी दौरान आरएसएस से जुड़ गये। एमडी करने के दौरान रेजिडेंट यूनियन एसपीएमसी बीकानेर के अध्यक्ष रहे। डॉ. चौधरी अभी आईएमए सीकर जिले के अध्यक्ष हैं और राज्य में प्राइवेट अस्पतालों के सबसे बड़े संगठन उपचार के प्रदेशाध्यक्ष हैं। हाल ही में जब अशोक गहलोत सरकार ने आरटीएच कानून बनाया, तब डॉक्टर्स के आंदोलन में इस संगठन की बड़ी भूमिका रही थी।


डॉ. रामदेव चौधरी को भाजपा टिकट क्यों दे सकती है? इसके पीछे दो बड़े कारण हैं। पहला कारण तो यह है कि वह लंबे समय से क्षेत्र में सामाजिक सेवाओं के साथ ही स्थानीय भाजपा की राजनीति में बड़ा दखल रखते हैं। कैंसर मरीजों का नि:शुल्क इलाज, गर्भवति महिलाओं के लिए कैंप लगाने, कच्ची बस्ति में बच्चों को अध्ययन के लिए सामग्री और पोशाक बांटने से लेकर पौधारोपण के कार्यक्रमों के कारण स्थानीय लोगों से सीधा जुड़ाव है। इसके अलावा जब से उनका भाजपा से नाता जुड़ा है, तब से लेकर अब तक पार्टी के प्रति उनकी वफादारी में कोई बदलाव नहीं आया है, जबकि उनके प्रतिद्वंदी सुभाष महरिया और हरिराम रिणवा पर कांग्रेस के प्रत्याशियों की मदद करने के गंभीर आरोप लग चुके हैं। ये दोनों ही नेता कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए हैं। 


दूसरी बात यह है कि भाजपा पिछली बार दिनेश जोशी को आजमा चुकी है, जो लगातार तीन चुनाव हार चुके हैं, यानी उनका टिकट कटना पक्का है। महरिया और रिणवा स्थानीय नहीं होने के कारण कार्यकर्ता उनसे नाराज भी हैं। डॉ. रामदेव चौधरी स्थानीय होने के साथ ही भाजपा में लंबे समय से सक्रिय कार्यकर्ता के रुप में काम करते रहे हैं। इनको पार्टी में डॉ. सतीश पूनियां, राजेंद्र सिंह राठौड़ और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का करीबी माना जाता है। 


सबसे बड़ी बात यह है कि गोविंद सिंह डोटासरा के सामने डॉ. रामदेव चौधरी को प्रत्याशी बनाए जाने के बड़े कारणों में सबसे बड़ी आबादी का उच्च शिक्षित चेहरा, पार्टी के प्रति गहरी वफादारी, स्थानीय होने के साथ ही चिकित्सा क्षेत्र में लगातार नि:शुल्क सेवाएं देने के कारण जनता से सीधा जुड़ाव है। इन सभी फैक्टर्स को देखते हुए भाजपा डॉ. रामदेव चौधरी को लक्ष्मणगढ़ से कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के सामने टिकट दे सकती है। 


लक्ष्मणगढ़ के जातिगत समीकरण की बात की जाए तो इस क्षेत्र में सबसे अधिक आबादी जाट समाज की है। कुल मतदाताओं में से करीब 35 फीसदी जाट मतदाता हैं। इसके बाद दूसरे नंबर पर एससी—एसटी 18 फीसदी, मुस्लिम 12 प्रतिशत, 10 फीसदी राजपूत, 9 प्रतिशत ब्राह्मण समेत बाकी छोटी संख्या वाली जातियां निवास करती हैं। क्षेत्र में करीब 85 प्रतिशत आबादी गांवों में निवास करती है, जबकि 15 फीसदी शहरी आबाद है। गांवों में 91 फीसदी से अधिक हिंदू हैं, जबकि शहरों में हिंदू आबादी करीब 65 फीसदी है। क्षेत्र में 2.73 लाख से अधिक मतदाता हैं। अब तक हुए 15 चुनाव में से 10 बार आ​रक्षित वर्ग से आने वाले उम्मीदवार जीते हैं, जबकि 6 बार सामान्य प्रत्याशियों की जीत हुई है। 15 में से 11 चुनाव अकेली कांग्रेस जीती है। भाजपा अब तक 2003 में केवल एक बार जीत पाई है। यहां पर स्थानीय बनाम बाहरी का मामला इतना भारी होता है कि सामान्य श्रेणी के चुनाव में सभी 6 उम्मीदवार जाट थे, लेकिन 5 चुनाव जीतने वाले प्रत्याशी स्थानीय थे। 

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