भारत क्यों नहीं दे रहा फिलिस्तीन का साथ?



इजरायल हमास के बीच युद्ध के दो सप्ताह पूरे हो चुके हैं। भारत ने हमास के आतंकी हमले की निंदा की और इजरायल का साथ देने की घोषणा की है। हालांकि, फिलिस्तीन के नागरिकों के लिए भारत मदद का ऐलान किया है। भारत ने गाजा पट्टी में अस्पताल पर हुए हमले की भी कड़े शब्दों में निंदा की है, किंतु भारत ने हमास के आंतकी हमले को नाजायज ठहराया है। भारत ने फिलिस्तीन की मदद की है, क्योंकि भारत के संबंध इजरायल की तरह ही फिलिस्तीन से भी अच्छे संबंध हैं। इस्लामिक देशों को लगता है कि भारत ने जमीन हड़पने वाले इजरायल का साथ दिया है, जबकि उसे इस संकट काल में फिलिस्तीन का साथ देना चाहिए था। भारत ने फिलिस्तीन का साथ भी दिया है और हमास के हमले को गलत भी कहा है। इससे साफ है कि भारत इस क्षेत्र में दोनों पक्षों के बीच शांति चाहता है, लेकिन आतंकी हमलों को सर्पेाट नहीं करता है।


ऐसा नहीं है कि भारत और इजरायल के बीच हमेशा ही ऐसे संबंध रहे हैं। कभी ऐसा भी समय था जब मान्यता के बाद भी 42 साल तक दोनों देशों के बीच किसी तरह के राजनेयिक संबंध तक नहीं थे। आज अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, जर्मनी जैसे देशों के अलावा भारत भी इजरायल के साथ खड़ा हुआ है। बीते कुछ सालों में भारत और इजरायल के बीच संबन्‍ध काफी मजबूत हुए हैं, लेकिन क्‍या आपको पता है कि एक समय ऐसा भी था, जब भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू इजरायल बनने के पक्ष में नहीं थे। बाद में उन्‍होंने इजरायल को राष्‍ट्र के तौर पर मान्‍यता दे दी थी। इससे पहले एक वीडियो में मैंने बताया था कि इजरायल और हमास के युद्ध के असली कारण क्या हैं। इस वीडियो में आप समझेंगे कि किस वजह से भारत ने फिलिस्तीनी हमास के बजाए इजरायल का साथ दिया है? क्या कारण है कि भारत ने फिलिस्तीन को संकट से निकलने के लिए मदद का ऐलान किया है, लेकिन फिर भी उसके साथ खड़े होने से इनकार कर​ दिया है? भारत के साथ ही खुद इजरायल, अमेरिका और ब्रिटेन ने भी गाजा में फिलिस्तीन को मदद की घोषणा की है। आप सोच रहे होंगे कि ये कैसे देश हैं और कैसा युद्ध है, जिसमें मारा भी जाता है और उनके पुनर्वास के लिए मदद भी की जाती है। 


असल बात यह है कि भारत, इजरायल समेत सभी देश फिलिस्तीन के नागरिकों को हुए नुकसान की भरपाई कर रहे हैं, लेकिन हमास नामक आतंकी संगठन का खत्मा करने के पक्ष में भी हैं। इसलिए एक ओर भारत, अमेरिका, ब्रिटेन समेत सभी देशों ने हमास के हमले की निंदा करते हुए इजरायल का साथ दिया है, जबकि संकट के समय फिलिस्तीन के नागरिकों के पुनर्वास के लिए सहायता भी दी है।


दरअसल, 14 मई 1948 को इजरायल को आजादी मिली थी। आजादी के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ में इजरायल और फिलिस्तीन दो देश बनाने का प्रस्ताव पेश हुआ। इसके पीछे तर्क दिया गया कि फिलिस्तीनी अरबों के साथ यहूदी लोगों का भी देश होना चाहिए। जब इस मुद्दे को लेकर वोटिंग हुई तो ज्यादातर वोट इजरायल और फिलिस्तीन दो अलग देश और स्वतंत्र देश बनाने की सहमति को लेकर मिले। उस समय भारत के तत्‍कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू फिलिस्‍तीन के बंटवारे के खिलाफ थे। इसलिए भारत ने 1948 में संयुक्त राष्ट्र में इजरायल के गठन के खिलाफ वोट किया। हालांकि, भारत ने 17 सितंबर, 1950 को आधिकारिक रूप से इजरायल को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता दे दी।


इजरायल को राष्‍ट्र की मान्‍यता देने के बाद भी भारत और इजरायल के बीच राजनयिक संबंध लंबे समय तक नहीं रहे। इसका कारण है कि भारत के रिश्‍ते फिलिस्‍तीन के साथ ज्‍यादा करीबी थे, भारत लंबे समय तक इजरायल को फिलिस्तीन की जमीन हड़पने के तौर पर ही देखता था। यही वजह थी कि संयुक्त राष्ट्र में कई मौकों पर भारत फिलीस्तीन के साथ खड़ा रहा है, लेकिन जब 1962 में भारत चीन से युद्ध लड़ रहा था, उस समय इजरायल ने भारत को मदद की पेशकश की। इजरायल ने भारत को मोर्टार, मोर्टार रोधी उपकरण दिए थे। इसके अलावा 1965 और 1971 में पाकिस्‍तान के खिलाफ युद्ध में भी भारत को अरब देशों का साथ नहीं मिला, जबकि भारत उनके करीबियों में था, लेकिन उस समय इजरायल ने भारत को सैन्य साजो सामान उपलब्ध कराए। हालांकि, इसके बाद भी दोनों देशों के बीच राजनीतिक संबन्‍ध शुरू नहीं हो सके।


साल 1977 में मोरारजी देसाई सरकार ने इजरायल से बेहतर संबंध बनाने की कोशिश की थी, उस समय इजरायल के रक्षा मंत्री कई सीक्रेट ट्रिप पर भारत आए थे, लेकिन सही मायने में भारत ने 1992 में इजरायल के साथ राजनयिक संबंध बहाल किया, जब पीवी नरसिंहराव देश के प्रधानमंत्री बने। उन्‍होंने पूर्ण रूप से इजरायल के साथ राजनीतिक संबन्‍ध की शुरुआत की। ये दोस्‍ती एनडीए सरकार, यानी अटल बिहारी वाजपेयी की भाजपा सरकार के कार्यकाल में बढ़ना शुरू हुई। साल 2003 में पहली बार भारतीय विदेश मंत्री जसवंत सिंह इजरायल की यात्रा पर गए। इसके बाद पीएम नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी इजरायल गए थे। वे इजरायल जाने वाले देश के पहले राष्ट्रपति बने थे। इसके बाद साल 2017 में पीएम नरेंद्र मोदी इजरायल के दौरे पर गए और इजरायल का दौरा करने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री बने और इस तरह दोनों देशों के बीच संबन्‍ध समय के साथ मजबूत होते गए।


फिलिस्तीन के बंटवारे के इतिहास को अगर आप देखें तो 1948 में फिलिस्‍तीन के दो टुकड़े हुए और एक नया देश इजरायल बना था। उससे एक साल पहले 1947 में भारत का बंटवारा हुआ था और पाकिस्‍तान बना था। दोनों ही जगह पर ये अंग्रेजों का किया धरा है। अंग्रेज जहां भी गए, उस देश को आजाद करने के बाद लड़ाई का एक बीज बो दिया। इजरायल और फिलिस्तीन बनाने का फैसला लंदन में हुआ। भारत-पाकिस्तान भी लंदन की ही देन हैं। बंटवारे के बाद ही दोनों देशों के बीच विवाद शुरू हो गया था, आज तक बदस्तूर जारी है। जैसे भारत में बाहर से आए मुस्लिमों को पाकिस्तान के रूप में एक बड़ा देश दे दिया गया, ठीक वैसे ही यूरोप से आए यहूदियों के इजरायल दे दिया गया, लेकिन भारत और फिलिस्तीन में बेसिक अंतर रहा। भारत ने जहां अलग देश होने पर भी पाकिस्तान के आंतक से मुकाबला करते हुए आगे बढ़ने का काम किया, तो इजरायल और पाकिस्तान में बड़ा अंतर रहा। इजरायल जहां खुद के विकास में जुट गया, तो पाकिस्तान ने हमेशा भारत को बर्बाद करने के प्लान में ही लगा रहा। दरअसल, पाकिस्तान और फिलिस्तीन, दोनों ही कट्टर इस्लामिक सोच में फंस गए, जबकि इजरायल और भारत ने आगे बढ़ने का रास्ता पकड़ा। अंग्रेजों ने दोनों ही जगह एक जैसे हालात छोड़े थे। भारत में जहां दोनों को लड़ने के लिए कश्मीर का मसला छोड़ दिया तो फिलिस्तीन में जेरूशलम का मामला अधर में लटका छोड़ दिया।


दरअसल, 1948 में फिलिस्‍तीन का बंटवारा बोल्फोर घोषणा पत्र के तहत किया गया। ये कॉन्‍सेप्‍ट अंग्रेज ही लेकर आए थे। आर्थर बेल्फोर ब्रिटेन के विदेश सचिव थे, जिन्होंने फिलिस्तीन में यहूदियों के लिए एक अलग देश बनाने की जरूरत बताई थी। बंटवारे के समय फिलिस्तीन की कुल जमीन का 44% हिस्सा नए देश इजरायल और 48% फिलिस्तीन को दिया गया। यरुशलम को 8% जमीन देकर इसे UNO का हिस्सा बना दिया गया। UNO के पास जो हिस्‍सा था, उस पर न तो इजरायल अपना हक दिखा सकता था और न ही फिलिस्‍तीन। अरब देश इससे नाराज हो गए। इजराइल बना ही था कि जंग शुरू हो गई, ठीक उसी तरह जैसे पाकिस्‍तान बनने के बाद कश्‍मीर मुद्दे पर दोनों देशों के विवाद शुरू हो गए थे और आज भी सिलसिला जारी है। इजरायल के बनने के साथ ही उस पर अरब देशों ने हमला बोल दिया, लेकिन इजरायल ने जंग जीत ली, क्‍योंकि ये उसके अस्तित्‍व का सवाल था।


भारत और पाकिस्‍तान के बीच कश्‍मीर को लेकर जो विवाद है वो तो आप जानते हैं, लेकिन यरुशलम को लेकर क्‍या विवाद है, वो नहीं जानते होंगे। दरअसल, ये शहर तीन धर्मों की आस्था का केंद्र है। ईसाई, मुस्लिम और यहूदी। ईसाई मानते हैं कि यरुशलम ही बैथलेहम है, जहां ईसा मसीह का जन्म हुआ। यहूदी मानते हैं कि यहीं से उनके धर्म की शुरुआत हुई और मुस्लिम मानते हैं कि उनकी तीसरी सबसे पवित्र मस्जिद अल अक्सा यहीं है।


बंटवारे के समय फिलिस्‍तीन को 48% जमीन दी गई थी, लेकिन फिलिस्‍तीन उसे भी संभाल नहीं पाया। इजरायल अपनी ताकत की दम पर फिलिस्तीन की जमीन पर कब्‍जा जमाता चला गया। 1948, 1956, 1967, 1973 और 1982 में झड़पें हुईं, जिनमें इजरायल ने फिलिस्तीन की काफी जमीन पर कब्जा जमा लिया। हर लड़ाई में इजरायल फिलिस्‍तीन पर भारी पड़ा और उसकी जमीन पर कब्जा करता चला गया। आज फिलिस्‍तान मात्र 12% जमीन पर सिमट गया, जहां पर भी यहूदी बस्तियां बसी हुई हैं, यानी फिलिस्तीन नाम का कोई देश बचा ही नहीं है। अब फिलिस्‍तीन अपनी जमीन इजरायल से वापस चाहता है, लेकिन इजरायल ने जंग जीतकर जमीन को हासिल किया है, इसलिए वो जमीन वापस नहीं करना चाहता। आज फिलिस्‍तीन का बचा हुआ जमीन का हिस्‍सा भी दो टुकड़ों में बंट चुका है। पहला वेस्ट बैंक, जिसपर फतह नामक पार्टी का कब्जा है, जबकि दूसरा गाजा पट्टी, जिसपर हमास का राज है। वेस्ट बैंक में रहने वाले फतह के नेता समस्या का शांतिपूर्ण हल चाहते हैं। वहीं, गाजा वाले हमास के आतंकियों का कब्जा है, वो इजरायल को समाप्त कर अपनी खोई हुई जमीन पर कब्‍जा जमाना चाहते हैं।


भारतीय-फिलिस्तीन सम्बन्ध को ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ स्वतन्त्रता संघर्ष से काफी हद तक प्रभावित किया गया है। भारत ने 18 नवम्बर 1988 को घोषणा के बाद फिलिस्तीन के राज्यत्व को मान्यता दी। हालांकि, भारत और पीएलओ के बीच सम्बन्ध पहली बार 1974 में स्थापित हुए थे। ये संबंध 1980 और 1990 के दशक के अन्त में कमजोर होना शुरू हो गये थे। बाद में जब फिलिस्तीन का अंत हो गए तो भारत के साथ उसके संबंध स्तह: ही ठंडे बस्ते में चले गए। आज फिलिस्तीन के नेताओं को अरब देशों से ही फुरसत नहीं, जिसके चलते भारत से संबंध पूरी तरह से समाप्त होने की कगार पर पहुंच गए हैं।


दूसरी तरफ भारत और इज़राइल के बीच राजनयिक सम्बन्धों की स्थापना के बाद से सैन्य और खुफिया सहयोग बढ़ा है। सोवियत संघ के पतन और दोनों देशों में इस्लामिक राज्यों की गतिविधियों के बढ़ने ने एक रणनीतिक गठबन्धन का मार्ग प्रशस्त किया। तब से फ़िलिस्तीन के लिए भारतीय समर्थन कमजोर रहा है। भारत अभी भी फ़िलिस्तीन की आकांक्षाओं की वैधता को मानता है। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी 2018 में फिलिस्तीन का दौरा करने वाले भारत के पहले प्रधानमन्त्री बने।


भारत फिलिस्तीन मुक्ति संगठन के अधिकार को "फिलीस्तीनी लोगों का एकमात्र वैध प्रतिनिधि" के रूप में समकालीन रूप से मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब देश था। मार्च 1980 में पूर्ण राजनयिक संबंधों के साथ नई दिल्ली में एक पीएलओ कार्यालय स्थापित किया गया था। भारत ने 18 नवंबर 1988 को घोषणा के बाद फिलिस्तीन को मान्यता दी थी भारत और पीएलओ के बीच संबंध पहली बार 1974 में स्थापित हुए थे।


पीएलओ के अध्यक्ष यासिर अराफात ने 20–22 नवम्बर 1997 को भारत का दौरा किया। 1997 में दोनों राज्यों के बीच सहयोग पर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। एमओयू ने वाणिज्य, व्यापार, संस्कृति, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, औद्योगिक सहयोग, सूचना और प्रसारण जैसे विभिन्न क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग के लिए एक संरचित रूपरेखा प्रदान की है। फिलिस्तीनी आवास और ऊर्जा मन्त्री अब्देल रहमान हमद अप्रैल 1998 में अरब राजदूतों की एक और संगोष्ठी में भाग लेने के लिए भारत आए थे। यात्रा के दौरान उन्होंने पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मन्त्री और विदेश मन्त्री से मुलाकात की। विदेशी सम्बन्धों के प्रभारी अल-फतेह की कार्यकारी समिति के सदस्य और फिलिस्तीन नेशनल काउंसिल के सदस्य हनी अल-हसन, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की 17वीं कांग्रेस में भाग लेने के लिए पीएलओ के प्रतिनिधि के रूप में भारत आए थे, जो 18 से 20 सितम्बर 1998 को चेन्नई में आयोजित हुआ। 


नवम्बर 1997 व्यापार, संस्कृति और सूचना के क्षेत्र में सहयोग को मजबूत करना था। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने 10 फरवरी 2018 को वेस्ट बैंक का दौरा किया, जो एक भारतीय प्रधानमन्त्री द्वारा फिलिस्तीनी क्षेत्रों का पहला दौरा था। फिलिस्तीन की यात्रा के दौरान 10 फरवरी 2018 को नरेन्द्र मोदी को फिलिस्तीन के सर्वोच्च सम्मान 'ग्रैंड कॉलर' से सम्मानित किया गया। यानी भारत और फिलिस्तीन के बीच संबंध बहुत अच्छे रहे हैं।


दूसरी ओर भारत इजरायल की बात की जाए, तो 14 मई 1948 को अलग राष्ट्र बने इजराइल को भारत ने वर्ष 1950 में आधिकारिक रूप से मान्यता दी थी, लेकिन दोनों देशों के बीच पूर्ण राजनयिक संबंध करीब 44 साल बाद 29 जनवरी 1992 को स्थापित हुए। दिसंबर 2020 तक भारत संयुक्त राष्ट्र के 164 सदस्य देशों में से एक था, जिसके इज़रायल के साथ राजनयिक संबंध थे।


भारत और इज़राइल के बीच व्यापार कोविड-19 महामारी से पहले के 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2023 जनवरी तक लगभग 7.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है। भारत और इजरायल के बीच सर्वाधिक कारोबार हीरे का होता है। हीरे का द्विपक्षीय व्यापार का लगभग 50% है। इसके साथ ही भारत एशिया में इज़रायल का तीसरा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है और विश्व स्तर पर 7वाँ सबसे बड़ा कारोबारी भागीदार है। इज़रायल की कंपनियों ने भारत में ऊर्जा, नवीकरणीय ऊर्जा, दूरसंचार, रियल एस्टेट, जल प्रौद्योगिकियों में निवेश किया है। साथ ही भारत में अनुसंधान एवं विकास केंद्र या उत्पादन इकाइयाँ स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। भारत और इजरायल के बीच दोस्ती को आप इससे समझ सकते हैं कि आज मोदी सरकार मुक्त व्यापार समझौता, यानी FTA करने के लिये इज़राइल के साथ भी बातचीत कर रही है।


रक्षा क्षेत्र की बात की जाए तो भारत आज की तारीख में इज़राइल से हथियारों के सबसे बड़े आयातकों में से एक है, जो इसके वार्षिक हथियारों के निर्यात में लगभग 40 प्रतिशत का योगदान देता है। भारतीय सशस्त्र बलों ने पिछले कुछ वर्षों में इज़रायली हथियार प्रणालियों की एक विस्तृत शृंखला को शामिल किया है, जिसमें फाल्कन AWACS, जो एयरबोर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम्स है। इसके साथ ही हेरॉन, सर्चर- II, हारोप ड्रोन से लेकर बराक मिसाइल रोधी रक्षा प्रणाली और स्पाइडर क्विक-रिएक्शन विमान भेदी मिसाइल प्रणाली शामिल हैं। द्विपक्षीय रक्षा सहयोग पर 2021 में 15वें संयुक्त कार्य समूह की बैठक में देशों ने सहयोग के नए क्षेत्रों की पहचान करने हेतु एक व्यापक दस-वर्षीय रोडमैप तैयार करने के लिये टास्क फोर्स बनाने पर सहमति व्यक्त की।


भारत ने कृषि के क्षेत्र में भी इजरायल से काफी कुछ सीखा है। प्रतिवर्ष भारत के हजारों किसान इजरायल जाकर कम पानी से आधुनिक कृषि तकनीक का प्रशिक्षण लेकर आते हैं। मई 2021 में कृषि सहयोग में विकास के लिये "तीन वर्ष के कार्य कार्यक्रम समझौते" पर हस्ताक्षर किये गए हैं। कार्यक्रम का उद्देश्य सेंटर ऑफ एक्सीलेंस को विकसित करना, नए केंद्र स्थापित करना, CoE की मूल्य शृंखला में वृद्धि करना, उत्कृष्टता केंद्रों को आत्मनिर्भर बनाना और निजी क्षेत्र की कंपनियों तथा उनके सहयोग को प्रोत्साहित करना है।


इसी तरह से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी भारत और इजरायल के बीच गहरे संबंध हैं। हाल के वर्षों में इज़रायल के स्टार्ट-अप नेशनल सेंट्रल तथा iCreate और टेक्नोलॉजी बिज़नेस इन्क्यूबेटर्स जैसे भारतीय उद्यमिता केंद्रों के बीच कई समझौते किये गए हैं। वर्ष 2022 में दोनों देशों ने भारत-इज़रायल औद्योगिक R&D और नवाचार निवेश के दायरे को बढ़ाया, जिसमें अक्षय ऊर्जा तथा सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों के शिक्षा तथा व्यावसायिक संस्थाओं की भागीदारी में वृद्धि शामिल है। Focus Sectors में समस्याओं का समाधान करने के लिये इज़रायल एवं भारतीय उद्यमों के बीच संयुक्त औद्योगिक अनुसंधान और विकास पहल को प्रोत्साहित करने, सुविधा प्रदान करने व समर्थन करने हेतु दोनों देशों के बीच साझेदारी है।


इसके अलावा इज़रायल भी भारत के नेतृत्त्व वाले International Solar Alliance में शामिल हो रहा है, जो नवीकरणीय ऊर्जा में अपने सहयोग को बढ़ाने एवं स्वच्छ ऊर्जा में भागीदार बनाने के दोनों देशों के उद्देश्यों के साथ बहुत अच्छी तरह से मेल खाता है। भारतीय इज़रायल के प्रति सहानुभूति रखते हैं। भारत सरकार अपने स्वयं के राष्ट्रीय हित के आधार पर अपनी पश्चिम एशिया नीति को संतुलित एवं पुनर्गठित कर रही है। भारत और इज़रायल को अपने धार्मिक चरमपंथी पड़ोसियों की भेद्यता को दूर करने एवं जलवायु परिवर्तन, जल संकट, जनसंख्या विस्फोट तथा खाद्य सुरक्षा जैसे वैश्विक मुद्दों पर उत्पादक रूप से काम करने के लिए कदम उठा रहे हैं। भारत को भी अब्राहम समझौते द्वारा किये गए भू-राजनीतिक पुनर्गठन के लाभ उठाने के लिए अधिक मुखर और सक्रिय मध्य पूर्वी नीति की आवश्यकता है।



आप समझ लिजिए कि अरब देशों के हमलों के बीच भी तेजी से विकास करते इजरायल से जहां भारत के संबंध प्रगाढ़ हो रहे हैं, तो साथ ही फिलिस्तीन की संप्रभुत्ता के लिए भी भारत कटिबद्व है। जिस तरह से इजरायल और संयुक्त अरब अमीरात के बीच संबंध मजबूत करने के लिए अमेरिका काम कर रहा है, उस तरह से भारत और इजरायल के बीच कोई नहीं है, लेकिन भारत किसी की जमीन पर कब्जा करने वाले को समर्थन भी नहीं करता है। भारत इजरायल के बीच संबंध रक्षा, सुरक्षा, कारोबार, कृषि, सूचना प्रोधौगिकी समेत कई क्षेत्रों में मजबूत हो रहे हैं, लेकिन इजरायल में हमास के आंतक के कारण फिलिस्तीन दुनियाभर में अपना समर्थन खो रहा है। भारत भी इसी वजह से हमास और फतह को समर्थन नहीं करते हैं, जिसके कारण फिलिस्तीन कमजोर हो रहा है।

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