वसुंधरा का बंगला खाली कराएगी भाजपा सरकार!



राजस्थान में सरकार बदल चुकी है, लेकिन पूर्व सीएम वसुंधरा राजे द्वारा अपने पिछले कार्यकाल में अघोषित रूप से सीएम के बंगले के तौर पर कब्जा किया गया सिविल लाइन का बंगला नंबर 13 भाजपा की भजनलाल सरकार में खाली होने का नंबर आ गया है। 

हालांकि, तमाम लोगों की मांग और कानून की बाध्यता होने के बाद भी पूर्व सीएम अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे के बीच कथित गठबंधन के कारण पांच साल में भी गहलोत सरकार ने वसुंधरा से बंगला नंबर 13 खाली नहीं करवाया था। 

अलबत्ता वसुंधरा राजे को यह बंगला आजीवन देने के लिए कानून तक बदला गया था, लेकिन भाजपा की उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कानूनी पालना करवाते हुए यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव और मायावती का बंगला खाली करवाने के कारण अब राजस्थान में भी पूर्व सीएम का बंगला खाली करवाने का दबाव बन गया है। 

राजस्थान में भाजपा सरकार बने एक महीने से अधिक का समय बीत चुका है, लेकिन अभी तक भाजपा के किसी नेता ने इसको लेकर बयान नहीं दिया, मगर सूत्रों का दावा है कि इस प्रकरण में भजनलाल सरकार किसी तरह की रियायत बरतने के मूड में नहीं है, बल्कि कानून के अनुसार काम करने जा रही है। 

इस प्रकरण को यदि पूरी गहनता से जाने तो समझ में आता है कि वसुंधरा राजे ने बिना किसी सरकार आदेश जारी किए 2013 में बंगला नंबर 13 को ही अघोषित रूप से सीएम आवास बना लिया था। जिसको लेकर खूब विवाद हुआ था। 

वसुंधरा राजे ने उस समय सीएम के लिए आधिकारिक तौर अलॉट बंगला नंबर 8 में शिफ्ट नहीं हुईं और ना ही बंगला नंबर 13 को अधिकृत आवास बनाया। ऐसे में दोनों ही बंगलों का उपयोग किया गया। तत्कालीन भाजपा के विधायक घनश्याम तिवाड़ी ने इसको लेकर सदन से सड़क तक खूब विरोध किया, लेकिन सारे विरोध को धत्ता बताते हुए वसुंधरा राजे ने अपने मन मर्जी की। 

यहां तक कि विपक्ष में बैठे अशोक गहलोत ने भी इसको लेकर दो शब्द नहीं बोले। तक कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने सरकार बनने पर वसुंधरा से बंगला खाली कराने के बयान दिए, लेकिन जब 2018 में कांग्रेस सरकार बनी तो सचिन पायलट के बजाए अशोक गहलोत सीएम बन गए और उन्होंने बंगला खाली करवाने के बजाए पूर्व सीएम के नाते कैबिनेट मिनिस्टर के बंगले को वसुंधरा राजे के लिए स्थाई कर दिया। 

अब राजस्थान में भाजपा ना केवल सीएम बदल दिया है, बल्कि पूरा मंत्रिमंडल भी वसुंधरा राजे के करीबियों का नहीं है। इसके साथ ही जयपुर में तीन दिन तक चली डीआईजी,आईजी कॉन्फ्रेंस के अवसर पर जयपुर पहुंचे पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का जयपुर एयरपोर्ट पर स्वागत करने के लिए सतीश पूनियां, राजेंद्र राठौड़ समेत भजनलाल की पूरी सरकार मौजूद रही, लेकिन वसुंधरा राजे ने नहीं पहुंची। 

उन्होंने भाजपा कार्यालय से भी दूरी बना ली। यहां तक की संगठन ने भी उनकी पोस्टर—बैनर से फोटो हटा दिए हैं। कहने के मतलब यह है कि वसुंधरा राजे अब भाजपा के लिए बीते जमाने की नेता बन चुकी हैं। अगले चार महीने में भाजपा को लोकसभा चुनाव में जाना है। 

22 जनवरी को राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है, जो आजादी के बाद भाजपा का अब तक का सबसे बड़ा आयोजन बनने जा रहा है। भाजपा इसी के जरिए लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल करना चाहती है। मोदी आज की तारीख में ना केवल भारत के, बल्कि विश्व के सबसे लोकप्रिय और सबसे बड़े नेता बन चुके हैं। 

भाजपा को अब वसुंधरा राजे जैसे क्षत्रपों की जरूरत नहीं है। जहां भी भाजपा की सरकारें हैं, वहां पर ऐसे सीएम बनाए गए हैं, जो शीर्ष नेतृत्व को आंख नहीं दिखा सकते हैं। एक समय ऐसा था, तब वसुंधरा राजे ने ही नरेंद्र मोदी और अमित शाह को आंख दिखा दी थी। 

समझने वाली बात यह है कि आखिर मोदी—शाह ने वसुंधरा राज को पूरी तरह से दरकिनार क्यों किया है? इस कहानी की शुरुआत तब हुई थी, तब साल 2013 में भाजपा की प्रचंड बहुमत वाली वसुंधरा राजे सरकार बनी थी। तब नरेंद्र मोदी गुजरात के सीएम हुआ करते थे, लेकिन भाजपा उनको पीएम उम्मीदवार घोषित कर दिया था। 

ऐसे में लोकसभा चुनाव के ठीक पांच महीने पहले हुए राजस्थान विधानसभा के चुनाव में भाजपा को मोदी लहर के कारण प्रचंड बहुमत मिला। तब अमित शाह उस जीत को मोदी की जीत बताना चाहते थे, लेकिन वसुंधरा राजे को यह मंजूर नहीं था। परिणाम यह हुआ कि एक तरफ जहां भाजपा 2013 में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ की उस जीत को मोदी लहर की जीत बताकर लोकसभा चुनाव में लाभ लेने का काम कर रही थी, तो वसुंधरा राजे ने उस जीत को खुद की और जनता की जीत बताकर प्रचारित किया। 

कहा जाता है कि तभी मोदी—शाह ने यह ठान लिया था कि आने वाले समय में वसुंधरा राजे को पार्टी से साफ किया जाएगा। साल 2018 में जब राजस्थान में भाजपा अध्यक्ष पद से अशोक परनामी को हटाया गया, तब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और वसुंधरा राजे आमने सामने आ गए। 

अमित शाह चाहते थे कि संगठन के व्यक्ति को अध्यक्ष बनाया जाए, जबकि वसुंधरा राजे अपना खास व्यक्ति को ही अध्यक्ष बनाना चाहती थीं। ऐसे में दोनों के बीच 84 दिन तक शीत युद्ध चला। बाद में बीच का रास्ता निकालकर मदनलाल सैनी को अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन लोकसभा चुनाव 2019 के बाद उनका निधन हो गया। तब भाजपा को फिर से अध्यक्ष तलाशना पड़ा। 

करीब 3 महीने बाद पार्टी ने वसुंधरा राजे की इच्छा को पूरी तरह से दरकिनार कर डॉ. सतीश पूनियां को अध्यक्ष बनाया। क्योंकि तब तक वसुंधरा राजे सत्ता से बाहर हो चुकी थीं, जिसके कारण उनकी ताकत कमजोर हो गई थी। परिणाम यह हुआ कि वसुंधरा राजे कुछ नहीं कर पाईं।

तभी से वसुंधरा राजे संगठन से दूरी बनाकर चल रही थीं। केंद्र के आदेश पर सतीश पूनियां ने संगठन को वसुंधरा राजे के हाथ से बाहर निकाल लिया। हालांकि, उनको इसी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। सतीश पूनियां को जब अध्यक्ष बनाया गया था, तभी यह तय हो चुका था कि वसुंधरा राजे बीते जमाने की बात होने वाली हैं। 

केंद्र के तीनों बड़े नेताओं ने राजस्थान में बार बार कहा कि अगला चुनाव मोदी और कमल के फूल के चिन्ह पर लड़ा जाएगा। मैंने पूरी पांच साल कहा कि अगले चुनाव में ना तो वसुंधरा राजे भाजपा की नेता होंगी और ना ही उनको चुनाव बाद सीएम बनाया जाएगा। मोदी—शाह ने बड़ी चतुराई से चुनाव से कुछ समय पहले अध्यक्ष बदलकर वसुंधरा राजे के आखिरी मुद्दे को खत्म कर दिया। 

वसुंधरा राजे को लेकर अभी भी उनके समर्थक जहां केंद्रीय मंत्री बनाने का दावा कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ संगठन के लोगों का दावा है कि चुप रहने पर वसुंधरा को किसी राज्य का राज्यपाल बनाकर उपकृत किया जा सकता है, किंतु इस बीच मोदी—शाह की स्टाइल के अनुसार वसुंधरा खाली हाथ दिखाई दे रही हैं। झालावाड़ से कभी वो सांसद रहीं, फिर 2004 से उनके बेटे दुष्यंत सिंह सांसद हैं। चार बार सांसद बन चुके हैं, लेकिन मंत्री बनने का नंबर नहीं लगा है। 

इस बार पार्टी प्रदेश के आधे से अधिक सांसदों के टिकट काटने जा रही है। माना जा रहा है कि वसुंधरा का सबसे बुरा दौर अभी बाकी है, जब उनके बेटे को घर बिठाया जाएगा और वसुंधरा केवल विधायक बनकर समय गुजारती नजर आएंगी। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि वास्तव में देखा जाए तो वसुंधरा राजे द्वारा मोदी—शाह को दिखाई गई आंख का परिणाम भुगतना ही होगा। 

कहने का मतलब यह है कि जिस मीठे जहर से मोदी—शाह ने अपने तमाम प्रतिद्वंदियों को निपटाया है, ठीक वैसे ही वसुंधरा राजे को भी निपटा दिया गया है। आज हालात ऐसे हो गए हैं कि वसुंधरा ना तो सत्ता में हैं और ना ही संगठन में। उपर से विधायक जैसे पद पर बैठकर केवल ऊपरी आदेशों को मानने को मजबूर हैं। आपने देखा होगा तीन दिन तक मोदी—शाह जयपुर में थे। जब वो जयपुर पहुंचे, तब भी और जब वापस गए, तब भी उनका स्वागत करने या उनको विदा करने के लिए वसुंधरा मौजूद नहीं थीं। 

कहने को तो उनके समर्थक इसको वसुंधरा की नाराजगी बता रहे हैं, किंतु हकीकत यह है कि वसुंधरा राजे को बुलाया ही नहीं गया। सत्ता और संगठन में नितांत आवश्यक परिवर्तन नहीं करके कांग्रेस सत्ता रिपीट कराने से चूक गई, अन्यथा ऐसा कोई कारण नहीं था कि कांग्रेस की सत्ता रिपीट नहीं होती, लेकिन भाजपा ने अपनी रीति नीति के अनुसार न केवल सत्ता और संगठन में बड़ा बदलाव कर दिया, बल्कि एक युग को बदल दिया। राजनीति को समझने और उस पर मंथन करने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि भाजपा की यही खूबी उसे आगे ले जा रही है, जबकि कांग्रेस ने बदलाव नहीं करके सत्ता गंवाने का काम किया है। 

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