ब्रह्माजी की नगरी में रामचंद्र लेंगे भागीरथ की परीक्षा: Ajmer Loksabha chunav 2024



दस साल पहले तक अजमेर का जब नाम लिया जाता था तो मुस्लिम संत कहे जाने वाले मोइनुद्दीन चिश्ती की तस्वीर सामने आती थी, लेकिन इस एक दशक में अजमेर का नाम अब तीर्थराज पुष्कर, विश्व के एकमात्र ब्रह्मा मंदिर, केंद्रीय विवि, एयरपोर्ट जैसी कई पहचान बनाई जा चुकी हैं। एक समय ऐसा था जब मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर मुसलमानों से कहीं अधिक हिंदू चादर चढ़ाते नजर आते थे, लेकिन अब माहौल पूरी तरह से बदल चुका है। 

तीन दशक पहले अजमेर रेप कांड आपको भले याद नहीं होगा, लेकिन सोशल मीडिया ने दरगाह के खादिमों की पोल खोल दी है। उदयपुर में कन्हैयालाल साहू की गला रेतकर हत्या करने वालों में एक नाम दरगाह के खादिम का भी था। आजादी के बाद अजमेर को मोइनुद्दीन चिश्ती की नगरी बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई, लेकिन दुनिया अब जान रही है कि ब्रह्माड़ के रचयिता माने वाले ब्रह्माजी का एकमात्र मंदिर अजमेर में ही है। लोकसभा चुनाव विश्लेषण की कड़ी में आज हम इसी अजमेर लोकसभा सीट की बात करेंगे। 

भाजपा ने यहां से भागीरथ चौधरी को लगातार दूसरी बार टिकट दिया है, जबकि कांग्रेस ने पूर्व डेयरी चेयरमैन रामचंद्र चौधरी को मैदान में उतारा है। दोनों प्रत्याशियों के बारे में बात करेंगे, लेकिन उससे पहले अजमेर लोकसभा सीट के राजनीतिक इतिहास के बारे में जानेंगे। देश आजाद होने के बाद हुए पहले आम चुनाव 1952 से लेकर 1971 लोकसभा चुनाव तक यहां कांग्रेस जीतती रही। 

पहली बार आपातकाल के बाद 1977 में हुए आम चुनाव में जनता पार्टी के श्रीकरण शारदा जीते, लेकिन तीन साल बाद 1980 में फिर से कांग्रेस के भगवान देव आचार्य जीत गए। अगले चुनाव में फिर कांग्रेस के विष्णु कुमार मोदी अजमेर का लोकसभा चुनाव जीत गए। हालांकि, 1989 में पहली बार भाजपा के रासासिंह रावत जीते, जो 1998 तक अजमेर के सांसद रहे। 1998 के चुनाव में अजमेर एक बार फिर कांग्रेस के पास चली गई, जब यहां से प्रभा ठाकुर जीतीं। 

हालांकि, एक साल बाद हुए मध्यावधि चुनाव में भाजपा के रासासिंह रावत फिर जीत गए, जो 2009 तक सांसद रहे। 2009 में कांग्रेस के युवा नेता सचिन पायलट, लेकिन पांच साल बाद मोदी लहर के चुनाव में पायलट बुरी तरह से हार गए और भाजपा के प्रो. सांवरलाल जाट जीत गए। 

दुर्भाग्य से सांवरलाल जाट का कार्यकाल के बीच में ही निधन हो गया, जिसके बाद हुए उपचुनाव में एक बार फिर से कांग्रेस के प्रत्याशी की जीत हुई, लेकिन 2019 के आम चुनाव में भाजपा के भागीरथ चौधरी ने कांग्रेस के रिजु झुंझुनवाला को हराकर बड़े अंतर से चुनाव जीता। भाजपा ने इस बार फिर से भागीरथ चौधरी को टिकट दिया है, जबकि कांग्रेस ने पूर्व डेयरी चेयरमैन रामचंद्र चौधरी को मैदान में उतारा है। 

जातिगत आधार की बात की जाए तो अजमेर लोकसभा में सबसे अधिक जाट, गुर्जर सबसे अधिक हैं। जिनकी जनसंख्या करीब 38 फीसदी बताई जाती है। इसके बाद 19 प्रतिशत एससी, ब्राह्मण, बनिया, सिंधी और 8 फीसदी मुसलमान भी हैं। यही वजह है कि जन चेतना के बाद राजनीतिक दलों ने यहां पर जातिगत आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए ही टिकट दिया है। 

जाट, गुर्जर दोनों दलों में बंट सकते हैं, लेकिन अजमेर लोकसभा सीट के परिणाम देखने से लगता है कि जाट समाज भाजपा के साथ अधिक रहना पसंद करता है। सचिन पायलट के आने के बाद से गुर्जर समाज का झुकाव कांग्रेस के साथ है, जबकि ब्राह्मण, बनिया, ठाकुर, सिंधी भाजपा के अधिक करीब माने जाते हैं। इसी तरह से एससी और मुसलमानों को कांग्रेस का करीबी वोटर कहा जाता है। 

भाजपा के गठन के बाद के आंकड़ों पर गौर करने पर सामने आता है कि अजमेर लोकसभा सीट पर भाजपा का दबदबा रहा है। भागीरथ चौधरी ने पिछली बार कांग्रेस प्रत्याशी रिजु झुनझुवाला को बहुत बुरी तरह से हराया था, जो अब भाजपा में शामिल हो चुके हैं। 

कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि पार्टी इस बार सचिन पायलट के करीबी यूथ अट्रैक्शन किशनगढ़ विधायक विकास चौधरी को मैदान में उतारना चाहती थी, लेकिन विकास चौधरी ने हाल ही में विधानसभा चुनाव में मिले टिकट का हवाला देकर पार्टी के अन्य कार्यकर्ता को टिकट देने की अपील की, जिसे पार्टी ने स्वीकारते हुए रामचंद्र चौधरी को प्रत्याशी बनाया है। रामचंद्र चौधरी 1990 से अब तक चार दफा विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं, जिसमें एक बार चुनाव जीते थे। 

लंबे समय तक डेयरी चेयरमैन रहते रामचंद्र चौधरी के कामकाज को लेकर पशुपालकों का मसीहा कहा जाता है, उनके नवाचारों के कारण डेयरी क्षेत्र में कई सकारात्मक बदलाव आए हैं, जिसके कारण किसान पशुपालक वर्ग का रामचंद्र चौधरी के प्रति काफी झुकाव है। 

दूसरी तरफ भागीरथ चौधरी का अजमेर जिले के शहरी क्षेत्रों में दबदबा है। दोनों ही उम्मीदवार किसान वर्ग से आते हैं। भागीरथ चौधरी हाल ही में विधानसभा का चुनाव हारे हैं, जबकि रामचंद्र चौधरी तीन चुनाव हारे हुए हैं और पहली बार सांसद का चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा के पास केंद्र सरकार द्वारा 10 साल में किए गए कार्यों का प्रचार पुलिंदा है, तो सत्ताधारी दल के पास नरेंद्र मोदी जैसा ब्रह्मास्त्र है, जबकि कांग्रेस के पास भागीरथ चौधरी के कार्यकाल को विफल बताने के अलावा कोई मुद्दा नहीं है। 

ऐसे में जब वोटिंग की बारी आएगी है, तब ही दोनों प्रत्याशियों की असली परीक्षा होगी और 4 जून का परिणाम बताएगा कि बगरू से लेकर ब्यावर तक और कुचामन सिटी से लेकर केकडी तक फैली ब्रह्माजी की नगरी वाली इस सीट के लोगों ने किसे अपना नेता मानकर वोट दिया है। 


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