जोधपुर लोकसभा में एक संत ने अकाल पड़ने का श्राप दे दिया था: Jodhpur Loksabha chunav 2024



जोधपुर और उसके आसपास का क्षेत्र हर चार साल में एक बार सूखे का सामना करता है, लेकिन क्या आप जानते हैं ऐसा क्यों होता है? कहा जाता है कि जिस पहाड़ी पर मेहरानगढ़ किला बना है, वहां पहले चीरिया नाथजी नाम के एक साधु रहते थे। जोधपुर नगर बसाने वाले राव जोधा ने किला बनाने की योजना बनाई, इसके लिए राजा ने साधु को यह जगह छोड़कर जाने के लिए कहा। साधु ने अपनी साधना छोड़ने के बजाए राव जोधा को किला अन्यत्र स्थान पर बनाने का सुझाव दिया, लेकिन राजा ने इसी जगह को चुना। राव जोधा ने कहा कि उनके राज्य में ऐसी कई जगह हैं, जहां पहाड़ी, जंगल और सुनसान स्थान मिल जाएंगे, लेकिन साधु ने पहाड़ी छोड़कर जाने से इनकार कर दिया। कहा जाता है कि तब तक जोधपुर काफी हरा—भरा और जंगलों से आल्हादित क्षेत्र था। इसके बाद राव जोधा ने अपने शासन के जोर पर साधु को पहाड़ी से भगा दिया। जिसके कारण गुस्से में साधु ने पूरे जोधपुर राज्य में अकाल पड़ने का श्राप दे डाला। कहा जाता है कि तभी से हर 3-4 साल में एक बार जोधपुर शहर और उसके आसपास जहां तक राव जोधा का शासन था, वह पूरा क्षेत्र सूखे की चपेट में आ जाता है। 

जिस तरह से जयपुर दुनियाभर में गुलाबी नगरी के नाम से जाना जाता है, ठीक वैसे ही जोधपुर नीला शहर के नाम से प्रसिद्ध है। यदि आपकी इतिहास में रुचि रही होगी तो आपको पता होगा कि जोधपुर को भारत का नीला शहर क्यों कहा जाता है? आपने कभी सोचा है जोधपुर को ये नाम क्यों दिया गया है? दरअसल, पहले जोधपुर में अन्य जातियों और ब्राह्मण घरों के बीच अंतर दिखाने के लिए ब्राह्मणों के को घरा को नीले रंग में रंगीन किया जाता था। ये अलग दिखने वाले नीले घर ब्राह्मणों के घरों को संदर्भित करते थे, लेकिन आज जोधपुर के ये नीले घर देशी—विदेशी पर्यटकों के बीच आकर्षण का केंद्र हैं।

लोकसभा सीट के विश्लेषण की इस कड़ी में आज हम बात करेंगे जोधपुर लोकसभा क्षेत्र के वर्तमान सांसद की खूबियों, कमजोरियों, जीत या हार की संभावना, उनके कामकाज लेखाजोखा। इसके साथ ही विपक्षी दल कांग्रेस के उम्मीदवार करणी सिंह उचियारडा के दमखम, उनकी खूबी, कमी और जोधपुर से उनके संबंध के बारे में भी विस्तार से जानने का प्रयास करेंगे, लेकिन उससे पहले इस सीट का इतिहास जान लेते हैं। इस सीट पर सर्वाधिक जीत का रिकॉर्ड पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नाम रहा है। अशोक गहलोत 1984 से 1998 तक जोधपुर से पांच बार जीते हैं। इन्होंने सबसे पहले 1980 का लोकसभा चुनाव लड़ा। उससे पहले मात्र 26 साल की उम्र में 1977 का विधानसभा चुनाव लड़ा, जिसमें हार गए। 

इसके बाद 1984 में जीते, लेकिन 1989 में भाजपा के जसवंत सिंह जसोल के सामने चुनाव हार गए। अशोक गहलोत ने 1991, 1996 व 1998 में लगातार तीन चुनाव जीते। इसी आखिरी चुनाव के बाद राजस्थान में विधानसभा चुनाव के उपरांत सोनिया गांधी द्वारा अशोक गहलोत को राज्य का सीएम बनाया गया। गहलोत के अलावा जोधपुर सीट से दो-दो बार जसवंत राज मेहता, जसवंत सिंह विश्नोई और वर्तमान सांसद गजेन्द्र सिंह शेखावत सांसद रहे हैं। केंद्र में मंत्री बनने के मामले में जोधपुर का नंबर जयपुर से भी आगे रहा है। यहां से जीतने वाले सांसदों को केन्द्र में जयपुर से भी अधिक प्रतिनिधित्व मिला है। यहां से जीते सांसदों में कांग्रेस के अशोक गहलोत, चन्द्रेश कुमारी और भाजपा के जसवंतसिंह जसोल, गजेन्द्र सिंह शेखावत को केन्द्र में मंत्री पद मिला है।

इस लोकसभा सीट में 8 विधानसभा आती हैं। इसमें एक सीट पोकरण जैसलमेर जिले में आती हैं। इन सीटों में 7 सीटों पर भाजपा का कब्जा है। यहां केवल एक सीट कांग्रेस के पास है। यह सीट भी पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरदारपुरा सीट है। आठ में से सात सीट पर भाजपा के विधायक होने से इस सीट पर कांग्रेस कमजोर महसूस कर रही है। भाजपा ने यहां से तीसरी बार वर्तमान सांसद गजेन्द्र सिंह शेखावत को टिकट दिया है। ऐसे में कांग्रेस यहां से राजपूत समाज के करणी सिंह उचियारडा को टिकट दिया है, ताकि गजेंद्र सिंह को बाहरी बताकर चुनाव जीता जा सके। यहां फलौदी से भाजपा के पब्बाराम बिश्नोई, लोहावट से गजेंद्र सिंह खींवसर, शेरगढ़ से बाबू सिंह राठौड़, जोधपुर से अतुल भंसाली, सूरसागर से देवेन्द्र जोशी, लूनी से जोगाराम पटेल, पोकरण से महंत प्रतापपुरी और सरदारपुरा से कांग्रेस के अशोक गहलोत विधायक हैं।

लोकसभा चुनाव के इतिहास की बात की जाए तो पहले चुनाव 1952 में निर्दलीय हनुवंत सिंह जीते, लेकिन उनका निधन होने के कारण 1952 में ही उपचुनाव हुए, जिसमें निर्दलीय जसवन्तराज मेहता जीते। अगले चुनाव 1957 कांग्रेस के टिकट पर जसवन्तराज मेहता दूसरी बार जीते। हालांकि, पांच साल बाद कांग्रेस ने सीट खो दी और 1962 के आम चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी लक्ष्मीमल्ल सिंघवी जीत गए। किंतु 1967 कांग्रेस के नरेंद्र कुमार सांघी जीते। देश में आपातकाल लगाने से पहले के आखिरी चुनाव 1971 में हुए, जिसमें निर्दलीय कृष्णा कुमारी जीत गईं। 

77 में जनता दल के रणछोड़दास गट्टानी, 80 और में कांग्रेस के अशोक गहलोत जीते। 89 में भाजपा के जसवन्त सिंह जीते। इसके बाद 1991, 96 और 98 कांग्रेस के अशोक गहलोत लगातारी तीन बार जीते। इसके बाद 99 और 2004 में भाजपा के जसवन्त विश्नोई जीते। 2009 का चुनाव कांग्रेस की चंद्रेश कुमारी कटोच जीतीं। मोदी लहर शुरू होने के बाद 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव गजेंद्र सिंह शेखावत ने जीता। इस बार भाजपा ने शेखावत को तीसरी बार टिकट दिया है। 

भाजपा विधायक बाबूसिंह राठौड़ की गजेंद्र सिंह शेखावत के साथ अदावत जग जाहिर है, लेकिन पिछले दिनों सीएम भजनलाल ने दोनों के बीच सुलह करवा दी है। सुलह के बाद बाबूसिंह ने शेखावत के लिए कहा है कि जोधपुर की जनता ने जब पहली बार उनको जिताया, तब राज्यमंत्री बने, दूसरी बार में कैबिनेट मंत्री बने और अब तीसरी बार जीते तो गृहमंत्री बनेंगे। अब यह तो भविष्य के गर्भ में ही है कि गजेंद्र सिंह शेखावत चुनाव जीतकर गृहमंत्री बनेंगे या फिर केवल सांसद ही रह जाएंगे, लेकिन जिस तरह से कांग्रेस प्रत्याशी करणी सिंह उचियारडा ने शेखावत को बाहरी उम्मीदवार बताकर उनके खिलाफ प्रचार अभियान छेड़ा है, उसके बाद भाजपा इसका तोड़ ही ढूंढ रही है। जोधपुर में भी कई लोगों को यह पता भी नहीं है कि गजेंद्र सिंह शेखावत जोधपुर के बजाए सीकर के हैं, इसलिए करणी सिंह ने इसी को मुद्दा बनाया है। शेखावत के खिलाफ वैसे तो खास नाराजगी नहीं है, लेकिन भूंगरा गैस त्रासदी के समय जब दर्जनों गरीबों की मौत हुइ्र थी, तब इस मामले को शेखावत ने न तो संसद में उठाया और न ही तुरंत मौके पर लोगों से मिलने गए। इसके कारण यहां का राजपूत समाज भी काफी नाराज हो चुका है। 

पिछले चुनाव में भाजपा आरएलपी एक साथ चुनाव लड़ रही थी। नागौर की ओर जोधपुर लोकसभा क्षेत्र में हनुमान बेनीवाल का प्रभाव है, वहां पर उन्होंने काफी प्रचार किया था। उसके कारण शेखावत ने अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को जोधपुर में ही पौने तीन लाख वोटों से मात दी थी। उससे पहले 2014 में सवा चार लाख वोटों से जीते थे। इस बार हनुमान बेनीवाल कांग्रेस के साथ हैं। जोधपुर में बेनीवाल का काफी प्रभाव माना जाता है। इसलिए इस बार शेखावत की राह आसान नहीं है। दूसरी तरफ करणी सिंह के पास गजेंद्र के खिलाफ बाहरी का मुद्दा है, तो उनके जोधपुर होने का दावा भी लोगों को पसंद आ रहा है। 

शेखावत ने दावा किया है कि उन्होंने अपने 10 साल के कार्यकाल में 1350 करोड़ का विकास करवाया है, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी ने दावा किया है कि 10 साल में एक रुपये का विकास नहीं करवाया गया। करणी सिंह जिस आक्रामक तरीके से इस बार जोधपुर के बेटे को वोट देने के लिए प्रचार कर रहे हैं, उससे शेखावत परेशान जरूर हैं, लेकिन फिर भी कांग्रेस प्रत्याशी को राम मंदिर, धारा 370, तीन तलाक, सीएए जैसे कानूनों और पीएम मोदी की लहर से पार पाना आसान नहीं होगा। जोधपुर से भले ही अशोक गहलोत पांच बार सांसद और सरदारपुरा से लगातार 6 बार विधायक जीते हों, लेकिन करणी सिंह उचियारडा सचिन पायलट कैंप से आते हैं। इसलिए यह चुनाव प्रत्यक्ष रुप से गजेंद्र सिंह शेखावत और करणी सिंह उचियारडा के बीच होगा, लेकिन परोक्ष रुप से सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच भी होने वाला है। 

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