मोदी को अमित शाह और योगी आदित्यनाथ ने हराया!



देश में एक बार फिर से 90 के दशक वाला गठबंधन का दौर लौट आया है। तीस साल बाद 2014 में मोदी ने जिस दौर को खत्म किया था, वही मोदी के सामने आ खड़ा हुआ है। भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के कारण इंडिया अलाइंस वाले कह रहे हैं नरेंद्र मोदी चुनाव हार गए हैं। एनडीए वाले कह रहे हैं मोदी ने अपने दम पर एनडीए को पूर्ण बहुमत पाकर तीसरी बार सरकार बना ली है। अपनी—अपनी जगह दोनों के दावे सही हैं। एनडीए की सरकार तो पूर्ण बहुमत से बन गई है, लेकिन भाजपा को बहुमत नहीं मिला है। 

जब भाजपा ने चुनाव से पहले 'अबकी बार, 400 पार' का नारा दिया तो विपक्ष की हालत खराब हो गई। विपक्ष को पता था कि मोदी ने यह नारा यूं ही नहीं दिया है, 400 पार नहीं तो कम से कम 400 के करीब तो जीत ही जाएंगे। मोदी को सत्ता में रहते 23 साल हो गए हैं, इसलिए कांग्रेस वालों को पता है कि यह आदमी जो कहता है, वो कर देता है। इससे पहले 2014 में 'अबकी बार मोदी सरकार' ने विपक्ष को खत्म सा कर दिया था। 

उसके पांच साल बाद 2019 में 'फिर एक बार मोदी सरकार' ने तो विपक्ष को घर बैठने को मजबूर कर दिया। इसके बावजूद ऐसा क्या हुआ कि मोदी के साथ राजनीतिक जीवन में पहली बार सरकार चलाने को पूर्ण बहुमत नहीं मिला? उनको सहयोगियों के सहारे सरकार बनानी पड़ी है? इस वीडियो में आगे उन सभी बिंदूओं पर विस्तार से बात करुंगा, जो भाजपा को बहुत से दूर रखने के जिम्मेदार हैं।

कांग्रेस ने सितंबर 2022 में अपना अध्यक्ष बदला। इसकी भी एक रोचक कहानी बनी। गांधी परिवार चाहता था कि उनके वफादार अशोक गहलोत राष्ट्रीय अध्यक्ष बनें, लेकिन उनको राजस्थान के सीएम की कुर्सी से बहुत मोह था, तो अध्यक्ष के चुनाव से ठीक पहले उन्होंने 25 सितंबर को तीन बार सीएम बनाने वाली सोनिया गांधी से ही बगावत कर दी। कांग्रेस ने मजबूरी में मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस को अध्यक्ष बनाया। 

90 के दशक में हुए सियासी संक्रमण काल में बना यूपीए पुराना हो गया था। इसलिए यूपीए के घटक दल इसकी जगह नया अलाइंस बनाना चाहते थे। उनका मानना था कि यूपीए अलाइंस में कांग्रेस का दबदबा है, जबकि अलाइंस में बराबर की भागीदारी होनी चाहिए। इसलिए सभी विपक्षी दलों ने मिलकर 18 जुलाई 2023 को इंडिया नाम से नया अलाइंस खड़ा किया। 

हालांकि, जिस रूप में चाहते थे, वैसा नहीं बन पाया, यदि वैसा ही अलाइंस बन जाता तो आज केंद्र में सरकार इंडिया अलाइंस की होती। अलाइंस बनने के बाद भी सहयोगी दल ही कांग्रेस को अपने अपने राज्यों में सीटें देने को तैयार नहीं हुए।

पश्चिमी बंगाल में ममता बनर्जी नहीं मानी, आंध्रप्रदेश में चंद्रबाबू नायडू और जगन मोहन रेड्डी भी नहीं माने तो पंजाब में आम आदमी पार्टी भी अलाइंस करने को नहीं मानी। उपर से चुनाव के कुछ समय पहले ही नीतीश कुमार ने पाला बदलकर इंडिया से एनडीए में शामिल हो गए। 

मुस्लिम नेता असद्दूीन ओवैशी भी इंडिया अलाइंस का हिस्सा नहीं बने, ना ही मायावती ने इस अलाइंस को जायजा माना। यानी जिस अलाइंस में करीब 50 दल होने थे, उसमें करीब 38 दल ही रह गए। कांग्रेस इसको लीड कर रही थी। दूसरी सबसे बड़ी पार्टनर समाजवादी पार्टी थी। देश की सबसे पुरानी पार्टी होने का दावा करने वाली कांग्रेस ने बहुत समझौते किए और 543 में से केवल 328 सीटों पर चुनाव लड़ा। 

जबकि कुल जमा 42 साल पहले जन्मी भाजपा ने 441 सीटों पर चुनाव लड़ा। कांग्रेस ने 99 और भाजपा ने 240 सीटें जीतीं। मोदी ने सरकार तो बना ली, लेकिन मंथन इस बात पर जरूर होगा कि जो पार्टी अपने दम पर 370 और एनडीए 400 पार का नारा लगा रही थी, वो 300 के भीतर कैसे सिमट गई। भाजपा को सबसे अधिक नुकसान वहां हुआ, जहां सबसे अधिक उम्मीदें थीं। 

राम मंदिर निर्माण, काशी कॉरीडोर और योगी सरकार के विकास के दम पर भाजपा कम से कम 70 सीटों पर जीत की उम्मीद कर रही थी और इसी राज्य में पार्टी को केवल 34 सीट मिलीं। दूसरे नंबर पर राजस्थान रहा, जहां कम से कम 20 सीट की उम्मीद थी, लेकिन बड़ी मुश्किल से 14 सीट ही जीत पाई। हरियाणा में पांच सीट का नुकसान हुआ तो पंजाब में एक भी सीट नहीं मिली। 

यहां तक की मोदी—शाह के गृह राज्य गुजरात में भी एक सीट कांग्रेस जीत गई। महाराष्ट्र में लोगों को भाजपा की सियासी तोड़फोड़ वाली राजनीति पसंद नहीं आई, जहां पार्टी को उम्मीद से 15 सीट कम मिलीं। पश्चिमी बंगाल में जहां 16 से 26 जीत की उम्मीद थी, वहां पर केवल 12 सीट मिलीं। कुल मिलाकर पार्टी को इन्हीं राज्यों में करीब 100 सीटों का नुकसान हुआ। 

सबसे बड़ी समीक्षा यूपी, राजस्थान और महाराष्ट्र को लेकर होना चाहिए। यूपी में राम मंदिर के सहारे प्रचंड जीत की उम्मीद थी, वहां 10 साल बाद एमवाई समीकरण बन गया। उपर से राजपूत समाज ने नाराजगी दिखाई। 

यादव तो समाजवादी पार्टी के लिए आखिलेश के साथ चले गए, लेकिन राजपूत किस वजह से भाजपा से नाराज हुए? गुजरात में पुरषोत्तम रुपाला के बयान से राजपूतों में नाराजगी पैदा हुई। जिसके कारण गुजरात से लेकर यूपी तक राजपूत वोट भाजपा से छिटक गया। कहा जाता है कि जो मत प्रतिशत कम हुआ, उसमें राजपूत समाज का बड़ा योगदान है, जो कांग्रेस को वोट नहीं देना चाहता था, लेकिन भाजपा को भी वोट देने निकला ही नहीं। 

यही बात राजस्थान में रही, जहां पर राजपूतों ने वोट दिया ही नहीं, तो जाट समाज भी भाजपा से नाराज था। जो निष्पक्ष वोटर था, वो कांग्रेस के पास चला गया, जबकि भाजपा का वोटर बाहर ही नहीं आया। राजस्थान की बाड़मेर सीट पर राजपूतों ने निर्दलीय को वोट दे दिया, जबकि जातिगत नाराजगी में जाटों ने कांग्रेस को वोट कर दिया। 

यही हाल चूरू में रहा, जहां राहुल कस्वां के टिकट कटने से पहले ही नाराज जाटों ने कांग्रेस को वोट दे दिया। यहां पर भाजपा के जाट कैंडिडेट को वोट देने राजपूत समाज घर से बाहर ही नहीं आया। शेखावाटी, मारवाड़ में किसान आंदोलन, महिला पहलवान आंदोलन और ​अग्निवीर योजना ने भाजपा को बहुत नुकसान किया है। 

नागौर में हनुमान बेनीवाल से अलाइंस नहीं करना और दो बार चुनाव हारकर कांग्रेस से आई ज्योति मिर्धा को टिकट देना भाजपा की हार का कारण बना। दौसा, टोंक—सवाईमाधोपुर में किरोड़ीलाल मीणा को डिप्टी सीएम नहीं बनाए जाने से मीणाओं ने भाजपा को वोट ही नहीं दिया। गुर्जरों ने सचिन पायलट के कारण कांग्रेस को वोट किया। 

भरतपुर और धौलपुर में जाट आक्षरण के कारण जाट कांग्रेस में चले गए, जबकि बांसवाड़ा में भारत आदिवासी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन कांग्रेस से आयातित महेंद्रजीत मालवीय को हराने का सबसे बड़ा कारण बना। यहां के कांग्रेस और बाप को वोट एक हो गया, जबकि मालवीय से नाराज भाजपा का वोटर घर से बाहर ही नहीं निकला। राजस्थान में कम वोट प्रतिशत ही भाजपा की हार का सबसे बड़ा कारण बना। नतीजों से साफ हो गया है कि राजस्थान के दो चरण में हुए मतदान में जो वोट प्रतिशत गिरा, वो केवल भाजपा का था। 

इसी तरह से हरियाणा में भाजपा को तीन मुद्दों ने पांच सीट हरा दी। हरियाणा मोदी के साथ तो रहा, लेकिन किसान आंदोलन, महिला पहलवान आंदोलन और अग्निवीर योजना के कारण भाजपा से नाराजगी रही। इन तीन मुद्दों को भाजपा नेता ठीक से हैंडल नहीं कर पाए, जबकि तीनों ही मामलों में एक तरह से भाजपा को पीछे हटना पड़ा है। 

करीब 13 महीने के लंबे आंदोलन के बाद तीन किसान कानून वापस लेने पड़े, लेकिन तब तक किसानों को नाराज किया जा चुका था। महिला पहलवानों ने जब आंदोलन शुरू किया, तब भाजपा के बड़े नेता आगे नहीं आए और छोटे नेताओं ने इन पहलवानों के खिलाफ सोशल मीडिया और मीडिया चैनल्स पर जमकर जहर उगला। जब पहलवानों से एक बार अमित शाह मिले, तब भी उनको पूर्ण न्याय का आश्वासन नहीं दिया गया, जबकि अब बृजभूषण सिंह को कोर्ट ने दोषी मान लिया है, और कभी भी सजा का ऐलान हो सकता है, लेकिन भाजपा नेता उसके बाद भी यह नहीं बोले के हम इस मामले में बेटियों के साथ हैं। 

यही हाल अग्निवीर योजना हुआ। जाने किन सेना अधिकारियों ने यह योजना बनाई, जिसको लेकर देशभर में बवाल हुआ। बिहार से लेकर हरियाणा तक ट्रेनें जलाईं, बसों को फूंक दिया गया, सरकारी और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया, बाद में सरकार ने 25 फीसदी की जगह 50 फीसदी कर दिया, लेकिन फिर भी युवाओं को न्याय का भरोसा नहीं दिया गया। 

हालात यह बन गए हैं कि जब तक इस योजना को वापस नहीं लिया जाएगा, तब तक भाजपा को इन पांच राज्यों में नुकसान होता रहेगा। बहुमत में होने के बाद भी 10 से हरियाणा में जाट सीएम नहीं बनाने का मामला भी पर्दे के पीछे से कांग्रेस ने खूब उछाला। चुनाव के ठीक पहले सीएम बदला, तो लगा कि खट्टर की जगह किसी जाट नेता को सीएम बनाया जाएगा, लेकिन भाजपा ने जाट समाज की उम्मीदों को धराशाही करते हुए नायब सैनी को बना दिया, जिससे जाट और नाराज हो गए। 

हरियाणा की पांच सीट हारने के ये 5 मुद्दे ही सबसे बड़े कारण रहे, इसके अलावा ऐसा कोई कारण नहीं था कि भाजपा सभी 10 सीट नहीं जीत सकती थी। अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, जिसमें भाजपा को इन्हीं मुद्दे से दो चार होना है। पिछली बार बड़ी मुश्किल से सरकारी बनाई थी, लेकिन इस बार सत्ता विरोधी लहर दो गुणी हो चुकी है।

सबसे ज्यादा चौंकाने वाला मामला यूपी में बना। यूपी में राम मंदिर बनने के बाद भाजपा सोच रही थी कि एक तरफा जीत मिलेगी, लेकिन चुनाव के बीच कांग्रेस ने बाबा साहब का संविधान बदलने, दलितों का आरक्षण खत्म करने और मुसलमानों का आरक्षण ओबीसी—एससी—एसटी को देने का नैरेटिव फैलाया। इसकी वजह से दलित समुदाय को लगा कि उनका अस्तित्व संकट में आ जाएगा। मुसलमानों पहले भाजपा को वोट नहीं देते। उपर से 5 जुलाई 2023 को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समान नागरिक संहिता का जमकर विरोध करने, भाजपा को एक भी वोट नहीं देने का संदेश दे दिया। 

मुस्लिम समाज से अपना अस्तित्व बचाने का डर दिखाकर भाजपा विरोध में वोट डालने का मैसेज दिया गया। कहा जाता है कि एक साल से कट्टर मुस्लिम संगठन अंदर ही अंदर मस्जिद—मदरसों से मुस्लिम समाज में यह मैसेज कर रहे थे कि मोदी तीसरी बार सत्ता में आए तो उनका जीना हराम हो जाएगा। जो भी पार्टी भाजपा के खिलाफ मजबूत है, उसी को 100 प्रतिशत वोट दे दिया जाए, ताकि भाजपा के उम्मीदवार हार जाएं। इसी बीच पुणे में एक मीटिंग हुई, जिसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना मुहम्मद वली रहमानी ने खुलेआम देश के सभी मुसलमानों को भाजपा के खिलाफ वोट देने की अपील कर दी। 

देश का मुसलमान इस बोर्ड की बात स​बसे अधिक मानता है। कारण यह है कि हिंदू संगठन लंबे समय से इस बोर्ड को खत्म करने की मांग कर रहे हैं। मुस्लिम संगठनों ने संदेश दिया कि यदि मोदी तीसरी बार सत्ता में आए तो देश में तीसरे सबसे अधिक जमीन के मालिकाना हकधारी वक्फ बोर्ड को खत्म करके जमीनें छीन लेंगे। 

शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ा समझे जाने वाला मुस्लिम समाज अपनी मस्जिद, मदरसों और मजहबी संगठनों की बात को ही सम्पूर्ण मानता है, अन्य किसी की बात नहीं मानता, फिर चाहे उनको सरकार लाख सुविधांए दे दे। एक तरफ नाराज राजपूत, यादव, जाट, ब्राह्मण भाजपा को वोट देने नहीं निकले तो मुस्लिम समुदाय ने न केवल बढ़ चढ़कर वोट किया, बल्कि सारा वोट समाजवादी पार्टी को दे दिया। 

दलित समाज को आरक्षण खत्म करने का डर दिखाया। साथ ही संविधान बदलकर स्वर्ण जातियों के लिए करने का भ्रम फैलाया। खुद राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा ने दावा किया कि भाजपा फिर सत्त में आई तो संविधान खत्म हो जाएगा, दलितों के आरक्षण को खत्म कर दिया जाएगा। 

आरक्षण और संविधान खत्म करने की बात कहते पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के डीपफेक वीडियो वायरल किए गए। दोनों ही नेताओं के वीडियो जनता में सर्कूलेट हो गए, जब तक ऐसा करने वालों पर पुलिस कार्यवाही करती, उससे पहले हर मोबाइल में पहुंच गए। जो इस एडिटिंग के खेल को नहीं जानते, उनको य​ह बताया गया कि खुद अमित शाह और नरेंद्र मोदी संविधान और आरक्षण खत्म करने के भाषण दे रहे हैं, 400 पार होने पर संविधान बदलने का दावा कर रहे हैं, यदि संविधान ही नहीं रहेगा तो आगे चुनाव नहीं होंगे और मोदी हमेशा तानाशाह बन जाएंगे। अनपढ़ या कम पढ़े लोगों को ऐसे फर्जी वीडियो दिखाकर डर फैलाया गया। 

कांग्रेस ने अपना गारंटी कार्ड प्रिंट करवाया और राहुल गांधी की फोटो के साथ चार गारंटी दी, जिसमें महिलाओं को हर साल एक लाख रुपये उनके खाते में खटाखट डाले जांएगे, प्रत्येक परिवार से एक व्यक्ति को नौकरी दी जाएगी, हर परिवार को 5 किलो की जगह 10 किलो राशन दिया जाएगा। किसानों का कर्जमाफ करने और एमएसपी लागू करने का वादा किया गया। 

इस कार्ड के नीचे राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे की फोटो के साथ हस्ताक्षर छापे गए, उसके नीचे परिवारों को अपनी डिटैल भरनी थी और सरकार बनते ही उसको जमा कराना था। अब इन कार्ड्स को लेकर लोग कांग्रेस कार्यालय पहुंच रहे हैं। 

मुस्लिम महिलाओं को इस तरह से बहकाया गया कि जैसे ही चार जून को परिणाम आया, उसके अगले ही दिन डाकघर में खाता खुलवाने पहुंच गईं, कि अब कांग्रेस उनको हर साल एक लाख रुपये ​देगी। एक तो मुसलमानों को मुल्ला मोलवियों द्वारा डर दिखाया गया, उपर से राहुल गांधी का गारंटी कार्ड सोने पर सुहागा बन गया। कांग्रेस की लीडरशिप में इंडिया अलाइंस ने गरीबों के साथ ऐसे दोहरा खेल खेला। 

धारा 370 और राम मंदिर को लेकर जो माहौल देशभर में भाजपा ने बनाया था, उसको कांग्रेस के गारंटी कार्ड, संविधान बदलने, आरक्षण समाप्त करने के झूठ ने खत्म कर दिया। लोगों को समझाया गया कि जब संविधान नहीं होगा, आरक्षण नहीं होगा, तब राम मंदिर किस काम आएगा। राम मंदिर को लेकर कांग्रेस हमेशा ही खिलाफ रही है। मंदिर के उद्घाटन तक में कांग्रेस ने शामिल होने से इनकार कर दिया। मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक बैन लगाने के दुष्परिणाम बताए गए। 

उनको बहकाया गया कि इसके कारण इस्लाम ही खत्म हो जाएगा। सीएए को लेकर भी मुस्लिम समाज का माइंडसेट ही बदल दिया। जिस कानून से भारत के मुस्लिम समाज को कोई मतलब ही नहीं था, उसको लेकर पूरी तरह से मुसलमानों को भाजपा के खिलाफ खड़ा कर दिया। यहां तक कि धारा 370 हटाने को भी मुस्लिम समाज के खिलाफ बताया गया, जबकि कश्मीर के मुसलमानों को भी इससे फायदा ही हुआ है। कुल मिलाकर मुसलमानों और दलित समाज को भाजपा के खिलाफ करने का काम किया गया। 

इसी तरह से लोकसभा चुनाव के बाद यूपी में योगी आदित्यनाथ को हटाने का झूठ फैलाया गया, जिसके कारण भाजपा का परंपरागत वोट माना जाने वाला राजपूत समाज भी नाराज हो गया। इसमें तड़के का काम किया गुजरात के पुरषोत्तम रुपाला के बयान ने, जिनका टिकट काटने के लिए राजपूत समाज के नेताओं ने आंदोलन शुरू कर दिया। ग्रांउड से लेकर सोशल मीडिया तक राजपूत नेताओं ने भाजपा के खिलाफ अभियान चला दिया। राजस्थान से लेकर गुजरात और महाराष्ट्र से लेकर यूपी तक राजपूत नेताओं ने भाजपा के खिलाफ वोट करने की अपील की। 

इसके लिए सोशल मीडिया के जरिए युवाओं को टारगेट किया गया। राजपूतों के नाम से फर्जी अकांउट बनाए गए और युवा राजपूत नेताओं के भाषण पैसे खर्च कर सोशल मीडिया पर वायरल करवाए गए, जिसमें भाजपा को वोट नहीं देने की अपील की गई। सोशल मीडिया के जरिए दूसरी जाति को उसके खिलाफ भड़काया गया। राजस्थान में जाट—राजूपतों को बांट दिया, जो यूपी में ब्राह्मण—राजपूतों में टकराव करवाया गया। यूपी के यादव सपा के साथ चले गए, ब्राह्मण—राजपूत घर बैठ गए, जिसके कारण भाजपा के पक्ष की वोटिंग काफी कम हुई। 

परिणाम यह हुआ कि जिन सीटों पर भाजपा लाखों में जीतती रही, वहां पर हजारों में हार गई। एक तरफ भाजपा का वोटर घर सो रहा था, तो मुस्लिम, यादव और दलित समाज का एक बड़ा हिस्सा भाजपा के खिलाफ जमकर वोटिंग कर था। भाजपा को जिन 34 सीटों पर सबसे कम वोटों से हारी, वहां भाजपा को केवल 6 लाख वोट मिल जाते तो भाजपा को पूर्ण बहुमत मिल जाता।

राम मंदिर और मोदी की लहर पर सवार भाजपा के बड़े नेताओं ने जमीनी कार्यकर्ताओं की सुनी ही नहीं। भाजपा के छोटे नेता भी डर के मारे अपनी राय उपर तक पहुंचा ही नहीं पाए। दोनों के बीच गैप ऐसा हुआ कि उपर से जो लिस्ट आई, उसको कार्यकर्ताओं ने सिर माथे पर लगा लिया, लेकिन ऐसा काम कार्यकर्ता कर सकता है, जतना तो अपनी मर्जी से ही चलती है। राजस्थान के चूरू में अच्छा काम करते सांसद राहुल कस्वां का टिकट काट दिया जो उनको जनता ने चुनाव लड़ा दिया। 

तारानगर में राजेंद्र राठौड़ की हार से शुरू हुआ सिलसिला चूरू में सामंतवाद बनाम किसान बन गया। कांग्रेस ने बीजेपी की फूट का फायदा उठा लिया। बांसवाड़ा में कांग्रेस के बूढ़े नेता को लेकर जीत का सपना देखा, जबकि खुद भाजपा के कार्यकर्ता, जो लंबे समय से मेहनत कर रहे थे, उनको दरकिनार कर दिया। नजीता यह हुआ कि भाजपा कार्यकर्ता घर बैठ गये, जिसका फायदा बाप को हुआ। नागौर में तीन—तीन चुनाव हारी हुई कांग्रेस की ज्योति मिर्धा को उतार दिया, भाजपा ने ने ज्योति को उतारा और भाजपा के कार्यकर्ताओं ने यहां भाजपा का नशा उतार दिया। 

यूपी में आधे से अधिक टिकट बदलने थे, लेकिन योगी द्वारा अमित शाह को भेजी गई 34 जनों की लिस्ट में केवल 9 बदले गए, जो सभी जीत गए, बाकी हार गए। यह साफ हो गया है कि भाजपा में टिकट का मैनजेंट जो कोई भी देखता है, वो जमीनी कार्यकर्ताओं की तरफ बिलकुल नहीं देखता है। अगर मोदी का जादू नहीं होता तो भाजपा 240 तो क्या 140 तक भी नहीं पहुंच पाती। 

यूपी में जातिवाद, सपा—कांग्रेस का मुस्लिम तु​ष्टिकरण, यादव—मुस्लिम गठजोड़, योगी को हटाने की अफवाह, आरक्षण खत्म करने का नैरेटिव, संविधान बदलने का झूठ, कांग्रेस का महिलाओं को हर साल एक लाख रुपया, 30 लाख को सरकारी नौकरी, किसानों की कर्जमाफी और एमएसपी काननू लागू करने की गारंटी देना, पश्चिमी यूपी में किसान आंदोलन, महिला पहलवानों का मुद्दा और अग्निवीर योजना का दुष्प्रभाव रहा। 

उपर से मोदी के नाम जीतने वाले सांसदों का जनता से नहीं मिलना, उनके काम नहीं करना, बिना मेहनत किए केवल मोदी के भरोस चुनाव जीतने का सपना देखना बड़े मुद्दे रहे हैं। इतना सबकुछ होने के बाद भी यदि भाजपा यूपी में 34 सीटें जीती तो यह बहुत बड़ा चमत्कार है।

चुनाव के दौरान चर्चा यह भी चली कि मोदी अपने बाद ​अमित शाह को पीएम बनाना चाहते हैं। मोदी अपनी 75 साल वाली आयु के बाद रिटायर हो अमित शाह को आगे कर देंगे। विपक्ष ने कहा कि मोदी इस बार खुद के लिए नहीं, बल्कि अमित शाह के लिए वोट मांग रहे हैं। इसका नैरिेटिव भी खूब फैलाया गया, जबकि भाजपा की ओर से ऐसा किसी ने कहा नहीं है। योगी को हटाने का राग छेड़ा गया।

 केजरीवाल ने कहा कि लोकसभा चुनाव में यदि भाजपा को 400 पार सीटें मिलीं तो योगी को सीएम पद से हटा दिया जाएगा। अमित शाह को लेकर यह भी कहा गया कि वो भाजपा में उभरते हुए नेताओं को खत्म कर देते हैं, ताकि मोदी के बाद उनके पीएम बनने की राह में कोई रोडा नहीं बने। मोदी और शाह की दोस्ती जग जाहिर है। कहते हैं कि मोदी जहां पब्लिक मीटिंग्स में आगे होते हैं तो पर्दे के पीछे मैनेजमेंट का पूरा काम अमित शाह के हाथ में ही होता है, वो ही तय करते हैं कि किसे टिकट देना, किसे सीएम बनाना, किसे मंत्री बनाना, किसे अध्यक्ष बनाना और किस विपक्षी दल के नेता को भाजपा में लेना है। 

पिछले दो चुनाव में अमित शाह ने पूरा मैनेजमेंट किया, लेकिन इस बार उनका अति आत्मविश्वास ही भाजपा के बहुमत की राह में रोड़ा बन गया। टिकट वितरण में जमीनी सच्चाई की अनदेखी, मनमर्जी के किसी भी नेता को टिकट देना, किसी को भी अध्यक्ष बना देना, बिना किसी योग्यता के किसी भी नए नेता को सीएम बना देना। इन सब का खामियाजा भाजपा को इस चुनाव में उठाना पड़ा है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही है​ कि जिस आरएसएस के दम पर भाजपा यहां तक पहुंची, उसी संघ को लेकर जेपी नड्डा का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें नड्डा ने कहा कि अब पार्टी को उसकी जरूरत नहीं है। इस बयान ने संघ के जमीनी कार्यकर्ताओं को नाराज कर दिया। पिछले पांच साल में भाजपा ने कई राज्यों में सरकार बनाई और मध्य प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में विधायकों को तोड़कर भी सरकारें बनाईं। 

इसी पांच साल में भाजपा ने विपक्षी नेताओं के लिए अपने द्वार खोल दिए। खासकर कांग्रेस के दागी नेताओं को भरपेट लिया गया। अकेले राजस्थान में लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के करीब 10 हजार छोटे—बड़े नेताओं को भाजपा में शामिल किया गया। इसको कांग्रेस ने मुद्दा बना लिया। कांग्रेस ने कहा कि जिनपर भाजपा आरोप लगाती और जांच करवाती है, उनको ही शामिल कर लेती है। ऐसे नेता जांच और जेल जाने से बचने के लिए भाजपा में चले जाते हैं, उनको भाजपा की वॉशिंग मशीन में धोकर साफ कर लिया जाता है। 

यह बात काफी हद तक सही भी है, क्योंकि देश में कांग्रेस हजारों नेताओं और लाखों छोटे नेताओं को भाजपा में शामिल किया गया, जिनके खिलाफ गंभीर मुकदमे चल रहे हैं। कई तो सीएम और डिप्टी सीएम के पद तक पहुंच गए। कुछ समय पहले भाजपा ज्वाइन करके राज्यसभा पहुंच गए, टिकट लेकर विधायक और सांसद बन गए। जिनको जेल जाना था, वो भाजपा में शामिल हो गए और अब उनके लिए जेल के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गए।

पूरी उम्र भाजपा की दरी उठाने वाला कार्यकर्ता टिकट की लाइन में लगा हुआ था, उसको दरकिनार कर एक दिन पहले कांग्रेस से आए नेताओं को टिकट दे दिया,​ जिसके कारण भाजपा का मूल कार्यकर्ता पार्टी से दूर हो गया, वो खुद को अपनी ही पार्टी में ठगा सा समझने लगा। भाजपा के लाखों मूल कार्यकर्ताओं ने इस चुनाव में परिश्रम ही नहीं किया, जिसके चलते भाजपा को बड़ा नुकसान हुआ है। 

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