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हाउस अरेस्ट से आजाद हुए जगदीप धनकड़!

भारत की राजनीति ने शुक्रवार को एक बड़ा मोड़ देखा जब चंद्रपुरम पोन्नुसामी राधाकृष्णन ने देश के 15वें उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति भवन के भव्य दरबार हॉल में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें शपथ दिलाई। लाल कुर्ता पहने राधाकृष्णन ने ईश्वर के नाम पर अंग्रेजी में शपथ लेकर औपचारिक रूप से इस पद की जिम्मेदारी संभाली। यह क्षण न केवल उनके राजनीतिक जीवन की ऊंचाई का प्रतीक था बल्कि विपक्ष की हार और सत्ता पक्ष की रणनीतिक जीत का भी संदेश देता है।

उपराष्ट्रपति चुनाव में राधाकृष्णन ने विपक्ष के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी को 452 वोट मिले, उन्होंने 152 वोटों के बड़े अंतर से हराकर यह पद हासिल किया। यह परिणाम संसद में सत्ता और विपक्ष के समीकरणों को एक बार फिर साफ करता है कि बीजेपी और एनडीए की पकड़ अब भी मजबूत बनी हुई है, लेकिन इस शपथ ग्रहण का सबसे बड़ा आकर्षण पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की उपस्थिति रही। कांग्रेस का कहना है कि नये उपराष्ट्रपति का चयन होते ही उनको हाउस अरेस्ट से आजाद कर दिया गया है। 

दरअसल, 21 जुलाई शाम को अचानक स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा देने के बाद पहली बार धनखड़ सार्वजनिक रूप से नजर आए। समारोह में वे सीपी राधाकृष्णन के पास पहली कतार में बैठे, हंसते-मुस्कुराते और ताली बजाते दिखे। यह वही धनखड़ हैं जिनकी गैरमौजूदगी पिछले 53 दिनों से लगातार चर्चा और अटकलों का केंद्र बनी हुई थी। विपक्ष के नेताओं ने उनकी चुप्पी और सार्वजनिक जीवन से दूरी पर सवाल खड़े किए थे।

कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने सीधे पूछा था कि आखिर धनखड़ कहां हैं? शिवसेना के संजय राउत और तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ’ब्रायन ने भी संसद और मीडिया में इस मुद्दे को उठाया था कि पूर्व उपराष्ट्रपति का गायब रहना क्या किसी बड़े दबाव या स्वास्थ्य समस्या का संकेत है। सरकार ने भी अब तक इस मामले पर खुलकर कुछ नहीं कहा था।

अब जब धनखड़ सामने आए, तो तस्वीर कुछ साफ हुई। सूत्रों का कहना है कि इस्तीफे के बाद वे लगातार दिल्ली और जयपुर के बीच स्वास्थ्य जांच और आराम में व्यस्त थे। कुछ करीबी लोगों का कहना है कि उन्हें गंभीर स्वास्थ्य जटिलताओं से जूझना पड़ा, जबकि राजनीतिक हलकों में यह चर्चा रही कि उनका इस्तीफा केवल स्वास्थ्य कारणों तक सीमित नहीं था, बल्कि अंदरूनी असहमति और दबाव भी वजह हो सकते हैं। हालांकि, उनके चेहरे की मुस्कान और सक्रिय उपस्थिति ने कम से कम यह संकेत जरूर दिया कि वे अब सामान्य स्थिति में लौट आए हैं।

धनखड़ ने अपने उत्तराधिकारी सीपी राधाकृष्णन को एक भावनात्मक पत्र लिखकर बधाई दी थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि राधाकृष्णन का इस उच्च पद पर पहुंचना जनप्रतिनिधियों के विश्वास और भरोसे का प्रतीक है। उन्होंने उम्मीद जताई थी कि नए उपराष्ट्रपति का कार्यकाल लोकतंत्र को और मजबूत करेगा। यह बयान भी जुलाई के बाद उनका पहला सार्वजनिक संदेश था।

सवाल यह है कि क्या धनखड़ का अचानक सामने आना केवल स्वास्थ्य सुधार का नतीजा है या फिर सत्ता और विपक्ष के बीच चल रही खींचतान का हिस्सा? यह भी संभव है कि उनकी अनुपस्थिति ने सरकार और पार्टी को असहज किया हो और अब एक योजनाबद्ध रणनीति के तहत उन्हें सार्वजनिक जीवन में लौटाया गया हो।

भारत के उपराष्ट्रपति का पद केवल औपचारिक नहीं होता, बल्कि यह राज्यसभा की गरिमा और संवैधानिक संतुलन का भी प्रतीक है। राधाकृष्णन के सामने अब चुनौती होगी कि वे किस तरह इस पद की प्रतिष्ठा को बनाए रखते हुए, विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों के बीच संतुलन साधें। वहीं, धनखड़ का फिर से सार्वजनिक रूप से सक्रिय होना आने वाले समय में उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर नए कयासों को जन्म देगा।

यह साफ है कि भारतीय राजनीति में खाली जगह कभी नहीं रहती। जैसे ही एक नया चेहरा आता है, पुराने की छवि और सवाल भी नए रंग में सामने आते हैं। राधाकृष्णन की शपथ और धनखड़ की वापसी ने यही साबित कर दिया है कि दिल्ली की सत्ता की राजनीति में हर घटना केवल संयोग नहीं, बल्कि गहरे मायने रखती है।

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