राजस्थान सरकार से टोकन मनी पर जयपुर जैसे शहरों के बीचोंबीच अरबों रुपये की जमीनें लेकर महंगे उपचार के सफेद हाथी बन चुके प्राइवेट अस्पतालों की लूट, पीड़ितों की जेबों पर डकैती, सरकारी खजाने में चोरी और उसपर सीनाजोरी बदस्तूर जारी है। सरकार की नाक के नीचे राजधानी जयपुर में प्राइवेट अस्पतालों द्वारा ट्रीटमेंट के नाम पर जनता को लूटा जा रहा है, और सबकुछ देखकर भी सरकार मौन साधकर बैठी है। लोकतंत्र में जनता को मालिक बताया जाता है और उसी जनता को उपचार के नाम पर प्रताड़ित किया जाता है, लेकिन शासन—प्रशासन मौन बैठा केवल तमाशा देख रहा है। दर्जनों अस्पतालों को सरकार ने राजधानी के सेंटर में बेश्कीमती जमीनें अलॉट कर उनका साम्राज्य स्थापित करवा दिया, लेकिन आज ये अस्पताल ही सरकार पर हावी हो गए हैं।
70 के दशक में जयपुर की प्राइम लोकेशन पर दुर्लभजी अस्पताल को सरकार ने टोकन मनी पर जमीन दी, जहां पर एक निश्चित संख्या तक गरीब मरीजों का इलाज करना अनिवार्य है। इसी तरह से सीतापुरा में महात्मा गांधी, जेएलएन मार्ग पर फोर्टिस, चंदवाजी में निम्स, जगतपुरा में जेएनयू हॉस्पीटल, गोपालपुरा में सीके बिरला जैसे कई प्राइवेट अस्पतालों को अरबों रुपये की बेशकीमती जमीनें सरकारों ने पिछले 25 सालों में दीं, जहां नियमानुसार 25 फीसदी गरीब मरीजों का फ्री उपचार होना चाहिए, लेकिन गरीबों का फ्री इलाज तो छोड़ दो, मोदी सरकार की आयुष्मान भारत योजना में भी उपचार नहीं किया जा रहा है, और इलाज के नाम पर मरीजों से लाखों रुपये वसूले जा रहे हैं। इनके जुल्मों की इंतहां तो तब होती है, जब उपचार के नाम पर लूटने के दौरान ही किसी मरीज मौत हो जाए तो मनमर्जी की वसूली किए बिना परिजनों को डेड बॉडी तक नहीं देते।
ऐसा ही एक मामला पिछले दिनों दुर्लभजी अस्पताल में सामने आया। जहां परिजनों ने एक मरीज को एडमिट करवाया था, उपचार के दौरान मरीज की मौत हो गई। मृतक के परिजनों का कहना है कि उन्होंने 6 लाख 39 हजार रुपए जमा करवा दिए थे, लेकिन हॉस्पिटल बॉडी देने के लिए 1.79 लाख रुपए और मांग रहा था। इसको लेकर परिजन कृषि मंत्री किरोड़ीलाल मीणा के पास पहुंचे। मंत्री ने सरकार की फजीहत होती देख अस्पताल पहुंचकर परिजनों को डेड बॉडी दिलाई।
इसी मौके पर मीडिया से बात करते हुए मंत्री किरोड़ीलाल मीणा ने अपनी सरकार की नाकामी स्वीकार करते हुए कहा कि प्रदेश के प्राइवेट हॉस्पिटल्स में आमजन को सरकारी योजनाओं का फायदा नहीं मिल रहा है। हॉस्पिटल आयुष्मान भारत जैसी केंद्र सरकार की योजनाओं में रजिस्टर्ड होने के बावजूद मरीजों को फायदा नहीं पहुंचा रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट तौर पर स्वीकार किया कि सरकार की मॉनिटरिंग नहीं होने के कारण निजी अस्पताल ऐसा कर रहे हैं। मंत्री ने मुख्य सचिव से बात की है, लेकिन सीएम भजनलाल शर्मा और स्वास्थ्य मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर से बात नहीं हो पाई है। मंत्री द्वारा सरकारी नाकामी स्वीकारने का मतलब यह होता है कि यह सरकार का खुद का बयान है, जिसकी गंभीरता समझ में आती है। संवैधानिक तौर पर मंत्रीमंडल के किसी सदस्य द्वारा बोला गया वचन सरकार की सामूहिक जिम्मेदारी होता है, यानी जिसमें खुद मुख्यमंत्री भी शामिल होते हैं।
मंत्री किरोड़ीलाल के इस बयान पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ ने बीजेपी सरकार का बचाव करते हुए कहा, कोई कुछ भी कह दे, लेकिन सरकार ने एक व्यवस्था बना रखी है, इसे लेकर सरकार ने कानून भी बना रखा है, उस कानून का पालन सबको करना है, कहीं कानून का उल्लंघन होता है तो उस पर सरकार कार्रवाई करती है। यानी सरकार का एक कैबिनेट मंत्री भाजपा अध्यक्ष के लिए 'कोई भी' हो गया? भजनलाल सरकार को इस मामले में क्लीन चिट देते हुए कहा कि सरकार की ओर से कोई कमी नहीं है।
सरकार की मॉनिटरिंग पूरी है, जहां ध्यान में कोई चीज आएगी तो सरकार कार्रवाई करेगी, लेकिन प्राइवेट हॉस्पिटल को भी मानवता दिखानी चाहिए, धन ही सब कुछ नहीं है, अस्पताल एक सेवा का केंद्र होते हैं, अस्पताल के द्वारा पैसे या फीस को आधार बनाकर डेड बॉडी नहीं देना अच्छी बात नहीं है। मदन राठौड़ ने किरोड़ीलाल के बयान को पूरी तरह खारिज कर दिया। यानी दोनों में से एक ही सही है, एक तो गलत बयानी कर रहा है। इसके बाद कांग्रेस की ओर से विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने कहा कि दो साल में भाजपा ने स्वास्थ्य का बंटाधार कर दिया है, जयपुर के दुर्लभजी अस्पताल तक में मरीजों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है, बिल नहीं चुकाने पर डेड बॉडी तक नहीं दी जाती, सरकार के मंत्री को मैदान में उतरना पड़ता है।
इन तीन बयानों से सत्ताधारी दल में विखंडित राजनीति, सरकार के अंदर खींचतान और प्राइवेट अस्पतालों के उपर निगरानी रखने का दावा करने वाले सरकारी सिस्टम के दर्शन हो जाते हैं। साथ ही यह भी स्पष्ट होता है कि विपक्ष अपनी जिम्मेदारी से बचकर गहरी नींद में सो रहा है, उसपर विश्वास नहीं होने के कारण जनता भी गुहार लगाने के लिए एक मंत्री के पास ही जा रही है। सरकारी हालात की बात करें तो ऐसे उदाहरण सामने आते हैं, तब क्लीयर होता है कि भाजपा का शासन पूरी तरह से फलॉप हो चुका है। प्राइवेट अस्पताल सरकार से ही जमीनें लेकर सरकार के ही आदेशों की पालना नहीं कर रहे हैं, या मदन राठौड़ जैसे सरकार में बैठे ताकतवर लोग इनका बचाव करके प्रोत्साहित कर रहे हैं। जिसके कारण इनको सरकारी कार्रवाई कर डर नहीं है।
सत्ताधारी दल के प्रदेश मुखिया अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं। उनको सरकारी खामियों को उजागर करते हुए शासन को निर्देशित करवाना चाहिए कि इस तरह की चीजें बर्दास्त नहीं की जाएगी, इससे सरकार की साख पर सवाल खड़े होते हैं, लेकिन जब सरकार का एक मंत्री सबकुछ उजागर करता है, तो प्रवक्ता बन मदन राठौड़ सरकार की खामियों पर पर्दा डालते नजर आते हैं। कांग्रेस के गहलोत शासन को जंगलराज बोलकर सत्ता में आई भाजपा के शासन में प्रदेश अपराध का गढ़ बनता जा रहा है। पहली बार के विधायक को पर्ची से सीएम बनाने का नुकसान यह हुआ कि मुख्यमंत्री पद का इकबाल भी खत्म हो चुका है।
आरोप लगाए जा रहे हैं कि अफसर सरकार को चला रहे हैं और सीएम के चारों तरफ ऐसा आभामंडल बन चुका है, जो खुद असुरक्षित है, जो सीएम को भी इन्स्क्यिोर महसूस करवा रहा है। सीएम की अनुभवहीनता के चलते अफसरशाही राजनीति पर पूरी तरह से हावी हो चुकी है। शासन में क्या हो रहा है, इसका शायद खुद सीएम को भी पता नहीं है। कृषि मंत्री छापे मारकर फर्जियों को पकड़ते हैं, लेकिन अधिकारी नकली खाद-बीज बनाने वालों को 'क्लीन वर्किंग सर्टिफिकेट' बांट देते हैं। कृषि मंत्री अस्पताल में जाकर पीड़ितों को डेड बॉडी दिलाते हैं, जहां सरकारी मॉनिटरिंग के अभाव में केंद्र की योजनाओं को लागू नहीं किया जाता है।
संगठन का काम सरकार के कामकाज की मॉनिटरिंग करते हुए सीएम और सरकार को सही रास्ता दिखाना होता है, लेकिन पार्टी अध्यक्ष मदन राठौड़ प्रवक्ता बनकर सरकारी नाकामी को ढकने का काम करते हैं, और अपनी सरकार के मंत्री को एक तरह से झूठा साबित कर देते हैं। अब सवाल यह उठता है कि मंत्री किरोड़ीलाल सच बोल रहे हैं, या पार्टी अध्यक्ष मदन राठौड़ सही हैं?
विपक्ष का काम तो वैसे भी सरकार की आलोचना करना होता है, और यदि आलोचना ईमानदार हो तो लोकतंत्र को मजबूती मिलती है, लेकिन आजकल विपक्ष केवल और केवल, विरोध करने का काम करता है। चाहे सरकार के किसी कदम से जनता को लाभ ही हो रहा हो। अब राजस्थान के स्वास्थ्य ढांचे की बात करें तो भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना का नाम और काम बदलने का कारनामा कांग्रेस की गहलोत सरकार ने 2019 में किया था। उसके बाद वर्तमान सरकार ने इसको आयुष्मान भारत योजना से जोड़ दिया।
कांग्रेस की सरकार में ऐसा बहुत बार हुआ है कि निजी अस्पतालों ने डेड बॉडी देने से इनकार कर दिया, लेकिन कांग्रेस के पास ऐसा कोई मंत्री नहीं था, जो किरोड़ी की तरह अपनी ही सरकार का खुला विरोध कर सके। सचिन पायलट जरूर आलोचना करते थे, लेकिन वे केवल बयानबाजी तक सीमित थे, उन्होंने सरकारी की नाकामी के खिलाफ कोई धरना, प्रदर्शन या संघर्ष नहीं किया। उन्होंंने केवल मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए साढे तीन साल गहलोत सरकार की मुखालपत की। आज टीकाराम जूली सरकार पर सवाल उठा रहे हैं जो विपक्षी नेता होने के नाते उनका कर्तव्य बनता है, जेकिन उनको अपनी सरकार के समय हुए कारनामों को नहीं भूलना चाहिए और सरकार की नाकामी के खिलाफ सड़क पर उतरना चाहिए।
देखा जाए असल बीमारी वो निजी हॉस्पीटल हैं, जिन्होंने सरकारों से टोकन मनी पर जयपुर में बेशकीमती जमीनें लीं और आज गरीबों का इलाज तो छोड़ दीजिए, सरकारी योजनाओं तक का लाभ मरीजों को नहीं दे रहे हैं। किरोड़ी वास्तव में ठीक ही कहते हैं, निजी अस्पतालों की लूट लोगों के लिए भयंकर बीमारी बन चुकी है, लेकिन सरकार कुछ नहीं कर रही है। निजी अस्पतालों को जमीन देने का सिलसिला सबसे पहले इसी दुर्लभजी अस्पताल से ही हुआ था। उसके बाद गहलोत और वसुंधरा की सरकारों ने जमीनें ऐसे बांटी ,जैसे उनकी निजी प्रोपर्टी को दान दे रहे थे। आजादी से पहले का एसएमएस अस्पताल आज उन निजी अस्पतालों के आगे छोटा दिखाई देने लगा है, जिनको 15-20 साल पहले सरकार ने जमीनें दी थीं।
टोकन मनी के इस खेल में खुद गहलोत और वसुंधरा की पार्टनरशिप के भी आरोप लगते रहे हैं। जयपुर के कई बड़े प्राइवेट हॉस्पीटलों में इन दोनों नेताओं की हिस्सेदारी के आरोप लगते हैं। यही वजह है सरकार किसी भी दल की हो, लेकिन इन प्राइवेट अस्पतालों का बाल भी बांका नहीं होता है। ये हॉस्पीटल मन की मर्जी करते हैं, लेकिन सरकार इनके आगे बेबस, लाचार और प्रशासन दंतहीन नजर आता है। इसलिए जब किरोड़ीलाल मीणा जैसे मंत्री जनता के लिए सड़क पर उतरते हैं, तो सरकार के प्रवक्ता बनकर बैठे भाजपा के अध्यक्ष मदन राठौड़ जैसे नेताओं के पेट में दर्द होता है। विपक्ष में बैठी कांग्रेस केवल ट्वीट करके विपक्ष की खानापूर्ति कर रही है, और भाजपा सरकार की नाकामी से ही तीन साल बाद सत्ता मिलने का इंतजार कर रही है।
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