नेतापुत्रों का करियर बना रहा आरसीए बेहाल है!

भाजपा राजनीति में अक्सर परिवारवाद का आरोप लगाकर कांग्रेस पर हमला करती है। कांग्रेस ने लंबे समय तक देश और प्रदेशों में शासन किया है, 78 साल की आजादी के चुनावी इतिहास में कांग्रेस कई कांग्रेस नेताओं की दूसरी या तीसरी पी​ढ़ी चुनाव में उतर चुकी है। ऐसे में भाजपा के आरोप गलत भी नहीं हैं, लेकिन 45 साल पुरानी बीजेपी भी अब इससे अछूती नहीं रही है। भले ही नरेंद्र मोदी परिवारवाद का आरोप कांग्रेस पर लगाते हों, लेकिन अब भाजपा में भी परिवारवाद ने घर कर लिया है। भारत की राजनीति में अक्सर देखा है कि नेता अपने बाद अपने बेटों का करियर राजनीति में स्थापित करने में जुट जाते हैं। कुछ नेता अपने रिटायरमेंट के बाद ऐसा करते हैं, तो कुछ अपने साथ ही बेटों का करियर भी सेट करने लग जाते हैं। देश की राजनीति की तरह से ही ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं, तो राजस्थान की सियासत में भी दर्जनों नेताओं ने ऐसा किया है। 

राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं, तो इनके अलावा कई मंत्री, सांसद और विधायक भी ऐसा कर रहे हैं। नेताओं की इस हरकत के कारण एक तरफ जहां दूसरे लोगों के लिए राजनीति में प्रवेश करने के रास्त बंद होते हैं, तो युवाओं को सियासत पर भरोसा उठता है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा भी मिलता है। सबसे बड़ी बात यह है कि जो नेता अपने माता, पिता या दादा के कारण राजनीति में आते हैं, उनका जनता से जुड़ाव बेहद कम होता है। ऐसे लोग आम लोगों को कुछ भी नहीं समझते हैं, जिसके चलते आम आदमी की समस्याओं का समाधान अधिकारियों के भरोसे हो जाता है। 

नतीजा यह हुआ है कि अधिकारी राजनेताओं पर हावी हो रहे हैं। राजनीति में वंशवाद की जड़ें काफी मजबूत हैं। ‘एडीआर’ और ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ द्वारा किए गए विश्लेषण के अनुसार राजस्थान विधानसभा के वर्तमान 200 विधायकों में से 40, यानी लगभग 20 प्रतिशत विधायक वंशवादी पृष्ठभूमि से आते हैं। इस मामले में कांग्रेस सबसे आगे है। कांग्रेस के 69 विधायकों में से 21 विधायक वंशवादी हैं, जो पार्टी के कुल विधायकों का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा है। आज हम ऐसे ही कुछ नेताओं के बारे में जिक्र करेंगे, जो राजनीति में आए और बाद में अपनी संतानों को भी स्थापित कर दिया।

नेताओं ने अपनी संतानों को कई तरह से राजनीति में स्थापित करने का प्रयास किया है। राजस्थान में सीधी राजनीति के अलावा क्रिकेट की राजनीति से भी नेतापुत्र सियासत में प्रवेश करते रहे हैं, और इन्हीं नेतापुत्रों का करियर बनाने के कारण राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन बर्बादी की कगार पर है। अशोक गहलोत ने 3 बार मुख्यमंत्री बनकर लंबे समय तक शासन किया है। 

खुद 5 बार सांसद और 6 बार विधायक बने। उन्होंने अपने बेटे वैभव गहलोत को राजनीति में स्थापित करने का खूब प्रयास किया। 2019 में जोधपुर से सांसद का टिकट दिलाकर चुनाव लड़ाया, लेकिन भाजपा के गजेंद्र सिंह शेखावत के सामने करीब पौने तीन लाख मतों से हार गए। इसके बाद क्रिकेट के थ्रू सियासत का मार्ग पकड़वाने का प्रयास किया। अपनी सरकार होते कांग्रेस के ही दिग्गज रामेश्वर डूडी के सामने राजस्थान क्रिकेट एसोशिएशन का चुनाव लड़ाया और आरसीए का अध्यक्ष बनाया। इसके बाद कांग्रेस में अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए 2024 में जालौर से लोकसभा का टिकट दिलाया और मैदान में उतार दिया, लेकिन फिर से चुनाव हार गए। इस तरह से गहलोत अपने इकलौते बेटे को अब तक राजनीति में स्थापित नहीं कर पाए हैं। 

अशोक गहलोत की राजनीति छाया जैसी दिखाई पड़ने वाली वसुंधरा राजे 2 बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रहीं। उससे पहले 5 बार सांसद बनीं। सांसद बनने से पहले एक बार विधायक बन चुकी थीं। मुख्यमंत्री बनने से अब तक 5 बार विधायक बन चुकी हैं। वसुंधरा की मां विजयराजे सिंधिया भाजपा की संस्थापक सदस्य थीं। उनके कारण ही वसुंधरा राजे राजनीति में स्थापित हो पाईं। 

मुख्यमंत्री का चेहरा बनने के बाद 2003 में जब उन्होंने विधायक का चुनाव लड़ा तो झालावाड़ की अपनी सीट अपने बेटे दुष्यंत सिंह को सौंप दी, जहां 2004 में वो पहली बार सांसद बने और आज दिन तक लगातार पांच बार सांसद बनकर राजस्थान के सबसे सीनियर सांसद का खिताब अपने पास लेकर बैठै हैं। हालांकि, इतने के बाद भी केंद्र में मंत्री नहीं बन पाए हैं, लेकिन वसुंधरा राजे ने अपने इकलौते बेटे को राजनीति में स्थापित जरूर कर दिया है। 

सचिन पायलट भी वैसे तो परिवारवादी राजनीति से ही सियासत में आए हैं, लेकिन उनको पिता के बजाए मां ने अपनी सीट देकर राजनीति में उतारा है। सचिन पायलट के पिता दौसा से सांसद बनते थे, उनका 2000 में अचानकर निधन हो गया। उस वक्त सचिन पायलट 25 साल के नहीं के चलते चुनाव नहीं लड़ सकते थे। इसलिए राजेश पायलट के बाद दौसा सीट से 2000 के उपचुनाव में उनकी पत्नी रमा पायलट चुनाव लड़ीं और जीतीं। इसके बाद 2004 में सचिन पायलट यहां से सांसद बने। वे दूसरी बार अजमेर से सांसद बनकर केंद्र में मंत्री बने। अभी टोंक से दूसरी बार विधायक हैं। पिछली कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार में करीब डेढ़ साल से डिप्टी सीएम भी रहे थे।

राजस्थान के पुराने मुख्यमंत्रियों में कोई ऐसा नहीं है, जिसने अपने परिवार को स्थापित किया हो। भैरों सिंह शेखावत ने अपने रहते ही अपने जवांई नरपत सिंह राजवी को स्थापित कर दिया था, उनके कोई बेटा नहीं था। अब नरपत सिंह राजवी का बेटा भाजपा में सक्रिय है और विद्याधर नगर सीट से टिकट की तैयारी कर रहा है, जहां अभी दीया कुमारी विधायक हैं। वर्तमान मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा पहली बार विधायक बने और किस्मत से पहली बार में ही मुख्यमंत्री भी बन गये। ऐसे में माना जा रहा है कि भजनलाल शर्मा भाजपा में स्थापित नेता हो चुके हैं। 

संभवत: इसी वजह से उन्होंने अपनी व्यस्तता का हवाला देकर सांगानेर में जनता के पास अपने बेटों को भेजना शुरू कर दिया है। बड़े नेताओं में राजेंद्र सिंह राठौड़ भले ही अपना 8वां विधानसभा चुनाव हार गए हों, लेकिन उससे पहले लगातार 7 बार विधायक और राज्य सरकार में तीन बार मंत्री बन चुके हैं। अपना अंतिम चुनाव हारने वाले राजेंद्र राठौड़ भी अपने बेटे पराक्रम राठौड़ को सियासी दांवपेच सिखा रहे हैं। उन्होंने क्रिकेट के द्वारा सियासत में उतारा है। पराक्रम इस वक्त चुरू क्रिकेट संघ के अध्यक्ष हैं, और बताया जा रहा है कि राजेंद्र राठौड़ उनको आरसीए का अध्यक्ष बनाने का प्रयास कर रहे हैं, जो अभी एडहॉक कमेटी के सहारे राजनीति में फंसा हुआ है। 

भजनलाल की सरकार में स्वास्थ्य मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर ने बेटे को आरसीए एडहॉक कमेटी का मैम्बर बना रखा है। खींवसर भी अपने बेटे को अपनी विधानसभा सीट देने से पहले आरसीए का अध्यक्ष बनाना चाहते हैं। भाजपा नेता घनश्याम तिवाड़ी अभी राज्यसभा सांसद हैं। उससे पहले सांगानेर से लगातार 3 बार विधायक और वसुंधरा की पहली सरकार में मंत्री रहे हैं। 

संभवत: अपनी आखिरी पारी खेल रहे हैं। ऐसे में अपने रहते ही छोटे बेटे आशीष तिवाड़ी को अपनी विरासत सौंपना चाहते हैं। उन्होंने भी अपने बेटे को आरसीए एडहॉक कमेटी का मैम्बर बना रखा है। आशीष तिवाड़ी सीकर से विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। घनश्याम तिवाड़ी सीकर लोकसभा सीट से सांसद और चौमू सीट से विधायक भी रह चुके हैं। ठीक इसी तरह से एक और भाजपा विधायक जसवंत ​यादव ने भी अपने बेटे को आरसीए की एडहॉक कमेटी का सदस्य बना रखा है।

वसुंधरा सरकार में मंत्री रहे 8 बार के विधायक कालीचरण सराफ भी अपने बेटे को राजनीति में स्थापित करने के लिए काम कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि 2028 का चुनाव कालीचरण नहीं लड़ेंगे, उन्होंने अपने बेटे को टिकट दिलाने का प्लान बनाना शुरू कर दिया है। इसी तरह से वसुंधरा सरकार में एक अन्य मंत्री रहे अमराराम चौधरी के बेटे अरूण चौधरी भाजपा के विधायक बन चुके हैं। भैरोंसिंह शेखावत सरकार में मंत्री रहे हरलाल सिंह खर्रा के बेटे झाबर सिंह खर्रा इस समय भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। बेटों को राजनीति में स्थापित करने का प्रयास कांग्रेस के भी कई नेताओं ने कर रखा है। 

पूर्व मंत्री हेमाराम चौधरी भी अपनी बेटी को अपनी सीट से विधायक के लिए तैयारी कर रहे हैं। मंत्री रहते पिछली बार उन्होंने खुद ही टिकट नहीं लिया था। कैबिनेट मंत्री किरोड़ीलाल मीणा की कोई संतान नहीं है, लेकिन उन्होंने अपने ​भतीजे राजेंद्र मीणा को महुआ से विधायक बना रखा है। उससे पहले किरोडीलाल की पत्नी विधायक बनकर गहलोत की दूसरी सरकार में मंत्री बनी थी। पिछले साल हुए उपचुनाव में किरोड़ी ने अपने भाई जगमोहन मीणा को दौसा से विधानसभा का टिकट दिलाया था, लेकिन वो कांग्रेस उम्मीदवार डीसी बैरवा के सामने हार गए थे। कांग्रेस सांसद हरीश मीणा के भाई नमोनारायण मीणा केंद्रीय मंत्री रहे हैं। हरीश मीणा डीजीपी रहे हैं, वीआरएस लेकर भाजपा के सांसद बने, फिर कांग्रेस के टिकट पर 2 बार विधायक बने और ​अब कांग्रेस के टोंक—सवाईमाधोपुर से सांसद हैं।

ऐसे ही कांग्रेस में शीशराम ओला के बेटे बृजेंद्र ओला अभी सांसद हैं, पहले विधायक और मंत्री रहे हैं, जबकि उनके बेटे अमित ओला को कांग्रेस ने टिकट देकर झुंझुनू का उपचुनाव लड़ाया था, हालांकि, चुनाव हार गए थे। कांग्रेस नेता रहे रामनारायण चौधरी की बेटी रीटा चौधरी दूसरी बार विधायक हैं। परसराम मदेरणा के बेटे महिपाल मदेरणा मंत्री रहे थे, उसके बाद 2018 में उनकी पोती दिव्या मदेरणा विधायक बनीं, दिव्या 2023 का चुनाव हार गई थीं। कांग्रेस के पूर्व विधायक भंवरलाल शर्मा के बेटे अनिल शर्मा, पूर्व मंत्री भंवरलाल मेघवाल के बेटे मनोज मेघवाल, पूर्व राज्यसभा सांसद अबरार अहमद के बेटे दानिश अबरार भी वंशवाद की बेल में शामिल हैं। 

भाजपा में उप-मुख्यमंत्री दीया कुमारी पूर्व सांसद गायत्री देवी की पोती, विधायक सिद्धि कुमारी पूर्व सांसद करनी सिंह की पोती, दीप्ति महेश्वरी पूर्व मंत्री किरण महेश्वरी की बेटी और विश्‍वराज सिंह मेवाड़ मेवाड़ राजघराने के वारिस का नाम शामिल है। कल्पना देवी के पति इज्यराज सिंह सांसद हैं, उनके ससुर ब्रजराज सिंह भी सांसद रहे हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री नटवर सिंह के पुत्र जगत सिंह भाजपा के विधायक हैं। अंशुमान सिंह भाटी भाजपा विधायक हैं, उनके पिता पूर्व सांसद महेंद्र भाटी हैं, जबकि दादा पूर्व विधायक देवी सिंह भाटी हैं। इस तरह से राजनीति में एक लंबी लिस्ट है, जो वंशवाद और परिवारवाद की बेल का लालन पालन करती है।

Post a Comment

Previous Post Next Post