राजस्थान कांग्रेस दिल्ली की महारैली की तैयारियां कर रही हैं, लेकिन कांग्रेस आलाकमान रैली के बहाने चुपके से राजस्थान में पीसीसी चीफ बदलने की रायशुमारी कर रहा है। गोविंद सिंह डोटासरा को पांच साल पूरे हो चुके हैं। समय के साथ डोटासरा मैच्योर भी हो रहे हैं और आक्रामकता भी बढ़ रही है। इसके कारण डोटासरा का कद भी बढ़ रहा है। इसके चलते कई नेता चिंतित हैं, खासरकार अशोक गहलोत और सचिन पायलट को चिंता सता रही है।
इन दोनों को पता है कि अगले चुनाव के बाद यदि कांग्रेस बहुमत में आई तो सीएम के पद की लड़ाई तय है और उस समय जितने ज्यादा दावेदार होंगे, उतना ही पद पाना कठिन हो जाएगा। अशोक गहलोत हमेशा सीएम पद के लिए द्विपक्षीय जंग पसंद करते हैं। यही वजह है कि गहलोत अपनी राजनीतिक चालाकियों से अपने प्रतियोगियों को समय रहते ठिकाने लगाने का काम करत रहते हैं। गहलोत की इस स्टाइल का लंबा इतिहास रहा है।
अशोक गहलोत पहली बार एक प्रतिद्वंदी से लगातार 10-12 साल तक जूझ रहे हैं, अन्यथा एक बार सीएम बनने के बाद उन्होंने प्रतिद्वंदी को इतना काबिल नहीं छोड़ा कि अगली बार मुकाबला कर पाए। यह पहला अवसर है, जबकि गहलोत अपने कॉम्पिटीटर सचिन पायलट से लगातार एक दशक तक जूझ रहे हैं। 2014 में पायलट को पीसीसी चीफ बनाया, तब से लेकर 2018 में सीएम पद की लड़ाई और उसके बाद आज दिन तक पायलट की राजनीतिक हत्या करने में गहलोत ने कोई कसर नहीं छोंड़ी, लेकिन वो इसमें पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाए हैं।
पायलट को निपटाने के लिए सीकर जिले तक सीमित गोविंद सिंह डोटासरा को पीसीसी चीफ तक बनाया, लेकिन वही डोटासरा अब गहलोत के कॉम्पिटीटर बनकर सामने आने लगे हैं। गहलोत को लगता था कि पायलट को निपटाने के लिए डोटासरा को यूज लिया जा सकेगा, किंतु समय के साथ चाल बदल गई और एक तरफ जहां डोटासरा के मन में सीएम पद की लालसा ने जन्म लिया तो दूसरी ओर कांग्रेस आलाकमान की नजरों में भी गहलोत की स्थिति काफी कमजोर हुई है, जिसके चलते गहलेात के सामने अब पायलट की तरह ही डोटासरा को भी निपटाने की चुनौती बन चुकी है।
इसी चुनौती को ठिकाने लगाने के लिए गहलोत ने अपने सियासी अनुभव से तोड़ निकाल लिया है। दिल्ली में कांग्रेस एक बड़ी रैली कर मोदी सरकार को घेरने की योजना बना रही है। इसके लिए पीसीसी चीफ डोटासरा ने 50 हजार की भीड़ जुटाने का लक्ष्य रखा है। कांग्रेस आलाकमाकन ने इसको मूर्त रूप देने के लिए दिल्ली से केसी वेणुगोपाल और अजय माकन जैसे नेताओं को जयपुर भेजा, लेकिन रैली में भीड़ जुटाने से ज्यादा दोनों केंद्रीय नेताओं का फोकस पीसीसी चीफ का चुनाव करने पर रहा है।
भीड़ जुटाने की मीटिंग में भी इसकी चर्चा हो गई कि किसे अध्यक्ष बनाना चाहिए। कांग्रेस सूत्रों का दावा है कि मीटिंग में डोटासरा, जूली, पायलट, जितेंद्र सिंह, हरीश चौधरी, अशोक चांदना और मुकेश भाकर जैसे नामों पर खास चर्चा हुई, जिसकी एक गुप्त रिपोर्ट कांग्रेस आलाकमान को दी जाएगी। अब सवाल यह उठता है कि इनमें कौन नेता कितना सक्षम है, जो पीसीसी चीफ बनकर पार्टी को सत्ता की दहलीज पर ले जाने योग्य है और किस नेता को कौन बड़ा नेता सपोर्ट कर सकता है?
गोविंद सिंह डोटासरा की बात करें तो उनका ओवर कार्यकाल चल रहा है, यानी तीन साल का उनका पहला कार्यकाल खत्म हो चुका है, और लगातार दूसरा कार्यकाल चल रहा है। ऐसे में उनके नाम की जगह ही तो दूसरा नाम चुनने की चर्चा हुई है। किंतु सवाल यह उठता है कि डोटासरा को यदि पीसीसी चीफ पद से हटाया जाएगा तो उनको क्या पद दिया जाएगा?
सामान्य तौर पर पीसीसी चीफ के पद से हटाये गए नेता को उससे बड़ा या उसके समकक्ष पद दिया जाता है। राज्य में दूसरे पद की बात करें तो नेता प्रतिपक्ष का पद डोटासरा के लिए सबसे योग्य पद माना जा रहा है। विधानसभा में डोटासरा की आक्रामकता और तथ्यों के साथ सरकार को घेरने की क्षमता उनमें टीकाराम जूली से रही है। भाजपा के दो साल के शासनकाल में इसे कई बार परखा जा चुका है।
सदन में कई बार देखा गया है कि जूली पर डोटासरा भारी पड़ते हैं, जिसके चलते कांग्रेस को सोचने पर मजबूर कर दिया गया है। फिर प्रश्न यह खड़ा होता है कि डोटासरा यदि एलओपी बनाए जाते हैं तो जूली का क्या होगा? यदि वो दूसरा नाम है, जिसे पीसीसी चीफ बनाए जाने की चर्चा चल रही है। इसका मतलब यह है कि दोनों नेताओं के पदों को एक दूसरे के साथ रिप्लेस किया जा सकता है। पार्टी में गुट के हिसाब से बात करें तो अभी तक भी डोटासरा और जूली को अशोक गहलोत के करीबी माना जाता है।
दोनों ही नेता पूर्व सरकार में गहलोत के मंत्री रहे हैं, इसलिए गहलोत ही इन दोनों नेताओं के पॉलिटिकल मैंटर माने जाते हैं। जब आलाकमान इस निर्णय पर बात करेगा तो गहलोत भी इसके लिए तुरंत तैयार हो जाएंगे। उन्हें पता है कि ये दोनों नेता भी सीएम बनने की आकांक्षा रखते हैं, लेकिन इनको पायलट के बजाए आसानी से कंट्रोल किया जा सकता है। इसलिए कांग्रेस आलाकमान ने यदि इन दोनों को एक दूसरे के साथ रिप्लेस करने का काम किया तो सबसे आसान उपाय होगा।
इसके बाद नंबर आता है सचिन पायलट का, जो अभी कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हैं। पद के लिहाज से महासचिव का पद पीसीसी चीफ से बड़ा है, जिसके पास पार्टी के लिए देशभर की जिम्मेदारी होती है। किंतु जब सीएम बनने की बारी आती है तो कोई नेता राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद भी छोड़ सकता है, इसका उदाहरण अशोक गहलोत हैं, जो 25 सिंतबर 2022 में ऐसा कर चुके हैं।
अशोक गहलोत से लेकर सचिन पायलट और गोविंद डोटासरा से लेकर अशोक चांदना तक सभी नेताओं को अच्छे से पता है कि कांग्रेस की सत्ता आने पर राजस्थान का सीएम बनने का रास्ता पीसीसी चीफ और नेता प्रतिपक्ष से होकर आसानी से गुजरेगा। इसलिए भले ही पायलट इस वक्त राष्ट्रीय महासचिव हों, लेकिन उनको यदि पीसीसी चीफ की जिम्मेदारी दी जाती है, तो वे सहहर्ष स्वीकार कर लेंगे। वैसे भी पायलट इस जिम्मेदारी को 6 साल तक सफलतापूर्वक निभा चुके हैं।
इन तीनों नेताओं के अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री भंवर जितेंद्र सिंह को भी पीसीसी चीफ बनाए जाने की चर्चा चल रही है। जितेंद्र सिंह भी राजनीतिक दृष्टि से 54 साल के युवा हैं और राहुल गांधी के करीबी लोगों में से एक माने जाते हैं। जितेंद्र सिंह राजपूत समाज से आते हैं। राजपूत समाज के बारे में यह माना जाता है कि कांग्रेस को वोट नहीं देता है। जितेंद्र सिंह को पीसीसी चीफ बनाकर भाजपा के राजपूत वोटबैंक में भी सेंधमारी की जा सकती है। अशोक गहलोत या सचिन पायलट भी जितेंद्र सिंह के नाम पर विरोध नहीं करेंगे, लेकिन वे दो बार चुनाव हार चुके हैं, जिसके चलते पार्टी में व्यापक स्वीकार्यता पर सवाल खड़े होते हैं।
यदि गोविंद डोटासरा को हटाकर उन्हें कोई जिम्मेदारी नहीं दी जाती है तो हरीश चौधरी को पीसीसी चीफ बनाने की संभावना प्रबल होती है। कांग्रेस के सबसे बड़े कोर वोट में जाट समाज और खासकर पश्चिमी राजस्थान के जाट समाज की बड़ी भूमिका रहती है। जाट समाज के खिसकते जनाधार को बचाये रखने के लिए कांग्रेस को इस समाज से एक नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी देनी होगी, जिससे भाजपा को आरोप लगाने का मौका नहीं मिले।
हरीश चौधरी मध्य प्रदेश के प्रभारी हैं और राजस्थान से गांधी परिवार के करीबी नेता माने जाते हैं। हरीश चौधरी की गांधी परिवार के प्रति वफादारी पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता। हरीश चौधरी के नाम पर अशोक गहलोत विरोध में खड़े होंगे, लेकिन सचिन पायलट पक्ष में होंगे, जिससे पॉवर बैलेंस हो जाता है। अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सियासी जंग के समय हरीश चौधरी को सीएम बनाने की चर्चा भी चली थी।
इसी तरह से यूथ कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक चांदना और मुकेश भाकर के नामों पर भी चर्चा चल रही है। ये दोनों नेता कभी सचिन पायलट के करीबी माने जाते थे, लेकिन पायलट की बगावत के समय अशोक चांदना गहलोत के गुट में चले गए तो मुकेश भाकर पायलट के करीबी बने हुए हैं। दोनों ही युवा हैं, लेकिन पायलट को काउंटर करने के लिए अशोक चांदना को पीसीसी चीफ बनाया जा सकता है, जबकि पायलट के अधिक चलने पर उनके करीबी मुकेश भाकर को बनाया जा सकता है।
हालांकि, इन दोनों ही नेताओं की संभावना बेहद कम हैं, क्योंकि इनसे पहले कांग्रेस में कई धुरंधर पीसीसी चीफ बनने की तिकड़म लगाने की कोशिश कर रहे हैं। तीन साल बाद विधानसभा चुनाव होंगे और उससे पहले अभी जो भी पीसीसी चीफ बनेगा, उसके उपर गहलोत-पायलट गुट को मैनेज करते हुए पार्टी को संगठित रखने की जिम्मेदारी भी होगी तो सत्ता में लाने की पहाड़ जैसी चुनौती भी खड़ी है।
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