सचिन पायलट से पहले सतीश पूनियां बनेंगे मुख्यमंत्री!

 इस खबर की हैडिंग पढ़कर आप चौंक गये होंगे कि आखिर ऐसा कैसे हो सकता है? क्योंकि इस वक्त तो राज्य में कांग्रेस की सरकार है और अगर पार्टी आलाकमान द्वारा अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटाया भी जाता है तो सचिन पायलट ही मुख्यमंत्री बनेंगे, लेकिन भाजपा के अध्यक्ष सतीश पूनियां बीच में कैसे आ गये?

आगे इस वीडियो में वह सबकुछ बताया जायेगा, जिसे जानने की आपको इच्छा है, लेकिन इससे पहले आप कमेंट बॉक्स में कमेंट कर बतायें कि राजस्थान में संविधान के नियमानुसार कितने मंत्री बनाये सकते हैं और अभी अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार में कितने मंत्री हैं?

इसका सही उत्तर आपको वीडियो के अंत में मिलेगा, तब तक आप यह जाने लीजिये कि सचिन पायलट से पहले सतीश पूनियां कैसे मुख्यमंत्री बन रहे हैं?

आपको याद होगा, जब राज्य में 2013 का विधानसभा चुनाव हुआ था, उसका परिणाम आया था, और सत्ताधारी कांग्रेस या यूं कहें कि सत्ताधारी अशोक गहलोत की सत्ता का नशा 21 सीटों के साथ काफूर हो गया था!

यह अशोक गहलोत के प्रताप का परिणाम था कि पांच साल सत्ता में रहने के बाद कांग्रेस पार्टी महज 10 फीसदी सीटों पर सिमट गई। आपको यह भी याद होगा कि जिस कांग्रेस को परसराम मदेरणा जैसे नेताओं ने जीवरभर सींचा और जब 1998 में कांग्रेस को सत्ता मिली तो कुर्सी पर अशोक गहलोत कैसे बैठ गये थे।

अशोक गहलोत के बारे में कहा जाता है कि वह राजीव गांधी और सोनिया गांधी के बेटे बेटी, यानी राहुल व प्रिंयका को बचपन में जादू दिखाया करते थे, जिसके चलते उनका सोनिया गांधी और गांधी परिवार के साथ गहरा रिश्ता था।

यही कारण था कि जब मुख्यमंत्री बनने की बारी आई तो 1998 के वक्त सोनिया गांधी ने मुख्यमंत्री के लिये सिद्धांतवादी परसराम मदेरणा को नहीं चुन अशोक गहलोत को तवज्जो दी। लेकिन अशोक गहलोत के कुशासन ने पांच साल में कांग्रेस को 153 से महज 56 सीटों पर समेट दिया।

साल 2003 से 2008 तक 120 सीटों के बहुमत के साथ वसुंधरा राजे ने शासन किया, लेकिन भाजपा में वसुंधरा—माथुर की फूट के चलते भाजपा 2008 में सत्ता से बाहर हो गई। इसका मतलब यह नहीं कि कांग्रेस को सत्ता मिली थी, क्योंकि भले ही भाजपा को 78 सीटें मिलीं हों, लेकिन कांग्रेस को भी 96 सीटों पर जीत हासिल हुई थी, जो बहुमत से कम ही थी।

खैर! बीजेपी में वसुंधरा—माथुर की लडाई के बीच अपने राजनीतिक कौशल का लोहा मनवाते हुये अशोक गहलोत ने बसपा के 6 विधायकों को अपने साथ मिला लिया और दूसरी बार पूरे पांच साल शासन किया। मगर एक बार फिर से अशोक गहलोत के कुशासन ने कांग्रेस से जनता का मोहभंग कर दिया।

साल 2013 के चुनाव में अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस महज 21 सीटों के साथ सत्ता से विदा हो गई और वसुंधरा राजे फिर से सत्ता में लौटीं। इससे तंग आकर जनवरी 2014 में कांग्रेस आलाकमान ने गहलोत से मुक्ति पाने के लिये युवा नेता सचिन पायलट को कांग्रेस की कमान सौंपी।

कांग्रेस के निर्णय को सही साबित करते हुये सचिन पायलट ने पांच साल कड़ी मेहनत की और 2018 में कांग्रेस को फिर से 100 सीटों पर पहुंचा दिया, लेकिन गहलोत ने तीसरी बार गांधी परिवार में अपनी पहुंच का फायदा उठाकर सीएम की कुर्सी हथिया ली।

गहलोत सरकार को करीब 3 साल का समय पूरा हो चुका है, लेकिन कांग्रेस की अंदरुनी कलह और गहलोत शासन के खिलाफ हर बार की तरह बनने वाली एंटी इंकमबेंसी सिर चढ़कर बोल रही है।

ऐसे में साल 1993 से लेकर 2018 की तरह ही 2023 में भी राज्य की सत्ता बदलने की पूरी संभावना है। यदि 2023 में कांग्रेस सत्ता के बाहर होती है, तो स्वत: अशोक गहलोत को भी सीएम पद छोड़ना होगा और ऐसे में सीएम की कुर्सी पर बैठेगा भाजपा का कोई नेता।

भले ही सरकार को अभी दो साल बाकी हों, लेकिन अशोक गहलोत इस्तीफा देकर किसी भी सूरत में सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनने देना चाहते हैं। यदि यही क्रम चलता रहा तो अशोक गहलोत अपना कार्यकाल पूरा करने में कामयाब रहे तो विधानसभा के इस कार्यकाल में सचिन पायलट का सीएम बनने का सपना अधूरा ही रह जायेगा।

अब क्योंकि भाजपा में पार्टी मुखिया बने सतीश पूनियां को अध्यक्ष पद पर दो साल हो गये हैं। इस दौरान उनके काम से भाजपा का शीर्ष नेतृत्व काफी खुश बताया जाता है। वैसे भी सत्ता से बाहर होने के बाद से ही पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के सितारे गर्दिश में चल रहे हैं।

सियासी जानकारों का कहना है कि भाजपा किसी भी सूरत में अब वसुंधरा राजे को तीसरी बार सीएम प्रोजेक्ट नहीं करेगी। अगर ऐसा होता तो जीत के बाद भाजपा किसी नये चेहरे को मुख्मयंत्री बनायेगी। भले ही कांग्रेसी नेताओं के अनुसार भाजपा में मुख्यमंत्री के 6 चेहरे हों, लेकिन हकिकत यह है कि बीजेपी में जो पार्टी अध्यक्ष होता है, उसके मुख्यमंत्री बनने की संभावना सर्वाधिक होती है, यानी पार्टी मेहनत को परिणाम जरुर देती है।

क्योंकि वर्तमान में सतीश पूनियां संघ की पहली पसंद बताये जाते हैं। यदि संघ की मर्जी से राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया तो निश्चित रूप से सतीश पूनियां 2023 में राज्य के अगले मुख्यमंत्री होंगे। और ऐसे में सचिन पायलट से पहले सतीश पूनियां राज्य के मुख्यमंत्री बन सकते हैं। यह बात सही है कि राजनीति जबरदस्त उलट पुलट संभावनाओं का क्षेत्र है, लेकिन एक दिन अचानक से कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसों को मुख्यमंत्री पद छोड़ने और चरणजीत सिंह चन्नी जैसे जूनियर मंत्री के पंजाब का मुख्यमंत्री बनने का चमत्कार भी इसी क्षेत्र में होता है।

राजस्थान में 200 सदस्यों की विधानसभा है और संवैधानिक तौर पर 15 फीसदी सदस्य, यानी 30 जनों को मंत्री बनाया जा सकता है, जिसमें मुख्यमंत्री भी शामिल है। मुख्यमंत्री समेत राज्य में आज 21 मंत्री हैं, ऐसे में 9 जनों को और मंत्री बनाया जा सकता है।

सियासी भारत के लिये एडिटर रामगोपाल जाट की रिपोर्ट

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