क्या भारत भी श्रीलंका की तरह डूब जाएगा?

डूबते हुए श्रीलंका व पाकिस्तान की खबरों के बीच भारत की अर्थव्यवस्था पर भी सवाल उठने लगे हैं। खासकर पिछले दिनों रुपये की कीमत गिरने और भारत सरकार द्वारा अचानक से गेहूं का निर्यात बंद करने के बाद सरकार विरोधी वर्ग ने गंभीर सवाल उठाए हैं। पश्चिमी मीडिया के द्वारा लगातार भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रश्न खड़े कर ​दुनिया के उद्योगपतियों को बताया जा रहा है कि भारत में निवेश करने से पहले सावधान हो जाएं। वैसे तो श्रीलंका की डूबती नाव को भारत ही बचा रहा है, जबकि जिस चीन के भरोसे में रहकर श्रीलंका कंगाल हुआ है, उसने तो श्रीलंका से इस मुद्दे पर बात करनी तक बंद कर दी है। इसी चीन ने सरकार बदलने के साथ पाकिस्तान को 19 हजार करोड़ की सहायता का वादा भी तोड़ दिया है, नतीजा यह हुआ है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ की सरकार ने भारत से फिर कारोबार शुरू करने की अपील की है। भारत की जीडीपी और विदेशी कर्ज की बातें केवल पश्चिम का मीडिया ही नहीं कर रहा है, बल्कि भारत के भीतर बैठे सरकार विरोधी या यूं कहें कि मोदी के विरोध में भारत विरोधी हो चुके एक वर्ग द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को डराने का काम किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर वायरल कंटेंट और वीडियो में यह दिखाने की कोशिशें की जा रही हैं कि भारत भी श्रीलंका की तरह कंगाल होने वाला है, जबकि भारत का रुपया डॉलर के मुकाबले अपने नीम्नतम ​स्तर पर पहुंच चुका है और जीडीपी के संभावित आंकड़े भी डरावने हैं। भारत का विदेशी मुद्रा भंड़ार भी इस साल कम हुआ है, तो जीडीपी ग्रोथ भी उम्मीद के मुकाबले कम रहने की संभावना जताई गई है। इन सबके बारे में विस्तार से बात करेंगे कि आखिरी भारत की भविष्य की दशा क्या रहने वाली है? लेकिन उससे पहले विश्व के उन टॉप चार देशों की जीडीपी, विदेशी कर्ज और विदेशी मुद्रा भंडार की बात कर लेते हैं, जिनकी पश्चिमी मीडिया और भारत में कंगाली की गाथाएं गाने वाला वर्ग प्रचारित करने में लगा हुआ है। दुनिया की महाशक्ति कहे जाने वाले अमेरिका की जीडीपी, यानी सकल घरेलू उत्पाद पिछले साल 21.44 ट्रिलयन डॉलर का था। इसी दौरान अमेरिका पर कर्ज 27 ट्रिलियन डॉलर विदेशी कर्ज भी था। अमेरिका के कुल 32 करोड़ आबादी पर इस कर्ज को बांट दिया जाए तो करीब हर व्यक्ति पर करीब 17 लाख रुपए (23500 डॉलर) कर्ज होता है। अमेरिका पर 2019 से 2021 तक कर्ज बढ़ने के कई वजह हैं, जिनमें कोरोना की महामारी और अलावा अफगानिस्तान पर सैन्य अभियान में हुई बढ़ोतरी प्रमुख वजह रही हैं। इससे पहले 80 के दशक में लैटिन अमेरिकी देश कंगाल हो गये थे। अमेरिका के सहारे रहने वाले इन देशों में भंयकर भुखमरी की नौबत आ गई थी। अब ये देश धीरे धीरे सुधार की तरफ बढ़ रहे हैं, लेकिन फिर भी जैसी विकसित तस्वीर अमेरिका की दिखाई जाती है, हकिकत वैसी नहीं है। भारत के पड़ोसी और एशिया की सबसे बड़ी जीडीपी वाले चीन के ऊपर कुल विदेशी कर्ज 13 हजार अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले 20 सालों में चीन की अर्थव्यवस्था (जीडीपी) में 17 गुना इजाफा हुआ है। वर्ष 2000 में चीन की जीडीपी 7 ट्रिलयन डॉलर थी, जो अब 120 ट्रिलियन डॉलर हो गयी है। इस तरह विश्व की कुल संपत्ति की एक तिहाई का मालिक चीन है। पिछले 20 वर्षों में दुनिया भर के देशों की संपत्ति की बात करें, तो यह महज 3 गुना हुई है। ब्लूमबर्ग के अनुसार मैनेजमेंट कंसल्टेंट मैकेंजी एंड कंपनी के शोधकर्ताओं ने कहा है कि वर्ष 2000 में दुनिया भर के देशों की कुल संपत्ति 156 ट्रिलियन डॉलर थी, जो अब बढ़कर 514 ट्रिलियन डॉलर हो गयी है। हाल ही में जो खबरें चीन से निकलकर सामने आ रही हैं, उसमें बताया गया है कि कोरोना की आपदा के दौरान चीनी सरकार के मिसमेनेजमैंट के कारण अर्थव्यवस्था पूरी तरह से थम गई है। साथ ही शी जिनपिंग भी काफी बीमार हैं, ​इसलिए इस साल के अंत तक पद छोड़ सकते हैं। चीन की आर्थिक राजधानी संघाई कोरोना के कारण पूरी तरह से थमी हुई है, जिसके फिर से शुरू होने का अभी तक भी अता पता नहीं है। भारत पर करीब 200 साल तक शासन करने वाला ब्रिटेन भी कर्ज के जाल में फंसा हुआ है। ब्रिटेन का सरकारी कर्ज पहली बार 2 हजार अरब पाउंड, यानी लगभग 2,600 अरब डॉलर के पार चला गया है। यह कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिये भारी मात्रा में उधारी लेने के कारण हुआ है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अनुसार सरकार ने जुलाई में 26.7 अरब पाउंड का कर्ज लिया, जो 1993 में रिकॉर्ड रखे जाने की शुरुआत के बाद से किसी भी महीने की चौथी सबसे बड़ी उधार राशि थी। इसने कर्ज को बढ़ाकर 2,004 अरब पाउंड पर पहुंचा दिया। कर्ज में वृद्धि से यह भी पहली बार हुआ है कि ब्रिटेन का कुल कर्ज उसके कुल आर्थिक उत्पादन मूल्य से अधिक हो गया है। अब ब्रिटेन का कर्ज उसके वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 100.5 प्रतिशत पर पहुंच गया है। यह 1961 के बाद पहली बार है, जब ब्रिटेन का कर्ज जीडीपी के 100 प्रतिशत से अधिक हुआ है। यूक्रेन के साथ प्रत्यक्ष और अमेरिका के खिलाफ अप्रत्यक्ष युद्ध में फंसे रूस की सरकार के अनुसार उसने मैच्योर हुए बॉन्ड्स के बदले भुगतान रूबल में किया है। रूस वित्त मंत्रालय ने कहा कि 64 करोड़ 92 लाख डॉलर की ये रकम उसे मजबूरी में रूबल में चुकानी पड़ी। वजह यह है कि डॉलर और यूरो में रखे गए रूस के धन को पश्चिमी देशों ने जब्त कर लिया है। यह 100 साल में पहली बार हुआ है कि रूस को अपना कर्ज रुबल में चुकाना पड़ा है और विदेशी कर्ज बढ़ता जा रहा है। हालांकि, रूस की जीडीपी और विदेशी कर्ज में अधिक अंतर नहीं होने के कारण उसको अधिक परवाह करने की जरुरत नहीं है। रूस अभी तक भी निर्यात मुनाफे में चल रहा है। इसलिए उसको आने वाली किसी भी स्थिति से मुकाबला करने के लिए तैयारी करने की ज्यादा जरुरत नहीं है। अब बात भारत की अर्थव्यवस्था की पर करें तो मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में साल 2025 तक भारत की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा था और आईएचएस मार्किट की रिपोर्ट के आधार पर अनुमान लगाएं तो मोदी सरकार अपने टार्गेट को पूरा करने में असफल रह सकती है, क्योंकि कोरोना के कारण कई महीनों तक देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से बंद हो गई थी, जिसको फिर से शुरू करने में वक्त लगेगा, फिर भी साल 2030 तक भारत की अर्थव्यवस्था 8.4 ट्रिलियन डॉलर हो जाएगी, जो भारत के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि होगी। यानि, 2030 तक भारतीय अर्थव्यवस्था जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन और तमाम यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्था से बड़ी होगी। कुल मिलाकर भारत के अगले दशक में दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बने रहने की उम्मीद है। दिसंबर 2021 को समाप्त तिमाही के लिये भारत के विदेशी कर्ज पर रिपोर्ट के अनुसार देश का बाहरी कर्ज, यानी विदेशी स्रोतों से लिया गया ऋण सितंबर 2021 को समाप्त तिमाही के मुकाबले 11.5 अरब डॉलर बढ़कर 614.9 अरब डॉलर पर पहुंच गया। इस वक्त भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की टॉप 2 तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। ऐसे में भारत की तुलना जो लोग श्रीलंका या पाकिस्तान से कर रहे हैं, उनको ठीक से आर्थिक ज्ञान जुटाने की जरुरत है। पश्चिम मीडिया की बात की जाए तो वह एक एजेंडे के तहत काम करता है, जिसमें अमेरिका व यूरोप के बड़े कारोबारी पैसा लगाकर दुनिया के कई देशों की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने के लिए गलत तथ्यों के साथ खबरें प्रसारित करने का काम करते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि अमेरिका व यूरोप से छोड़कर वैश्विक कंपनियां भारत में कारोबार नहीं करें। क्योंकि इससे भारत में ना केवल रोजगार बढ़ता है, बल्कि जीडीपी ग्रोथ भी उपर उठता है, जिससे रुपया मजबूत होता है और विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि होती है, साथ ही विदेशी कर्ज पर कम होता है।

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