भारत दिखाएगा दुनिया को डेमोक्रेटिक डिजीटल का रास्ता

ग्लोबलाइजेशन की बात तो हर कोई करता है, लेकिन दुनिया के विकसित कहे जाने वाले देश आज भी इमानदारी से ग्लोबलाइजेशन को आसानी से स्वीकार नहीं कर रहे हैं। वहां की सरकारों और बड़े उद्योगपतियों ने ग्लोबलाइजेशन शब्द का अपने फायदे के लिए गला पकड़ रखा है। अमेरिका से लेकर चीन और ब्रिटेन से लेकर रूस तक कोई भी असल में इस युग में ग्लोबलाइजेशन को मुक्तकंठ से स्वीकार नहीं कर पाये हैं। भारत ने इस मामले में बहुत ही लोकतांत्रित तरीके से आगे बढ़ने का काम किया है। बीते आठ साल में भारत ने दुनिया को यह दिखाया है कि कई मामलों में वह दुनिया के लिए लीडर बन चुका है। इनमें अमेरिका, फ्रांस, जापान, चीन, रूस या इस्राइल जैसे देश भी दिखाई नहीं देते हैं। एक ऐसा ही आधुनिक लोकतांत्रित तंत्र है डिजीटल डेमोक्रेटिक सिस्टम, जो दुनिया का कोई भी देश अपने यहां पर लागू नहीं कर पाया है। इस सिस्टम को ना केवल भारत ने सरकारी ​स्तर पर सबसे पहले अपनाया है, बल्कि विश्व के तमाम विकासित देशों को यह सिस्टम निर्यात करने को भी तैयार है। आप सोच रहे होंगे कि भारत में इंटरनेट काफी बाद में आया, कम्प्यूटर अमेरिका में बहुत पहले काम लिया जाने लगा था, अत्याधुनिक सुरक्षा उपकरणों के लिए भारत आज भी रूस, इस्राइल, फ्रांस और अमेरिका जैसे देशों पर निर्भर है, फिर ऐसा कौनसा सिस्टम आ गया, जिसको भारत ना केवल सबसे पहले विकसित कर अपना चुका है, बल्कि ​इन विकसित देशों को रास्ता दिखा रहा है, और इनका निर्यात करने की तैयारी में है। आज हम इसी सिस्टम की पूरी डिटैल से बात करेंगे। इस सिस्टम का नाम है ओपन नेटवर्क फॉर डिजीटल कॉमर्स, यानी शॉर्ट में बोलें तो ONDC, ओएनडीसी का लक्ष्य छोटे से छोटे विक्रेताओं और खरीदारों के लिए प्लेटफ़ॉर्म की बाध्यता के बिना लेन-देन में आसानी करना है। भारत के द्वारा विकसित किए गये भीम UPI की तरह ONDC खुले प्रोटोकॉल का एक मंच है, जो खरीदारों और विक्रेताओं में ऐप्स के बीच अंतर को नियंत्रित करेगा। साल 2014 के बाद से नरेंद्र मोदी सरकार की कई उपलब्धियों में आधार से लेकर अब डिजिटल कॉमर्स के लिए ONDC के साथ कई बेहतर और आसान माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था का स्थिर डिजिटलीकरण कर रहे हैं। इस डिजिटलीकरण की नींव आधार कार्यक्रम में थी। मोदी सरकार ने इसको लागू किया, लेकिन कांग्रेस यूपीए सरकार के युग से यह विरासत में मिला, जो खुद यूपीए को वाजपेयी युग से विचार के द्वारा विरासत में मिला था। बाद में भारत के परंपरागत परिपाटी वाले तंत्र के कारण इस बेहतरीन कार्यक्रम को कई गोपनीय मुद्दों में घसीटा गया, जो राजनीति के लिए किया जा रहा था। आधार देशभर में वित्तीय लेनेदेन के उद्देश्य को पूरा करने में सहायक रहा है। चाहे वह आधार सक्षम भुगतान प्रणाली हो या जन—धन योजना में खातों को जोड़ना, उनमें से 430 मिलियन से अधिक प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण कार्यक्रम है, जिसने 300 से अधिक कल्याणकारी योजनाओं को लाभार्थियों तक पहुचाने में सक्षम किया है। आधार केंद्र व राज्य सरकारों की नकद और सब्सिडी को सीधे उचित व्यक्ति तक पहुंचाने का आज सबसे बड़ा माध्यम बन गया है। हजारों करोड़ रुपये के लेनदेन और इसकी बायोमेट्रिक पहचान के कार्यक्रम ने छोटे से छोटे स्तर पर भारत की अर्थव्यवस्थाओं में क्रांति ला दी है। आयुष्मान भारत योजना हो या हाल ही में कोविड -19 टीकाकरण अभियान के लिए CoWIN पोर्टल के साथ स्वास्थ्य क्षेत्र में भी आधार का प्रभाव साफ तौर पर महसूस किया जा रहा है। भारत के आर्थिक डिजिटलाइजेशन के लिए शुरुआती परीक्षण ऑनलाइन भुगतान को सक्षम करने और व्यापार व उद्यमिता को सुविधाजनक व ऋण की पहुंच को आसान करने के लिए किया गया था। इसके द्वारा UPI सिस्टम को अपनाना गया था, जो 2016 में नोटबंदी के कारण और फिर 2020-21 में महामारी के कारण के समय डिजिटल अर्थव्यवस्था की क्षमता को खूब परखा गया। इस दौरान आधार ने भारत के लोगों और कारोबारियों को अपनी शक्ति से परिचित कराया। जन—धन योजना और यूपीआई की सफलता ऐसी थी कि अमेरिका की वीज़ा इंक कार्ड कंपनी ने बकायदा यूएस सरकार को भारत के खिलाफ शिकायत दर्ज दी, जिसमें कहा गया था कि भारत सरकार ने रुपे के जरिये वीजा कंपनी को विकसित होने से रोक दिया है, वीजा ने बकायदा मुक्त बाजार की दुहाई भी दी। भारत के रुपे का ही दम था, जो वीज़ा-मास्टरकार्ड दुनिया में अपना प्रभुत्व स्थापित करने से पहले ही विफल हो गये। आज भारत में UPI की सहायता से रुपे कार्ड और जन धन खातों के माध्यम से बड़े पैमाने पर ट्रांजेक्शन हो रहा है। UPI को कभी एक ऐसे प्लेटफॉर्म के रूप में जाना जाता था, जो केवल कुछ शहरी इलाकों की जरुरतों को ही पूरा करता था। किंतु बीते पांच साल में यूपीआई भारत के लिए खरीदारों से लेकर विक्रेताओं, व्यापारियों से लेकर ज्वैलर्स तक और नारियल पानी के विक्रेताओं जैसे छोटे व्यापारियों के लिए जल्द 'भुगतान का इंटरफ़ेस' बन गया है, यानी सबसे आसान माध्यम बन गया है। आज हर कोई बैठा—बैठा एक दो रुपये से लेकर लाखों रुपयों तक भुगतान यूपीआई के जरिये मोबाइल से कर रहा है। जुलाई 2016 में 21 बैंकों के माध्यम से 90 हजार रुपये की खरीददारी और केवल 3 लाख 80 हजार रुपये के लेनदेन शुरू हुआ यूपीआई प्लेटफॉर्म आज 316 बैंकों, 5.5 अरब से अधिक की खरीददारी और 9.83 लाख करोड़ रुपये से अधिक लेनदेन के साथ UPI भुगतान सबसे बड़े माध्यम के साथ दुनिया का सबसे बड़ा सिस्टम बन चुका है। भारत के ग्रामीण क्षेत्र में इंटरनेट की कमी के बाद भी 10 फीसदी लेनदेन इसी माध्यम से हो रहा है। यूपीआई के विकास का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारत में अगले पांच वर्षों में यूपीआई से प्रतिमाह 50 बिलियन के लेनदेन तक पहुंच जाएगा। यह सिस्टम केवल भुगतान तक ही सीतिम नहीं है, बल्कि भारतीय रिजर्व बैंक ने सितंबर 2021 में खाता एग्रीगेटर ढांचे को भी विकसित कर दिया है। खाता एग्रीगेटर्स वो होते हैं, जिन्हें RBI द्वारा लाइसेंस दिया जाता है, जिससे रुपये देने वालों और लेने वालों के बीच संबंधों को आसान बनाने का काम हो रहा है। आधार से यूपीआई इस्तेमाल होने के कारण देश में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के रूप में देने वाली कंपनियों और लोगों के लिए लेनदेन की बाधाओं में कमी होंगी। कल्पना कीजिए भारत के एक सुदूर गांव में बैठी एक महिला व्यापारी का जन—धन खाता खुलना बैंकिंग के साथ उनका पहला अनुभव था। ऐसे लोग अब तक नगद लेनेदेन करते थे, लेकिन नोटबंदी और कोरोना की महामारी के समय UPI डिजिटल भुगतान ने उनका जीवन बदल दिया है।। आधार और यूपीआई के जरिये भुगतान के मामले में आज भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जहां से हर दिन करोड़ों रुपयों का भुगतान हो रहा है। भारत पहला ऐसा देश है, जिसने डेमोक्रेटिक तरीके से काम करते हुए तमाम भुगतान करने वालों को एक छत के नीचे ला दिया है। पेटीएम, फोनपे और गूगल पे जैसे बड़े बड़े मोबाइल एग्रीगेटर यूपीआई के जरिए अपना कारोबार कर रहे हैं। जबकि गूगल खुद एक बहुत बड़ी कंपनी है, लेकिन भारत में इसको भी यूपीआई के जरिये ही लेनेदेन करना पड़ता है। हालांकि, सरकार ने इसमें कोई बाध्यता नहीं रखी है कि किसी कंपनी को काम करना ही है, यदि कोई चाहे तो अपना काम बंद कर सकती है, लेकिन उसको यदि भारत में काम करना है, तो यूपीआई प्लेटफॉर्म का ही इस्तेमाल करना होगा। इसी तरह से ई कॉमर्स में काम करने वाली Amazon और Flipkart हैं। ये कंपनियां आज विश्व में बड़े पैमाने पर सामान बेचने वाली बन गई हैं, लेकिन अभी तक भी इनके उपर किसी तरह का नियंत्रण नहीं है। इन्होंने अपना कारोबार कम से कम कमिशन पर किया और इसके चलते छोटे कारोबारी मुनाफा नहीं कमा पा रहे हैं। अब छोटे कारोबारियों को भी अपना सामान इन्हीं की प्रतिस्पर्धा में सस्ता करना पड़ रहा है। इसी तरह से खाने का सामान सप्लाई करने वाली Zomato और स्वीगी जैसे खिलाड़ी हैं, इन्होंने ने भी वही किया जो अमेजॉन व फ्लिपकार्ट ने किया है। जोमेटो खाना नहीं बनाती है, लेकिन बड़े पैमाने पर खाना बेचती है। जोमेटा और स्वेगी जैसी कंपनियों ने रेस्टोरेंट्स के एकाधिकार को खत्म कर दिया है। अब रेस्टोरेंट्स भी अपनी दरों को बढ़ाने से पहले सोच लेते हैं। अभी तक इस क्षेत्र में कंपनियां कम हैं, इसलिए उंची कीमतों पर सामान सप्लाई किया जा रहा है, लेकिन देश में अमेजॉन और फ्लिपकार्ट की तरह ही रिलायंस व टाटा भी मैदान में उतर चुकी हैं, जिसके कारण प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है। नतीजा यह हो रहा है कि जो आईटम अब तक आपको 100 रुपये में मिल रहा था, उसकी कीमत 75 रुपये हो गई है और जैसे—जैसे प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है, वैसे वैसे इसकी कीमतें 65 रुपयों पर आने की संभावना बढ़ रही है। चाहे अमेजॉन और फ्लिपकार्ट हो या फिर जोमेटो और स्वीगी हो, हर जगह एक बात कॉमन है, और वो है ग्राहकों का डेटा एकत्रित करना। हर आदमी चाहता है कि उसके फोन नंबर, ई मेल आईडी या फिर सोशल मीडिया अकाउंट की जानकारी किसी को शेयर नहीं की जाए। किंतु अभी तक इन कंपनियों ने ग्राहकों के डेटा को अपने हिसाब से काम लिया है। अधिकांश कंपनियों के अपने सर्वर हैं, जो अमेरिका की सिलिकॉन वैली में हैं। उस डेटा की बड़ी कीमत है, जिसका ये कंपनियां परोक्ष रुप से फायदा उठाती हैं। इनपर अपने ग्राहकों का डेटा उंची कीमतों पर बेचने के आरोप लगते रहते हैं। इससे बचने का अभी तक कोई उपाय दिखाई नहीं दे रहा है। Amazon, Tata, Reliance, Zomato, या सुपर-ऐप चलाने वाली किसी अन्य कंपनी के साथ काम करने के लिए उसे एक भारी कमीशन का भुगतान करने, डिलीवरी पार्टनर के लिए एक भारी शुल्क का भुगतान करने, एकाधिकार के साथ प्रतिस्पर्धा करने की गारंटी देता है। मान ​लीजिए सप्लाई किए जाने वाले भोजन का मूल्य निर्धारण का काम जोमेटो या स्विगी 100, 75, 65 या 50 रुपये तय कर करती है, लेकिन उसके ग्राहकों के डेटा तक उसकी पहुंच खत्म हो जाए? यही वह माध्यम है, जो डिजिटल कॉमर्स के लिए सरकार ओएनडीसी, यानी ओपन नेटवर्क तकनीके तौर पर विकसित कर रही है। जैसे लेनेदेन करने वाली पेटीएम, फोन—पे, गूगल—पे को कारोबार करने के लिए यूपीआई का इस्तेमाल करना पड़ता है, ठीक वैसे ही ई कॉमर्स कंपनियों के लिए सरकार ओएनडीसी लेकर आ रही है। सीधे शब्दों में कहें तो ओएनडीसी ई-कॉमर्स के लिए वही काम करेगा, जो डिजीटल भुगतान के लिए यूपीआई कर रहा है। UPI से भुगतान करने के लिए उपयोग किए जाने वाले स्कैन कोड को किसी भी ऐप के माध्यम से एक्सेस किया जा सकता है, चाहे वह BHIM, Google Pay, PhonePe, या कोई अन्य ऐप हो, और भुगतान UPI ​​आईडी से जुड़े किसी भी बैंक खाते से किया जा सकता है। इस प्रकार खरीदार और विक्रेता के लिए लेन-देन के लिए एक ही बैंक खाता होना या एक ही ऐप से स्कैन कोड का उपयोग करना आवश्यक नहीं है। अलग-अलग एप्लिकेशन के लिए अलग-अलग UPI आईडी या बैंक खाते होने की आवश्यकता नहीं है। बैंकों और ऐप्स के बीच इंटर ऑपरेबिलिटी ही यूपीआई सिस्टम को सफल बनाती है। यदि इसकी तुलना ई-कॉमर्स की मौजूदा प्रणाली से करें, तो एक विक्रेता विभिन्न प्लेटफार्म्स के बाजार तक पहुंचने के लिए अपने उत्पादों को सभी प्लेटफार्म्स पर सूचीबद्ध करता है। इस प्रकार अमेज़ॅन पर सूचीबद्ध उत्पाद रिलायंस के JioMart पर उपलब्ध नहीं हैं, या स्विगी पर सूचीबद्ध विक्रेता Zomato पर सूचीबद्ध नहीं होता है। इसलिए प्रत्येक प्लेटफ़ॉर्म के लिए विक्रेताओं और खरीदारों दोनों को एक अलग ऐप एक्सेस करने की जरुरत पड़ती है। ONDC एक प्लेटफॉर्म-केंद्रित मॉडल से लेन-देन-केंद्रित मॉडल की ओर बढ़ते हुए इस समस्या का समाधान करता है। UPI की तरह खुले प्रोटोकॉल का एक मंच है, जो खरीदारों और विक्रेताओं की ओर से ऐप्स के बीच अंतर को नियंत्रित करेगा। खरीदार और विक्रेता होने पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे लेन-देन करने के लिए किस ऐप का उपयोग करते हैं। इस प्रकार जब तक खरीदार और विक्रेता ONDC नेटवर्क पर किसी भी ऐप से जुड़े रहते हैं, तब तक वे आपस में लेन-देन कर सकेंगे। इसे पेटीएम ऐप के भीतर स्कैन कोड पर GooglePay के माध्यम से भुगतान करने के रूप में देख सकते हैं। यहां सरकार की भूमिका खरीदार या विक्रेता के लिए ऐप बनाने की नहीं होगी, बल्कि ओपन प्रोटोकॉल या गेटवे बनाने की होगी, जिसके इर्द-गिर्द ऐसे कई ऐप तीसरे पक्ष द्वारा बनाए जा सकते हैं, जैसा कि यूपीआई के मामले में भी है। हालांकि, शुरुआत में ONDC के लिए तकनीक उपलब्ध कराने वाले विक्रेताओं और खरीदारों के लिए कुछ ऐप बना सकते हैं। ओएनडीसी नेटवर्क को आसान तरीके से यूं समझिये। यदि सामान बेचने वाले के हिसाब से सोचें तो अभी तक वह अपना सामान, अपने एप पर बेच रहे हैं, जहां पर उनको लिस्टेड करना पड़ता है, और ग्राहक के अपने एप पर आने का इंतजार करना पड़ता है। ओएनडीसी के बाद सभी ग्राहक एक जगह आएंगे, जहां से सामान के अनुसार कंपनी चुनेंगे और खरीददारी करके चले जाएंगे। ग्राहक और विक्रेता किसी एक प्लेटफॉर्म के नियमों से बंधने को बाध्य नहीं होगा, जैसा कि अभी तक अमेज़ॅन या ज़ोमैटो के साथ है। खरीदारों को चुनने के लिए अधिक विकल्प मिलेंगे, बेहतर मूल्य निर्धारण मिलेगा और ग्राहक की स्थानीय खुदरा विक्रेताओं तक पहुंच आसान होगी, जो अमेज़ॅन या रिलायंस की पसंद या नापसंद की वजह से एप में लिस्टेड नहीं होते हैं। यहां एक किलोग्राम प्याज खरीदने के इच्छुक खरीदार के लिए विक्रेता को चुनने का विकल्प होगा, भले ही विक्रेता के पास एक छोटी गाड़ी के अलावा कुछ भी न हो और सड़क के किसी अलग कोने में अकेले काम करता हो। साथ ही डिलीवरी पार्टनर ऑर्डर को पूरा करेगा, यदि वे चाहें तो, अन्यथा खरीदार के पास अपना डिलीवरी पार्टनर को बदलने का विकल्प होगा, जैसे वह अमेजॉन, फ्लिपकार्ट, टाटा या रिलायंस जियोमार्ट को चुन सकता है। अभी तक इसके तकनीकी इंटरफ़ेस को लेकर बहुत सारे प्रश्न हैं, लेकिन जैसे पांच शहरों में शुरू की गई कोई भी पायलट परियोजना धीरे—धीरे परिणाम देने लगती है, उसी तरह से समय के साथ यूपीआई की भांति यह प्लेटफॉर्म भी तैयार हो जाएगा। आने वाले समय में ONDC इतना विस्तारित हो जाएगा कि Amazon जैसी कंपनियों का एकाधिकार को समाप्त कर देगा। असल में ONDC का लक्ष्य छोटे से छोटे विक्रेताओं और खरीदारों के लिए प्लेटफ़ॉर्म की बाध्यता के बिना लेन-देन में आसानी करना है। जन—धन योजना और यूपीआई, दोनों के लेकर की गई आलोचनाएं बैकार साबित हुई हैं। आलोचकों के पास इस बात का कोई जवाब नहीं ​कि आज जन—धन खातों में 1.6 लाख करोड़ रुपये क्यों जमा हैं? यूपीआई लेनदेन की मात्रा और मूल्य में हर महीने लगातार बढ़ोतरी हो रही है। जो सबसे छोटा कारोबार कर रहे हैं, वो लोग भी आज यूपीआई के जरिये लेनदेन कर रहे हैं। इसी तरह से ओएनडीसी भी समय के साथ ई कॉमर्स को एक प्लेटफॉर्म देगा, जिसमें दुनियाभर की सभी कंपनियां एक डिजिटल छत के नीचे काम कर सकेंगी। भारत का लोकतंत्र ना केवल नियम—कानूनों के अनुसार विश्व का सबसे बड़ा है, बल्कि यूपीआई और ओएनडीसी जैसी तकनीक के विकसित करने से डिजिटल डेमोक्रेटाइजेशन के क्षेत्र में भी सबसे बड़ा लोकतांत्रितक देश बनता जा रहा है। इसके विकसित होने के बाद जिस तरह से आज दुनिया के छोटे—बड़े देश यूपीआई का सिस्टम अपने यहां पर स्थापित करने के लिए भारत की मदद मांग रहे हैं, ठीक उसी तरह से ओएनडीसी भी ऐसा ही सिस्टम बन जाएगा, जिसको काम लेने के लिए बड़े बड़े देश कतार में खड़े होने वाले हैं। भारत के यूपीआई की तरह दुनिया के किसी भी देश के पास आजतक अपना ओएनडीसी नहीं है।

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