मुडीज ने नरेंद्र मोदी को चिंतित कर दिया है

भारत की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार दबंग और कड़ी मेहनत से काम करने वाली मानी जाती है। हालांकि, वैश्विक उतार चढ़ाव के कारण कई बार देश को आर्थिक परेशानी से भी गुजरना पड़ता है। इस वक्त विश्व रूस यूक्रेन युद्ध के कारण आर्थिक दिक्कतों का सामना कर रहा है। आज की तारीख में भारतीय रुपये को देखें तो एक डॉलर के मुकाबले 77 रुपये उपर पहुंच गया है। मोदी तीन साल पहले 2026 तक भारतीय इकॉनोमी 5 ट्रिलियन बनाने का दावा करते थे, लेकिन यह अनुमान अब 2029 तक पहुंच गया है, तब तक डॉलर भी 94 रुपयों तक पहुंच जाएगा। फिर भी भारत की आर्थिक स्थिति खास खराब नहीं है। मोदी सरकार आने के बाद भारत ने 2014 से ही विदेशी निवेशकों का ध्यान आकर्षित किया है। इसी का परिणाम है चाइनीज कंपनियों से लेकर विश्व की नंबर एक ब्रांड मानी जाने वाली एप्पल भी यहां पर अपना उत्पादन कर विदेशों को निर्यात कर रही है। पिछले साल ही एप्पल ने आईफोन का उत्पादन शुरू किया है और मार्च तक 10 हजार करोड़ के आईफोन निर्यात हुए हैं। मोदी सरकार की पहले मैक ​इन इंडिया स्कीम और फिर कोरोना के दौरान आत्म निर्भर भारत अभियान से भारत ने दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। चाइना छोड़कर कई वैश्विक कंपनियां भारत में कारोबार करने लगी हैं, लेकिन भारत में कुछ विदेशी वित्त पोषित तत्वों द्वारा फैलाए जाने वाले नैरेटिव के कारण होने वाले दंगों ने निवेशकों को सोचने पर मजबूर किया है। चाहे शाहीन बाग हो या किसान आंदोलन, अथवा जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने का मामला हो या राम मंदिर निर्माण का मार्ग साफ करने का प्रकरण हो, विदेशी मीडिया ने भारत की छवि खराब करने में कोई कमी नहीं छोड़ी है। यही कारण है कि सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग में भारत के जंक ग्रेड में जाने का खतरा मंडराने लगा है। SCR किसी देश या सॉवरेन संस्था की साख का एक स्वतंत्र मूल्यांकन होता है। यह निवेशकों को राजनीतिक जोखिम सहित किसी विशेष देश के ऋण में निवेश से जुड़े जोखिम के स्तर के संबंध में अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकती है। नंवबर 2019 में चीन से शुरू हुए कोरोना वायरस के चलते दुनियाभर के देशों की अर्थव्यवस्था की रफ्तार सुस्त देखी गई। ऐसे में कई देशों की सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग में बदलाव आने की संभावना है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। दुनियाभर में भारत को लेकर पॉजिटिव माहौल बनाये रखने के लिए नैरेटिव मैनेजमेंट का मसौदा तैयार किया गया है, ताकि वैश्विक स्तर पर भारत की साख बनाए रखी जा सके। असल में 2020 के मध्य में कोविड -19 की वैश्विक महामारी के चलते देश में बने हालात को लेकर दुनिया के थिंक-टैंकों, सूचकांकों और वैश्विक मीडिया की नकारात्मक प्रतिक्रियाओं के बीच आशंका है कि भारत की सॉवरेन रेटिंग को जंक ग्रेड में कम किया जा सकता है। ऐसे में भारतीय वित्त मंत्रालय के आर्थिक विभाग ने “नकारात्मक टिप्पणियों” का मुकाबला करने के लिए एक नैरेटिव मैनेजमेंट प्‍लान तैयार किया। साल 2020 के जून में वित्त मंत्रालय में तत्कालीन प्रधान आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल, जो कि अब प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार समिति के सदस्य हैं ने एक प्रजेंटेशन तैयार किया, जिसमें “भारत की सॉवरेन रेंटिग को प्रभावित करने वाले कारकों और उस पर उठाये जाने वाले कदम के बारे बताया। द इंडियन एक्सप्रेस ने 36 पेज के इस प्रजेंटेशन के हवाले से बताया है कि किसी देश की सॉवरेन रेटिंग के 18-26 प्रतिशत प्रभावी कारकों में उस देश में चल रहे शासन, राजनीतिक स्थिरता, कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार, मीडिया की आजादी का आंकलन शामिल होता है। इसमें कहा गया है कि ज्यादातर मामलों में इन प्रभावी कारकों पर भारत की रैंकिंग उसके साथी देशों से काफी नीचे है। इसका असर सॉवरेन रेटिंग के कम होने पर पड़ता है। सान्याल के मुताबिक रेटिंग एजेंसियों ने इन रेटिंग पर प्रभाव डालने वाले कारकों के लिए विश्व बैंक के वर्ल्ड गवर्नेंस इंडिकेटर को एक प्रॉक्सी के रूप में इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि इस बात का खतरा है कि थिंक टैंक, सर्वेक्षण एजेंसियों और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया द्वारा भारत पर नकारात्मक टिप्पणी के चलते हम WGI स्कोर में गिरावट देख सकते हैं। मुमकिन है कि इससे भारत की सॉवरेन रेटिंग जंक ग्रेड में चली जाये। प्रजेंटेशन में सान्याल ने कहा कि सॉवरेन रेटिंग को जंक ग्रेड में जाने से बचाने के लिए वैश्विक थिंक-टैंक और सर्वेक्षण एजेंसियों तक पहुंचना और सामान्य रूप से भारत की पॉजिटिव इमेज बनाये रखना काफी जरूरी है। वित्त वर्ष 2019-20 में अधिकांश रिपोर्ट्स में भारत को लेकर “नकारात्मक टिप्पणी” होने का अनुमान लगाया गया था। खास तौर पर जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019, नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019, एनआरसी और पीएम मोदी और भाजपा की ‘हिंदू राष्ट्रवादी’ राजनीति, मंदिर निर्माण के मुद्दे पर भारत के खिलाफ नकारात्मक टिप्पणी होने का अनुमान लगाया गया। मूडीज ने 1 जून 2020 को भारत को Baa2 से Baa3, कर दिया था, जो रेटिंग का सबसे निचला ग्रेड होता है। वहीं फिच रेटिंग्स ने भी 18 जून 2020 को भारत के दृष्टिकोण को स्थिर से नकारात्मक में बदल दिया था। सान्याल ने कहा कि भारत के बारे में “लगातार” नकारात्मक टिप्पणी भी सॉवरेन रेटिंग एजेंसियों के लिए आधार बन रही थी। हालांकि, उम्मीद है कि रेटिंग एजेंसियां ​इससे आगे बढ़ेंगी। अब यहां पर यह जानना भी जरुरी है कि सॉवरेन रेटिंग क्या होती है? विभिन्न देशों की सरकारों की उधार चुकाने की क्षमता को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां सॉवरेन रेटिंग का निर्धारण करती हैं। इसे तय करने में इकॉनोमी, मार्केट और राजनीतिक जोखिम को आधार माना जाता है। रेटिंग से पता चलता है एक देश आने वाले समय में अपने कर्जे चुका सकेगा या नहीं? इसमें टॉप इन्वेस्टमेंट ग्रेड से लेकर जंक ग्रेड तक की रेंटिंग होती है। जंक ग्रेड को डिफॉल्ट श्रेणी में माना जाता है। एजेंसियां आमतौर पर आउटलुक रिवीजन के आधार पर देशों की रेटिंग तय करती हैं। आउटलुक रिवीजन निगेटिव, स्टेबल और पॉजिटिव मानकों पर होता है। किसी देश का आउटलुक पॉजिटिव होने पर उसकी रेटिंग के अपग्रेड होने की संभावना बढ़ जाती है। इस सॉवरेन रेटिंग को पूरी दुनिया में स्टैंडर्ड एंड पूअर्स, फिच और मूडीज इन्वेस्टर्स ही तय करती हैं। एसएंडपी और फिच रेटिंग के लिए बीबीबी+ (BBB+) को मानक रखती हैं, वहीं मूडीज बीएए3 (Baa3) मानक रखती है। यह सबसे ऊंची रेटिंग है। इन्हीं के आधार पर निवेशक अपने इनवेस्टमेंट का प्लान तय करते हैं। कई देश अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए दुनियाभर के निवेशकों से कर्ज लेते हैं। यह निवेशक कर्ज देने से पहले रेटिंग पर गौर करते हैं। जिन देशों की सॉवरेन रेटिंग कम जोखिम वाली होती है, उन देशों को कम ब्याज दरों पर कर्ज मिल जाता है। लोगों का यह मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के होते हुए कारोबार के मामले में भारत कमजोर कैसे हो सकता है। क्योंकि एक तरफ तो गुजरातियों को ​बेहतरीन कारोबारी माना जाता है, तो मुख्यमंत्री रहते मोदी ने गुजरात में जिस तरह दुनियाभर के निवेशकों को आकर्षित किया, उसके बाद मोदी पर देश दुनिया के कारोबारियों को अधिक भरोसा है। ऐसे में यदि भारत की सॉवरेन रेटिंग गिरती है, तो यह बहुत चिंता का विषय है। वैसे इसके गिरने के ​पीछे कई कारक होते हैं, जैसे विदेशी मीडिया के द्वारा किसी देश के प्रति नेगेटिव नैरेटिव बनाना, कई देशों द्वारा एसएंडपी और फिच रेटिंग के साथ मूडीज को अपने हिसाब से प्रभावित करना भी शामिल होता है। ऐसे में मोदी सरकार द्वारा जो नैरेटिव बनाने का प्रयास शुरू किया गया है, उसके पीछे अमेरिका जैसे कुछ देशों की कारस्तीनी को भी जिम्मेदार माना जा रहा है, जो भारत की बढ़ती ताकत से चिंतित हैं और लगातार ऐसे प्रयास करते रहते हैं कि निवेशक कम से कम निवेश करें, ताकि भारत मजबूत नहीं बने और उसकी दादागिरी चलती रहे। अब देखाना यह होगा कि रूस यूक्रेन युद्ध में अमेरिका को आंख मिलाकर बराबरी का रुतबा ​साबित करने वाली मोदी सरकार इस आर्थिक चुनौती से कैसे निपटती है? क्योंकि इस मोर्चे पर विफल होने का मतलब यह है कि सरकार देश की उन्नती के लिए जो कुछ भी कर रही है, वह सब व्यर्थ हो जाता है, यदि विदेशी निवेशकों का मनोबल कमजोर होता है।

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