भारत ने 57 इस्लामिक देशों को दिया जवाब, आगे भी देंगे

Ram Gopal Jat
पैगंबर मोहम्मद के उपर कथित तौर पर अपमानजनक टिप्पणी करने पर भाजपा ने प्रवक्ता नूपुर शर्मा को निलंबित और दिल्ली के मीडिया हैड नवीन जिंदल से निष्कासित कर दिया। इसके बाद सोशल मीडिया पर भाजपा के समर्थक ही भाजपा को सवालों में घेर ले रहे हैं, खासकर जो भाजपा को हिंदूओं की पार्टी के दम पर समर्थन करते हैं। इधर, इस्लामिक संगठन ने भारत में इस्ला​म के खिलाफ नफरत फैलाने जैसा सवाल उठाया तो भारत के विदेश मंत्रालय ने करारा जवाब देकर ओआईसी की एक एजेंडा चलाने वाली हैकड़ी निकाल दी है। सवाल यह उठता है कि ऐसी क्या आफत आ पड़ी कि भाजपा को नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल जैसे नेताओं को पार्टी से बाहर करने का स्टेप उठाना पड़ा? सवाल यह भी उठता है कि क्या इसके बाद भाजपा उन सवालों से बच पायेगी, जो विपक्ष बिना सिर पैर के उठा रहा है? असल मामला क्या है, इसका क्या दुष्परिणाम हुआ और अब इससे क्या होने वाला है, इन्हीं सब सवालों से पर्दा उठाने की कोशिश करते हैं। बीजेपी ने राष्ट्रीय पार्टी प्रवक्ता नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। नूपुर शर्मा पर इस्लाम पर विवादित टिप्पणी करने का आरोप लगा है। कहा जा रहा है कि इन्हीं के बयानों के कारण कानपुर में हिंसा भड़की थी। इसके साथ ही नूपुर को वाई श्रेणी की सुरक्षा भी दी गई है। नूपुर शर्मा की टिप्पणी के बाद विवाद बढ़ने पर पहले तो पार्टी ने सफाई दी, उसके बाद नूपुर को छह साल के लिए प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया गया। साथ ही पार्टी ने दिल्ली बीजेपी के मीडिया प्रमुख नवीन जिंदल को भी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। नवीन जिंदल पर भी विवादित बयान देने का आरोप है। निलंबन पत्र में पार्टी की केंद्रीय अनुशासन समिति ने लिखा है कि इन नेताओं ने विभिन्न मामलों पर पार्टी की स्थिति के विपरीत विचार व्यक्त किए हैं… आगे की जांच के लिए इनको तत्काल प्रभाव से पार्टी से और सभी जिम्मेदारियों से निलंबित कर दिया जाता है।
असल में पिछले दिनों रिपब्लिक भारत की टीवी डिबेट में एक मौलवी द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर की ज्ञानवापी मस्जिद में मिले शिवलिंग पर अपमानजनजक टिप्पणी की थी,​ जिसपर जवाब देते हुये नूपुर शर्मा ने गुस्से में आकर पैगंबर मोहम्मद के के घोडे पर उड़ने वाली बात बोल दी थी। अल्ट न्यूज से जुड़ हुये मोहम्मद जुबेर ने इस डिबेट में से महज 30 सैकेंड का वीडियो काटकर खाडी के इ​स्लामिक देशों और भारत में संचालित कट्टर इस्लामिक संगठनों को भेज दिया,​ जिसके बाद नूपुर शर्मा के खिलाफ यह पूरा माहौल क्रियेट किया गया। नूपुर शर्मा दिल्ली विवि छात्रसंघ का चुनाव जीतने वाली एबीवीपी की एकमात्र महिला उम्मीदवार रही हैं। वह पेशे से वकील हैं और अरविंद केजरीवाल के खिलाफ चुनाव लड़ चुकी हैं। माना जा रहा है कि जैसे ही नूपुर शर्मा की टिप्पणी कानपुर दंगों से जुड़ने लगी, तो बीजेपी असहज होने लगी। यही कारण था कि बीजेपी ने बिना नाम लिए ही इशारों-इशारों में नूपुर शर्मा के बयानों पर सफाई जारी की। कहा कि भाजपा किसी भी ऐसी विचारधारा के खिलाफ है, जो किसी भी संप्रदाय या धर्म का अपमान करती है, भाजपा ऐसे अपमान करने वाले लोगों का समर्थन भी नहीं करती है। भाजपा हर धर्म का सम्मान करती है। इस मामले को लेकर मुंबई पुलिस ने रजा अकादमी की मुंबई विंग के संयुक्त सचिव इरफान शेख की शिकायत के आधार पर नूपुर शर्मा के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज की है। जिसमें कहा गया है कि नूपुर शर्मा ने ज्ञानवापी मुद्दे पर एक टीवी डिबेट में कथित तौर पर पैगंबर के बारे में अपमानजनक टिप्पणी की है।
कानपुर में एक मुस्लिम संगठन ने नूपुर शर्मा की टिप्पणी के विरोध में दुकानें बंद करने का आह्वान किया था। इसी दौरान दो पक्षों के बीच दुकान बंद करने को लेकर हिंसा भड़क गई। पुलिस के अनुसार इस झड़प में 20 पुलिसकर्मियों सहित कम से कम 40 लोग घायल हो गए। इस मामले को लेकर योगी सरकार ने कड़ा रुख अपनाया और दंगा करने वालों के खिलाफ कानून सम्मत फुल प्रुफ एक्शन लिया। किंतु मामला केवल कानून तक सीमित नहीं रहा और अंतत: भाजपा को बैकफुट पर आकर अपने नेताओं को पार्टी से बाहर करना पड़ा। आखिर क्यों भाजपा इतनी मजबूर हुई कि उसको नेशनल लेवल पर इतना बड़ा निर्णय लेना पड़ा? आइए इसको समझते हैं, लेकिन उससे पहले कुछ उदाहरण समझते हैं, जो इस घटना को कनेक्ट करते हैं, जिनसे आपको सबकुछ सहज रुप से समझ आयेगा। साल 2002 में गोधरा कांड के बाद जब गुजरात में दंगे थे, तब अमेरिका ने कड़ी नाराजगी दिखाते हुये गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का अमेरिकी वीजा रद्द कर दिया था। जिसके बाद मोदी प्रधानमंत्री बनने तक कभी अमेरिका नहीं गये, उल्टा उन्होंने इसी को अपने दिल की आग बनाकर दिल्ली के शीर्ष पद तक पहुंचे और उन्होंने अमेरिका को रेड कारपेट बिछाकर उनका स्वागत करने को मजबूर कर दिया। उस दौरान मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को अमेरिका ने वीज़ा देने से मना कर दिया था। यह पूर्णतया गलत निर्णय था और मोदी के लिए व्यक्तिगत अपमान का विषय भी था, लेकिन जब मई 2014 में प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने भारत के संबंध अमेरिका से प्रगाढ़ बनाने के राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रखा। अपने व्यक्तिगत अपमान को बाधा नहीं बनने दिया। सितम्बर 2014 में पीएम बनने के कुछ ही समय बाद मोदी राजकीय यात्रा पर अमेरिका गए, अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उनके सम्मान में भोज का आयोजन किया, फिर राष्ट्रपति ओबामा जनवरी 2015 में भारत आये।
लेकिन अमेरिका यात्रा से पहले प्रधानमंत्री मोदी के समक्ष एक समस्या आ रही थी। उस समय भारत-अमेरिकी संबंधों में तनाव था। कारण यह था दिसंबर 2013 में भारत की डिप्लोमेट देवयानी खोब्रागडे, जो न्यूयॉर्क में नियुक्त थीं, को पुलिस ने "वीज़ा फ्रॉड" के केस में अरेस्ट कर लिया था। देवयानी को एक आम कैदी के रूप में ट्रीट किया गया। कहा जाता है कि उनकी बेइज्जत करनी की तरह तलाशी ली गयी। भारत के राजनेयिक एवं आम जनता देवयानी को अपमानित किये जाने से क्रोधित थी। किंतु राष्ट्र किसी भी व्यक्ति या अधिकारी से बड़ा होता है और देवयानी की गिरफ्तारी भारत अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों को प्रगाढ़ करने में रुकावट नहीं बनानी चाहिए, इसलिये मोदी ने उस अपमान को भुलाकर अमेरिका जाना स्वीकार किया और उसी देश से भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर सम्मान पाया, जिस अमेरिका ने उनको गुजरात का मुख्यमंत्री होन के तौर पर वीजा रद्द कर अपमान कर रहा था। आज भारत-अमेरिका संबंध किसी भी अन्य काल की तुलना में सबसे प्रगाढ़ हैं। प्रधानमंत्री बनते ही मोदी को एक अन्य समस्या से भी सामना करना पड़ा। वर्ष 2012 में इटेलियन नेवी के दो कर्मियों को भारत ने अपने मछुवारों को मारने के अपराध में अरेस्ट कर लिया था। वह दोनों इटली नेवी के एक व्यावसयिक जहाज पर आधिकारिक रूप से पोस्टेड थे, अपनी यूनिफार्म में थे और उन्हें जहाज को समुद्री डाकुओं से बचाने की जिम्मेवारी मिली हुई थी, लेकिन भारतीय मछुवारों को डाकू समझकर उन दोनों ने गोलिया चला दीं, जिससे मछुवारे मारे गए थे। यह केस काफी कॉम्प्लिकेटेड था। बिना अंतर्राष्ट्रीय कानून की गहराई में जाकर इतना कह सकते हैं कि उस घटना के बाद भारत के संबंध न केवल इटली से, बल्कि यूरोपियन यूनियन के देशों से कटु हो गए थे।
मोदी ने इस समस्या से निपटने का मार्ग यह निकाला कि भारत एवं इटली, दोनों इस केस को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में ले जाएंगे, साथ ही वे दोनों नौसैनिक इटली भेज दिए जाएंगे। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का जो निर्णंय होगा, वह दोनों देशों को स्वीकार होगा और इस प्रकार से इस समस्या का भी समाधान निकाला गया, ना कि किसी व्यक्तिगत केस को राष्ट्र हित के ऊपर रखा गया। इसी तरह से 1995 के पुरुलिया हथियार काण्ड़ का मुख्य अभियुक्त डेनिश नागरिक किम डैवी था, उसको भारत ने अरेस्ट कर लिया था, लेकिन डैवी किसी तरह भाग निकला और छुपकर डेनमार्क पहुंच गया। बाद में डेनमार्क ने एक स्थानीय कोर्ट के निर्णय का सहारा लेते हुए डैवी को भारत भेजने से मना कर दिया, जिससे दोनों देशों के संबंंध इतने खराब हो गए कि वर्ष 2011 में भारत ने राजनयिक संबंध छोड़कर डेनमार्क से सभी संबंध तोड़ दिये। अभी पिछले माह प्रधानमंत्री मोदी डेनमार्क की यात्रा पर गए थे, जहाँ उनका भव्य स्वागत किया गया। अब भारत-डेनमार्क संबंध मजबूती की तरफ बढ़ रहे हैं, जिसका लाभ व्यापार, ऊर्जा, तकनीकी एवं शिपिंग पर दिखाई दे रहा है। कहने का तात्पर्य यह है कि राष्ट्रीय हित किसी भी व्यक्ति से बहुत विशाल होता है, किसी के एक व्यक्ति के अपमान से काफी बड़ा होता है। चाहे वह व्यक्ति सरकार में हो, राजनयिक सेवा में हो, नेवी का सदस्य हो, फाइटर प्लेन का पायलट हो, या फिर किसी राजनीतिक दल का प्रवक्ता ही क्यों ना हो। अगर व्यक्ति विशेष को केंद्र में रखकर अंतर्राष्ट्रीय संबंध बनाना होता तो मोदी स्वयं अभी तक अमेरिका नहीं जाते, और ना ही वहां के दो राष्ट्रपति भारत आ पाते। जो अमेरिका आज भारत धरती पर सबसे घनिष्ठ संबंध बनाने का दावा कर रहा है, उसकी तो कल्पना ही नहीं की जा सकती थी।
अब बात करते हैं नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल केस की। असल में इन नेताओं ने पैगंबर मोहम्मद के बारे में जो भी टिप्पणी की, वह अलग विषय है, लेकिन भारत में बैठे कुछ मुस्लिम संगठनों ने इसको धार्मिक रंग दे दिया। नतीजा यह हुआ कि कतर, कुवैत जैसे खाडी देशों में भारत के नागरिकों को नौकरी से निकाले जाने का अभियान चलाया गया। बड़े पैमाने पर ट्वीटर और फेसबुक पर पोस्ट लिखकर हिंदुओं के खिलाफ नफरत फैलाने का ऐजेंडा चलाया गया। जब कोई ओछी हरकत पर उतर आये है, तो उसको यकायक ठीक नहीं किया जा सकता, उसके लिये समय लिया जाता है, ताकि उसका ठीक से ट्रीटमेंट किया जा सके। हालांकि, संयुक्त अरब अमीरात और सउदी अरब ने इसको लेकर कोई टिप्पणी नहीं की, बाकि कतर, कुवैत और इरान में भारतीय राजदूत को तलब किया गया, जिन्होंने भारत का पक्ष रखते हुये कहा कि नूपुर शर्मा और नवीन जिंदगी की टिप्पणी से भारत सरकार कोई इत्तेफाक नहीं रखती है। इधर, नूपुर और नवीन ने भी माफी मांगते हुये कहा कि टीवी डिबैट में उत्तेजना के दौरान उनके मुंह से कुछ निकल गया और इससे किसी धर्म के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंची हों, तो वे इसके लिये माफी मांगते हैं। अब सवाल यह उठता है कि भारत इस मामले में कुवैत, कतर और इरान के आगे झुका या नहीं? असल में भारत से खाडी देशों में बड़े पैमाने पर हिंदू ही नहीं, अपितु मुस्लिम भी काम करने के लिये जाते हैं। इन देशों में करीब 50 लाख से ज्यादा भारतीय रहते हैं, जिनके खिलाफ एक अभियान चलाया गया है। परिणाम यह हुआ कि कईयों को नौकरी से निकाल दिया गया और उनके खिलाफ नफरत का माहौल बनाया जा रहा है, इसलिये भाजपा ने अपने दो नेताओं को पार्टी से बाहर कर इन देशों समेत पूरे मुस्लिम समुदाय को यह दिखाया है कि भारत किस भी धर्म का अपमान नहीं करता है, वह सबका सम्मान करता है।
इसके बाद मामला शांत होता हुआ नजर आ रहा है, लेकिन कुछ इस्लामिक कट्टरपंथी इस मामले के सहारे अपनी सियासी रोटियां सेंकने का काम कर रहे हैं। तो साथ ही कांग्रेस पार्टी भी देश की अस्मिता से जुड़ चुके मामले में राजनीत कर रही है। पार्टी के प्रवक्ता पवन खेड़ा, जिनको अभी हाल ही में राज्यसभा का टिकट नहीं दिये जाने से भयंकर कुंठित थे, उन्होंने वीडियो बयान जारी कर कहा कि इसके लिये प्रधानमंत्री मोदी को माफी मांगनी चाहिये। अब पवन खेड़ा जैसे लोगों को कौन समझाये कि मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं, ना कि भाजपा के, और यदि मोदी ने माफी मांगी, तो इसका मतलब देश ने माफी मांगी है। लेकिन लगता है मोदी विरोध में कांग्रेसी इतने अंधे हो गये हैं तो उनको भाजपा और देश के प्रधानमंत्री में अंतर ही नजर नहीं आता। खैर, यह मामला तो जल्द ठंडा हो ही जायेगा, लेकिन जो कुवैत और कतर जैसे देश आज तेल के दम पर उछल रहे हैं, वो यह भूल जाते हैं कि मोदी ने आजतक किसी अपमान का बदला लिये बिना नहीं छोड़ा है। देश तेजी से तरक्की कर रहा है और अमेरिका व रूस से तेल आयात बढ़ाया जा रहा है, ताकि इन इस्लामिक देशों से तेल आयात खत्म किया जा सके। साथ ही इलेट्रिक कारों व सौर उर्जा से चलने वालों वाहनों पर भारत में बहुत काम किया जा रहा है। यह बात सही है कि देश की जरुरतों का करीब 50 फीसदी तेल इन्हीं खाड़ी देशों से आयात किया जाता है। भारत को रूस से कच्चा तेल आयात बढ़कर 11 फीसदी हो गया है, जिसको और बढ़ाया जायेगा, साथ ही अमेरिका से तेल आयात बढ़ाने का काम किया जा रहा है। अभी भी अपनी जरुरतों का 15 फीसदी तेल भारत खुद उत्पादन करता है, बाकि एथॅनोल पर काम किया जा रहा है, जिससे 20 फीसदी की पूर्ति करने की योजना है।
माना जा रहा है कि खाड़ी देशों में 2030 तक तेल खत्म् हो जायेगा, तो भारत ने भी खाड़ी देशों से तेल आयात बंद करने का लक्ष्य रखा हुआ है, जिसमें सफलता मिलती दिख रही है। खाड़ी देशों के पास तेल के अलावा कुछ भी नहीं है। तेल के दम पर इन देशों के कट्टर इस्लामिक संगठन आज अभियान चलाकर भारत को माफी मांगने की मांग कर रहे हैं, लेकिन जिस दिन भारत इनसे तेल खरीदना बंद करेगा, उसी दिन ये खाड़ी देश भारत से हाथ जोड़कर माफी के साथ सहायता की भीख मांगते भी दिखाई देंगे।

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