मोदी—जयशंकर ने बदल डाली भारत की विदेश नीति

Ram Gopal Jat
भारत में बैठकर भारत के खिलाफ गतिविधियों में लिप्त एक निहायत ही मूर्ख मोहम्म्द जुबेर की एक जाहिल और घटिया हरकत के कारण कुछ खाड़ी देशों ने भारत से नाराजगी जाहिर की, यहां तक कि द्विपक्षीय संबंधों पर विपरीत असर देखने को मिला, लेकिन भारत की रणनीति भरे कदम ने जुबेर जैसे करोड़ों देश विरोधियों के मुंह पर करारा तमाचा मारा है। खाड़ी देशों के खिलाफ रणनीतिक जीत हो, या अमेरिका की परछाई में चल रहे रूस यूक्रेन युद्ध के कारण दुनिया आज जहां दो गुटों में बंटी हुई है, तो भारत अपने हितों को ध्यान में रखकर अपनी पुरानी गुट निरपेक्ष नीति पर कायम है। मोदी सरकार की नीतियों का ही परिणाम है कि आज भारत अमेरिका को आंख दिखाकर बात करता है, तो चीन भी अपनी हरकतों को कंट्रोल कर पा रहा है। लंबे समय से दुश्मन रहा पाकिस्तान अपनी छोटी मोटी हरकतों के सहारे भारत में अस्थिरता पैदा करने की विफल कोशिश करता रहता है, लेकिन उसकी पार नहीं पड़ रही है। पिछले चार—पांच साल में उसकी हैकड़ी निकल चुकी है और अब तो उसके हालात ऐसे हैं कि खुद की आवाम को दो वक्त का खाना खिलाने में ही पीसने छूट रहे हैं।
भारत युद्धकाल में बीते 100 दिन के दौरान रूस से करीब 30 फीसदी सस्ती दरों पर 2 बिलियन डॉलर का कच्चा तेल खरीदकर अमेरिका आंख की किरकिरी बना है, तो उसके लाख चाहने के बाद भी भारत ने रूस का विरोध नहीं कर अपने ​इरादे स्पष्ट कर दिये हैं। हालांकि, भारत को अपने पक्ष में करने के लिये अमेरिका ने कई तरह के पैंतरे चले, लेकिन उसकी भारत के सामने एक नहीं चली। अमेरिका की हमेशा से यही नीति रही है कि जो भी देश विकास करके उसके बराबर आता हुआ दिखाई देता है, तो उसके खिलाफ ऐसी रणनीति चली जाती है कि वह फिर से पीछे रह जाता है। एक समय ऐसा था, जब अमेरिका व रूस, दो ही महाशक्तियां थीं। बाद में 90 के दशक में अमेरिका की रणनीति के कारण संयुक्त राज्य रूस का विघटन हुआ और रूस कमजोर हो गया। आज वही स्थिति भारत व चीन की है। चीन तो करीब करीब अमेरिका के बराबर ही हो गया है, तो भारत भी अब अमेरिका से बराबर का बर्ताव करने लगा है। यही भारत का व्यवहार अमेरिका को पसंद नहीं आ रहा है। जिसके कारण अमेरिका लगातार भारत को आंख से डराने की कोशिश कर रहा है। लेकिन मोदी सरकार की विदेश नीति ने उसको हर बार करारा जवाब दिया है। क्या है भारत की रणनीति और क्या अमेरिका को यह नीति रास आयेगा, इन्हीं सवालों के जवाब जानने का प्रयास करेंगे, लेकिन उससे पहले श्रीलंका ने भारत की मुक्तकंठ से प्रशंसा कर चीन को चौंका दिया है।
आजादी के बाद से श्रीलंका पहली बार इतने बड़े संकट में फंसा हुआ है। इसके चलते वह कंगाल हो गया है और उसको आईएमएफ और चीन जैसों ने ऋण देने से साफ तौर मना कर दिया है। कंगाली के कारण श्रीलंका अपने 51 अरब डॉलर के लोन की किश्त भी नहीं दे पाया है, जिसके चलते विश्व समुदाय ने उसकी मदद करने से मना कर दिया। परिणाम यह हुआ है कि श्रीलंका में महंगाई आसमान पर पहुंच गई और लोगों को खाने पीने की चीजें नहीं मिलने के कारण हाहाकर मचा हुआ है। ऐसे समय में भारत ने श्रीलंका को तीन अरब डॉलर की सहायता दी है, जिसके सहारे श्रीलंका की अर्थव्यवस्था वापस पटरी पर लाने के प्रयास किये जा रहे हैं। चीन ने आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति के लिए 7.3 करोड़ डॉलर की मदद का ऐलान तो किया, लेकिन उसके ऋण स्थगित रखने की अपील और 2.5 अरब डॉलर का ऋण देने की घोषणा से पलट गया। ब्लूमबर्ग को दिए एक साक्षात्कार में राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने कहा कि श्रीलंका इस संकटकाल में भी चीन से अपने क्रेडिट का 1.5 अरब डॉलर नहीं ले सका। श्रीलंका को लगता है कि चीन ने अपना रणनीतिक ध्यान दक्षिण-पूर्व एशिया में स्थानांतरित कर दिया है। चीन की रणनीति रुचि अब फिलीपींस, वियतनाम, कंबोडिया और अफ्रीका में अधिक है। यहां तक कि चीन का पाकिस्तान पर भी ध्यान कम हो गया है।
चीन ने श्रीलंका में करीब एक हजार करोड़ डॉलर निवेश कर रखा है, जबकि पाकिस्तान में सीपेक के नाम पर 6 हजार करोड डॉलर का निवेश चल रहा है। इससे पता चलता है कि कितनं बड़े पैमाने पर चीन ने भारत के खिलाफ जाल बिछा रखा है, किंतु जब श्रीलंका पर संकट आया तो यही चीन पीछे हट गया। कहा जाता है कि साल 2017 में जब चीन ने हंबनटोटा पोर्ट को लीज पर लिया था, उसी दिन से श्रीलंका के उल्टे दिन शुरू हो गये। उसके बाद वह चीन पर निर्भर होता गया और आज उसकी कंगाली सामने आई है। इसी तरह से पाकिस्तान भी इस वक्त भयंकर महंगाई की मार झेल रहा है। उसको आईएमएफ ने भी बैलआउट पैकेज देने से मना कर दिया है। पाकिस्तान में भी पेट्रोल 230 रुपये लीटर से अधिक बिक रहा है। पाकिस्तान का रुपया गिरकर 200 तक पहुंच गया है। ऐसे समय में उसका हमेशा मददगार रहा अमेरिका व यूएई ने भी उसको ऋण देने से साफ मना कर दिया है। चीन पहले ही 19 हजार करोड़ डॉलर देने की बात से पलट चुका है। पाकिस्तानी हुकुमत पर इतना दबाव है कि वह भारत से फिर बिना शर्त कारोबार शुरू करना चाहता है, लेकिन भारत ने इसमें कोई रुचि नहीं दिखाई है। बात भारत की विदेश नीति की मुखरता की करें तो यह नरेंद्र मोदी के उस वाक्य को चरित्रार्थ कर रही है, जो उन्होंने प्रधानमंत्री बनने से पहले कही थी। साल 2013 में एक टीवी इंटरव्यू में मोदी ने भारत द्वारा अमेरिका के सामने दबकर रहने का उल्लेख करते हुये कहा था कि भारत को अमेरिका से आंख मिलाकर बात करनी चाहिये, हमारे अमेरिका के साथ कारोबारी रिश्ते हैं, ना कि किसी दबाव के। यही भारत सरकार पिछले कुछ समय से कर रही है। आज भारत व अमेरिका के बीच कारोबार 119 अरब डॉलर से उपर पहुंच चुका है, जिसमें भारत को व्यापारिक लाभ की स्थिति है, तो दुनिया में समर्थन के लिये अमेरिका को भारत की सख्त आवश्यकता है।
पिछले तीन माह से रूस यूक्रेन युद्ध के दौरान कई बार अमेरिका यह प्रयास कर चुका है कि किसी भी तरह से भारत अमेरिका के साथ आ जाये, लेकिन भारत अमेरिका के हर पैंतरे का बखूबी जवाब दिया है। विदेश मंत्री सुब्रमण्यम जयशंकर ने कई बार स्पष्ट किया है कि भारत किसी भी लोभ, लालच, डर या दबाव में आये बिना अपने हित के अनुसार निर्णय करेगा। जबकि अमेरिका चहता है​ कि भारत भी रूस से संबंध तोड़ ले, ताकि वह अकेला पड़ जाये और दबाव में आकर उसे यूक्रेन से पीछे हटना पड़े। किंतु भारत अपने हितों को ध्यान में रखकर निष्पक्ष बना हुआ है। असल में भारत को आज भी सर्वाधिक सुरक्षा उपकरण रूस से ही मिलते हैं, तो खाड़ी देशों पर निर्भरता कम करने के लिये भारत रूस से कच्चा तेल आयात बढ़ा दिया है। अमेरिका और बाकी विश्व ही नहीं, बल्कि भारत के लोग भी अब से पहले यही सोचते थे कि भारत कभी अमेरिका की बराबरी नहीं कर सकता, उसको अमेरिका के कहे अनुसार ही चलना होगा। किंतु मोदी सरकार ने इस धारण को बिलकुल तोड़ दिया है। मोटे तौर पर देखा जाये तो आज भारत के बजाये अमेरिका ही भारत के अनुसार चलता दिखाइ दे रहा है। सरकार की विदेश नीति में जो आक्रामकता आई है, वैसी आक्रामकता पहले कभी नहीं देखी गई। विदेश मंत्री हो या प्रधानमंत्री, सभी अमेरिका की हां में हां मिलाते थे। अमेरिका द्वारा भारत पर प्रतिबंध लगाये जाते थे, तो पूरा यूरोप भी ऐसा ही करता था, लेकिन इस वक्त ना तो अमेरिका ही भारत पर अपनी मर्जी थोप पा रहा है, और ना ही यूरोपीयन देश अमेरिका के कारण भारत से रिश्ते बना या बिगाड़ पा रहे हैं। सैन्य खर्च के तौर पर भारत आज दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है, जिसके साथ पार्टनरशिप करे बिना अमेरिका के इंडो पैसेफिक रीजन में सपने पूरे नहीं हो पाते हैं, तो आर्थिक तौर पर तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था होने के कारण अगले चार—पांच साल में जापान जैसे विकसित देशों को ​पछाड़कर भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बनने जा रहा है। सयुंक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भले ही भारत स्थाई सदस्य नहीं हो, लेकिन वोट करने या नहीं करने से पूरा विश्व प्रभावित होता है। यही कारण रहा है कि अमेरिका के लाख चाहने के बाद भी जब भारत ने यूएन सुरक्षा परिषद में रूस के खिलाफ वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया ते अमेरिकी मंसूबे पूरे नहीं हो पाये। परिणाम यह हुआ है कि कुछ बरस पहले मोदी को जो अमेरिका वीजा देने से इनकार कर चुका था, वही आज भारत को धरती पर सबसे करीबी पार्टनर बनाने को लालायित है।
भारत की अमेरिका पर इस रणनीति और नैतिक जीत का आधार है भारत का विकास और मजबूत सरकार, जिसने पाकिस्तान के पुलवामा हमले के बाद एयर ​स्ट्राइक की, और उस दौरान जब विंग कमांडर अभिनन्दन पाकिस्तानी फौज द्वारा पकड़ लिये गये तो खुद अमेरिका ने पाकिस्तान को भारत की ओर से चेतावनी देते हुये अभिनन्दन को सकुशल वापस भेजने को कहा। मतलब यह है कि इन दिनों जो पैगंबर को लेकर विवाद चल रहा है और उसके कारण खाड़ी देशों ने जो भारत के खिलाफ बोलने का काम किया है, उसमें भी अमेरिका का नाम सामने आ रहा है, लेकिन भारत ने रणनीति बदलकर अमेरिका के मंसूबों पर पानी फैर दिया है। इस मामले में ओआईसी से जुड़े 8—10 मुस्लिम देशों ने अमेरिका के कहने पर भारत के खिलाफ अभियान शुरू किया था, लेकिन नीदरलैंड, मिस्र और रूस जैसे 34 देशों ने भारत के साथ खड़े होकर अमेरिका के इस पैंतरे पर भी पानी फैर दिया है।
इसी से समझ आता है कि भारत कैसे अमेरिका जैसी महाशक्ति को आंख दिखाकर बात कर रहा है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री जयशंकर ने पिछले तीन चार माह में दुनिया को बता दिया है कि निरपेक्ष रहकर कैसे नैतिक जीत हासिल की जा सकती है, तो अजीत डोवाभ, गृहमंत्री अमित शाह जैसे चाण्क्यों ने शानदार रणनीति बनाकर अमेरिका और चीन जैसे महाशक्ति माने जाने वाले देशों को पर्दे के पीछे से कमजोर करने का काम किया है। आज भारत की नीति और रणनीति में मोदी का 9 साल पुराना ध्येय वाक्य साफ दिखाई दे रहा है। और यही कारण है कि भारत की विदेश नीति में इतनी आक्रामकता दिखाई दे रही है।

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